एक औरत की पहचान: प्रिया, रोहन और माया की कहानी

शुरुआत: सपनों का घर

गुड़गांव की आलीशान सोसाइटी ‘स्वर्णभूमि’ में एक खूबसूरत डुप्लेक्स था, जहां प्रिया और रोहन अपनी दो बेटियों के साथ रहते थे। बाहर से देखने पर उनकी दुनिया किसी परियों की कहानी जैसी लगती थी—एक सफल आर्किटेक्ट पति, पढ़ने-लिखने में होशियार बेटियां, और एक ऐसा घर जिसे प्रिया ने अपने प्यार और मेहनत से स्वर्ग बना दिया था।

प्रिया खुद भी कमाल की कलाकार थी। दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स की टॉपर, उसकी उंगलियों में जादू था। शादी के बाद उसने अपने ब्रश और रंगों को पुराने संदूक में बंद कर दिया, ताकि रोहन के सपनों को पूरा कर सके, बेटियों को पाल सके। उसे कभी शिकायत नहीं थी। रोहन की खुशी और परिवार की हँसी में ही उसकी दुनिया थी।

दरार की शुरुआत

अक्सर जो चीज़ हमें आसानी से मिल जाती है, उसकी अहमियत हम भूल जाते हैं। पिछले कुछ महीनों से रोहन बदलने लगा था। घर देर से आना, फोन में खोया रहना, कपड़ों से अजनबी परफ्यूम की महक, छोटी-छोटी बातों पर चिढ़ जाना—इन सबने प्रिया को बेचैन कर दिया था। रोहन अब अक्सर अपनी नई क्लाइंट ‘माया’ का जिक्र करता। माया एक महत्वाकांक्षी, आत्मविश्वासी और बेहद आधुनिक इंटीरियर डिजाइनर थी।

रोहन कहता, “माया में एक अलग ही स्पार्क है, वो जिंदगी को खुलकर जीती है।” प्रिया के मन में यह बात तीर की तरह चुभती थी। क्या उसमें अब वो स्पार्क नहीं रहा?

भरोसे का टूटना

एक रात रोहन पार्टी से देर से लौटा। उसका फोन बेड के पास चार्ज हो रहा था। अचानक माया का मैसेज आया—स्क्रीन पर एक दिल का इमोजी और लिखा था, “आज की शाम के लिए शुक्रिया। काश तुम हमेशा के लिए मेरे होते।”
प्रिया के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। पंद्रह साल का भरोसा, प्यार, समर्पण—सब एक पल में बिखर गया। वह पूरी रात बाथरूम में बैठकर रोती रही, लेकिन सुबह उसकी आंखों में आँसू नहीं, अजीब सी शांति थी। उसने फैसला किया—ना तो लड़ाई करेगी, ना घर छोड़ेगी, ना बच्चों के सामने तमाशा। उसे रोहन को उसकी गलती का एहसास कराना था, लेकिन अपने तरीके से।

खामोश क्रांति

अगले दिन से घर में एक नई हलचल शुरू हुई। प्रिया ने सबसे उपेक्षित स्टोर रूम को खाली करना शुरू किया। रोहन और बेटियों ने पूछा तो उसने बस इतना कहा, “कुछ नया करना चाहती हूँ।” कुछ ही दिनों में वह स्टोर रूम एक खूबसूरत आर्ट स्टूडियो में बदल गया। प्रिया ने सालों बाद अपने ब्रश-कैनवस बाहर निकाले और पेंटिंग शुरू कर दी।

अब उसकी कला सिर्फ उसका शौक नहीं थी, बल्कि उसके दर्द, अकेलेपन और ताकत की अभिव्यक्ति थी। वह घंटों स्टूडियो में रहती, लेकिन घर-बच्चों की जिम्मेदारी में कोई कमी नहीं आई। उसकी पेंटिंग्स में उसकी आत्मा बोलती थी।

माया से मुलाकात

प्रिया ने माया के बारे में पता लगाया। सोशल मीडिया से पता चला कि माया रोज़ एक महंगे हेल्थ क्लब जाती है। प्रिया ने भी उसी क्लब की मेंबरशिप ली, अपना मेकओवर करवाया, और शादी से पहले के नाम ‘प्रिया शर्मा’ से वहां जाती थी। जिम में ट्रेडमिल पर दौड़ते हुए उसने माया से दोस्ती कर ली।

धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती गहरी होने लगी। प्रिया ने कभी जाहिर नहीं होने दिया कि वह कौन है। एक दिन कॉफी पर प्रिया ने माया से कहा, “मेरी एक दोस्त है, जो एक शादीशुदा आदमी से प्यार करती है। वह चाहती है कि वह आदमी अपनी पत्नी को छोड़कर उसके पास आ जाए। लेकिन क्या ऐसा रिश्ता टिक सकता है?”
माया थोड़ी असहज हुई, लेकिन प्रिया की बातों ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया—“जो आदमी अपनी पत्नी का नहीं हो सका, वो मेरी दोस्त का कैसे होगा?”

खुद की पहचान की ओर

अब प्रिया की पेंटिंग्स घर की दीवारों तक सीमित नहीं रहीं। हेल्थ क्लब में बनी दोस्तों ने उसकी कला को सराहा और उसे एक आर्ट एग्ज़िबिशन में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया। प्रिया की पहली ही प्रदर्शनी सुपरहिट रही। शहर के बड़े आर्ट क्रिटिक्स ने उसकी तारीफ की, पेंटिंग्स लाखों में बिकीं।
अखबारों, मैगज़ीन में इंटरव्यू छपने लगे। अब लोग रोहन को ‘प्रिया शर्मा के पति’ के नाम से जानने लगे। रोहन के भीतर असुरक्षा और अहंकार जाग उठा। उसे पहली बार अहसास हुआ कि प्रिया की दुनिया सिर्फ उससे सीमित नहीं है, वो अब उससे दूर जा रही है।

माया का फैसला

माया के मन में भी हलचल थी। प्रिया की बातों ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया था। उसे एहसास हुआ कि वह रोहन की जिंदगी में रोमांचक अध्याय तो हो सकती है, लेकिन पूरी किताब नहीं। उसने रोहन से रिश्ता खत्म कर लिया, “मैं किसी का घर तोड़कर अपना घर नहीं बसा सकती। तुम्हारे पास जो है, उसकी कदर करो।”

परिवार की दीवार पर कहानी

रोहन पूरी तरह टूट चुका था। उसी शाम वह घर लौटा तो देखा—पूरा घर मोमबत्तियों और फूलों से सजा था। डाइनिंग टेबल पर उसका पसंदीदा खाना था। आज उनकी शादी की 16वीं सालगिरह थी, जिसे वह भूल चुका था। लिविंग रूम की दीवार पर एक विशाल पेंटिंग थी—प्रिया और दोनों बेटियां एक तरफ देख रही थीं, मुस्कुरा रही थीं। रोहन का चेहरा भी था, लेकिन थोड़ा धुंधला, जैसे वह परिवार का हिस्सा होकर भी उनसे दूर जा रहा हो।
उस पेंटिंग में प्रिया ने अपना पूरा दर्द उकेर दिया था।

नई शुरुआत

प्रिया कमरे में आई, खूबसूरत साड़ी पहने, चेहरे पर आत्मविश्वास। बोली, “शादी की सालगिरह मुबारक हो, रोहन।”
रोहन की आंखें झुक गईं। प्रिया ने आगे कहा, “मेरे पास तुम्हारे लिए एक तोहफा है।” उसने कुछ कागज दिए—एक नए, बड़े आर्ट स्टूडियो और पेरिस के तीन महीने के टूर के टिकट्स।
“मेरी अगली प्रदर्शनी पेरिस में है, बेटियों को भी साथ ले जाऊंगी। मैं चाहती हूं वे जानें कि एक औरत अपनी पहचान खुद बना सकती है।”

रोहन वहीं घुटनों पर बैठ गया, फूट-फूट कर रोने लगा। बोला, “मुझे माफ कर दो, प्रिया। मैंने तुम्हारे प्यार और त्याग की कोई कीमत नहीं समझी। प्लीज, मुझे मत छोड़ो। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।”
प्रिया की आंखों से भी आंसू बह निकले। उसने रोहन को उठाया और कहा, “मैं जानती हूं, मैं माया से मिल चुकी हूं। मैंने यह सब अपने परिवार को बचाने के लिए किया।”

सम्मान, बराबरी और भरोसे की शर्त

प्रिया ने रोहन को माफ किया, लेकिन एक नई शुरुआत की शर्त पर—बराबरी, सम्मान और भरोसे के साथ। पेरिस का टूर कैंसिल नहीं हुआ, बल्कि अब उसमें रोहन भी शामिल था।
यह एक परिवार की छुट्टी थी—अपने बिखरे रिश्तों को फिर से जोड़ने का मौका।

कहानी का संदेश

रोहन अब सिर्फ एक सफल आर्किटेक्ट नहीं, बल्कि बेहतर पति और पिता भी बन गया। वह प्रिया के करियर का सबसे बड़ा समर्थक था। उनकी प्रेम कहानी ने एक नया, और भी खूबसूरत अध्याय शुरू किया।

यह कहानी सिखाती है—

सच्चा रिश्ता तोड़ने में नहीं, समझदारी और ताकत से जोड़ने में है।
गुस्सा और बदला पल भर की संतुष्टि तो दे सकते हैं, लेकिन माफी और बुद्धिमानी जिंदगी भर का सुकून देते हैं।
हर महिला की अपनी पहचान होती है, जो किसी रिश्ते से खत्म नहीं होती।
जरूरत है उस पहचान को खोजने और सम्मान देने की।

(शब्द: लगभग 1500)
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