किस्मत टूटी हुई थी, ठेला भी चल नहीं रहा था… फिर एक अजनबी ने जो किया इंसानियत रो पड़ी।

पटना का बोरिंग रोड चौराहा दिन भर गाड़ियों की आवाज और लोगों की भीड़ से गूंजता रहता था। इसी भीड़भाड़ वाले रास्ते पर, चमचमाते रेस्टोरेंट और फास्ट फूड की दुकानों के बीच एक छोटा सा ठेला था पानीपुरी का। यह कहानी आज की दुनिया की असल सच्चाई को उजागर करती है और हमारे समाज के लिए एक आईना बन जाती है।

मीरा का संघर्ष

उस ठेले की मालकिन थी मीरा। उम्र 25 साल, पढ़ाई में होशियार, कॉमर्स में ग्रेजुएट। लेकिन हालात ऐसे बने कि नौकरी नहीं मिल पाई। पिता का देहांत जल्दी हो गया था। मां बीमार रहती थी और छोटे भाई की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी मीरा पर ही थी। कई जगह नौकरी के लिए गई, इंटरव्यू दिए, लेकिन हर जगह कोई न कोई बहाना मिल जाता। अनुभव कम है, पोस्ट पहले ही भर गई, आपको अभी इंतजार करना पड़ेगा।

आखिरकार थकहार कर मीरा ने ठान लिया। अब जो भी करना है अपने दम पर करना है। उसने थोड़े पैसे जमा किए और एक छोटा पानीपुरी का ठेला खरीद लिया। ठेला भले ही छोटा था, लेकिन उस पर मीरा ने अपनी मेहनत और आत्मसम्मान का रंग चढ़ा दिया। साफ सुथरे बर्तन, ताजे मसाले और सबसे बढ़कर हर ग्राहक को मुस्कुराकर स्वागत करना।

पहले दिन की चुनौतियाँ

पहले दिन कुछ ही ग्राहक आए। दूसरे दिन थोड़ा और, धीरे-धीरे लोग कहने लगे, “अरे, यह नई दीदी की पानीपुरी तो बड़ी टेस्टी है। यहां साफ-सफाई भी ठीक है। चलो यहीं चलते हैं।” लेकिन मुश्किलें भी साथ-साथ थीं। कभी लोग ताना मारते, “इतनी पढ़ाई करके ठेला लगा लिया। घरवाले शर्म से सर नहीं झुकाते होंगे।” मीरा मुस्कुरा देती, लेकिन अंदर से आहत होती।

रात को मां के पास बैठकर सोचती, “क्या वाकई मेरी जिंदगी बस ऐसे ही गुजर जाएगी? क्या मैं सिर्फ ठेले तक ही सीमित रह जाऊंगी?” पर मां उसे ढाढ़स देती। “बेटा, मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। आज लोग हंसते हैं, कल ताली भी बजाएंगे।”

बच्चों का प्यार

धीरे-धीरे बच्चे भी ठेले के आसपास जुटने लगे। वे उसे हंसते हुए पुकारते, “दीदी, हमें इमली वाला दो। दीदी, हमें मिर्चा वाला दो।” मीरा बच्चों की मासूमियत देखकर मुस्कुरा उठती। कुछ ही हफ्तों में बच्चे उसे प्यार से एक नया नाम देने लगे—”एआई दीदी।” मीरा पहले तो चौकी, “एआई दीदी? यह क्या नाम हुआ?” लेकिन फिर उसने सोचा, “शायद बच्चों की नजर में मैं किसी मशीन जैसी तेज और अलग हूं। चलो, यह भी ठीक है।”

उसे क्या पता था कि आने वाले समय में यही नाम उसकी असली पहचान बनेगा।

अमन का आगमन

शाम का समय था। बोरिंग रोड की भीड़ अपने चरम पर थी। दफ्तर से लौटते लोग, कॉलेज से घर जाती लड़कियां और बच्चों का शोर सब मिलकर उस गली को जीवंत बनाए हुए थे। मीरा अपने ठेले पर खड़ी पानीपुरी परोस रही थी। पुदीने की खुशबू, इमली की खटास और कुरकुरी पूरी की खनक लोगों को अपनी ओर खींच रही थी। तभी भीड़ से एक युवक धीरे-धीरे आगे बढ़ा। वह था अमन। उम्र 27 साल, इंजीनियरिंग पढ़ा हुआ। अभी-अभी किसी स्टार्टअप में काम शुरू किया था। पढ़ाई और टेक्नोलॉजी में तेज, लेकिन खाने-पीने का शौकीन भी।

पहली मुलाकात

अमन ने पहली बार मीरा का ठेला देखा। उसकी साफ सुथरी सूरत और ठेले का अलग अंदाज उसे भा गया। वो मुस्कुरा कर बोला, “एक प्लेट बनाइए। तीखा ज्यादा।” मीरा ने मुस्कुराते हुए पूरी में मसाला भरा, पुदीना पानी में डुबोया और अमन की ओर बढ़ा दिया। अमन ने पहला निवाला लिया और उसकी आंखें चमक उठी। “वाह, यह तो लाजवाब है। ऐसी पानीपुरी तो मैंने कहीं नहीं खाई।” मीरा हल्का सा मुस्कुराई। “धन्यवाद। हमारी कोशिश रहती है कि साफ सुथरा और अच्छा स्वाद मिले।”

बातचीत का सिलसिला

अमन अगले दिन फिर आया। फिर उसके अगले दिन भी। अब वह रोज शाम को मीरा के ठेले पर दिखने लगा। धीरे-धीरे बातों का सिलसिला शुरू हुआ। कभी अमन उसके बिजनेस के बारे में पूछता, कभी मीरा बताती कि ग्राहक तो आते हैं, लेकिन ठेले का धंधा कोई खास नहीं चलता। दिनभर मेहनत करने के बाद भी बचत बहुत कम होती है। अमन ध्यान से उसकी बातें सुनता और सोच में पड़ जाता।

नई दिशा

एक दिन उसने मीरा से कहा, “देखिए, आप मेहनती हैं और आपकी पानीपुरी का स्वाद लाजवाब है। लेकिन सिर्फ मेहनत से बड़ा काम नहीं होता। अब जमाना बदल गया है। आजकल बिजनेस को स्मार्ट तरीके से करना पड़ता है।” मीरा ने हैरानी से उसकी ओर देखा। “मतलब?” अमन मुस्कुराया। “मतलब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एआई। अगर आप चाहें तो हम मिलकर आपके पानीपुरी के बिजनेस को नए स्तर पर ले जा सकते हैं।”

मीरा चौकी। उसने कभी ठेले और टेक्नोलॉजी को एक साथ जोड़कर नहीं सोचा था। वो बोली, “लेकिन मैं तो कुछ समझती ही नहीं इस टेक्नोलॉजी के बारे में। यह सब कैसे होगा?” अमन ने मुस्कुराकर कहा, “समझना मेरा काम है, मेहनत करना आपका। अगर हम दोनों साथ आए तो नामुमकिन कुछ भी नहीं।”

नई शुरुआत

उस पल मीरा ने पहली बार सोचा, “शायद यह लड़का मेरी जिंदगी बदल सकता है।” भीड़ के बीच खड़े दोनों की बातचीत ने जिंदगी की दिशा बदल दी। उस रात पटना की गलियां थोड़ी शांत थीं। मीरा ठेले से घर लौटी तो थकी हुई थी, लेकिन दिमाग में अमन की बातें गूंज रही थीं। “एआई से बिजनेस बदल सकता है।” मां ने खाना परोसा, पर मीरा सोच में डूबी रही। तभी अमन का फोन आया।

“मीरा, अगर सच में कुछ बड़ा करना है तो अभी से शुरू करना होगा। क्या तुम रिसर्च के लिए तैयार हो?” मीरा पहले हिचकी। फिर बोली, “हां, लेकिन मैं समझूंगी कैसे? मुझे तो कुछ आता ही नहीं।” अमन ने हंसते हुए जवाब दिया। “तुम्हें सब सीखने की जरूरत नहीं। मैं तुम्हें बताऊंगा। तुम्हारा काम है धैर्य रखना और मेहनत करना। तुम मेहनत करो। तकनीक समझाना मेरा काम है।”