हीरे की पहचान

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव हस्तिनापुर में शाहिद नाम का एक लड़का पैदा हुआ। उसके पिता रहमत अली एक गरीब किसान थे और माँ सकीना दूसरों के खेतों में मजदूरी करती थी। शाहिद के पास ज़िन्दगी की सबसे बड़ी दौलत थी – उसका ज्ञान और पढ़ाई में लगन। उसके माता-पिता ने ठान लिया था कि चाहे जो भी हो, उनका बेटा पढ़ेगा। शाहिद ने अपनी मेहनत से सिविल इंजीनियरिंग में टॉप किया, लेकिन गरीबी ने उसे मजबूर कर दिया कि वह मजदूरी करने के लिए दुबई जाए।

दुबई पहुँचकर शाहिद को एक लेबर कैंप में रखा गया और उसे अरेबियन नाइट्स टावर की साइट पर मजदूर बना दिया गया। उसकी डिग्री उसके सूटकेस में धूल खा रही थी, और वह सीमेंट की बोरियाँ उठाता, सरियों के बंडल ढोता। लेकिन उसके भीतर का इंजीनियर कभी नहीं मरा। एक दिन काम करते-करते शाहिद ने देखा कि 35वीं मंजिल की बालकनी के स्लैब में सरियों की बिछावट गलत थी। यह एक बहुत बड़ी गलती थी, जिससे भविष्य में बड़ा हादसा हो सकता था।

शाहिद ने अपने सुपरवाइजर को बताया, लेकिन उसे डांटकर चुप करा दिया गया। शाहिद के भीतर का जमीर उसे चैन नहीं लेने दे रहा था। उसने हिम्मत जुटाई और सीधे चीफ इंजीनियर मिस्टर उमर अल मुबैदिला के पास गया। शाहिद ने डरते-डरते सच्चाई बता दी। मिस्टर उमर ने साइट पर जाकर जांच की और पाया कि शाहिद बिल्कुल सही था। उन्होंने तुरंत ढलाई रुकवा दी और स्लैब को सही तरीके से बनाने का आदेश दिया।

मिस्टर उमर ने शाहिद के ज्ञान और ईमानदारी की सराहना की। अगले दिन उन्होंने शाहिद को अपने ऑफिस बुलाया, उसकी डिग्री देखी, सवाल पूछे और उसकी काबिलियत को पहचाना। शाहिद को असिस्टेंट साइट इंजीनियर बना दिया गया, अच्छी तनख्वाह, अपार्टमेंट और गाड़ी दी गई। शाहिद ने अपने परिवार का कर्ज चुकाया, बहन की शादी की, और अपने माता-पिता को दुबई घूमने के लिए बुलाया।

अब शाहिद मजदूर नहीं, बल्कि एक सम्मानित इंजीनियर था। मिस्टर उमर उसके बॉस ही नहीं, बल्कि गुरु बन गए। शाहिद ने अपनी मेहनत और ज्ञान से कंपनी को लाखों का फायदा पहुँचाया। उसकी कहानी अरबियन नाइट्स टावर की सफलता का हिस्सा बन गई।