बच्चा गोद लेने पर महिला को ऑफिस से निकाल दिया लेकिन कुछ महीनों बाद वही महिला बनी कंपनी
सीमा की कहानी – एक माँ, एक कर्मचारी, एक विजेता
दोस्तों, जिंदगी कभी-कभी इंसान को ऐसे मोड़ पर खड़ा कर देती है जहाँ उसे दो रास्तों में से चुनना पड़ता है। एक आसान, दूसरा मुश्किल। लेकिन असली इंसान वही कहलाता है जो मुश्किल रास्ते पर भी डटकर चलता है। यही कहानी है सीमा की। उम्र 30 साल, साधारण सी लड़की लेकिन दिल से बहुत बड़ी। शहर के एक बड़े कॉरपोरेट ऑफिस में काम करती थी। मेहनती, ईमानदार और हर किसी से विनम्र। उसकी पहचान थी उसकी शांति और लगन।
पर उसके दिल के किसी कोने में एक खालीपन था। शादी नहीं हुई थी, परिवार से दूरी थी। औरत होकर भी माँ बनने की इच्छा उसके अंदर हर दिन जलती रहती थी। वह सोचती थी, किसी अनाथ बच्चे को अपना नाम दूँ, उसे वह ममता दूँ जो शायद उसे कभी ना मिली हो। एक दिन उसने वही फैसला लिया। शहर के एक छोटे से अनाथालय से उसने एक बच्ची को गोद लिया। बच्ची की उम्र थी सिर्फ 6 महीने। बड़ी-बड़ी मासूम आँखें और नन्हे हाथ जो सीमा की उंगली पकड़ कर जैसे कह रहे थे – अब मैं अकेली नहीं हूँ।
सीमा का दिल भर आया। उसने सोचा, अब मेरी जिंदगी अधूरी नहीं रही। अब मैं सिर्फ कर्मचारी नहीं बल्कि माँ भी हूँ। लेकिन दोस्तों, यहीं से उसकी असली परीक्षा शुरू हुई।
अगले दिन जब सीमा दफ्तर पहुँची तो उसकी गोद में तस्वीरें और मुस्कान थी। लेकिन सहकर्मी हँसी-मजाक में ताने कसने लगे – अब काम पर ध्यान कौन देगा? अब तो माँ बन गई हो, कितना बड़ा रिस्क ले लिया सीमा! करियर चौपट कर डाला। कुछ ने सीधा कह दिया – बच्चा और नौकरी साथ नहीं चल सकते। देख लेना, जल्द ही संभलना मुश्किल हो जाएगा।
सीमा हर ताना सुनती, लेकिन चुप रहती। उसके अंदर की माँ को कोई डगा नहीं सकता था। वह अपने बच्चे को पालने के साथ-साथ अपने काम में भी पूरी मेहनत कर रही थी। लेकिन अफ़सोस, दुनिया को अक्सर औरत की मेहनत नहीं दिखती, उन्हें सिर्फ उसके फैसले दिखाई देते हैं।
धीरे-धीरे अफवाहें फैलने लगीं – सीमा अब काम में उतना वक्त नहीं दे पाएगी, मीटिंग्स में लेट होगी, क्लाइंट्स नाराज होंगे। हालाँकि हकीकत यह थी कि सीमा रात-रात भर जगकर अपने बच्चे की देखभाल करती और फिर सुबह समय पर ऑफिस पहुँचती। वह हर प्रोजेक्ट समय पर पूरा करती। लेकिन फिर भी उसे बार-बार शक की नजरों से देखा जाता।
उसका बॉस भी अब बदलने लगा था। मीटिंग्स में अक्सर कटाक्ष करता – सीमा, आप तो अब बहुत व्यस्त हो गई होंगी, बच्चे की वजह से। सहकर्मी हँस पड़ते। सीमा बस खामोश बैठ जाती। ऑफिस की इमारत हमेशा की तरह चकाचौंध से भरी थी – शीशे की दीवारें, बड़े-बड़े मीटिंग हॉल और तेज रफ्तार में भागते कर्मचारी। लेकिन उस दिन सीमा का मन बहुत बोझिल था। पिछले कुछ हफ्तों से उसे महसूस हो रहा था कि लोग उसे घूरते हैं, फुसफुसाते हैं।
वह अपनी कुर्सी पर बैठकर काम में डूबने की कोशिश कर रही थी कि अचानक एचआर का कॉल आया – सीमा जी, बॉस ने आपको अभी बुलाया है, मीटिंग रूम नंबर तीन में। सीमा का दिल धड़कने लगा। उसने फाइलें संभाली और धीरे-धीरे कदम बढ़ाए। जैसे ही वह अंदर पहुँची, सामने उसका बॉस बैठा था – चेहरा सख्त, आँखों में ठंडापन। बगल में एचआर मैनेजर भी थी।
बॉस ने सीधे सवाल दाग दिया – सीमा, क्या आपको लगता है कि आप अपनी जिम्मेदारियाँ निभा पा रही हैं? ऑफिस का काम और बच्चा दोनों साथ नहीं हो सकते। सीमा ने काँपती आवाज़ में कहा – सर, मैंने कभी कोई डेडलाइन मिस नहीं की। हर प्रोजेक्ट समय पर पूरा किया है। रात भर जागकर भी मैंने काम को प्राथमिकता दी है। लेकिन बॉस ने हाथ उठाकर बीच में ही रोक दिया – बस, हमें बहाने नहीं चाहिए। क्लाइंट्स की शिकायतें बढ़ रही हैं। टीम भी कह रही है कि आप ध्यान नहीं दे पा रही।
सीमा की आँखें भर आईं। उसने हैरानी से कहा – “सर, यह सब झूठ है। मैं अपनी पूरी मेहनत लगा रही हूँ। अगर गलती हुई है तो बताइए, मैं सुधार करूँगी। लेकिन मुझे माँ बनने की सजा क्यों मिल रही है?” एचआर मैनेजर ने ठंडी आवाज़ में कहा – सीमा जी, कंपनी के लिए यह रिस्क है। हमें ऐसे कर्मचारियों की जरूरत है जो 100% फोकस्ड हों। और फ्रैंकली स्पीकिंग, अडॉप्टिंग अ चाइल्ड वाज़ योर पर्सनल डिसीजन। बट इट्स अफेक्टिंग योर प्रोफेशनल रोल।
सीमा का दिल जैसे टूट गया। मतलब आपने पहले ही फैसला ले लिया है। बॉस ने फाइल आगे सरकाते हुए कहा – हाँ, आज से आपकी सेवाएँ समाप्त की जाती हैं। यह आपका टर्मिनेशन लेटर है। वह शब्द सीमा के कानों में हथौड़े की तरह गूंजे। कमरे की दीवारें जैसे सिकुड़ गईं। उसने काँपते हाथों से कागज लिया और चुपचाप खड़ी रह गई। उसकी आँखों से आँसू बह निकले। उसने धीमी आवाज़ में कहा – “सर, मैं समझ गई। लेकिन याद रखिए, एक माँ को गिराना आसान है, तोड़ना आसान है पर उसकी ताकत कभी कम नहीं होती।” इतना कहकर वह मुड़ी और कमरे से बाहर निकल आई।
सीमा अपनी बच्ची को डे-केयर से उठाने पहुँची। गोद में लेते ही बच्ची मुस्कुराई, लेकिन सीमा की आँखों से आँसू रुक नहीं रहे थे। उसने बच्ची को सीने से लगाया और फुसफुसाई – “लोग कहते हैं मैं अब कुछ नहीं कर सकती। लेकिन बेटा, तेरे लिए मैं सब करूँगी।”
ऑफिस के सहकर्मी जो लंच ब्रेक पर बाहर खड़े थे, उसे देख रहे थे। कोई ताना मार रहा था – देखा कहाँ था ना? अब नौकरी गई। तो कोई मुस्कुरा रहा था जैसे उसके दर्द में भी तमाशा ढूंढ रहा हो। लेकिन सीमा चुपचाप चली गई। उसके कदम भारी थे, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक भी थी – जैसे कोई जंग अब शुरू होने वाली हो।
शाम को जब वह थक कर घर लौटती तो उसकी बच्ची उसे देख मुस्कुराती। वही मुस्कान सीमा की सबसे बड़ी ताकत बन जाती। वह सोचती – दुनिया चाहे कुछ भी कहे, मैं माँ भी हूँ और कर्मचारी भी। दोनों फर्ज पूरे करूँगी। लेकिन दोस्तों, जिंदगी इतनी सीधी कहाँ होती है?
धीरे-धीरे यह फुसफुसाहटें और ताने एक बड़े तूफान में बदलने वाले थे। कुछ महीने बीत गए। सीमा अब नौकरी से बाहर थी, लेकिन उसने हार नहीं मानी। अपनी बच्ची की देखभाल के साथ-साथ उसने छोटे-छोटे कामों से घर चलाना शुरू कर दिया। कभी फ्रीलांस प्रोजेक्ट्स, कभी पड़ोस के बच्चों को ट्यूशन। कमाई भले ही कम थी, लेकिन उसने खुद को टूटने नहीं दिया।
वहीं दूसरी तरफ उस कंपनी की चकाचौंध धीरे-धीरे धुंधली होने लगी। शुरुआत एक बड़े क्लाइंट प्रोजेक्ट के फेल होने से हुई। फिर निवेशक पीछे हटने लगे। नए डील्स आते-आते कैंसिल हो जाते। कभी जहाँ रोज नए कर्मचारियों की भर्ती होती थी, अब वहाँ छंटने की चर्चा होने लगी। दफ्तर के कॉरिडोर जो कभी हँसी और शोर से गूंजते थे, अब फुसफुसाहटों और तनाव से भरे रहते थे। बोर्ड मीटिंग्स में चेहरों पर पसीना झलकता था। बॉस जो कभी घमंड से भरा रहता था, अब परेशान दिखने लगा।
एक दिन कंपनी के बोर्ड रूम में मीटिंग बुलाई गई। सभी बड़े अधिकारी मौजूद थे। फाइनेंस हेड ने रिपोर्ट रखी – “सर, अगर अगले 3 महीने में हमें कोई ठोस समाधान नहीं मिला तो कंपनी दिवालिया घोषित हो जाएगी।” कमरे में सन्नाटा छा गया। मार्केटिंग हेड ने कहा – “नए प्रोजेक्ट्स हम ले नहीं पा रहे। पुराने क्लाइंट्स भी छोड़ रहे हैं। सबको लगता है हम अब भरोसेमंद नहीं रहे।” एचआर मैनेजर वही जिसने सीमा को निकालने में अहम भूमिका निभाई थी, धीरे से बोली – “काश हमारे पास अभी भी कोई ऐसा कर्मचारी होता जो ना सिर्फ ईमानदार बल्कि समझदार भी होता। जैसे सीमा।”
कमरे में हलचल हुई। कुछ ने सिर हिलाया – सच में, उस लड़की के आइडियाज अलग होते थे। याद है उसने कितनी बार हमारे प्रोजेक्ट्स को बचाया था। बॉस ने झल्लाकर कहा – “कृपया उसका नाम मत लो। वह जा चुकी है।” लेकिन सच यही था कि सभी जानते थे – कंपनी की हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि अब उसे कोई चमत्कार ही बचा सकता था।
ऑफिस में अब कर्मचारी भी निराश हो चुके थे। पगार में कटौती, बोनस रद्द और ऊपर से रोज नौकरी जाने का डर। कॉफी मशीन के पास दो कर्मचारी फुसफुसा रहे थे – “भाई, अब तो लग रहा है हमारी बारी भी आने वाली है।” “हाँ, और सोचो, जिस लड़की को हमने कभी ताना मारा, वही आज होती तो शायद रास्ता दिखा देती।”
हर कोई भीतर-भीतर यही मान चुका था कि कंपनी का भविष्य अब अंधेरे में है। एक दिन अचानक खबर फैली – बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने एक बाहरी कंसलटेंट को बुलाया है। कोई खास व्यक्ति जो हमारी डूबती नैया को पार लगा सकता है। कर्मचारियों के बीच हलचल बढ़ गई – कौन होगा वह? क्या कोई विदेशी एक्सपर्ट? या फिर कोई बड़ा निवेशक?
बॉस खुद घबराया हुआ था। उसके माथे पर पसीना था। उसने सोचा – अगर यह कंपनी डूब गई तो मेरी साख मिट्टी में मिल जाएगी। लेकिन उसे अंदाजा भी नहीं था कि दरवाजे से अंदर आने वाली शख्सियत वहीं थी, जिसे उसने कभी अपमानित करके बाहर निकाला था।
बोर्ड रूम का दरवाजा खुला। सबकी निगाहें उस ओर उठी। अंदर कदम रखा एक साधारण सी लेकिन आत्मविश्वास से भरी महिला ने – चेहरे पर वही शांति, आँखों में वही दृढ़ता। वह और कोई नहीं, सीमा थी। वही सीमा जिसे कुछ महीने पहले इस कंपनी ने अपमानित करके बाहर निकाल दिया था।
कमरे में सन्नाटा छा गया। एचआर मैनेजर की आँखें झुक गईं, कई अधिकारी हैरानी से एक दूसरे को देखने लगे और बॉस – उसका चेहरा सफेद पड़ गया।
सीमा ने कमरे में कदम रखते ही ठंडी लेकिन मजबूत आवाज में कहा – “नमस्ते। मुझे पता है कि आपकी कंपनी संकट में है और आज मैं सिर्फ एक कर्मचारी की तरह नहीं, बल्कि एक कंसलटेंट और निवेशकों की प्रतिनिधि बनकर यहाँ खड़ी हूँ।”
सीमा ने अपनी फाइलें और प्रोजेक्शन स्लाइड्स खोलीं। उसने विस्तार से बताया कि कैसे कंपनी की असली समस्या ईमानदारी और भरोसे की कमी है। क्लाइंट सिर्फ प्रोडक्ट से नहीं, भरोसे से जुड़े रहते हैं। और जब आप अपने ही कर्मचारियों की इज्जत नहीं करते तो बाहर की दुनिया आपसे भरोसा क्यों करेगी?
उसने ठोस प्लान रखा – नए मार्केट स्ट्रेटजी, क्लाइंट रिलेशन मॉडल और खर्चों की प्राथमिकता तय करने का तरीका। उसकी बातें सुनकर सब दंग रह गए। जो समाधान महीनों से किसी को नहीं सूझा, सीमा ने कुछ ही मिनटों में सामने रख दिया। प्रस्तुति खत्म हुई तो पूरा बोर्ड तालियों से गूंज उठा। लेकिन सीमा का चेहरा शांत था।
उसने सीधे बॉस की ओर देखा और धीमी लेकिन सख्त आवाज में कहा – “याद है सर, जिस दिन आपने मुझे इस ऑफिस से निकाला था। उस दिन आपने कहा था कि मैं अब कंपनी के लिए बोझ हूँ। लेकिन आज वही बोझ आपकी कंपनी का सहारा बनकर खड़ा है।”
कमरा खामोश हो गया। उसकी आँखों में आँसू चमक रहे थे, लेकिन आवाज लोहे जैसी थी। “एक माँ को कभी कमजोर मत समझिए। माँ वही है जो बच्चे को भी पाल सकती है और कंपनी को भी सँभाल सकती है।”
बोर्ड के सभी सदस्य खड़े हो गए। किसी ने तालियाँ ना बजाई, किसी की आँखें नम हो गईं। एचआर मैनेजर ने झिझकते हुए कहा – “सीमा, हमें माफ कर दीजिए। हमसे गलती हुई थी।” सीमा ने हल्की मुस्कान दी।
सीमा की कहानी यहीं नहीं रुकती।
सीमा ने कंपनी को उबारने के लिए दिन-रात मेहनत की। उसके आइडियाज ने कंपनी को नई दिशा दी। क्लाइंट्स का भरोसा लौटा, निवेशक वापस आए और कंपनी फिर से चमक उठी। सीमा अब सिर्फ एक कर्मचारी नहीं, बल्कि एक प्रेरणा बन गई थी। उसकी बच्ची उसकी ताकत थी, उसकी मुस्कान उसकी जीत थी।
आज सीमा की कहानी हर उस महिला को हौसला देती है जो अपने सपनों और जिम्मेदारियों के बीच जूझ रही है। वह बताती है – मुश्किलें आएँगी, ताने मिलेंगे, लेकिन अगर इरादे मजबूत हों तो हर तूफान के बाद जीत मिलती है।
सीमा की कहानी एक माँ, एक कर्मचारी और एक विजेता की कहानी है।
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