दुबई में एक मजदूर लड़के ने एक अरब इंजीनियर का खोया हुआ बटुआ लौटाया, फिर जो हुआ वो जानकर आप हैरान रह जाएंगे…

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एक मजदूर की वर्दी में छिपा हीरा – समीर की कहानी

क्या होता है जब किस्मत आपकी डिग्रियों और सपनों को मजदूरी की नीली वर्दी के नीचे दबा देती है? यह कहानी है समीर कुमार की, एक पढ़े-लिखे नौजवान की, जिसने गरीबी से लड़ते हुए अपनी ईमानदारी से न केवल अपनी तक़दीर बदली, बल्कि दूसरों के दिलों में इंसानियत की मिसाल छोड़ दी।

समीर बिहार के सिवान जिले के रामपुर गाँव का रहने वाला था। गांव पिछड़ा था, पर समीर के सपने बहुत आगे के थे। उसने कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया था और उसका सपना था एक बड़ा अकाउंटेंट बनने का। पर हालात कुछ और थे। सूखे ने उसके पिता की खेती बर्बाद कर दी, साहूकार का कर्ज बढ़ता गया, और घर की जिम्मेदारियाँ समीर पर आ गईं।

शहरों में नौकरियाँ ढूंढीं, पर या तो सिफारिश चाहिए थी या अनुभव। एक एजेंट ने दुबई में मजदूरी का सुझाव दिया। दिल भारी था, पर मजबूरी ने समीर को राजी कर लिया। वह अपनी डिग्रियां और सपनों को एक बक्से में बंद कर, दुबई चला गया।

दुबई में समीर की दुनिया सिर्फ एक लेबर कैंप और कंस्ट्रक्शन साइट तक सीमित थी। सुबह 4 बजे उठना, दिनभर 50 डिग्री की गर्मी में सीमेंट और सरिए ढोना, और रात को एक डायरी में झूठी खुशियाँ लिखकर परिवार को भेजना – यही उसकी ज़िंदगी बन गई थी।

उसी कंस्ट्रक्शन साइट का प्रोजेक्ट इंजीनियर था अहमद अल मंसूरी – एक अमीर और काबिल इंजीनियर, जो मजदूरों को सिर्फ वर्दी में छुपे चेहरे समझता था। एक दिन अहमद का बटुआ 50वीं मंज़िल पर गिर गया। उसमें पैसे, कार्ड्स और सबसे अहम – उसके मरहूम पिता की तस्वीर थी।

शाम को जब समीर मलबा साफ कर रहा था, तो उसे वह बटुआ मिला। वह हक्का-बक्का रह गया। उसमें हजारों दरहम थे – इतनी दौलत जिससे उसका पूरा कर्ज उतर सकता था, बहन की शादी हो सकती थी, और वह मजदूरी छोड़कर वापस लौट सकता था। एक पल को उसने बटुआ छिपा लिया। पर जब उसकी नजर उस बूढ़े आदमी की तस्वीर पर पड़ी, तो उसे अपने पिता की बातें याद आ गईं – “हराम की एक रोटी से बेहतर है हलाल की आधी रोटी।”

उसने रातभर सोचा और अंततः तय किया कि वह बटुआ लौटाएगा। अगली शाम, जब अहमद साइट से निकल रहा था, समीर उसके सामने खड़ा हो गया और अंग्रेज़ी में कहा – “सर, मुझे लगता है यह बटुआ आपका है।”

अहमद चौंक गया – एक मजदूर इतनी साफ अंग्रेज़ी कैसे बोल सकता है? समीर ने कांपते हाथों से बटुआ लौटाया। अहमद की आंखों में आंसू थे – वह सिर्फ अपना बटुआ नहीं, बल्कि अपने पिता की यादें वापस पा चुका था।

अहमद ने समीर से उसकी कहानी पूछी। समीर ने बिना किसी शिकायत के सब कुछ बता दिया – उसकी पढ़ाई, गांव, गरीबी और मजबूरी। अहमद इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसी वक्त फैसला किया – समीर अब मजदूर नहीं रहेगा। अगले दिन उसे “परचेसिंग मैनेजर” की पोस्ट पर अपॉइंट कर दिया गया। उसकी तनख्वाह 20 गुना बढ़ा दी गई, उसे कंपनी के फ्लैट में शिफ्ट किया गया और उसके परिवार को भी दुबई लाने का इंतज़ाम हुआ।

समीर की मेहनत और ईमानदारी ने जल्द ही सबका दिल जीत लिया। उसने कंपनी के करोड़ों रुपये बचाए, घर का कर्ज चुकाया, बहन को अच्छे कॉलेज में दाखिला दिलाया। और जब बुरज अल अमल का उद्घाटन हुआ, तो समीर अपनी ऊंची मंजिल के ऑफिस से नीचे देख रहा था, जहां कभी उसने मजदूरी की थी।

यह कहानी हमें सिखाती है कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर इंसान के पास ईमानदारी और आत्मसम्मान हो, तो वह मिट्टी से भी सोना बना सकता है। समीर की कहानी हर उस इंसान को प्रेरणा देती है जो हालातों से लड़ रहा है, और सिखाती है कि नेकनीयती का रास्ता कभी खाली नहीं जाता।