कहानी का शीर्षक: “दिल से बने रिश्ते”

कहते हैं, कभी-कभी जिंदगी इंसान को ऐसे चौराहे पर खड़ा कर देती है, जहां उसे खुशी और दर्द एक साथ गले लगाते हैं। अनिल और प्रियंका की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। अनिल भोपाल के एक बड़े बैंक में मैनेजर था। उसकी शादी प्रियंका से बहुत धूमधाम से हुई। दोनों ने साथ जीने-मरने के वादे किए थे। लेकिन सुहागरात की ही रात, प्रियंका का चेहरा बुझा-बुझा था।

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अनिल ने जब धीरे से उसका हाथ पकड़ा और बात करने की कोशिश की तो प्रियंका फफक कर रो पड़ी। उसने कांपती आवाज़ में वो राज बताया जिसने उसके मन को सालों से चोट पहुँचाई थी—”मैं कभी मां नहीं बन सकती अनिल।” यह बात उसने अब तक किसी को नहीं बताई थी, डर था कि उसकी शादी टूट जाएगी, वह अकेली रह जाएगी। मां-बाप ने भी यह सच छिपा लिया था ताकि बेटी को एक अच्छा जीवनसाथी मिल जाए।

अनिल ने प्रियंका को गले से लगा लिया और कहा, “तुमने जो सच बताया, वह हमारे रिश्ते की सबसे बड़ी ताकत बनेगा। मैं तुम्हें कभी छोड़ने के बारे में सोच भी नहीं सकता।” प्रियंका को लगा जैसे उसके सिर से बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो, पर मन में परिवार और समाज का डर फिर भी था।

कुछ दिनों बाद अनिल ने ट्रांसफर का बहाना बनाया और दोनों दूसरे शहर चले गए। वहां एक छोटा सा, सुखी घर बसाया। एक दिन अनिल ने कहा, “दुनिया में कई ऐसे बच्चे हैं जो मां-बाप के प्यार को तरसते हैं, क्यों न हम किसी ऐसे बच्चे को गले लगाएं?” प्रियंका की आंखों में खुशी की नमी थी। दोनों ने एक छोटा सा बच्चा अनाथालय से गोद ले लिया। कुछ समय बाद उन्होंने एक बच्ची भी गोद ली।

अब उनका घर सचमुच खुशियों से भर गया। बच्चों की किलकारियों से सारा घर गूंजने लगा। चार साल बाद, वे अपने बच्चों के साथ अपने गांव लौटे। अनिल के माता-पिता ने अपने पोते-पोती को देखकर खुशी से गले लगा लिया। प्रियंका के पिता ने कहा, “बेटा, तू इंसान नहीं भगवान है।”

अनिल ने मां-बाप को सच्चाई नहीं बताई, क्योंकि उनके लिए इन बच्चों की खुशी सबसे बड़ी थी। आज भी उनके बच्चे उन्हीं को अपना असली मां-बाप मानते हैं।