एग्जाम देने ट्रैन से जा रहा था, रास्ते में पर्स चोरी हो गया, फिर एक अनजान महिला ने उसके टिकट के पैसे

नेकी का कर्ज – एक मां की ममता और एक बेटे की कृतज्ञता
क्या होता है जब आपकी जिंदगी का सबसे बड़ा सपना आपकी आंखों के सामने एक चोरी हुए पर्स की वजह से दम तोड़ने लगता है?
क्या होता है जब आप एक अनजान शहर की ओर जाने वाली ट्रेन में बिना टिकट, बिना पैसे के एक अपराधी की तरह खड़े हों और आपकी पूरी दुनिया, आपके मां-बाप का त्याग सब कुछ दांव पर लगा हो?
और फिर उसी नाउम्मीदी के अंधेरे में कोई अनजान फरिश्ता एक देवी की तरह आपका हाथ थाम ले तो क्या होता है?
यह कहानी है रवि कुमार की – बिहार के आरा जिले के हरिपुर गांव के एक गरीब, लेकिन होनहार लड़के की। रवि के लिए आईपीएस बनना सिर्फ एक नौकरी नहीं, अपनी सात पुश्तों की गरीबी को मिटाने का जरिया था।
यह कहानी है सरिता देवी की – एक साधारण महिला जिसने एक अनजान लड़के की आंखों में अपने बेटे की छवि देखी और एक छोटी सी मदद करके उसकी तकदीर बदल दी।
गांव की मिट्टी और सपनों का बोझ
हरिपुर गांव, गंगा के किनारे, एक गुमनाम सा गांव जहाँ लोग मानसून की बारिश और साहूकार के कर्ज के बीच जीते थे। कच्ची सड़कें, फूस की झोपड़ियां, दिन-रात खटते किसान – यही पहचान थी इस गांव की।
रवि कुमार, 22 साल का, दुबला-पतला लेकिन आंखों में आग और कुछ कर गुजरने का जुनून। उसके पिता रामकिशन छोटे किसान थे, मां शांति घर और खेत दोनों संभालती थीं। दो बहनें और एक छोटा भाई – छह लोगों का परिवार। गरीबी ऐसी थी कि कई रातें सिर्फ नमक-रोटी या भूखे ही सोना पड़ता था।
पर शिक्षा का दिया हमेशा जलता रहता था। रामकिशन चाहते थे कि उनका बेटा पढ़े-लिखे, बड़ा आदमी बने। रवि ने 12वीं जिले में टॉप की, फिर शहर के कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। दिन में पढ़ाई, रात में ढाबे पर बर्तन – उसकी जिंदगी सिर्फ एक सपना थी: आईपीएस बनना।
त्याग और संघर्ष
रवि के पिता ने बेटे के सपने के लिए अपनी पुश्तैनी गाय लक्ष्मी तक बेच दी। उस गाय के दूध से घर चलता था, लेकिन बेटे के लिए वह भी कुर्बान कर दी।
दिल्ली में यूपीएससी इंटरव्यू के लिए रवि को जो पैसे मिले, वे उसी गाय की कीमत थे। मां ने रोटियों की पोटली और ₹100 का पुराना नोट दिया – “बेटा रास्ते में कुछ खा लेना।”
रवि के कंधे पर सिर्फ बैग नहीं, पूरे परिवार की उम्मीदों और कुर्बानियों का बोझ था।
ट्रेन में एक हादसा
विक्रमशिला एक्सप्रेस के जनरल डिब्बे में रवि किसी तरह जगह बनाकर बैठा। रात को थककर सो गया, बैग को सिरहाने रखा। सुबह जब ट्रेन दिल्ली पहुंचने वाली थी, टिकट चेकिंग शुरू हुई।
रवि ने देखा – उसका बटुआ गायब था! उसमें पैसे ही नहीं, टिकट और सारे दस्तावेज भी थे। टीटीई ने टिकट मांगा, रवि ने कांपती आवाज में बताया कि उसका बटुआ चोरी हो गया। टीटीई ने अविश्वास से देखा, “हर दूसरा यही बहाना करता है, जुर्माना भरो या अगले स्टेशन पर उतर जाओ।”
रवि टूट चुका था। उसकी आंखों में आंसू थे, वह लोगों से मदद मांग रहा था, पर किसी ने उसकी नहीं सुनी।
एक फरिश्ता – सरिता देवी
तभी पास की सीट से एक आवाज आई, “रुकिए टीटीई साहब।”
एक साधारण सी सूती साड़ी पहने, माथे पर छोटी बिंदी वाली महिला – सरिता देवी।
“मैं इस लड़के के टिकट के पैसे दे दूंगी।”
टीटीई ने पूछा, “आप इन्हें जानती हैं?”
सरिता देवी बोलीं, “नहीं, लेकिन इसकी आंखों में सच्चाई है।”
उन्होंने अपने पर्स से पैसे निकालकर जुर्माना और किराया भर दिया।
टीटीई के जाने के बाद सरिता देवी ने रवि को अपने पास बुलाया, “यहां आओ बेटा, बैठो।”
रवि जमीन पर बैठ गया, सरिता देवी ने उसे अपनी सीट पर बिठाया।
“कहां से आ रहे हो? यह यूपीएससी क्या है?”
रवि फूट-फूट कर रो पड़ा, उसने अपनी सारी कहानी, अपने मां-बाप का त्याग, गाय का बिकना, अपना सपना सब बता दिया।
सरिता देवी ने उसके सिर पर हाथ फेरा, “बेटा, जो मां-बाप अपने बच्चे के लिए इतनी कुर्बानी देते हैं उनका बेटा कभी हार नहीं सकता। जिस देश की सेवा करने जा रहे हो, उस देश की एक मां तुम्हारी मदद ना करे तो लानत है ऐसी मां पर।”
अलीगढ़ स्टेशन आने वाला था, सरिता देवी को उतरना था। उन्होंने रवि को ₹500 का नोट दिया, “यह रख लो बेटा, दिल्ली में काम आएगा।”
रवि ने कहा, “मां जी, आपने पहले ही इतना बड़ा एहसान कर दिया, मैं और पैसे नहीं ले सकता।”
सरिता देवी मुस्कुराईं, “इसे कर्ज मत समझो, मां का आशीर्वाद समझो। और अगर सच में मेरा कर्ज चुकाना है तो वादा करो, जब बड़े अफसर बन जाओ तो मेरे जैसे किसी जरूरतमंद की मदद कर देना। जिस दिन ऐसा करोगे, समझना मेरा कर्ज चुक गया।”
रवि ने कांपते हाथों से नोट लिया, “मैं वादा करता हूं मां जी, आपकी सीख हमेशा याद रखूंगा।”
मंजिल की ओर
दिल्ली पहुंचकर रवि ने एक सस्ते धर्मशाला में कमरा लिया। दिन में गुरुद्वारे में लंगर, रात में तैयारी। इंटरव्यू के दिन रवि के दिल में सिर्फ दो चेहरे थे – पिता का और सरिता मां का।
उसने आत्मविश्वास और ईमानदारी से जवाब दिए।
महीनों बाद रिजल्ट आया – रवि कुमार ने ना सिर्फ यूपीएससी पास किया, बल्कि देशभर में शानदार रैंक हासिल की। वह आईपीएस अफसर बन गया।
गांव में जश्न मनाया गया, मां-बाप का सपना पूरा हुआ। रवि ने मां-बाप के सारे कर्ज चुकाए, बहनों की शादी की, भाई को कॉलेज भेजा। लेकिन एक कर्ज बाकी था – सरिता मां का।
नेकी का कर्ज चुकाना
रवि ने सालों तक सरिता देवी को ढूंढा। उसके पास बस उनका नाम और शहर था – सरिता, अलीगढ़।
पुलिस की मदद से अलीगढ़ के हर थाने में सरिता नाम की महिलाओं की लिस्ट निकलवाई।
7 साल बाद किस्मत ने साथ दिया – रवि की ट्रांसफर अलीगढ़ जिले में एसपी के पद पर हो गई।
एक दिन एक पुरानी चोरी की फाइल में उसे “सरिता शर्मा” का नाम मिला। पता पुराने मोहल्ले का था।
रवि साधारण कपड़ों में खुद उस घर पहुंचा। एक खंडहर सा घर, दरवाजे पर गरीबी की परतें। दरवाजा खुला, सामने वही आंखें, वही चेहरा – लेकिन अब पीड़ा और थकान भरी।
सरिता देवी ने रवि को नहीं पहचाना। “जी, किससे मिलना है?”
रवि बोला, “मां जी, मैं रवि हूं – ट्रेन में 7 साल पहले…”
सरिता देवी की आंखों में पहचान की चमक आई, “रवि बेटा!”
दोनों गले लगकर रो पड़े।
एक नई जिंदगी
रवि ने देखा – घर में टूटी चारपाई, पुराने बर्तन, दीवारों से झड़ता प्लास्टर।
सरिता देवी ने बताया – पति गुजर गए, बेटा नशे और जुए में पड़कर सब बेचकर चला गया। अब अकेली सिलाई और खाना बनाकर गुजारा करती हैं।
रवि ने कहा, “मां जी, आपने उस दिन कहा था, जब अफसर बन जाऊं तो किसी जरूरतमंद की मदद करूं। आज मेरा पहला फर्ज आपके प्रति है।”
रवि ने उनके नाम पर शहर में सुंदर फ्लैट खरीदा, 24 घंटे की नर्स और नौकर रखा, अपनी पत्नी और बच्चों को अलीगढ़ बुलाया, सरिता देवी को अपनी मां का दर्जा दिया। अपनी मां शांति देवी ने उन्हें बहन की तरह अपना लिया।
अब सरिता देवी अकेले नहीं, भरे-पूरे परिवार के साथ सम्मान और सुकून से रहने लगीं।
सीख और संदेश
यह कहानी हमें सिखाती है कि नेकी का छोटा सा बीज भी अगर सही समय पर बोया जाए, तो वह विशाल छायादार पेड़ बन सकता है।
कृतज्ञता दुनिया का सबसे खूबसूरत गहना है।
अगर रवि और सरिता मां की कहानी ने आपके दिल को छुआ हो, तो लाइक और शेयर जरूर करें।
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