करोड़पति महिला ने जुड़वां बच्चों के साथ भीख मांगते लड़के को देखा – फिर उसने ने जो किया, रुला दिया 😭
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करुणा का बंधन: करोड़पति महिला ने जुड़वां बच्चों के साथ भीख मांगते लड़के को देखा
मुंबई का जुहू इलाका भारी बारिश की चपेट में था। आसमान पर बादल इस कदर छाए थे मानो सूरज को निगल गए हों। सड़कें पानी से लबालब थीं, और कारों के हॉर्न और बारिश की आवाज़ मिलकर एक बेचैन सी धुन बना रही थीं। एक काली मर्सिडीज धीरे-धीरे ट्रैफिक में रेंग रही थी। पिछली सीट पर बैठी थी शालिनी मिश्रा—लंबी, गोरी त्वचा, गहरी आँखें और चेहरे पर एक कठोर, ठंडापन, जो उनके एकाकी जीवन का प्रतीक था।
शालिनी का जीवन तीन साल पहले उनके पति संजय के निधन के बाद, केवल पैसों और काम तक सीमित रह गया था। संतान न होने के कारण जुहू बीच के पास बना उनका विशाल बंगला खाली और बेजान था।
“मैडम, शॉर्टकट ले लें, वरना यह ट्रैफिक रात तक नहीं खुलेगा,” ड्राइवर गोपाल ने पूछा।
शालिनी ने मोबाइल से नज़र हटाए बिना कहा, “नहीं, सीधे चलो।”
अचानक, उसकी आँखें खिड़की से बाहर ठिठक गईं। सड़क के डिवाइडर पर एक छोटा सा लड़का खड़ा था। उसकी उम्र ज़्यादा से ज़्यादा 12-13 साल होगी, बारिश से बुरी तरह भीगा हुआ। उसके हाथों में दो छोटे-छोटे बच्चे थे, जिन्हें उसने प्लास्टिक की थैलियों में लपेटा हुआ था। दोनों बच्चियाँ बेहद कमज़ोर लग रही थीं और धीरे-धीरे रो रही थीं।
गोपाल! गाड़ी रोको!” शालिनी ने अचानक आदेश दिया।
“मैडम, यह सब तो खेल है,” गोपाल ने फुसफुसाया। “सड़क पर बच्चे किराए पर भी ले आते हैं भीख माँगने के लिए।”
लेकिन शालिनी की नज़रें उन बच्चियों की आँखों पर टिक गईं। हल्के सुनहरे भूरे रंग की पुतलियाँ—बिल्कुल वैसी ही, जैसी उसके दिवंगत पति संजय मिश्रा की थीं। शालिनी का दिल ज़ोर से धड़क उठा।
वह छतरी की परवाह किए बिना बारिश में निकल पड़ी। उसके महँगे सैंडल कीचड़ में धँस गए, लेकिन उसे कोई परवाह नहीं थी।
“तुम कौन हो?” शालिनी ने पास पहुँचते ही पूछा।
सोनू ने डरते-डरते जवाब दिया, “मेरा नाम सोनू है।”
“यह बच्चे…?” शालिनी की आवाज़ काँप रही थी।
सोनू ने कसकर दोनों बच्चियों को पकड़ लिया। “यह मेरी बहनें हैं।”
शालिनी स्तब्ध रह गई। “तुम्हारी… बहनें? तुम्हारी उम्र ही कितनी है?”
“मैं 13 साल का हूँ,” सोनू ने झट से कहा।
“और इनकी माँ कहाँ है?”
सोनू की आँखें झुक गईं। “वो मर गईं। इन्हें जन्म देते ही।”
बच्चियाँ फिर रोने लगीं, उनकी आवाज़ बेहद कमज़ोर थी। शालिनी ने अपना दुपट्टा उतारकर उन्हें ढक दिया। उसका दिल अजीब तरह से काँप रहा था।
“गोपाल!” उसने ड्राइवर को आवाज़ लगाई। “इन्हें गाड़ी में बिठाओ।”
सोनू घबरा गया। “प्लीज़, इन्हें मुझसे मत छीनो। मैं पुलिस नहीं जाना चाहता।”
शालिनी ने नरमी से कहा, “नहीं बेटा, हम तुम्हें पुलिस नहीं ले जाएँगे। तुम भी चलो हमारे साथ।”
बारिश में भीगा वह लड़का अपनी मासूम बहनों को सीने से लगाए, शालिनी के साथ गाड़ी तक आया। गाड़ी के अंदर हीटर जलाया गया। शालिनी ने अपनी शॉल में दोनों बच्चियों को लपेट लिया। बच्चियाँ धीरे-धीरे शांत हो गईं। सोनू किनारे पर चुपचाप बैठा था, उसकी आँखों में डर और एक अनजाना संकोच था। शालिनी बस उन बच्चों की आँखें देख रही थी—वही आँखें, जिन्हें वह कभी नहीं भूल सकी थी: संजय की आँखें।
एक नया सत्य
रात गहराने लगी थी। बाहर बारिश थम चुकी थी। शालिनी की मर्सिडीज धीरे-धीरे जुहू के विशाल बंगले के गेट से अंदर दाख़िल हुई। बंगले के अंदर गर्म रोशनी और नींबू पॉलिश की हल्की ख़ुशबू फैली थी। संगमरमर का फ़र्श, बड़ी झूमर की लाइटें और हर जगह सजा सन्नाटा। सोनू के लिए यह सब किसी सपने जैसा था।
“यहाँ बैठो। किसी चीज़ को मत छूना,” शालिनी ने कहा।
सोनू डरते हुए सिर हिलाया। थोड़ी देर बाद नौकरानी अर्चना भागती हुई आई। “मैडम, आपने बुलाया?”
“हाँ,” शालिनी ने कहा, “गर्म पानी और डॉक्टर को फ़ोन करो—अभी।”
थोड़ी देर में डॉक्टर त्यागी आ पहुँचे। उन्होंने बच्चियों की जाँच की और बोले, “ठंड से इन्हें बुखार लग सकता है। इन्हें गर्म दूध दीजिए और एक रात आराम करने दीजिए। ये बहुत कमज़ोर हैं, पर ख़तरे से बाहर हैं।”
“यह लड़का?” डॉक्टर ने पूछा। “यह कह रहा है कि ये बच्चे इसकी बेटियाँ हैं।”
शालिनी ने डॉक्टर को देखा। “मुझे भी कुछ गड़बड़ लगती है।” वह सोनू के पास गई और बोली, “सच-सच बताओ, ये कौन हैं?”
सोनू ने कुछ पल चुप रहकर कहा, “ये मेरी बहनें हैं। हमारी माँ मर गई थी जब ये पैदा हुई थीं।” उसकी आवाज़ टूट रही थी। “हम मंदिर के पीछे वाले झोपड़ी में रहते थे। माँ बीमार हो गई थी और एक रात चली गई। तब से मैं इन्हें अकेले पाल रहा हूँ।”
शालिनी ने गहरी साँस ली। “तुम कितने साल के हो?”
“13।”
“और खाते क्या हो?”
“कभी मंदिर में बचा हुआ प्रसाद। कभी सड़क के ढाबे से रोटी, अगर किसी ने दी तो।”
शालिनी चुप रही। उसे नहीं पता था कि उसके अंदर कौन सी दीवार टूट रही थी।
रात में जब बच्चियाँ गर्म कंबल में सो रही थीं, शालिनी अपने कमरे की खिड़की से बारिश के बाद की नमी देख रही थी। उसका मन बेचैन था। वह धीरे-धीरे अपनी अलमारी तक गई और उसमें से एक पुराना एल्बम निकाला—अपने पति संजय का।
संजय की तस्वीर देखते ही उसकी आँखें भर आईं। वही हल्की सुनहरी आँखें, वही मुस्कान। और वही आँखें आज उसने उन बच्चों में देखी थीं।
“क्या यह उसके बच्चे हो सकते हैं?” उसने खुद से फुसफुसाया।
वह तुरंत फ़ोन उठाकर बोली, “डॉक्टर त्यागी, मुझे कल एक टेस्ट करवाना है—डीएनए टेस्ट।”
डीएनए और फैसला
सुबह की रोशनी अभी पूरी तरह फैली नहीं थी, पर शालिनी के मन में अँधेरा पसरा हुआ था। डाइनिंग टेबल पर गर्म चाय रखी थी, पर उसका कप छुआ तक नहीं गया। वह बस एक ही बात सोच रही थी: अगर बच्चियाँ सच में संजय की संतान हैं…
थोड़ी देर बाद सोनू कमरे में आया। उसके हाथों में दोनों बच्चियाँ थीं—मुन्नी और सोनी—दोनों अब साफ़-सुथरे कपड़ों में थीं और मुस्कुरा रही थीं।
“मैडम,” उसने धीरे से कहा, “इन्हें दूध पिला दिया है। अब यह सो जाएँगी।”
“तुम्हारी माँ का नाम क्या था?” शालिनी ने पूछा।
“सुमित्रा जी,” उसने जवाब दिया।
शालिनी का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। यह नाम जाना-पहचाना लगा—बहुत पुराना। वह अपने कमरे में गई और संजय की एक पुरानी डायरी निकाल लाई। उसके पन्ने पलटते हुए वह एक जगह ठिठक गई। लिखा था: “सुमित्रा से आज फिर मिला। वह कहती है मैं बदल गया हूँ। पर क्या करूँ? हर बार उसकी आँखों में वह सच्चाई दिखती है जो इस आलीशान दुनिया में नहीं।”
“तो यह सच है,” उसने धीरे से कहा।
तभी, डॉक्टर त्यागी दरवाज़े पर थे। “मैडम, रिपोर्ट तैयार है।” उन्होंने एक भूरे लिफ़ाफ़े को टेबल पर रख दिया।
शालिनी ने काँपते हाथों से लिफ़ाफ़ा खोला। पहली लाइन पढ़ते ही उसकी आँखें नम हो गईं: डीएनए मैच कन्फ़र्म्ड।
संजय का नाम वहाँ साफ़ लिखा था।
वह लिफ़ाफ़ा धीरे से बंद करके खिड़की के पास खड़ी हो गई। बाहर धूप फैल चुकी थी, पर उसके भीतर एक और तूफ़ान उठ चुका था।
“संजय,” उसने बुदबुदाया, “तुमने यह कैसे कर दिया?”
उसके सामने अब तीन चेहरे घूम रहे थे: सोनू, जो भीख माँगने को मजबूर था; वो दो नन्ही बच्चियाँ, जो बारिश में काँप रही थीं; और संजय, जो उस वक़्त हँस रहा था जब उसने कहा था, “शालिनी, हम दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं।”
दरवाज़े के पास खड़ा सोनू बोला, “मैडम, क्या हम फिर से बाहर जाएँगे?”
शालिनी ने उसकी ओर देखा। आँखों में अब गुस्सा नहीं, बस थकान और ममता थी। “नहीं सोनू। अब तुम कहीं नहीं जाओगे।”
“पर सब कहते हैं हम यहाँ के नहीं हैं।”
“अब यह घर तुम्हारा है, और मैं तुम्हारी माँ जैसी हूँ।”
सोनू चौंक गया। उसकी आँखों से आँसू बह निकले। “मैडम कहती थीं कि जब कोई सच में अच्छा होता है तो भगवान उसे भेज देता है। शायद आप वही हैं।”
शालिनी की आँखें भीग गईं। वह झुककर बोली, “शायद तुम्हारी माँ सही थीं।”
अदालत का युद्ध
अगली सुबह, अखबारों की सुर्खियाँ थीं: मेहता ग्रुप की मालकिन ने किया चौंकाने वाला कदम। क्या संजय की छिपी हुई संतानें मिल गईं?
शालिनी खिड़की से बाहर देख रही थी। सोनू और दोनों बच्चियाँ अंदर खेल रहे थे। उनकी हँसी उस घर के हर कोने में गूँजने लगी थी, जहाँ बरसों से सिर्फ़ सन्नाटा था।
लेकिन बाहर की दुनिया ने उस हँसी को भी शक़ की निगाह से देखा। उसी दिन दोपहर को, बंगले के गेट पर तीन गाड़ियाँ आकर रुकीं। उनमें से उतरे तीन लोग, सूट-बूट पहने, घमंडी चेहरों के साथ। आगे था कृष्ण मिश्रा, संजय का बड़ा भाई।
“शालिनी, तुमने यह क्या तमाशा बना रखा है?” उसने घर में घुसते हुए कहा।
शालिनी शांत स्वर में बोली, “तमाशा नहीं, सच्चाई है, कृष्ण। ये बच्चे संजय की संतान हैं।”
“तो अब तुम इन्हें अपने नाम पर डालोगी? यह सड़क के बच्चे हैं।” कृष्ण ने व्यंग्य से कहा।
शालिनी ने सख़्त आवाज़ में कहा, “वो मेरे पति के बच्चे हैं, और अब ये मेरे भी हैं।”
“तो कंपनी के शेयर, संपत्ति सब पर अब ये दावा करेंगे!” कृष्ण चीख़ते हुए बोला। “हम अदालत जाएँगे! तुमने अपना दिमाग़ खो दिया है।”
शालिनी ने सीधे उसकी आँखों में देखते हुए कहा, “तो जाओ अदालत। लेकिन याद रखना, अब मैं चुप रहने वाली नहीं हूँ।”
कुछ दिनों बाद अदालत में मुक़दमा शुरू हुआ। शालिनी ने सादी सफ़ेद साड़ी पहनी थी, चेहरा शांत, लेकिन आँखों में दृढ़ता थी।
कृष्ण के वकील ने शालिनी को “भावनात्मक रूप से अस्थिर” बताया, जिसने “सड़क से अजनबी बच्चों को उठा लिया है।”
जज ने कहा, “शालिनी जी, आपका पक्ष।”
शालिनी के वकील ने डीएनए रिपोर्ट उठाई। “माननीय न्यायालय, सच्चाई किसी की मर्ज़ी पर निर्भर नहीं करती। ये वैज्ञानिक प्रमाण हैं। ये बच्चे सचमुच संजय मिश्रा की संतान हैं।”
फिर शालिनी ख़ुद खड़ी हुई। उसकी आवाज़ धीमी थी, पर हर शब्द में आग थी।
“मैंने इन बच्चों को इसलिए नहीं अपनाया कि ये संजय की संतान हैं। मैंने इन्हें इसलिए अपनाया क्योंकि ये निर्दोष हैं। संजय ने जो ग़लती की, उसकी सज़ा ये क्यों भुगतें?”
अदालत में सन्नाटा छा गया। कुछ पल बाद जज ने कहा, “फ़ैसला तीन दिन में सुनाया जाएगा।”
एक माँ का प्रेम
तीन दिन बाद, मुंबई की सिविल कोर्ट में जज ने गंभीर आवाज़ में कहा, “यह अदालत मानती है कि प्रस्तुत डीएनए रिपोर्ट और गवाही सच्ची और प्रामाणिक है। इन बच्चों का संबंध स्वर्गीय संजय मिश्रा से है, और शालिनी मिश्रा, जो अब तक इन बच्चों की देखभाल कर रही हैं, उन्हें वैधानिक अभिभावक घोषित किया जाता है।”
“यह अदालत मानती है कि श्रीमती शालिनी मिश्रा की कार्यवाही किसी मानसिक अस्थिरता का परिणाम नहीं, बल्कि मानवता और माँ के प्रेम का प्रतीक है।”
कमरा तालियों की गूँज से भर गया। शालिनी ने कृष्ण की ओर देखकर बस इतना कहा, “मैंने कुछ नहीं छीना। बस खोए हुए बच्चों को पाया है।”
अदालत से बाहर निकलते वक़्त सोनू ने शालिनी का हाथ थाम लिया। “मैडम नहीं, माँ। अब कोई हमें अलग नहीं करेगा ना?”
शालिनी की आँखों में आँसू थे, पर आवाज़ में दृढ़ता। “अब कभी नहीं, बेटा।”
उस दिन के बाद बंगले का हर कोना बदल गया। जहाँ पहले सन्नाटा था, अब हँसी थी। जहाँ ग़म था, अब जीवन था। सोनू अब स्कूल जाने लगा। पहली बार उसने यूनिफॉर्म पहनी और आत्मविश्वास से कहा, “मैं अब डरता नहीं हूँ, माँ।”
कुछ महीनों बाद, शालिनी ने संजय की याद में एक संस्था खोली—सुमित्रा फाउंडेशन, सोनू की माँ के नाम पर। इस फ़ाउंडेशन का उद्देश्य था सड़क पर छोड़े गए बच्चों और अकेली माँ को सहारा देना।
फ़ाउंडेशन के उद्घाटन के दिन शालिनी ने मंच से कहा, “यह संस्था सिर्फ़ मेरे पति की याद में नहीं, बल्कि उस औरत के सम्मान में है जिसने कठिनाइयों में भी अपने बच्चों को जन्म दिया, और उस लड़के के सम्मान में है जिसने साबित किया कि ख़ून से नहीं, इरादे से परिवार बनता है।”
सोनू मंच पर आया, माइक पकड़ा और बोला, “कभी मैंने बारिश में सोचा था, क्या भगवान सच में होता है? आज जवाब मिला है—हाँ होता है। वह कभी-कभी किसी माँ के रूप में आता है।”
शालिनी की आँखों से बहने वाले आँसू इस बार दर्द के नहीं, बल्कि सुकून और एक नए जीवन के थे। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा परिवार ख़ून के रिश्ते से नहीं, बल्कि देखभाल, निस्वार्थ प्रेम और मज़बूत इरादे से बनता है। करुणा ही न्याय का सबसे बड़ा रूप है।
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