DM. साहब शादी में से आ रहे थे… रास्ते में उनकी तलाकशुदा पत्नी, कचरे से खाना उठाकर खा रही थी… फिर
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कचरे के डिब्बे से उठाया गया सबक
गोपाल उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में अपनी माँ और छोटे भाई के साथ रहता था। साधारण परिवार होने के बावजूद गोपाल मेहनती, ईमानदार और संवेदनशील स्वभाव का था। उसकी शादी पड़ोस के गाँव की लड़की शीतल से हुई। शीतल की खूबसूरती और उसकी मीठी बातें हर किसी का दिल जीत लेती थीं। गोपाल तो उसे पहली बार देखते ही मोहित हो गया था। शादी के बाद शुरू के कुछ महीने उनके जीवन के सबसे सुनहरे दिन रहे।
गोपाल अपनी पत्नी की हर इच्छा पूरी करने की कोशिश करता। वह चाहता कि शीतल कभी किसी चीज़ की कमी महसूस न करे। एक बार शीतल ने नया स्मार्टफोन लेने की ज़िद की, तो गोपाल ने अपनी सालों की बचत तोड़कर उसे फोन खरीदकर दिया। शीतल का अधिकांश समय अब उसी फोन पर बीतने लगा। सोशल मीडिया, चैट और वीडियो—यही उसकी दिनचर्या बन गई। गोपाल को इससे कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन उसकी माँ को चिंता होती। वह बेटे को समझाती—
“बेटा, औरत अगर घर-परिवार से ज़्यादा फोन पर ध्यान देगी, तो रिश्तों में खटास आएगी। सावधान रहना।”
गोपाल हँसकर टाल देता—“माँ, शीतल खुश है, बस यही मेरे लिए काफ़ी है।”
कुछ महीनों बाद शीतल ने बताया कि उसका एक पुराना स्कूल दोस्त, अंकित, अब शहर में रहता है और मिलने आना चाहता है। गोपाल, जो अपनी पत्नी पर अटूट भरोसा करता था, बिना संकोच उसे जाने की इजाज़त दे देता है। लेकिन उस मुलाक़ात के बाद शीतल का व्यवहार धीरे-धीरे बदलने लगा। वह ज़्यादा समय फोन पर बिताने लगी और पति से बातचीत में उसकी रुचि घटने लगी।
एक दिन शीतल ने कहा कि उसे अपनी सहेली की शादी में शहर जाना है। गोपाल ने उसे पैसे दिए और खुशी-खुशी विदा किया। लेकिन शीतल दो दिन बाद भी वापस नहीं लौटी। उसका फोन भी बंद था। जब गोपाल ने उसके मायके वालों से बात की, तो उन्हें भी कोई जानकारी नहीं थी। कुछ दिनों बाद गाँव के ही किसी ने बताया कि शीतल को शहर में अंकित के साथ देखा गया था।
यह सुनते ही गोपाल का दिल चकनाचूर हो गया। वह अंकित के घर पहुँचा, लेकिन वहाँ पता चला कि शीतल और अंकित दोनों कहीं और चले गए हैं। धीरे-धीरे गोपाल को सच्चाई समझ आई कि शीतल ने उससे शादी केवल अपने घरवालों के दबाव से बचने के लिए की थी, और असल में उसका इरादा अंकित के साथ भाग जाने का था।
यह धोखा गोपाल को अंदर से तोड़ गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। परिवार के कहने पर उसने दूसरी शादी सुमन से की—एक साधारण, नेकदिल और धैर्यवान लड़की। सुमन ने गोपाल के टूटे हुए दिल को सँभालने में सालों लगाए। धीरे-धीरे दोनों के बीच विश्वास और प्यार पनपा, और उनके दो प्यारे बच्चे हुए।
कई साल बाद, एक रिश्तेदार की शादी में शामिल होने के बाद जब गोपाल और सुमन घर लौट रहे थे, तो सुमन की नज़र एक महिला पर पड़ी। वह डस्टबिन से बचे-खुचे खाने को निकालकर खा रही थी। सुमन का दिल पसीज गया और उसने गोपाल से कहा कि उस महिला की मदद करनी चाहिए। लेकिन जैसे ही गोपाल उसके पास पहुँचा, उसके कदम जम गए। वह महिला और कोई नहीं, बल्कि शीतल थी।
चेहरे पर गंदगी, कपड़े फटे हुए, आँखों में शर्म और भूख की लाचारी—यह वही शीतल थी जिसने कभी फाइव स्टार होटल में खाना खाने के सपने देखे थे। गोपाल ने बिना कुछ कहे उसे कुछ पैसे दिए और केवल इतना कहा,
“यह लो, कुछ खा लेना।”
फिर चुपचाप अपने परिवार के पास लौट आया।
उस रात गोपाल बहुत बेचैन रहा। अतीत की सारी यादें उसके सामने घूमने लगीं। सुमन ने उसे समझाया कि अतीत की पीड़ा को दबाना समाधान नहीं है। अगर शीतल उस हालत में है, तो कम से कम उसकी मदद करनी चाहिए। धीरे-धीरे गोपाल ने सुमन की बात मान ली और शीतल की तलाश शुरू की।
एनजीओ की मदद से उन्हें शीतल रेलवे स्टेशन के पास भीख माँगते हुए मिली। वह टूट चुकी थी। अंकित ने उसे धोखा देकर छोड़ दिया था, और फिर गलत संगत ने उसकी ज़िंदगी पूरी तरह बर्बाद कर दी। शीतल ने आँसुओं में गोपाल से कहा—
“मैंने जो किया, उसके लिए कोई माफी नहीं चाहिए। लेकिन अब मेरे पास कुछ भी नहीं बचा।”
सुमन ने उसका हाथ थामा और कहा,
“गलतियाँ इंसान से होती हैं, लेकिन हर किसी को दूसरा मौका मिलना चाहिए। अगर तुम चाहो तो हम तुम्हें एनजीओ के सहारे एक नई शुरुआत करने में मदद करेंगे।”
शीतल ने सहमति दी। उसे आश्रय गृह में जगह मिली, जहाँ उसने नई ज़िंदगी शुरू की। वहीं से उसे पता चला कि अंकित अब भी लड़कियों को धोखा देकर उनका शोषण करता है। इस बार शीतल ने तय किया कि वह चुप नहीं बैठेगी। एनजीओ की मदद से उसने अंकित के खिलाफ केस दर्ज कराया। पहले तो वह डरती रही, लेकिन फिर अन्य पीड़िताओं की गवाही और सबूतों ने केस को मज़बूत बना दिया।
आख़िरकार, लंबे संघर्ष के बाद अदालत ने अंकित को सजा सुनाई। फैसला सुनते समय शीतल, नेहा और अन्य पीड़िताओं की आँखों से आँसू छलक पड़े, लेकिन इस बार यह आँसू हार के नहीं, बल्कि जीत और राहत के थे।
शीतल ने अपनी मेहनत से आत्मनिर्भर बनने का रास्ता चुना। उसने सिलाई-कढ़ाई सीखकर खुद का छोटा-सा काम शुरू किया। धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास लौट आया। वह जान चुकी थी कि अतीत को बदला नहीं जा सकता, लेकिन भविष्य को बेहतर ज़रूर बनाया जा सकता है।
गोपाल और सुमन अपने बच्चों के साथ सुखी जीवन जीते रहे। शीतल अब उनके लिए अतीत का एक अध्याय भर थी। लेकिन एक बात हमेशा उनके दिलों में अंकित रही—गलतियाँ चाहे जितनी भी बड़ी हों, इंसान को सुधरने का अवसर देना चाहिए।
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