दुबई में ड्राइवर से बहुत प्यार करता था अरब शैख़, लेकिन उसने ऐसी गलती कर दी जिसे देख कर सबके होश उड़ गए

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एक पल की गलती

भाग 1: दुबई का जन्नत

दुबई, एक ऐसा शहर जो अपनी चमक-धमक के लिए जाना जाता है। आसमान छूती इमारतें, सोने की तरह चमकती सड़कें, और दुनिया की हर ऐशो-आराम की चीज़ें यहां मौजूद हैं। इसी चकाचौंध में, जुमेरा के आलीशान इलाके में शेख हारून अल अमीन का सफेद संगमरमर का महल खड़ा था। यह महल सिर्फ एक घर नहीं, बल्कि शेख हारून की शान और रुतबे का प्रतीक था।

शेख हारून, 50 साल के एक अमीर और नेक दिल इंसान थे। उनका नाम दुबई के व्यापारिक जगत में बड़े सम्मान से लिया जाता था। उनका कंस्ट्रक्शन का विशाल कारोबार था, लेकिन उनकी असली दौलत उनका नेक दिल और उनके उसूल थे। वह जानते थे कि वफादारी दुनिया की किसी भी दौलत से ज्यादा कीमती होती है।

भाग 2: समीर की कहानी

शेख हारून के महल में दर्जनों नौकर-चाकर थे, लेकिन उनमें से एक खास था – समीर खान। समीर, जो भारत के राजस्थान के एक छोटे से गांव से दुबई आया था, अपने परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए यहां आया था। उसके गांव में गरीबी और बेरोजगारी के सिवा कुछ नहीं था। समीर के कंधों पर अपने बूढ़े मां-बाप और दो छोटी बहनों की शादी की जिम्मेदारी थी।

समीर ने दुबई में कई महीनों तक छोटी-मोटी नौकरियां कीं, लेकिन किस्मत उसे शेख हारून के दरवाजे पर ले आई। शेख हारून को एक भरोसेमंद ड्राइवर की जरूरत थी और समीर के भोले चेहरे और उसकी आंखों की सच्चाई ने पहली ही मुलाकात में शेख हारून का दिल जीत लिया। पिछले दो साल से समीर उस परिवार की सेवा में दिन-रात लगा हुआ था। वह सिर्फ एक ड्राइवर नहीं था, बल्कि उस परिवार का एक वफादार सिपाही बन चुका था।

An Arab Sheikh in Dubai was deeply in love with his driver, but he made a  mistake that shocked ev... - YouTube

भाग 3: परिवार का हिस्सा

समीर का काम बेगम शेख हिना और उनकी बेटी आलिया को सुरक्षित लाना और ले जाना था। वह हमेशा उनकी जरूरतों का ख्याल रखता था। शेख हारून उसे एक नौकर की नजर से नहीं, बल्कि एक बेटे की नजर से देखने लगे थे। वह अक्सर अपनी बेगम से कहते, “इस लड़के में मुझे एक अजीब सी कशिश दिखती है। इसकी आंखों में जो वफादारी और सच्चाई है, वो आजकल कहां मिलती है?”

शेख हिना भी उनकी बात से सहमत थीं। वह समीर को अपने बेटे की तरह मानती थीं। वह अक्सर उसके लिए अपने हाथों से कुछ खास बनाकर भिजवातीं और उससे उसके घर परिवार का हालचाल पूछती थीं। आलिया भी समीर को सम्मान देती थी। वह जानती थी कि जब तक समीर उसके साथ है, वह पूरी तरह से महफूज़ है।

भाग 4: एक नया ख्याल

धीरे-धीरे शेख हारून के दिल में एक ख्याल घर करने लगा था। उन्होंने फैसला कर लिया था कि वे अपनी बेटी आलिया की शादी किसी बड़े शेखजादे से नहीं, बल्कि समीर से करेंगे। वे उसे अपना दामाद बनाकर हमेशा के लिए अपने पास रख लेंगे। यह उनकी नजर में समीर के दो साल की अटूट वफादारी का सबसे बड़ा इनाम था।

यह बातें अक्सर शेख हारून और उनकी बेगम के बीच होती थीं। वे सही समय का इंतजार कर रहे थे ताकि वे समीर और आलिया दोनों से इस बारे में बात कर सकें। लेकिन समीर इन सब बातों से पूरी तरह अनजान था। वह अपनी छोटी सी दुनिया में खुश था। उसे एक अच्छी तनख्वाह मिलती थी, जिससे उसके गांव में उसके परिवार का गुजारा अच्छे से हो रहा था।

भाग 5: एक अकेली रात

फिर एक दिन, शेख हारून को अपने कारोबार के सिलसिले में एक हफ्ते के लिए दुबई से बहरीन जाना पड़ा। उनके जाने से घर में एक अजीब सी खामोशी छा गई थी। सफर के चार दिन बीत चुके थे। वह एक अकेली रात थी जिसने सब कुछ बदल कर रख दिया था। उस रात समीर अपने कमरे में बेचैन होकर करवटें बदल रहा था। उसे नींद नहीं आ रही थी। दुबई की गर्म और उमस भरी रात उसे और भी बेचैन कर रही थी।

अकेलापन और जवानी के कुछ बहके हुए लम्हों ने उसके दिमाग पर कब्जा कर लिया था। उसने खुद को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसकी बेचैनी कम नहीं हुई। वह उठकर ठंडी हवा के लिए अपने कमरे से बाहर निकल आया। महल की सारी बत्तियां बुझ चुकी थीं। बस स्विमिंग पूल के पास कुछ हल्की-हल्की रोशनियां जल रही थीं।

भाग 6: शेख हिना का अकेलापन

तभी उसकी नजर पूल के पास रखे एक बड़े सोफे पर पड़ी। उसने देखा कि शेख साहब की बेगम शेख हिना वहां अकेली बैठी थीं। उन्होंने एक खूबसूरत सा अरबी नाइट गाउन पहन रखा था और उनके बाल खुले हुए थे। वह अपने मोबाइल फोन में कुछ देखने में व्यस्त थीं। उन्हें इस तरह अकेले में देखकर समीर के दिमाग में बैठे शैतान ने उसे फुसफुसाकर कहा, “देख, यह भी अकेली है। शेख साहब घर पर नहीं हैं। शायद तन्हाई इसे भी सोने नहीं दे रही।”

यह ख्याल आते ही समीर का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसकी सोचने-समझने की शक्ति जैसे खत्म हो गई। उसके कदम खुद-ब-खुद शेख हिना की ओर बढ़ने लगे। वह भूल गया कि वह कौन है, उसकी क्या औकात है। वह चुपचाप जाकर शेख हिना के पास खड़ा हो गया। शेख हिना अपने फोन में इतनी मगन थीं कि उन्होंने उसे आते हुए नहीं देखा।

भाग 7: एक भयानक गलती

जब उनकी नजर समीर पर पड़ी, जो उनके बिल्कुल करीब खड़ा था, तो वह एक पल के लिए चौंक गईं। “समीर, तुम यहां इस वक्त क्या कर रहे हो? सब ठीक तो है? नींद नहीं आ रही क्या?” शेख हिना ने बड़ी सहजता और अपनेपन से पूछा। समीर चुपचाप खड़ा रहा। उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था। वह बस उन्हें घूर रहा था।

शेख हिना उसकी चुप्पी और उसकी नजरों से थोड़ी असहज हो गईं। वह सोफे से उठीं और उसके पास आईं। “बेटा, तबीयत तो ठीक है तुम्हारी?” उन्होंने अपना हाथ बढ़ाया और एक मां की तरह उसके माथे को छूकर देखने लगीं कि कहीं उसे बुखार तो नहीं है। “बेटा, तुम्हारा जिस्म तो तप रहा है। तुम्हें तो तेज बुखार है। चलो, मैं तुम्हें दवा देती हूं।”

शेख हिना का वो ममता भरा स्पर्श समीर के अंदर बैठे शैतान को और भड़का गया। उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। उसने सोचा कि यह उनकी तरफ से कोई इशारा है। और फिर उसने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी, सबसे भयानक गलती कर दी। उसने शेख हिना का हाथ पकड़ लिया।

भाग 8: गुस्सा और नफरत

शेख हिना हैरान रह गईं। “समीर, यह क्या बदतमीजी है? हाथ छोड़ो मेरा!” पर समीर पर तो जैसे जुनून सवार था। उसने उन्हें अपनी ओर खींचा और जबरदस्ती उन्हें चूमने की कोशिश करने लगा। एक पल के लिए तो शेख हिना जैसे पत्थर की हो गईं। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि समीर, जिसे वह अपना बेटा मानती थीं, उनके साथ ऐसी घिनौनी हरकत कर सकता है।

पर अगले ही पल उनका गुस्सा और उनकी नफरत जैसे ज्वालामुखी की तरह फट पड़ी। उन्होंने अपनी पूरी ताकत से समीर के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मारा। उस थप्पड़ की गूंज उस शांत रात में किसी धमाके की तरह सुनाई दी। वह सिर्फ एक थप्पड़ नहीं था। वह शेख हिना की टूटे हुए भरोसे, उनकी ममता के अपमान और समीर के जमीर पर पड़ी एक करारी चोट थी।

भाग 9: टूटे हुए सपने

उस एक थप्पड़ ने जैसे समीर को उस जुनून के नशे से बाहर निकाल दिया। उसका दिमाग जो अब तक वासना के धुएं में खोया हुआ था, अचानक साफ हो गया। उसने देखा कि शेख हिना की आंखों में गुस्सा, नफरत और घृणा के आंसू थे। वह एक शब्द भी नहीं बोलीं। बस उसे अपनी उन घृणा भरी नजरों से देखती रहीं और फिर तेजी से अपने कमरे की ओर चली गईं।

समीर वहीं उस सोफे के पास मूर्ति की तरह खड़ा रह गया। उसका गाल जल रहा था, लेकिन उससे कहीं ज्यादा उसका जमीर जल रहा था। उसे अब एहसास हुआ कि उसने क्या कर दिया है। एक पल की गलती में उसने बरसों की कमाई हुई इज्जत, भरोसा और वफादारी को मिट्टी में मिला दिया था। उसने एक मालिक का नहीं, एक पिता का भरोसा तोड़ा था। उसने एक मालकिन का नहीं, एक मां का दिल दुखाया था।

भाग 10: शेख हारून की वापसी

वह वहीं जमीन पर बैठ गया और फूट-फूट कर रोने लगा। पर वह जानता था कि अब इन आंसुओं से कुछ भी वापस नहीं पाया जा सकता। उधर, शेख हिना ने कांपते हाथों से अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया। उन्होंने फौरन अपने पति शेख हारून को फोन किया। “आप अभी इसी वक्त घर वापस आ जाइए।”

उनकी आवाज में एक अजीब सी सख्ती और दर्द था। शेख हारून, जो बहरीन में अपनी मीटिंग की तैयारी कर रहे थे, अपनी बेगम की आवाज सुनकर चिंतित हो गए। “क्या हुआ, शेखना? सब ठीक तो है, आलिया ठीक है?”

शेख हिना ने बस इतना कहा, “मैंने कहा ना, आप बस आ जाइए। बाकी बातें आपके आने पर होंगी।” शेख हारून ने बहुत पूछने की कोशिश की, लेकिन शेख हिना ने कुछ नहीं बताया और फोन काट दिया। उनके दिल में किसी अनहोनी की आशंका से बैठ गया। उन्होंने अपनी सारी मीटिंग्स रद्द कीं और अगली ही फ्लाइट से दुबई के लिए रवाना हो गए।

भाग 11: समीर का डर

अगला पूरा दिन समीर के लिए किसी कयामत से कम नहीं था। वह अपने कमरे से बाहर नहीं निकला। उसे किसी से नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। उसे पता था कि शेख साहब लौट रहे हैं और उनके लौटते ही उसकी जिंदगी का फैसला सुना दिया जाएगा। वह डर से कांप रहा था। वह भाग जाना चाहता था, लेकिन कहां जाता? उसका पासपोर्ट तो शेख साहब के पास ही था।

शाम को शेख हारून अल अमीन घर पहुंचे। उनके चेहरे पर गहरी चिंता थी। वह सीधे अपनी बेगम के कमरे में गए। घंटों तक दोनों के बीच बातें होती रहीं। बाहर समीर अपने कमरे में बैठा, हर आहट पर कांप उठता, अपने अंजाम का इंतजार करता रहा। कुछ देर बाद, शेख हारून अपने कमरे से बाहर निकले। उनका चेहरा किसी पत्थर की तरह भावहीन था, लेकिन उनकी आंखें लाल थीं, जैसे वह अंदर ही अंदर बहुत रोए हों।

भाग 12: अंतिम सामना

उनके हाथ में समीर का पासपोर्ट था। उन्होंने घर के हेडगार्ड को बुलाया और कहा, “समीर को मेरे सामने पेश करो।” जब समीर कांपते कदमों से उनके सामने पहुंचा, तो उसकी नजरें जमीन में गड़ी हुई थीं। उसमें अपने मालिक की आंखों में देखने की हिम्मत नहीं थी।

शेख हारून ने कुछ देर तक उसे खामोशी से देखा। वह खामोशी किसी तूफान से ज्यादा भयानक थी। फिर उन्होंने बोलना शुरू किया। उनकी आवाज में गुस्सा नहीं, बल्कि एक गहरा, बहुत गहरा दर्द था। “समीर, मैंने तुम्हें क्या समझा था और तुम क्या निकले? हम तुम्हें अपनी इस सल्तनत का वारिस बनाने का सपना देख रहे थे। हम अपनी बेटी का हाथ तुम्हारे हाथ में देकर तुम्हें अपना बेटा बनाने वाले थे। और तुमने उसी घर की इज्जत पर हाथ डाल दिया जिसने तुम्हें पनाह दी। तुमने उस औरत की ममता का यह सिला दिया जिसने तुम्हें अपनी औलाद की तरह माना।”

भाग 13: पछतावा

यह सुनकर समीर को लगा जैसे किसी ने उसके सीने में खंजर उतार दिया हो। वह क्या खो चुका था, इसका एहसास उसे अब हुआ। वह शेख साहब के पैरों पर गिर पड़ा और बच्चों की तरह रोने लगा। “मालिक, मुझे माफ कर दीजिए। मुझसे गलती हो गई। शैतान मेरे ऊपर हावी हो गया था। मैं अंधा हो गया था। मुझे जो चाहे सजा दे दीजिए। बस मुझे अपने कदमों से दूर मत कीजिए।”

शेख हारून ने अपनी आंखें फेर लीं। “सजा, समीर, अगर मैं इस देश के कानून के हिसाब से चलूं, तो तुम्हारी बाकी की जिंदगी इस रेगिस्तान की किसी अंधेरी जेल में सड़ते हुए गुजरेगी। लेकिन तुमने दो साल हमारी बहुत सेवा की है। तुम्हारी वफादारी झूठी नहीं थी। यह मैं जानता हूं। तुम्हारा जमीर मर गया था।”

भाग 14: निर्णय

उन्होंने समीर का पासपोर्ट उसकी ओर फेंका। “इसलिए मैं तुम्हें सिर्फ यही सजा दे रहा हूं। यह अपना पासपोर्ट पकड़ो। कल सुबह की पहली फ्लाइट से तुम अपने देश वापस जा रहे हो। और आज के बाद अपनी यह शक्ल मुझे दोबारा कभी मत दिखाना।” यह कहकर शेख हारून अंदर चले गए।

समीर वहीं फर्श पर पड़ा रोता रहा। उसकी वफादारी का यह नाम, जिसे वह कभी सोच भी नहीं सकता था, आज उसके हाथ से फिसल चुका था। एक पल की गलती का नतीजा यह था कि उसे जिल्लत और गुमनामी के सिवा कुछ नहीं मिला।

भाग 15: वापसी

अगली सुबह उसे एयरपोर्ट छोड़ दिया गया। जब वह फ्लाइट में बैठा, तो उसने आखिरी बार उस दुबई शहर को देखा जो उसके लिए सपनों का शहर था। पर अब यह एक टूटे हुए ख्वाब की कब्रिस्तान बन चुका था। अपने देश भारत लौटकर भी समीर कभी सुकून से नहीं जी सका। वह अपने गांव गया, लेकिन उसका मन कहीं नहीं लगा।

उसने अपने मां-बाप और बहनों से झूठ कहा कि शेख साहब का कारोबार बंद हो गया, इसलिए उसे वापस आना पड़ा। पर वह खुद से यह झूठ नहीं बोल सका। हर रात शेख हारून के वो दर्द भरे शब्द और शेख हिना की वो घृणा से भरी आंखें उसे सोने नहीं देती थीं।

भाग 16: सबक

उसने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी नेमत, एक अनमोल भरोसा, एक पल की हवस में खो दिया था। और इस गलती का बोझ उसे अपनी बाकी की जिंदगी भर उठाना था। दोस्तों, यह कहानी हमें एक बहुत कड़ा सबक सिखाती है। भरोसा एक कांच की तरह होता है जिसे बनने में सालों लगते हैं, लेकिन टूटने में एक पल भी नहीं लगता। और एक बार टूट जाए, तो फिर कभी पहले की तरह नहीं जुड़ता।

इंसान को अपनी नियत और अपने जमीर पर हमेशा काबू रखना चाहिए। क्योंकि यह कमजोर लम्हे में की गई गलती आपकी पूरी जिंदगी की नेकी पर पानी फेर सकती है।

भाग 17: अंत

समीर की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि हमें कभी भी अपनी इच्छाओं पर काबू रखना चाहिए। एक पल की गलती से सब कुछ बर्बाद हो सकता है। हमें हमेशा अपने परिवार, दोस्तों और अपने प्रियजनों के प्रति वफादार रहना चाहिए।

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