बलरामपुर कां..ड: दिव्यांग युवती से दुष्क@र्म, पुलिस ने 26 घंटे में आरोपियों को दबोचा….

.

बलरामपुर की मासूम दिव्यांग बेटी: 26 घंटे में इंसाफ की लड़ाई

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले का एक छोटा सा गांव, जहां हर शाम की तरह 11 अगस्त 2023 की शाम भी सामान्य सी लग रही थी। लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि उस शाम गांव की मासूम, दिव्यांग और गूंगी-बहरी युवती गुड़िया (काल्पनिक नाम) के साथ ऐसा हैवानियत भरा हादसा हो जाएगा, जो पूरे इलाके को झकझोर देगा।

गुड़िया बचपन से ही बोल नहीं सकती थी, सुन भी नहीं सकती थी और एक पैर से विकलांग थी। उसके पिता का देहांत बहुत पहले हो गया था, घर में मां और बड़ा भाई सुमित ही उसका सहारा थे। सुमित मेहनत-मजदूरी कर घर चलाता था और मां घर-गृहस्थी संभालती थी। गुड़िया के दिव्यांग होने के बावजूद, घरवाले उसे बहुत प्यार करते थे और उसकी सुरक्षा को लेकर हमेशा सतर्क रहते थे।

उस दिन गुड़िया अपनी मां के साथ मामा के घर गई थी। शाम को मां तो लौट आई, लेकिन गुड़िया वहां रुक गई। शाम के करीब 6 बजे के बाद, बिना किसी को बताए, गुड़िया अकेले अपने घर की ओर चल पड़ी। उसे रास्ता मालूम था, क्योंकि वह कई बार आ-जा चुकी थी। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

इसी दौरान, गांव के ही दो युवक—अंकुर वर्मा और हर्षित पांडे—शहर से शराब पीकर लौट रहे थे। दोनों नशे में धुत थे, बाइक पर सवार थे। रास्ते में उनकी नजर गुड़िया पर पड़ी, जो पैदल चल रही थी। हर्षित ने अंकुर से कहा, “देख, कितनी सुंदर लड़की है, अकेली जा रही है।” दोनों की नीयत खराब हो गई। उन्होंने बाइक गुड़िया के पास रोकी और उसे घर छोड़ने का बहाना बनाया। लेकिन गुड़िया, जो बोल-सुन नहीं सकती थी, घबरा गई और आगे बढ़ गई।

दोनों युवकों ने उसका पीछा किया। जबरन उसे पकड़कर सुनसान जगह, श्मशान घाट के पास बने एक पुराने घर में ले गए। वहां दोनों ने बारी-बारी से उसके साथ दुष्कर्म किया। मासूम गुड़िया चीख भी नहीं सकती थी, मदद के लिए पुकार भी नहीं सकती थी। दरिंदों ने उसके साथ हैवानियत कर, उसे खेतों में फेंक दिया और वहां से भाग गए।

रात हो गई थी। घरवाले परेशान थे कि गुड़िया अब तक घर नहीं पहुंची। मां ने सुमित को फोन किया, जो अपनी बुआ के घर गया था। सुमित को खबर मिलते ही वह घर लौटा और पूरी रात बहन की तलाश करता रहा। अगले दिन सुबह किसी किसान ने खेत में तड़पती हुई गुड़िया को देखा और अस्पताल पहुंचाया। डॉक्टरों ने बताया—गुड़िया के साथ गैंगरेप हुआ है, उसके शरीर पर चोटें हैं, हड्डियां टूटी हैं, हालत गंभीर है।

सुमित और मां के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। सुमित ने बहन की हालत देख पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस हरकत में आई। थाने से महज 500 मीटर दूर हुई इस घटना ने सबको हिला दिया। पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज खंगाले, जिसमें दो युवक बाइक से पीछा करते दिखे। इशारों से गुड़िया ने भी आरोपियों की पहचान में मदद की।

पुलिस ने दोनों आरोपियों की तलाश तेज कर दी। सूचना मिली कि वे शहर छोड़कर भागने की फिराक में हैं। पुलिस ने चारों ओर नाकाबंदी कर दी। जैसे ही दोनों बाइक पर भागने लगे, पुलिस ने उन्हें रोका। जवाब में आरोपियों ने फायरिंग शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई में हर्षित के घुटने में गोली लगी, अंकुर भागते हुए खाई में गिरकर घायल हो गया। दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया।

पुलिस ने 26 घंटे के भीतर आरोपियों को पकड़कर समाज को संदेश दिया कि अपराधी कितने भी चालाक हों, कानून से बच नहीं सकते। दोनों पर गैंगरेप, अपहरण, शारीरिक हिंसा, दिव्यांग से दुष्कर्म जैसी संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया।

गुड़िया का इलाज अस्पताल में चल रहा था, उसकी हालत नाजुक थी। घरवाले टूट चुके थे, मां हर पल बेटी के सिरहाने बैठी रहती थी। सुमित खुद को कोस रहा था कि वह बहन की रक्षा नहीं कर सका। गांव के लोग सदमे में थे, हर कोई कह रहा था—इतनी मासूम, दिव्यांग बच्ची के साथ ऐसा कैसे कर सकता है कोई?

पुलिस ने जब आरोपियों के परिवार वालों से पूछताछ की, तो हर्षित के पिता ने कहा, “अगर मेरा बेटा दोषी है, तो उसे फांसी होनी चाहिए।” वहीं अंकुर के घरवाले कहते रहे, “हमारा लड़का सीधा है, उसे फंसाया जा रहा है।” लेकिन सबूतों ने दोनों को बेनकाब कर दिया।

इस घटना ने पूरे जिले में गुस्से की लहर पैदा कर दी। सोशल मीडिया पर लोग न्याय की मांग करने लगे। गांव की महिलाएं, लड़कियां डरी-सहमी थीं, लेकिन पुलिस की तत्परता ने थोड़ी राहत दी। प्रशासन ने भरोसा दिलाया कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी।

गुड़िया के घरवाले उसे समझाते रहे—”बेटी, जो हुआ, वह तेरी गलती नहीं। तुझे शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं। हम तेरा साथ कभी नहीं छोड़ेंगे।” धीरे-धीरे गुड़िया ने भी हिम्मत जुटाई, इलाज के बाद उसने घर लौटना स्वीकार किया।

इस घटना ने समाज को आईना दिखाया—दिव्यांग, अबला या मजबूर समझकर किसी के साथ गलत करना सबसे बड़ा अपराध है। कानून का डंडा देर-सबेर चलता जरूर है। पुलिस की फुर्ती, समाज की एकजुटता और परिवार का हौसला—इन्हीं के बल पर गुड़िया को इंसाफ मिला।

सीख:
ऐसी घटनाओं से हमें यह सीखना चाहिए कि बेटियों को अकेला न छोड़ें, समाज को सतर्क बनाएं, अपराधियों को सख्त सजा दिलवाएं और पीड़िता को हिम्मत व प्यार दें। कानून पर भरोसा रखें, अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएं। तभी समाज सुरक्षित और संवेदनशील बन पाएगा।