मुंबई लोकल ट्रेन में मिली वही माँ… 20 साल पहले बेटे को अनाथ आश्रम में छोड़ा था |Heart Touching Story

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एक अनाथ लड़का और गर्भवती अमीर औरत – एक अनसुनी कहानी

अबुजा की भीड़भाड़ वाली सड़कों पर 14 साल का लड़का, जूलियो, बिना जूते और बिना छत के जिंदगी काट रहा था। रोज़ वह टूटे बोतलें और कबाड़ इकठ्ठा करता, उन्हें एक पुराने बोरे में भरता और कुछ पैसों में बेच देता। कई बार लोग उसे दुत्कारते थे – “दूर हटो, बदबू फैला रहे हो!” – लेकिन वह हार नहीं मानता। भूख से उसका पेट ऐंठता, लेकिन उसके हौसले नहीं टूटते।

एक दिन, जब उसका पेट दो दिन से खाली था, वह शहर के एक रेस्टोरेंट के पीछे फेंके गए कचरे में कुछ खाने की तलाश में पहुंचा। बहुत ढूंढने के बाद, उसे एक छोटी सी कटोरी में चावल और राजमा दिखा। वो उतना ही खुश था जैसे किसी ने खजाना दे दिया हो।

जैसे ही वह खाने बैठा, उसे डस्टबिन के पीछे हलचल महसूस हुई। वहां एक औरत बेहोश पड़ी थी — उसके कपड़े गंदे थे, चेहरा पसीने से भीगा हुआ और पेट साफ़ बताता था कि वह गर्भवती है।

जूलियो ने तुरंत खाना नीचे रखा और औरत के पास भागा। उसकी हालत बेहद खराब थी। उसने उसके होठों पर थोड़ा-थोड़ा खाना डालना शुरू किया। कुछ देर बाद महिला की आंखें खुलीं। उसने कांपते स्वर में पूछा, “तुम मुझे क्यों खिला रहे हो?”

जूलियो ने मुस्कुराकर कहा, “क्योंकि मैं जानता हूँ भूख क्या होती है, और मैं नहीं चाहता कि आपके पेट में जो बच्चा है वो भी भूखा रहे।”

महिला की आंखों से आँसू बह निकले। उसका नाम था नताशा। कभी वो एक अरबपति की पत्नी थी, लेकिन पति की बेवफाई और ज़ुल्म के कारण उसने अपना सब कुछ छोड़ दिया। वो गर्भवती थी, लेकिन उसके पास ना पैसा था, ना फोन, ना सहारा। और तभी उसकी मुलाकात जूलियो से हुई।

जाते-जाते नताशा ने अपने पर्स से एक बिज़नेस कार्ड निकाला और जूलियो को देते हुए कहा, “अगर कभी ज़रूरत पड़े, मुझे ढूंढना।”

वक़्त बीतता गया। सालों बाद, जूलियो अब एक नौजवान बन चुका था। अब भी वह कबाड़ उठाकर गुज़ारा करता था। लेकिन एक दिन, जब वह सड़क पार कर रहा था, एक तेज़ कार ने उसे टक्कर मार दी। वो बुरी तरह घायल हो गया। उसे पास के सेंट ग्रेस अस्पताल ले जाया गया।

वह बेहोश था। डॉक्टर उसका इलाज करने लगे। तभी एक नर्स कमरे में आई — वही नताशा। अब वह एक नर्स बन चुकी थी। जैसे ही उसने जूलियो का चेहरा देखा, उसे पहचान गई। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।

“डॉक्टर साहब, कृपया इसकी देखभाल मुझे करने दीजिए,” उसने कहा।

दिनों तक नताशा ने उसकी देखभाल की। वह उसे खाना देती, घाव साफ़ करती और उससे बातें करती, भले ही वह बेहोश था। पांचवें दिन, जूलियो की आंखें खुलीं। उसने धीरे से कहा, “आप वही हैं… डस्टबिन के पास वाली…”

नताशा ने मुस्कुराकर कहा, “तुमने मुझे उस दिन खाना दिया था। आज मैं तुम्हें ज़िंदगी दूंगी।”

दो हफ्ते बाद, जब डॉक्टर ने कहा कि जूलियो ठीक हो गया है, वो चिंतित हो गया। “अब मैं कहाँ जाऊँ?” उसने पूछा।

नताशा मुस्कुराई और बोली, “मेरे साथ चलो।”

उस शाम वह जूलियो को एक छोटे से सुंदर अपार्टमेंट में ले गई। वहाँ फूलों के गमले थे, बच्चे खेल रहे थे और घर से चावल की खुशबू आ रही थी।

तभी एक छोटी लड़की दौड़ती हुई आई। “मम्मी, ये कौन है?” उसने पूछा।

नताशा ने कहा, “ये जूलियो है। बहुत साल पहले, इसने तुम्हारी जान बचाई थी।” फिर उसने कहा, “मैंने इसका नाम ज़ूरी रखा — स्वाहिली भाषा में जिसका मतलब होता है ‘सुंदर’।”

ज़ूरी ने जूलियो को गले लगाया और कहा, “थैंक यू अंकल।”

उस रात, जूलियो ने पहली बार एक बिस्तर में चैन की नींद ली। अब वह सड़क पर सोने वाला लड़का नहीं था।

कुछ हफ्ते बीते। जूलियो ने घर के कामों में मदद करनी शुरू की, ज़ूरी के स्कूल की किताबों से पढ़ना सीखा। नताशा ने एक दिन कहा, “मैंने एक दोस्त से बात की है। वो एक रिसाइकलिंग कंपनी चलाते हैं। वहाँ तुम्हारे लिए नौकरी है।”

जूलियो की आँखों में आंसू आ गए। “सच में?”

“हाँ,” नताशा ने कहा, “अब तुम्हारी ज़िंदगी बदलने का वक्त है।”

अब जूलियो हर दिन काम पर जाता है। साफ कपड़े पहनता है। रात को घर आता है, खाना खाता है और नताशा और ज़ूरी के साथ बैठकर बातें करता है। अब वह सिर्फ ‘बॉटल बॉय’ नहीं रहा।

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