कहानी: सच्चाई की जीत
परिचय
हाईवे पर शाम ढल रही थी। सड़क के दोनों तरफ लंबी-लंबी लाइन में ट्रकों की आवाजाही हो रही थी। वहीं बीचोंबीच एक दरोगा अपने चार वफादार पुलिस वालों के साथ खड़ा था, जिनकी नजरें किसी शिकारी बाज की तरह हर आने-जाने वाली गाड़ी पर जमी रहती थीं। दरअसल, यह पांचों लोग एक ऐसे खेल में माहिर थे, जिसे वे ड्यूटी का नाम देकर खेलते थे। लेकिन असल में यह खेल सिर्फ और सिर्फ वसूली का था।
वसूली का खेल
कोई भी गाड़ी, चाहे वह दोपहिया हो, चार पहिया हो, या फिर भारी ट्रक, सबको रोकते थे। पहले तो कागज देखने के नाम पर गाड़ी रोकी जाती। फिर छोटी-छोटी कमियां निकालकर ड्राइवर से पैसे एंठे जाते। जो ड्राइवर पैसे नहीं देता, उसकी गाड़ी सीधे थाने में खड़ी करवा दी जाती, और फिर महीनों तक वहां पड़ी रहती, जब तक कि वह व्यक्ति झुककर रिश्वत ना दे दे। इस हाईवे पर गाड़ियों की कतारें लगी रहती और इसी वजह से दरोगा और उसके चारों साथी हर रोज लाखों रुपए की अवैध कमाई कर लेते। लोग मजबूर थे क्योंकि सफर करना उनकी मजबूरी थी और पुलिस का डंडा उनके सिर पर हमेशा तना रहता था।
आईपीएस अधिकारी का आगमन
लेकिन उस दिन हाईवे पर कुछ ऐसा होने वाला था जिसने न सिर्फ उस दरोगा और उसके चारों गुर्गों की दुनिया बदल दी बल्कि पूरे जिले की पुलिस व्यवस्था को हिला कर रख दिया। उस दिन वहां से एक साधारण दिखने वाली महिला गुजर रही थी, जिसने सूट सलवार पहन रखा था और चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। देखने में वह कोई आम महिला लग रही थी, लेकिन असलियत यह थी कि वही महिला जिले में नई तैनात हुई आईपीएस अधिकारी थी, जिन्हें गुप्त आदेश मिला था कि इस हाईवे पर खुलेआम हो रही वसूली की असलियत का पता लगाना है।
दरोगा का सामना
दरोगा ने दूर से ही उस महिला की गाड़ी को आते देखा और तुरंत हाथ उठाकर गाड़ी रुकवा दी। उसके साथ ही पुलिस वालों ने घेर लिया और हमेशा की तरह कड़क आवाज में कहा, “कागज दिखाओ गाड़ी के कागज।” जब महिला ने मुस्कुराते हुए दस्तावेज दिखाए, तो दरोगा ने जानबूझकर उसमें कमियां निकालनी शुरू कर दी।
बोला, “यह बीमा एक्सपायर लग रहा है और यह परमिट भी साफ नहीं दिख रहा है। गाड़ी को जब्त करनी पड़ेगी।” महिला ने शांत स्वर में कहा, “अधिकारी जी, कृपया ठीक से देख लीजिए। यह गाड़ी पूरी तरह वैध है। कोई कमी नहीं है।” लेकिन दरोगा ने अपनी पुरानी आदत से मजबूर होकर कहा, “ज्यादा समझदार बनने की कोशिश मत करो। यहां हम जो कहेंगे वही होगा।”
संघर्ष की शुरुआत
महिला ने दरोगा की बात काटते हुए बदतमीजी भरे लहजे में कहा, “तुम्हारी हरकतों का आज अंत होगा।” तभी उसने अचानक अपने हाथ में रखे कागज दरोगा के सामने गिरा दिए और बिजली की तेजी से उसके गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया। पूरे हाईवे पर खामोशी छा गई। ट्रक चालक और राहगीर जो अब तक सहमे हुए खड़े थे, अचानक हैरान रह गए।
महिला ने कहा, “अगर किसी और गाड़ी वाले से वसूली करने की हिम्मत दिखाई तो अंजाम बहुत बुरा होगा।” दरोगा तिलमिलाता हुआ उठने की कोशिश करने लगा। मगर महिला की निगाहों ने उसे थर्रा दिया। तभी भीड़ में खड़े एक बुजुर्ग ट्रक चालक ने हाथ जोड़कर कहा, “बेटी, तुमने तो आज हमारी सालों की पीड़ा का बदला ले लिया है।”
सच्चाई का उजाला
भीड़ उत्सुकता से खड़ी थी और दरोगा सोच में पड़ गया। यह औरत आखिर है कौन? तभी दूर से पुलिस की एक जीप आती दिखाई दी और उसमें से कुछ नए चेहरे उतरे जो सीधे महिला की तरफ बढ़े। दरोगा ने राहत की सांस ली कि शायद अब मामला उसके पक्ष में हो जाएगा। मगर जैसे ही जीप से उतरे अधिकारी महिला के पास जाकर झुक कर बोले, “मैडम, हमें आदेश था कि आपको यहां से सुरक्षित ले जाएं और आपके निर्देश पर आगे की कार्रवाई करें।”
यह सुनते ही पूरे हाईवे पर सन्नाटा फैल गया। अब सबको समझ में आ गया कि यह कोई आम महिला नहीं बल्कि जिले की नई आईपीएस अधिकारी है और उनका भेष सिर्फ दरोगा और उसके साथियों की हकीकत सामने लाने के लिए था। दरोगा का चेहरा पीला पड़ गया। उसके साथी सहम गए। भीड़ तालियों की गड़गड़ाहट में बदल गई।
न्याय की स्थापना
महिला यानी आईपीएस अधिकारी अब भी शांत खड़ी थी। उनकी आंखों में दृढ़ निश्चय साफ झलक रहा था और उन्होंने कहा, “खेल तो अभी शुरू हुआ है। असली हिसाब किताब थाने में होगा।” और यह सुनते ही वहां मौजूद हर व्यक्ति की धड़कनें तेज हो गईं क्योंकि अब असली टकराव होने वाला था।
थाने का माहौल उस रात अजीब सा था। दरोगा और उसके चारों साथी जैसे ही हाईवे से पकड़े गए, वैसे ही पूरे जिले में यह खबर आग की तरह फैल गई। नई आईपीएस मैडम ने खुलेआम हाईवे पर वसूली रोकते हुए दरोगा को तमाचा मारकर पटक दिया। लोग उम्मीद कर रहे थे कि आज सालों से जो पुलिस की मनमानी चल रही थी उसका अंत होगा।
अंत का आरंभ
दरोगा को थाने में लाया गया लेकिन अब भी उसके चेहरे पर हेकड़ी कम नहीं हुई। उसने अपने चारों साथियों से कान में कहा, “घबराने की जरूरत नहीं है। सब मैनेज हो जाएगा। ऊपर तक हमारे बड़े साहब तक सेटिंग है।” लेकिन जैसे ही आईपीएस मैडम ने टेबल पर जोर से हाथ मारा और कहा, “इस थाने में जो सालों से गंदगी फैल रही है, आज उसका हिसाब किताब होगा।”
दरोगा ने सीधे आवाज में कहा, “मैडम, आप चाहे जितना ड्रामा कर लें, हम कुछ नहीं मानते। यह थाना हमारा है और यहां हमारे ही आदेश चलते हैं।” लेकिन मैडम की निगाहें इतनी सख्त थीं कि दरोगा की आवाज खुद ब खुद धीमी पड़ने लगी।
सच्चाई का सामना
आईपीएस मैडम ने टेबल पर रखी फाइलें बाहर निकालीं और कहा, “तुम्हारी हरकतों का अंत अब यहीं होगा।” उन्होंने सबूत पेश किए और कहा, “यहां सालों से जो गंदगी फैली है, उसका आज अंत होगा।” दरोगा और उसके साथी अब घबरा गए थे।
भीड़ ने नारे लगाने शुरू कर दिए। “दरोगा को सजा दो!” “भ्रष्टाचार का अंत करो!” माहौल गरमाने लगा। मैडम ने कहा, “अब देखो तुम्हारा रसूख कैसे तुम्हें बचाता है।” दरोगा ने तिलमिलाकर कहा, “यह सब झूठ है। हमें फंसाया जा रहा है।”
न्याय की जीत
भीड़ में खड़े लोग नारे लगाने लगे। दरोगा को सजा दो। भ्रष्ट अफसरों को सजा दो। दरोगा ने अपनी पिस्तौल तानी हुई थी, लेकिन मैडम ने ठंडी आवाज में कहा, “यह सब धमकियां आम उन लोगों को देना जिन्हें डरना आता है। मैं यहां सच को उजागर करने आई हूं और यह काम करके ही रहूंगी।”
भीड़ ने तालियों की गड़गड़ाहट से आसमान गूंजा दिया। दरोगा जो अब तक हेकड़ी दिखा रहा था, जमीन पर गिर कर रोने लगा और बोला, “मैडम, मुझे माफ कर दो। मैं मजबूरी में यह सब करता था।” मगर भीड़ ने चीखते हुए कहा, “यह मजबूरी नहीं, लालच था।”
निष्कर्ष
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि यदि सच्चाई के साथ खड़े होने की हिम्मत हो, तो किसी भी तंत्र को हरा सकते हैं। सच्चाई की राह कठिन जरूर है, लेकिन अंत में विजय उसी की होती है।
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