विकलांग पति को पत्नी ने घर से निकालदिया पर अगले दिन 5 स्टार होटल में जो हुआ

“वापसी की उड़ान: अभय मेहरा की कहानी”
सुबह का समय था। बारिश के बाद की हल्की ठंडी हवा शहर की गलियों में तैर रही थी। भीड़भाड़ वाली सड़क पर एक आदमी अपने व्हीलचेयर पर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। कपड़े साफ थे लेकिन पुराने, चेहरे पर थकान थी, मगर आंखों में गहराई थी। उसका नाम था अभय मेहरा। उम्र करीब 38 साल।
कभी वही अभय शहर की एक बड़ी इंजीनियरिंग कंपनी में काम करता था। उसकी मेहनत, ईमानदारी और सलीके की मिसाल दी जाती थी। लेकिन किस्मत हमेशा एक जैसी नहीं रहती। दो साल पहले हुए एक भयानक एक्सीडेंट ने अभय से उसके दोनों पैर छीन लिए। शरीर जख्मी हुआ, लेकिन आत्मा उससे भी ज्यादा घायल हो गई।
एक वक्त था जब उसके घर में हंसी की आवाज गूंजती थी। पत्नी रतिका कॉलेज में पढ़ाती थी और छोटी बेटी काव्या हर सुबह पापा की गोद में बैठकर स्कूल जाती थी। लेकिन अब उस घर का माहौल बदल चुका था। जहां पहले मुस्कानें थीं, अब शिकायतें थीं। जहां कभी प्यार था, अब झुंझलाहट थी।
रतिका अब हर बात पर चिढ़ जाती थी। “अभय, मैं कब तक सब करूं? बिजली का बिल, किराया, बेटी की फीस… तुम्हें तो इस कुर्सी से उठना भी मुश्किल लगता है!”
अभय शांत रहता। “मैं कोशिश कर रहा हूं रतिका। कुछ काम घर से शुरू कर लूंगा।”
रतिका ने ताना मारा, “घर से क्या करोगे? तुम्हें अब कोई नौकरी देगा नहीं।”
वह शब्द तीर की तरह चुभे थे। अभय ने बस खामोशी ओढ़ ली थी।
उस रात बारिश जोरों से हो रही थी। बिजली चली गई थी। रतिका ने झुंझलाकर कहा, “बस अब और नहीं। मैं थक गई हूं इस जिंदगी से। ना पैसों की सुरक्षा, ना भविष्य की उम्मीद।”
अभय ने कुछ नहीं कहा। बस अपनी व्हीलचेयर को धीरे से मोड़ा और कमरे से बाहर चला गया। दरवाजे पर रुक कर बोला, “अगर मैं बोझ बन गया हूं तो मुझे जाने दो।”
रतिका चुप रही और अगले ही पल दरवाजा बंद हो गया।
बारिश तेज थी। सड़क सुनसान। अभय बिना छतरी के भीगता हुआ व्हीलचेयर घसीटते हुए निकल गया। रात गुजरी, सुबह हुई। अभय एक पार्क के कोने में बैठा था। उसने आसमान की तरफ देखा, “शायद यही मेरी किस्मत है।”
तभी एक कार उसके सामने आकर रुकी। गाड़ी से एक शख्स उतरा, लगभग 45 साल का, सुथरे कपड़ों में आत्मविश्वासी चेहरा।
“माफ कीजिएगा। क्या आप अभय मेहरा हैं?”
अभय ने चौंककर उसकी तरफ देखा। “हां, मैं ही हूं। आप कौन?”
आदमी मुस्कुराया, “मेरा नाम सुमित अरोड़ा है। मैं एलेक्सिया ग्रुप ऑफ होटल्स का जनरल मैनेजर हूं। आपका एक पुराना मेल मिला हमें।”
“मेल?” अभय ने माथे पर शिकन डाली।
सुमित ने टैबलेट दिखाया, “हां, आपने तीन महीने पहले हमारे होटल के लिए एक ऑटोमेटिक व्हीलचेयर रैंप डिजाइन का ड्राफ्ट भेजा था।”
अभय को याद आया, उसने कुछ महीनों पहले अपने लैपटॉप पर एक मॉडल बनाकर कई कंपनियों को भेजा था, पर किसी ने जवाब नहीं दिया था।
सुमित बोला, “वह डिजाइन बहुत पसंद आया। हमने उसे आजमाया और वह शानदार निकला। कल हमारे चेयरमैन खुद आपसे मिलना चाहते हैं। आप आइएगा ना। हमारा मुख्य होटल द लेवेंट क्राउन, सेक्टर 22।”
अभय के चेहरे पर पहली बार हल्की मुस्कान आई। लेकिन मन में सवाल था, “मैं इस हालत में कैसे जाऊंगा?”
सुमित झुककर बोला, “आप बस पहुंच जाइए। बाकी सब हमारी जिम्मेदारी।”
अगली सुबह अभय अपनी पुरानी शर्ट पहनकर, बाल संवारकर, अपने पुराने लैपटॉप बैग के साथ होटल की ओर निकल पड़ा। होटल का नाम सुनते ही दिल में हल्की घबराहट थी, पर आंखों में उम्मीद का उजाला भी।
जब उसकी व्हीलचेयर द लेवेंट क्राउन होटल के सामने रुकी तो सिक्योरिटी गार्ड और वेलकम स्टाफ एक पल को ठिठक गए। सभी की नजरें उसी पर थी। एक व्हीलचेयर पर बैठा आदमी, पुराने कपड़े, थका चेहरा लेकिन आंखों में दृढ़ता।
रिसेप्शनिस्ट आगे बढ़ी, हल्का सा मुस्कुराई, “एक्सक्यूज मी, आप यहां किसी से मिलने आए हैं?”
अभय ने धीमी आवाज में कहा, “हां, सुमित अरोड़ा जी से।”
वह जवाब देने ही वाली थी कि तभी लिफ्ट से सुमित खुद नीचे आया और अगले ही पल उसने सबके सामने झुककर कहा, “वेलकम मिस्टर मेहरा सर।”
पूरा होटल लॉबी सन्न रह गया। सभी कर्मचारियों की नजरें उस आदमी पर टिक गईं जो व्हीलचेयर पर बैठा था, लेकिन अब वह कोई आम व्यक्ति नहीं दिख रहा था। सुमित अरोड़ा तेजी से आगे बढ़ा और मुस्कुराते हुए बोला,
“सर, हमारे चेयरमैन ऊपर कॉन्फ्रेंस रूम में आपका इंतजार कर रहे हैं।”
अभय ने थोड़ा हिचकिचाते हुए पूछा, “सर, मेरे कपड़े तो…”
सुमित ने हाथ जोड़कर कहा, “कपड़े नहीं, काबिलियत देखी जाती है सर।”
सारे स्टाफ ने आदर से रास्ता खोला और पहली बार अभय की व्हीलचेयर किसी पांच सितारा होटल की चमकदार लिफ्ट में जा रही थी, जहां उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वह कदम रखेगा।
लिफ्ट के दरवाजे खुले, ऊपर विशाल मीटिंग रूम में एक बुजुर्ग व्यक्ति खड़ा था, सफेद बाल, कोमल मुस्कान, आंखों में अनुभव की चमक। वह थे अरविंद चौधरी, द लेवेंट क्राउन ग्रुप के चेयरमैन।
जैसे ही अभय अंदर आया, अरविंद चौधरी ने खड़े होकर उसका स्वागत किया,
“वेलकम मिस्टर मेहरा, आपसे मिलकर बहुत अच्छा लग रहा है।”
अभय ने संकोच से सिर झुकाया, “सर, मैं तो बस एक छोटा सा डिजाइन भेजा था।”
अरविंद मुस्कुराए, “छोटा डिजाइन नहीं अभय, आपने एक्सेसिबिलिटी का भविष्य बनाया है। आपका मॉडल हमारे पूरे होटल नेटवर्क में लगाया जाएगा और हम चाहते हैं कि आप हमारे हेड ऑफ डिजाइन इनोवेशन बने।”
अभय के हाथ कांप गए, “सर, लेकिन मैं तो…”
अरविंद बोले, “आपके पैर नहीं चल पाते, लेकिन आपका दिमाग उड़ता है बेटे। और ऐसे लोग ही बदलाव लाते हैं।”
उस पल कमरे में मौजूद हर व्यक्ति खड़ा हो गया, तालियां गूंज उठीं। अभय के गालों पर आंसू की लकीरें थीं, लेकिन उस दिन वो आंसू हार के नहीं, जीत के थे।
अरविंद ने आगे कहा, “आज से आप हमारे साथ हैं। आपका पहला प्रोजेक्ट अगले महीने से शुरू होगा। कंपनी आपकी व्हीलचेयर फ्रेंडली डिजाइन को पूरी इंडस्ट्री में ले जाएगी।”
अभय ने बस इतना कहा, “सर, यह मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं।”
उस शाम होटल में एक छोटी मीटिंग थी, जहां कुछ खास मेहमान आने वाले थे। अभय अपने नए स्टाफ के साथ लॉबी में बैठा था। अब उसके पास वही पुरानी मुस्कान लौट आई थी जो कई साल पहले खो गई थी।
तभी पीछे से एक जानी पहचानी आवाज आई, “वो देखो, वह तो अभय है!”
अभय पलटा। वह थी रतिका। उसकी पत्नी, उसी होटल में एक स्कूल के अवार्ड समारोह के लिए आई थी। उसके चेहरे पर हैरानी थी, जैसे किसी ने उसे झटका दिया हो।
वो आगे बढ़ी, “अभय, तुम यहां क्या कर रहे हो? किसी काम के लिए आए हो?”
अभय ने शांत स्वर में कहा, “हां, काम के लिए आया हूं। लेकिन अब मैं यहां काम मांगने नहीं आया।”
इतना कहते ही सुमित पीछे से आया, “माफ कीजिए मैम, यह हमारे हेड ऑफ डिजाइन इनोवेशन मिस्टर अभय मेहरा हैं।”
रतिका के हाथों से उसका पर्स गिर गया, चेहरा सफेद पड़ गया। वो कुछ कहने ही वाली थी कि अरविंद चौधरी वहां पहुंचे और सबके सामने बोले,
“अभय जी वह इंसान हैं जिनके डिजाइन से हमारे देश के हजारों विकलांग लोगों को नई जिंदगी मिलेगी।”
रतिका के होंठ कांप रहे थे, आंखों से आंसू बह निकले।
“अभय…” उसकी आवाज भर गई।
अभय ने बस कहा, “रतिका, अब माफी की जरूरत नहीं। कभी-कभी जिंदगी हमें तोड़ती है ताकि हम दोबारा और मजबूती से बन सकें।”
होटल के लॉबी में तालियां गूंज उठीं। रतिका वहीं खड़ी रह गई, उस आदमी के सामने जिसे उसने कभी बोझ समझकर छोड़ा था। आज वही उसके सामने सम्मान और सफलता की मूर्ति बनकर खड़ा था।
रात के 9:00 बजे थे। द लेवेंट क्राउन होटल की छत पर रोशनी झिलमिला रही थी। नीचे शहर चमक रहा था, मानो आसमान के सारे सितारे जमीन पर उतर आए हों। अभय अब उस होटल के गेस्ट ऑफ ऑनर थे। कंपनी ने उसी शाम एक छोटा सा सम्मान समारोह रखा था, जहां प्रेस, मीडिया और कई सामाजिक संस्थाएं मौजूद थीं। हॉल के बीचों-बीच अभय की व्हीलचेयर खड़ी थी, आसपास पत्रकारों का कैमरा, लाइट्स की चमक और लोगों की भीड़। लेकिन उसके चेहरे पर अब भी वही सादगी, वही शांत मुस्कान थी।
अरविंद चौधरी ने माइक उठाया, “दोस्तों, आज मैं आपको उस व्यक्ति से मिलवाना चाहता हूं जिसने हमें सिखाया कि शरीर की कमजोरी कभी इंसान की ताकत को नहीं रोक सकती। मिलिए मिस्टर अभय मेहरा से!”
तालियां गूंज उठीं। अभय की आंखें झुकीं, फिर धीरे से उसने माइक संभाला।
“नमस्कार,” उसने कहा, “शायद कुछ लोग मुझे देखकर सोच रहे होंगे, क्या कोई व्हीलचेयर पर बैठा आदमी इतनी बड़ी कंपनी में काम कर सकता है?”
भीड़ खामोश थी।
अभय आगे बोला, “कभी मैं भी यही सोचता था। लेकिन जिस दिन मैंने अपनी सीमाओं को स्वीकार किया, उसी दिन मेरी जिंदगी बदल गई।”
उसने एक गहरी सांस ली, “दो साल पहले मैं अपनी टांगों के साथ-साथ अपना आत्मविश्वास भी खो चुका था। लोगों ने मुंह फेर लिया। यहां तक कि जिन्हें मैंने अपना घर दिया, उन्होंने भी मुझे बोझ समझा। लेकिन भगवान ने शायद मुझे एक और मौका दिया, लोगों को यह दिखाने का कि असली ताकत शरीर में नहीं, इरादों में होती है।”
कई लोग आंसू पोंछने लगे। कैमरे लगातार क्लिक कर रहे थे।
“आज मैं सिर्फ अपने लिए नहीं, हर उस व्यक्ति के लिए खड़ा हूं जिसे समाज कमजोर कहकर दरवाजे से लौटा देता है।”
उसने मुस्कुराकर कहा, “और मैं कहना चाहता हूं, हम विकलांग नहीं हैं, बस दुनिया ने देखने का तरीका गलत चुन लिया है।”
तालियों की गूंज कमरे में भर गई। रतिका जो हॉल के पीछे खड़ी थी, अब खुद को रोक नहीं पाई। वो धीरे-धीरे आगे बढ़ी। उसके कदम कांप रहे थे, आंखों से आंसू रुक नहीं रहे थे।
वह अभय के सामने आकर बोली, “अभय, मैं शर्मिंदा हूं। मैंने तुम्हें समझने की कोशिश ही नहीं की।”
अभय ने बस शांत स्वर में कहा, “रतिका, अगर तुम उस दिन मुझे नहीं छोड़ती, तो शायद मैं आज यहां नहीं होता। तुम्हारा छोड़ना मेरे लिए सजा नहीं, मेरी नई शुरुआत थी।”
पूरा हॉल शांत था। बस तालियों की आवाज धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी।
अरविंद चौधरी ने माइक लेकर कहा, “आज से हम अपने हर होटल में अभय एक्सेसिबिलिटी मॉडल सब एडमिट लागू करेंगे ताकि देश के हर दिव्यांग व्यक्ति को कभी यह महसूस ना हो कि दुनिया उसके लिए नहीं बनी।”
एक बैनर नीचे से ऊपर उठा – प्रोजेक्ट अभय फॉर ए बैरियर फ्री इंडिया।
सभी खड़े होकर तालियां बजाने लगे। रतिका की आंखों से आंसू बहते रहे, पर उन आंसुओं में इस बार ग्लानि नहीं, गर्व था।
अगली सुबह शहर के अखबारों में सुर्खी थी –
विकलांग इंजीनियर बना करोड़ों लोगों की प्रेरणा। प्रोजेक्ट अभय हुआ लॉन्च।
स्कूलों में बच्चे उसका वीडियो देखकर तालियां बजा रहे थे और इंटरनेट पर लोग लिख रहे थे –
हिम्मत अगर सच्ची हो तो दुनिया झुक जाती है।
कुछ हफ्ते बाद अभय अपनी बेटी काव्या के स्कूल पहुंचा। रतिका अब बदल चुकी थी। वह हर दिन उसकी मदद करती, उसके साथ खड़ी रहती।
स्कूल के मंच पर काव्या ने कहा,
“मुझे गर्व है कि मेरे पापा चल नहीं सकते क्योंकि वह उड़ना जानते हैं।”
पूरा सभागार खड़ा हो गया। तालियां गूंज उठीं और अभय की आंखों में वही चमक लौट आई, जिसे दुनिया ने बुझा हुआ समझ लिया था।
“कभी-कभी जीवन हमें तोड़ता है, ताकि हम दोबारा और मजबूती से बन सकें।”
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