बीमार माँ के साथ कबाड़ बीनकर गुज़ारा कर रहा बच्चा – अचानक मिले अरबपति की मदद ने लाखों को रुला दिया!

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कबाड़ बीनता बच्चा और बीमार माँ – अरबपति की मदद ने बदल दी किस्मत

मुंबई की मूसलाधार बारिश में एक भारी लोहे का दरवाजा जोर से बंद हुआ। बाहर प्रिया कांपती खड़ी थी, तेज बुखार से उसका सिर चकरा रहा था, लेकिन उससे भी ज्यादा डरावनी थी दिल में उठती ठंडक। उसके सात साल के बेटे रोहन की मासूम आवाज ने उसे हकीकत में लौटा दिया। रोहन अपनी हाथ से बनी लकड़ी की ठेली के पास सिकुड़ा बैठा था, जिस पर कुछ पुराने कपड़े, एक फटा टेडी बियर और पतला कंबल था। उसकी साफ आंखें बंद दरवाजे को देख रही थीं, फिर अपनी मां से बोला, “पापा ने हमें सच में बाहर निकाल दिया?”

प्रिया ने अपने होठों को काटा ताकि रोना न आए, बेटे को घबराने से बचाने के लिए बस उसके कंधों को थाम सकी। “कोई बात नहीं बेटा, हम कहीं और जगह ढूंढ लेंगे।” लेकिन रोहन बोला, “माँ, हमारे कपड़े तो अंदर रह गए।” प्रिया ने कमजोर आवाज में कहा, “अब उनकी जरूरत नहीं है।” दरवाजे के अंदर से उसके पति और उसकी प्रेमिका की आवाजें आ रही थीं। “चली जाओ मेरी आंखों के सामने से, बीमारी की पोटली!” हर शब्द प्रिया के दिल में चाकू की तरह चुभ रहा था। उसने अपनी जवानी पति के लिए कुर्बान की थी, पत्नी और माँ बनना स्वीकार किया था, लेकिन जब वह बीमार हुई, पति ने एक बार भी उसका हाल नहीं पूछा। आज उसने अपनी प्रेमिका को घर ले आया और मां-बेटे को सड़क पर फेंक दिया।

बारिश से बचने के लिए प्रिया और रोहन ने एक फ्लाईओवर के नीचे शरण ली। प्रिया ने अपने बेटे को सीने से लगाया, ठंडी हवा से बचाने की कोशिश की। गाड़ियों के हॉर्न गूंज रहे थे, बारिश लगातार बरस रही थी। बुखार की बेहोशी में प्रिया ने अपने बेटे की फुसफुसाहट सुनी, “माँ, आप सो जाओ। कल मैं पैसे कमाने जाऊंगा। मैं आपको पा लूंगा।” यह सुनकर प्रिया चुपचाप रोती रही। सुबह होते-होते बारिश थम गई, लेकिन हवा में नमी और ठंडक थी। प्रिया की खांसी से उसकी नींद खुल गई, उसका गला दर्द कर रहा था। रोहन जाग चुका था, उसकी बड़ी गोल आंखें गाड़ियों को देख रही थीं।

“माँ, अब आप कैसी हो?” रोहन ने पूछा। प्रिया ने सिर पर हाथ रखा, अभी भी बुखार था। रोहन ने पूछा, “माँ, सब लोग अपने घर क्यों जा रहे हैं? हमारा घर क्यों नहीं है?” प्रिया चुप हो गई, बेटे को क्या जवाब दे। उसने झूठ बोला, “हमारा घर ठीक हो रहा है बेटा, जब ठीक हो जाएगा हम वापस चले जाएंगे।” रोहन थोड़ी देर चुप रहा, शायद समझ गया था कि ये सच नहीं है। “माँ, क्या अब हमारा कोई घर नहीं है?” बेटे के सवाल ने प्रिया को तोड़ दिया। उसने बेटे को गले लगाया, “मुझे माफ कर दो रोहन।” रोहन ने अपनी बाहें माँ के गले में डाल दीं, “कोई बात नहीं माँ। अगर घर नहीं है तो हम दूसरा घर ढूंढ लेंगे। मैं काम करूंगा, आपके लिए घर खरीदूंगा।”

प्रिया ने हैरानी से अपने बेटे को देखा। सात साल के बच्चे को घर का वादा अपने कंधों पर उठाना पड़ रहा था। “तुम अभी बहुत छोटे हो, क्या करोगे?” रोहन ने दृढ़ता से कहा, “मैं कर सकता हूं। मैंने देखा है कुछ अंकल आंटी प्लास्टिक की बोतलें और कैन बेचते हैं, हम भी कर सकते हैं।” वह ठेली खींचने लगा, “माँ, आप बैठो, आराम करो।” प्रिया ठेली पर बैठ गई, आंसू बहते रहे। उसका बेटा, जिसे प्यार मिलना चाहिए था, अब उसका सहारा बन गया था। लकड़ी के पहिए पानी भरी सड़क पर लुढ़कने लगे। मां-बेटे की परछाई एक ठेली पर सिकुड़ी हुई, शहर की अंधेरी रात और सफेद बारिश में खो गई।

दोपहर में भूख से पेट गुड़गुड़ा रहा था। उन्होंने जो कबाड़ इकट्ठा किया था, उसकी कोई कीमत नहीं थी। रोहन ने माँ से कहा, “माँ भूख लगी है।” प्रिया ने सिर हिलाया, “माँ को भूख नहीं है, तुम्हें भूख लगी है।” रोहन ने मना किया, “मुझे भी भूख नहीं है।” लेकिन उसके पेट की आवाज सब कह रही थी। पास के ढाबे की खुशबू ने भूख बढ़ा दी। प्रिया ने हिम्मत कर बचा हुआ खाना मांगना चाहा, लेकिन ढाबे की मालकिन ने उसे भिखारी कहकर भगा दिया। अपमान और निराशा में प्रिया बाहर आई। रोहन ने माँ को खांसते देखा, पास की दुकान से पानी मांगने गया, लेकिन दुकानदार ने भी उसे दुत्कार दिया।

दोपहर की धूप तेज हो गई थी। पेट खाली, शरीर थका, भविष्य अंधकारमय था। तभी एक बूढ़ी कबाड़ बीनने वाली औरत आई, उसने अपनी फटी जेब से दो रोटियां निकालीं और रोहन को दीं, “बच्चों को भूखा नहीं रखना चाहिए।” रोहन ने रोटी माँ को दी, “माँ आप खाओ, आप बीमार हो।” प्रिया ने रोटी का टुकड़ा चबाया, उसका स्वाद उम्मीद और इंसानियत का था। रोटी खाने के बाद प्रिया को थोड़ी ताकत मिली, उसने ठेली से उतरकर रोहन के साथ कबाड़ बीनना शुरू किया। दोनों गलियों और कूड़ेदानों में घूमने लगे। सूरज सिर पर था, पसीने से कपड़े भीग गए थे। शाम तक ठेली कबाड़ से भर गई थी। कबाड़ की दुकान पर बेचने पर उन्हें सिर्फ पचास रुपये मिले। प्रिया ने सबसे सस्ती बुखार की दवा खरीदी, बाकी पैसों से रोहन के लिए खाना लिया।

शाम को बाजार में एक पाव भाजी वाली लड़की ने उन्हें मुफ्त में खाने को दिया, पास की फल वाली आंटी ने केले और संतरे दिए। प्रिया भावुक होकर सबका धन्यवाद करती रही। रात को वे एक बंद दुकान के छज्जे के नीचे सो गए। प्रिया को बुखार ने रात भर परेशान किया, सुबह होते-होते वह बेहोश हो गई। रोहन ने मदद के लिए लोगों से गुहार लगाई, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। तभी एक काली Audi कार में बैठे अरबपति विक्रम ने यह दृश्य देखा। उसका दिल पिघल गया, उसने कार रुकवाई और प्रिया व रोहन की मदद करने उतरा।

विक्रम ने प्रिया को अस्पताल पहुंचाया, डॉक्टरों ने बताया कि अगर एक दिन और देर हो जाती तो जान नहीं बचती। विक्रम ने इलाज के सारे खर्चे उठाए, प्रिया को VIP कमरे में भर्ती कराया। रोहन ने विक्रम का धन्यवाद किया, “अंकल, आप मेरे पापा की तरह तो नहीं हैं?” विक्रम ने वादा किया, “अब तुम मां-बेटे के पास मैं हूं, मैं तुम्हें परेशान नहीं होने दूंगा।”

कुछ दिनों में प्रिया स्वस्थ हो गई। विक्रम ने उन्हें अपने विला में रहने का प्रस्ताव दिया, रोहन को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवाया। प्रिया ने नौकरी पाने के लिए संघर्ष किया, विक्रम की कंपनी में साक्षात्कार दिया और अपनी मेहनत से सहायक पद पाया। तीनों का जीवन धीरे-धीरे स्थिर हुआ। रोज़ शाम को विक्रम मां-बेटे के साथ खाना खाता, रोहन के सवालों का जवाब देता, प्रिया की मदद करता।

एक दिन जब प्रिया ऑफिस पार्टी में गई, एक सहकर्मी ने उसे परेशान किया। विक्रम ने उसकी रक्षा की, प्रिया को एहसास हुआ कि वह सिर्फ सहानुभूति नहीं, बल्कि सच्चा प्यार है। धीरे-धीरे विक्रम और प्रिया के बीच रिश्ता गहरा हुआ। एक दिन विक्रम ने प्रिया और रोहन के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। रोहन खुशी से चिल्लाया, “हां, मैं तैयार हूं!” प्रिया ने आंसुओं में सिर हिलाया।

राजेश, प्रिया का पूर्व पति, अपनी गलती पर पछताता हुआ वापस आया, लेकिन विक्रम ने उसे कानूनी समझौते के तहत हमेशा के लिए दूर कर दिया। अब प्रिया, रोहन और विक्रम एक पूरा परिवार बन गए थे। उनके छोटे से घर में रोजमर्रा की खुशियां थीं – एक गर्म भोजन, एक बच्चे की मुस्कान, एक पति का प्यार।

यह कहानी बताती है कि मुश्किल वक्त में भी उम्मीद और दया के चमत्कार होते हैं। प्यार और इंसानियत हर दर्द को जीत सकती है।

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