विदेश के डॉक्टर हार गए थे, पर एक भिखारी बच्चे ने कहा —साहब, मैं आपकी पत्नी को ठीक कर सकता हूँ।
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एक अनोखी दुआ
भाग 1: संजय का संघर्ष
दिल्ली के एक बड़े एयरपोर्ट पर, भीड़भाड़ के बीच एक कोना ऐसा था जहां पर सब कुछ थम सा गया था। वहां खड़ा था संजय सिंघानिया, एक अमीर businessman, जो अपने महंगे सूट में थका हुआ नजर आ रहा था। उसकी पत्नी रीमा, व्हीलचेयर पर बैठी थी, और उसकी आंखों में जीवन की रोशनी नहीं थी। संजय की आंखों में चिंता और निराशा झलक रही थी। उसने लंदन और स्विट्जरलैंड के सबसे बड़े डॉक्टरों से इलाज करवाया था, लेकिन सभी ने कहा कि अब उम्मीद कम है।
संजय ने अपने फोन को उठाया और डॉक्टर का नंबर डायल किया। “हां, डॉक्टर, मैंने सभी जगह कोशिश की है। सब कह रहे हैं कि अब कुछ नहीं हो सकता।” उसकी आवाज में भारीपन था, जैसे वह अंदर से टूट चुका हो। फोन रखते ही उसने रीमा के हाथ को पकड़ लिया। “रीमा, मुझसे हार मत मानो। मैं तुम्हें ठीक करूंगा।”
रीमा ने कुछ नहीं कहा, बस आंखें बंद कर लीं। संजय ने देखा कि उसके चेहरे पर दर्द और थकान का असर था। तभी, एक छोटे से बच्चे की आवाज आई। “साहब, मैं आपकी मैडम को ठीक कर सकता हूं।” संजय ने चौंककर देखा। सामने नंगे पैर, फटे कपड़े पहने, एक छोटा सा बच्चा खड़ा था। उसकी आंखों में उम्मीद की चमक थी।
भाग 2: छोटू का साहस
लोग हंसने लगे। “क्या पागलपन है!” संजय के मन में गुस्सा आया। “बेटा, यह खेल का समय नहीं है।” लेकिन छोटू ने हिम्मत नहीं हारी। “साहब, मैंने कहा ना, मैं ठीक कर सकता हूं।” संजय की आंखों में आंसू आ गए। “तुम क्या कर लोगे? लंदन के डॉक्टर हार गए हैं।”
छोटू ने कहा, “आपने सब जगह कोशिश की है। एक बार मुझे भी आजमाने दीजिए।” संजय ने उसकी मासूमियत में कुछ देखा। वह सोचने लगा, “क्या खोने के लिए बचा है?” उसने धीरे से सिर हिलाया। छोटू ने अपनी छोटी सी स्टील की कटोरी जमीन पर रखी और रीमा के पास बैठ गया।
भाग 3: दुआ का जादू
छोटू ने अपनी छोटी हथेलियां रीमा के हाथों पर रखीं। उसके हाथ ठंडे थे, लेकिन उनमें एक अनकही गर्माहट थी। छोटू ने आंखें बंद कीं और बिना कुछ कहे, बस रीमा के हाथ को सहलाने लगा। संजय की आंखें उस दृश्य से हट नहीं पा रही थीं। वह सोचने लगा, “क्या यह सच में कुछ कर सकता है?”

छोटू ने धीरे से फुसफुसाया, “मैडम, उठिए ना। साहब बहुत रोते हैं रात को।” यह सुनकर संजय की आंखें भर आईं। अचानक, रीमा की उंगलियों में हल्की सी कंपन हुई। संजय ने देखा, जैसे कोई बंद दरवाजा धीरे से खुला हो। रीमा की पलकों में हलचल थी।
भाग 4: उम्मीद की किरण
संजय ने धीरे से कहा, “रीमा, तुम सुन सकती हो?” रीमा ने धीरे से आंखें खोलीं। उसकी आंखों में थकान थी, लेकिन एक नई उम्मीद की चमक भी थी। संजय के दिल में खुशी की लहर दौड़ गई। “क्या यह सच है?” उसने सोचा।
छोटू ने मुस्कुराते हुए कहा, “देखा, साहब, दुआ खाली नहीं जाती।” संजय ने महसूस किया कि जो दवा बड़े अस्पताल नहीं कर सके, वह एक छोटे बच्चे की दुआ कर रही थी।
भाग 5: प्यार और कृतज्ञता
संजय ने छोटू को गले लगाया। “तुमने मेरी दुनिया लौटा दी।” छोटू ने सिर झुका कर कहा, “मैंने नहीं, ऊपर वाले ने किया। मैं तो बस हाथ बना था।” संजय ने उसकी मासूमियत को देखा और सोचा, “यह बच्चा कितनी ताकतवर है।”
छोटू ने कहा, “साहब, मेरे पास रहने की जगह नहीं है। मैं फुटपाथ पर सोता हूं।” संजय ने कहा, “आज से तुम मेरे साथ चलोगे। तुम्हें घर मिलेगा, खाना मिलेगा, स्कूल मिलेगा।” छोटू ने हल्का सा सिर हिलाया। “अगर मैं चला गया तो जिनको दुआ चाहिए होगी उनका क्या?”
भाग 6: एक नई शुरुआत
संजय ने कहा, “बेटा, दुआ देना मत छोड़ना। लेकिन जिंदगी भी जीनी है।” छोटू ने आसमान की तरफ देखा, जैसे पूछ रहा हो, “क्या सच में?” फिर उसने कहा, “अगर मैं चला जाऊं तो क्या मैं कभी वापस आकर दुआ दे सकता हूं?” संजय ने उसे गले से लगा लिया। “अब से यह दुनिया तुम्हारा इंतजार करेगी।”
भाग 7: मेडिकल रूम में चमत्कार
एयरपोर्ट कर्मचारी ने कहा, “अगर मैडम की तबीयत बेहतर हुई है, तो मेडिकल रूम में चेकअप करा लेते हैं।” संजय ने कहा, “हां चलो।” उसने छोटू का हाथ पकड़ा और रीमा की व्हीलचेयर दूसरी हाथ में ले ली।
मेडिकल रूम में डॉक्टर ने चश्मा उतारा और कहा, “रीमा जी की नसों में फिर से प्रतिक्रिया आ रही है।” संजय की आंखों में आंसू आ गए। रीमा ने धीरे से हाथ उठाने की कोशिश की।
भाग 8: दुआ पूरी हुई
छोटू ने दौड़ कर उसके पास आया। “धन्यवाद बेटा,” रीमा ने कहा। संजय ने फूट-फूट कर रोते हुए कहा, “दुआ पूरी हो चुकी थी।”
छोटू ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैंने नहीं, ऊपर वाले ने किया।” संजय ने कहा, “तुमने मुझे वापस जिंदगी दे दी। आज से तुम मेरा बच्चा हो।” छोटू ने कहा, “अब मैं भी किसी दिन किसी को दुआ दूंगा।”
भाग 9: एक नया अध्याय
रीमा ने आंखों में आंसू लिए मुस्कुराया। संजय ने कहा, “छोटू, तुम्हारे बिना हमारी जिंदगी अधूरी थी।” छोटू ने कहा, “साहब, हाथ छोटे हो तो क्या? मन बड़ा होना चाहिए।” संजय ने उसे गले से लगा लिया।
भाग 10: जीवन का मूल्य
इस घटना ने संजय को सिखाया कि अमीरी का मतलब हमेशा पैसे नहीं होता। कभी-कभी, सच्चा धन उस प्यार में होता है जो हम दूसरों के लिए रखते हैं। छोटू की मासूमियत ने संजय को यह एहसास दिलाया कि दुआ की ताकत सबसे बड़ी होती है।
भाग 11: एक वादा
छोटू ने कहा, “साहब, मैं आपके साथ चलूंगा। लेकिन मैं हमेशा दुआ देना नहीं छोड़ूंगा।” संजय ने कहा, “बिल्कुल, तुम हमेशा मेरी दुआ रहोगे।”
भाग 12: एक नया जीवन
छोटू ने संजय और रीमा के साथ एक नई शुरुआत की। वह अब एक परिवार का हिस्सा बन गया था। संजय ने उसे स्कूल में दाखिला दिलवाया और उसे हर संभव मदद देने का वादा किया।
भाग 13: जीवन का नया सफर
छोटू अब एक खुशहाल बच्चे की तरह जी रहा था। उसने अपने नए परिवार के साथ कई सपने देखना शुरू किया। संजय और रीमा ने उसे अपने बच्चे की तरह प्यार दिया।
भाग 14: दुआ की ताकत
एक दिन, छोटू ने संजय से कहा, “साहब, मैं बड़ा होकर डॉक्टर बनूंगा। मैं भी लोगों की मदद करूंगा।” संजय ने मुस्कुराते हुए कहा, “बिल्कुल, तुम कर सकते हो। दुआ की ताकत से सब कुछ संभव है।”
भाग 15: एक नई पहचान
छोटू अब एक नई पहचान बन चुका था। वह न केवल संजय और रीमा के लिए बल्कि सभी के लिए प्रेरणा बन गया। उसकी मासूमियत और दुआ ने कई लोगों को बदल दिया।
भाग 16: सीख
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि कभी-कभी सबसे छोटे हाथों से सबसे बड़े चमत्कार होते हैं। हमें किसी को भी कम नहीं आंकना चाहिए।
भाग 17: अंत
छोटू की दुआ ने संजय और रीमा की जिंदगी में खुशियों की बहार ला दी। वे अब एक खुशहाल परिवार थे, और छोटू ने साबित कर दिया कि दुआ की ताकत सबसे बड़ी होती है।
भाग 18: एक नया अध्याय
छोटू ने अपने जीवन में एक नया अध्याय शुरू किया। वह हमेशा दुआ देता रहा और लोगों की मदद करता रहा। संजय और रीमा ने उसे हमेशा प्यार दिया और उसे अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित किया।
भाग 19: दुआ का जादू
छोटू की कहानी ने सभी को यह सिखाया कि दुआ का जादू कभी खत्म नहीं होता। जब दिल से की गई दुआ होती है, तो वह हमेशा पूरी होती है।
भाग 20: एक नई शुरुआत
इस कहानी ने हमें यह भी सिखाया कि हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। चाहे कितनी भी कठिनाइयां आएं, हमें हमेशा उम्मीद रखनी चाहिए।
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