जिस बूढ़े आदमी की जान बचाई..वो निकला बड़ा बिजनेसमैन..फिर जो हुआ..
दिल्ली की सुबह – सिमरन की इंसानियत और किस्मत की कहानी
दिल्ली की सुबह हमेशा शोर और जल्दी का मंजर लेकर आती है। ट्रैफिक की आवाज, बसों का हॉर्न और लोगों की तेज कदमों की भागदौड़। हर कोई अपने-अपने सपनों की तलाश में भाग रहा होता है। उसी भीड़ में एक लड़की थी – सिमरन। 25 साल की, साधारण परिवार से आई, लेकिन आंखों में बड़े सपने लिए। वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में असिस्टेंट की नौकरी करती थी। आज सुबह उसे एक जरूरी प्रेजेंटेशन देना था और वह पहले से ही लेट हो चुकी थी। हाथ में फाइल्स, कंधे पर बैग और आंखों में जल्दी पहुंचने की बेचैनी। वह रिक्शा छोड़कर पैदल ही सड़क पार करने लगी।
लेकिन तभी सड़क के किनारे भीड़ से थोड़ी दूर उसे एक अजीब सा नजारा दिखा। एक बूढ़ा आदमी खून से लथपथ सड़क पर गिरा हुआ था। लोग उसे देखकर भी आगे बढ़ रहे थे। कोई उसे छूने को भी तैयार नहीं था। सिमरन के कदम रुक गए। उसके दिल की धड़कन तेज हो गई। उसने खुद से कहा, “मुझे लेट हो रहा है। अगर मैं रुक गई तो ऑफिस का प्रेजेंटेशन मिस हो जाएगा। बॉस गुस्से से नौकरी तक छीन सकता है।” लेकिन अगले ही पल उसकी इंसानियत जीत गई। वह दौड़कर उस बूढ़े के पास पहुंची। “बाबा, बाबा आप सुन रहे हैं?” किसी को एंबुलेंस कॉल करो!” वह जोर से चिल्लाई, लेकिन भीड़ में से कोई नहीं आया। लोग बस खड़े होकर तमाशा देख रहे थे।
सिमरन ने हिम्मत दिखाई। उसने पास से एक ऑटो रोका और किसी तरह उस बूढ़े को खून से सने कपड़ों समेत उठाकर ऑटो में बिठाया। ऑटो वाले ने भी पहले मना किया, “मैडम, अब पुलिस केस हो जाएगा। मुझे नहीं पड़ना है इसमें।” सिमरन ने उसकी आंखों में आंखें डालकर कहा, “अगर इंसानियत मर गई है ना, तो जिंदगी भर पैसा भी तुम्हें चैन नहीं देगा। चलाओ वरना मैं पुलिस को बुला लूंगी।” डर और इंसानियत के बीच ऑटो वाला मान गया। कुछ ही मिनटों बाद वह बूढ़ा अस्पताल में भर्ती हो गया। डॉक्टरों ने तुरंत ऑपरेशन शुरू कर दिया। सिमरन वहीं बैठ गई। उसके दिमाग में अब भी ऑफिस का ख्याल था – मेरा प्रेजेंटेशन, बॉस का गुस्सा, शायद नौकरी। लेकिन दिल ने कहा – किसी की जान बचाना ही सबसे बड़ी नौकरी है।
वह वहीं रुक गई। घंटों तक बैठी रही। रात तक डॉक्टर बाहर आए और बोले, “आप सही समय पर ले आई वरना मरीज बच नहीं पाते। अब खतरे से बाहर हैं।” सिमरन की आंखों से राहत के आंसू निकल आए। उसने भगवान का धन्यवाद किया। लेकिन उसी वक्त उसे एहसास हुआ – आज ऑफिस नहीं जा पाई। मतलब बॉस का गुस्सा झेलना तय है।
अगले दिन जब सिमरन ऑफिस पहुंची, तो बॉस पहले से ही आग बबूला था। “मिस सिमरन, क्या आप जानती हैं कि कल कितना बड़ा प्रेजेंटेशन मिस हुआ? हमारी कंपनी का करोड़ों का प्रोजेक्ट दांव पर लग गया था। आप जैसे गैर जिम्मेदार लोग यहां काम करने के लायक नहीं होते। आप फायर हो चुकी हैं।” यह सुनकर सिमरन के कदम जमीन पर जम गए। उसकी आंखें भर आई, लेकिन उसने अपने दिल को समझाया – “मैंने जो किया सही किया। इंसानियत से बढ़कर कोई नौकरी नहीं।”
उस बूढ़े आदमी का इलाज चलता रहा और सिमरन हर दिन अस्पताल जाकर उसकी देखभाल करती। वह अपने सारे दुख-दर्द भूलकर उस अजनबी की सेवा में लग गई। कुछ दिन बाद बूढ़ा धीरे-धीरे चलने लगा और एक दिन उसका बेटा अस्पताल आया। कपड़ों, गाड़ियों और बॉडीगार्ड से साफ पता चलता था कि वह कोई अमीर इंसान हैं। सिमरन ने पहली बार तब जाना कि यह कोई साधारण बूढ़ा नहीं बल्कि एक बहुत बड़े बिजनेसमैन थे – जिनका नाम राजवीर मल्होत्रा था।
अस्पताल के उस कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था। सिमरन खिड़की के पास खड़ी थी। उसकी आंखों में थकान और नींद की कमी साफ झलक रही थी। बिस्तर पर बैठे बूढ़े आदमी ने धीरे से हाथ बढ़ाकर कहा, “बेटी, पास आओ।” सिमरन पास आई और मुस्कुरा कर बोली, “कैसा लग रहा है आपको? बाबा, आप ठीक हैं ना?” बूढ़े ने उसकी आंखों में गहराई से देखा और बोला, “अगर तुम उस दिन हिम्मत ना दिखाती तो मैं आज जिंदा नहीं होता। तुमने सिर्फ मेरी जान नहीं बचाई, बल्कि मुझे इंसानियत की असली कीमत भी दिखा दी।”
तभी कमरे का दरवाजा खुला। एक लंबा चौड़ा हैंडसम सा लड़का अंदर आया। उसके साथ दो बॉडीगार्ड्स भी थे। वह आगे बढ़कर झुका और अपने पिता का हाथ थाम लिया। “डैड, अब ठीक है ना? मैंने जैसे ही सुना, मैं तुरंत आया।” सिमरन थोड़ी देर चुपचाप खड़ी रही। बूढ़े ने बेटे से कहा, “अर्जुन, बेटा, अगर यह लड़की ना होती, तो आज तुम अपने पिता से हमेशा के लिए बिछड़ जाते।” अर्जुन की नजर पहली बार सिमरन पर गई। उसने हल्की सी मुस्कान दी, लेकिन सिमरन बस सिर झुका कर खड़ी रही।
कुछ देर बाद बूढ़े आदमी यानी राजवीर मल्होत्रा को डिस्चार्ज कर दिया गया। गाड़ी तैयार थी। बॉडीगार्ड्स बाहर खड़े थे। सिमरन ने चुपचाप बैग उठाया और जाने लगी। उसके मन में यही था कि उसने जो कर सकती थी कर दिया। अब उसकी कोई जगह नहीं है इस अमीर परिवार की जिंदगी में। लेकिन तभी पीछे से आवाज आई, “बेटी, तुम कहां जा रही हो?” सिमरन ने पलट कर देखा। राजवीर की आंखों में कृतज्ञता के आंसू थे। “बेटी, मैं जानता हूं तुमने मेरी वजह से अपनी नौकरी खो दी, लेकिन तुम्हें यकीन दिलाता हूं तुम्हारा यह बलिदान बेकार नहीं जाएगा।”
सिमरन बस इतना बोली, “बाबा, मैंने वो किया जो मेरा फर्ज था। नौकरी तो चली गई, लेकिन अगर मैंने इंसानियत खो दी होती तो शायद मैं खुद को कभी माफ ना कर पाती।” यह सुनकर अर्जुन कुछ देर तक उसे देखता रहा। उसके चेहरे पर अजीब सी गंभीरता थी।
सिमरन अकेले अपने छोटे से किराए के कमरे में बैठी थी। नौकरी जा चुकी थी। बचत बहुत कम थी। किराया, खर्च – सब उसकी चिंता बढ़ा रहे थे। लेकिन अंदर कहीं ना कहीं संतोष भी था – कम से कम मैंने किसी की जान तो बचाई। फोन की घंटी बजी। नंबर अनजान था। “हेलो, सिमरन?” दूसरी तरफ अर्जुन की आवाज थी। सिमरन चौंक गई। “जी, आप?” “मैं अर्जुन मल्होत्रा। डैड आपको याद कर रहे हैं। अगर आप कल हमारे घर आ सके तो हमें बहुत खुशी होगी।” सिमरन पहले तो मना करने वाली थी, लेकिन अंदर से कुछ बोला – जाना चाहिए।
सिमरन पहली बार मल्होत्रा हाउस पहुंची। शानदार बंगला, बड़ी-बड़ी गाड़ियां और हर जगह शानो-शौकत। राजवीर व्हीलचेयर पर बैठे थे। जैसे ही सिमरन अंदर आई, उनकी आंखों में चमक आ गई। “आओ बेटी, आओ। मैं तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रहा था।” सिमरन झुककर उनके पैर छूती है। राजवीर की आंखें भर आती हैं। अर्जुन पास खड़ा था। उसने मुस्कुराकर कहा, “डैड तो लगातार आपकी तारीफ करते रहते हैं। कहते हैं कि अगर यह लड़की ना होती तो मैं जिंदा नहीं होता।” सिमरन झेंप गई और बोली, “बाबा, मैंने बस इंसानियत निभाई। इसमें मेरी कोई खासियत नहीं है।”
राजवीर ने अर्जुन की तरफ इशारा करके बोले, “अर्जुन बेटा, मैंने जिंदगी में बहुत पैसे कमाए, लेकिन आज इस लड़की ने मुझे सिखाया कि असली दौलत इंसानियत है। मैं चाहता हूं कि तुम इस पर ध्यान दो।” अर्जुन सिर झुका कर सुनता रहा। फिर राजवीर ने सिमरन का हाथ पकड़ कर कहा, “बेटी, तुम्हें नौकरी की चिंता करने की जरूरत नहीं। कल से तुम मेरी कंपनी में काम करोगी।” सिमरन चौंक गई, “बाबा, लेकिन मैं…” राजवीर ने बात काट दी, “कोई लेकिन-परंतु नहीं। तुमने मुझे नया जीवन दिया है और अब तुम्हारी जिम्मेदारी मैं लूंगा।” अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा, “और पोजीशन भी साधारण नहीं होगी, तुम्हें मैनेजर की पोस्ट मिलेगी।”
सिमरन के लिए यह सब किसी सपने जैसा था। कल तक जिसके पास नौकरी नहीं थी, आज उसे इतनी बड़ी कंपनी में इतना बड़ा पद मिल रहा था। उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े। सिमरन अब मल्होत्रा ग्रुप ऑफ कंपनीज में मैनेजर की पोस्ट पर ज्वाइन कर चुकी थी। शुरुआत में उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह सब सच है। कल तक जो लड़की नौकरी कमाकर आंसू बहा रही थी, आज वही एक बड़े बोर्डरूम में बैठकर फैसले ले रही थी। सभी कर्मचारी हैरान थे – आखिर यह लड़की कौन है? अचानक इतनी बड़ी पोस्ट पर कैसे आ गई? लेकिन धीरे-धीरे सिमरन ने अपनी मेहनत और ईमानदारी से सबका दिल जीत लिया।
वह जहां भी जाती, वहां उसका नम्र स्वभाव और काम के प्रति समर्पण उसे दूसरों से अलग बना देता। दूसरी ओर राजवीर मल्होत्रा सिमरन को बेटी की तरह मानने लगे। वो बार-बार कहते, “बेटी, आज मैं जिंदा हूं तो सिर्फ तुम्हारी वजह से। मेरी सारी दौलत भी तुम्हारे एहसान का बदला नहीं चुका सकती।” अर्जुन भी सिमरन की काबिलियत से प्रभावित था। उसके दिल में सिमरन के लिए एक अलग ही इज्जत और अपनापन पनपने लगा था।
एक दिन कंपनी के वार्षिक कार्यक्रम में मंच पर राजवीर मल्होत्रा आए। उन्होंने माइक्रोफोन उठाया और सबके सामने कहा, “दोस्तों, आज मैं आप सबको बताना चाहता हूं कि जिंदगी सिर्फ पैसे और शोहरत से बड़ी नहीं होती। इंसानियत सबसे बड़ी दौलत है। कुछ हफ्ते पहले मैं मौत के मुंह से वापस आया, सिर्फ इसलिए क्योंकि एक लड़की ने अपनी नौकरी की परवाह किए बिना मेरी जान बचाई। वो लड़की आज हमारी कंपनी की मैनेजर है – मिस सिमरन।”
हॉल तालियों से गूंज उठा। सिमरन की आंखें भर आईं। वह मंच पर आकर बोली, “मैंने जो किया वो इंसानियत थी। अगर हम सब एक दूसरे की मदद करें तो दुनिया और भी खूबसूरत हो सकती है। इस पोस्ट, इस इज्जत, इस परिवार के लिए मैं मल्होत्रा सर और अर्जुन सर की आभारी हूं।”
सिमरन का जीवन पूरी तरह से बदल चुका था। जहां एक ओर उसने अपनी नौकरी कमाई थी, वहीं अब उसे सम्मान, बड़ा पद और एक नया परिवार मिल चुका था। लोगों के लिए यह कहानी एक सबक बन गई – कभी भी इंसानियत से समझौता मत करो। आज अगर त्याग करोगे, तो कल वही त्याग तुम्हें सम्मान और सफलता के रूप में लौट कर मिलेगा।
दोस्तों, यह थी एक ऐसी लड़की की कहानी जिसने अपनी नौकरी की परवाह किए बिना एक अनजान बूढ़े की जान बचाई और किस्मत ने भी उसका हाथ थाम कर उसकी जिंदगी बदल दी। यह कहानी हमें सिखाती है कि असली दौलत पैसा नहीं, बल्कि इंसानियत है। क्योंकि पैसा तो कभी भी कमाया जा सकता है, लेकिन किसी की जान बचाकर मिलने वाली दुआएं वह अनमोल होती हैं।
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