🤝 टूटी दीवार: सनी देओल ने हेमा मालिनी को सौंपी पिता की अंतिम अमानत

 

प्रकरण 1: नींव का हिलना और बेटे का दर्द

 

24 नवंबर की वो सुबह, भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक काला अध्याय लेकर आई। ‘हीरो ऑफ़ मिलियन हार्ट्स’ धर्मेंद्र का देहांत हो चुका था, और देओल परिवार की नींव पूरी तरह से हिल गई थी।

इस मौत के पीछे एक ऐसी कहानी छिपी थी, जिसे किसी ने कभी नहीं सुना था—एक ऐसा राज जो पिता और बेटे के रिश्ते की सबसे गहरी परतों को खोलता था।

सनी देओल, एक ऐसा बेटा जिसने बचपन से ही अपनी माँ प्रकाश कौर की आँखों में छुपता दर्द देखा था। वो दर्द, जो उस दिन से शुरू हुआ जब धर्मेंद्र जी के जीवन में हेमा मालिनी आईं। दो घर, दो रिश्ते, और बीच में खड़ा था एक बेटा सनी देओल।

छोटा सनी अपनी माँ को रोता देखता रहा। पिता धर्मेंद्र शूटिंग और हेमा मालिनी के साथ समय बिताते थे। सनी ने तभी तय कर लिया था कि वह इन रिश्तों से दूरी बनाए रखेगा। न हेमा से कोई लगाव, न उनकी बेटियों से। उसके दिल में एक दीवार थी—मज़बूत, ऊँची और अटल।

धर्मेंद्र जी की मौत के बाद देओल परिवार टूट गया। लेकिन जब धर्मेंद्र देओल इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गए, तो उन्होंने सिर्फ़ यादें ही नहीं छोड़ीं, बल्कि एक आख़िरी इच्छा भी छोड़ गए। एक ऐसी इच्छा जिसे उन्होंने जीवन में पूरा होते नहीं देखा।

प्रकरण 2: पिता की अधूरी इच्छा

धर्मेंद्र जी अक्सर अपने बेटों से कहते थे, ख़ासकर सनी से:

“सनी, मुझे नहीं चाहिए कि मेरे बाद तुम सब बिखर जाओ। दो परिवार हैं, पर खून तो एक है। घर एक होना चाहिए, दिल एक होना चाहिए। तुम बड़ा है, तू हाथ बढ़ाएगा तो दोनों परिवार हमेशा एकजुट रहेंगे।”

धर्मेंद्र जी की मौत के बाद घर में मातम छाया था। मेडिकल रिपोर्ट सामने आ चुकी थी, और औपचारिकताओं के लिए पुलिस भी घर पहुँची। इन सब के बीच, सनी की आँखों में एक और बात थी—पिता की छूटी हुई अधूरी इच्छा।

सनी देओल जानते थे कि पिता की वसीयत में जायदाद का बंटवारा दोनों परिवारों के बीच बराबर हुआ था, लेकिन रिश्तों का बंटवारा कौन करेगा?

धर्मेंद्र की मौत के कुछ घंटों बाद, सनी देओल ने एक ऐसा फ़ैसला लिया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। उन्होंने वह चीज़ उठाई जो उनके लिए सिर्फ़ एक वस्तु नहीं, बल्कि पिता का दिल थी—उनकी आख़िरी निशानी।

प्रकरण 3: आख़िरी निशानी का रहस्य

 

वह निशानी थी एक पुरानी लकड़ी की पेटी

इस पेटी के अंदर रखी थी धर्मेंद्र की सबसे व्यक्तिगत चीज़ें:

    धर्मेंद्र का पगड़ी और कलगी सेट, जिसे वह हमेशा अपनी पहचान के रूप में संभाल कर रखते थे।

    उनकी पुरानी डायरी

    उनकी शादी की पहली अंगूठी

    वह चश्मा जो उन्होंने 50 साल पहना।

ये वही निशानी थी जिसके बारे में धर्मेंद्र हमेशा कहते थे:

“जिस दिन मैं नहीं रहूँगा, इसे उस घर को दे देना जिसे मेरी वजह से कभी दर्द मिला हो।

यह बात सुनकर सनी के मन में द्वंद्व चला। दर्द किसे मिला? उनकी माँ प्रकाश कौर को, या हेमा मालिनी को, जिन्हें हमेशा एक अधूरा साथ मिला?

सनी को अपने पिता की आख़िरी लाइन याद आई: “सनी तू बड़ा है। तू हाथ बढ़ाएगा तो दोनों परिवार हमेशा एकजुट रहेंगे।”

सनी ने फ़ैसला लिया। यह निशानी माँ प्रकाश को नहीं, बल्कि हेमा मालिनी को दे दी जाएगी। यह फ़ैसला सिर्फ़ एक त्याग नहीं था, यह पिता की इच्छा और दोनों पत्नियों के त्याग को सम्मान देने का फ़ैसला था।

प्रकरण 4: 40 साल पुराना दर्द पिघला

 

रात के समय, सनी देओल हेमा मालिनी के घर पहुँचे। यह एक अप्रत्याशित मुलाक़ात थी। साथ में ईशा देओल और अहाना देओल भी थीं।

सनी ने हाथ में वह लकड़ी की पेटी थाम रखी थी।

सनी ने धीरे से कहा, उनके शब्दों में पहली बार दशकों की कड़वाहट की जगह नरमी थी:

“हेमा जी, यह पापा की आख़िरी निशानी है। उन्होंने कहा था, इसे उस घर को देना जो मेरे कारण टूटा। आप हमेशा एक अच्छी पत्नी रहीं। यह आपका हक है।”

हेमा मालिनी अपने आँसू नहीं रोक पाईं। वह फूट-फूट कर रो पड़ीं। बिलखते हुए उन्होंने कहा:

“सनी, तुमने आज वो कर दिया जो धर्मेंद्र जी ज़िंदगी भर चाहते थे—दो परिवारों का मिलना। मुझे दौलत नहीं, सिर्फ़ उनका प्यार चाहिए था। आज तुमने मुझे वो सम्मान दिया है, जो किसी भी संपत्ति से बड़ा है।”

उस पल, 40 साल पुराना दर्द पूरी तरह से पिघल गया। यह पहली बार था जब हेमा मालिनी ने सनी के हाथों को छुआ, और सनी ने पहली बार उस घर के प्रति नरमी दिखाई जिसे वह कभी अपनाते नहीं थे।

ईशा देओल और अहाना आगे बढ़ीं और सनी को नमस्ते किया। सनी ने सिर हिलाया—यह एक मौन स्वीकार था।

धर्मेंद्र की इच्छा पूरी हो गई।

प्रकरण 5: धर्मेंद्र की आख़िरी जीत

 

धर्मेंद्र, जो अपने जीते-जी दोनों परिवारों को एक नहीं कर पाए, वो मरने के बाद कर गए। सनी देओल ने पिता का सम्मान, पिता की आख़िरी निशानी, और पिता की आख़िरी इच्छा को पूरा किया।

सनी का दिल, जो कभी सबसे बड़ी दीवार रहा था, उस दिन बदल गया। धर्मेंद्र का परिवार आख़िरकार एकजुट हो गया। यही धर्मेंद्र जी की सबसे बड़ी जीत थी।

यह जीत संभव हुई क्योंकि दोनों महान महिलाओं—प्रकाश कौर और हेमा मालिनी—ने जीवन भर त्याग किया था:

प्रकाश कौर: उन्होंने तब भी अपने पति का साथ दिया जब पूरी इंडस्ट्री धर्मेंद्र जी पर प्लेबॉय होने का आरोप लगा रही थी। उन्होंने दूसरी महिला को अपनाने के लिए धर्म बदलने वाले पति से भी प्यार करना नहीं छोड़ा। उनका विश्वास धर्मेंद्र के प्रति कभी कम नहीं हुआ।

हेमा मालिनी: उन्होंने कभी धर्मेंद्र की पहली फैमिली के बीच रोड़ा नहीं बनीं, कभी कुछ डिमांड नहीं किया, और हमेशा प्रकाश कौर और उनके बेटों का सम्मान किया।

धर्मेंद्र जी ने दो रिश्तों में रहते हुए कभी किसी के साथ कोई पक्षपात (पार्शियलिटी) नहीं किया। उन्होंने दोनों पत्नियों को प्यार और सम्मान दिया। और उनकी इस खूबी ने ही प्रकाश कौर के विश्वास को और हेमा मालिनी के प्यार को अटूट बनाए रखा।

यह पूरी घटना यह दर्शाती है कि रिश्ते, प्यार और सम्मान किसी भी कानूनी कागज़ात या संपत्ति से ज़्यादा कीमती होते हैं। सनी देओल ने एक बेटे का फ़र्ज़ निभाकर, अपने पिता की विरासत को सही मायने में अमर कर दिया।

(यह कहानी पूर्णतया काल्पनिक है और केवल मनोरंजन के उद्देश्य से लिखी गई है।)