जब अमीर बाप ने देखा… उसका बेटा एक भिखारिन से पढ़ रहा था, फिर जो हुआ

पटना की गलियों में एक 12 साल की लड़की रहती थी, जिसका नाम गुड़िया था। गुड़िया के सिर पर छत नहीं थी, लेकिन उसकी आंखों में सपने थे। उसकी मां, सरोजा देवी, मानसिक रूप से बीमार थीं और पिता की कहानी गुड़िया के लिए एक अधूरी किताब की तरह थी। गुड़िया और उसकी मां सड़क किनारे एक फटी हुई चादर के नीचे रहते थे। हर दिन गुड़िया अपनी मां के साथ भीख मांगती थी, लेकिन उसकी दिल में एक ख्वाहिश थी—काश वह भी स्कूल जा पाती।

जब भी गुड़िया स्कूल के बच्चों को खेलते और पढ़ते हुए देखती, उसके दिल में एक उम्मीद जगती। वह सोचती, “क्यों न मैं भी पढ़ाई करूं और अपनी मां को एक बेहतर जिंदगी दे सकूं?” लेकिन गुड़िया की मां अक्सर चुप रहतीं, कभी अचानक हंस पड़तीं, तो कभी सड़क पर बैठकर धूल में आकृतियां बनातीं। लोग उन्हें पागल कहते थे, और गुड़िया इन बातों को सुनकर चुप रह जाती। उसकी आंखें भीग जातीं, लेकिन वह आंसू नहीं गिराती, क्योंकि उसे डर था कि अगर वह रो पड़ी, तो उसकी मां और ज्यादा टूट जाएंगी।

भाग 2: एक नई उम्मीद

एक दिन, जब गुड़िया पटना जंक्शन के पास बैठी थी, उसकी मुलाकात शांति आंटी से हुई। शांति आंटी, जो चाय की दुकान की मालकिन थीं, ने गुड़िया को ध्यान से देखा और पूछा, “बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?” गुड़िया ने शर्माते हुए कहा, “गुड़िया।” शांति आंटी ने उसे खाने के लिए पराठा और सब्जी दी। गुड़िया ने हिचकिचाते हुए खाना खाया और उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आई। यह महीनों बाद था जब उसने इतना अच्छा खाना खाया था।

शांति आंटी ने कहा, “कल आना, मेरी दुकान पर सफाई कर देना। बदले में खाना मिलेगा।” गुड़िया की आंखें चमक उठीं। सच में? अगले दिन से उसकी जिंदगी बदलने लगी। वह नंगे पैर शांति आंटी की दुकान तक पहुंची। दुकान पर चाय की खुशबू और रोटी सेंकने की महक हवा में घुली थी। गुड़िया ने झाड़ू लगाना शुरू किया। धूल उड़ती रही, लेकिन उसके चेहरे पर थकान नहीं थी। हर बर्तन धोते वक्त उसकी आंखें चमक रही थीं, क्योंकि वह पहली बार काम कर रही थी।

भाग 3: पढ़ाई की शुरुआत

एक दिन, जब गुड़िया दुकान पर बैठी थी, उसने मिट्टी पर लिखा, “पढ़ने की कोशिश कर रही हूं आंटी।” शांति आंटी ने उसे एक पुरानी कॉपी और टूटी पेंसिल दी। गुड़िया ने पहली बार मां से कहा, “आज मुझे कॉपी मिली है।” सरोजा ने कुछ नहीं कहा, बस आसमान की ओर देखती रहीं। अगले हफ्ते, शांति आंटी ने गुड़िया को पटना के सरकारी स्कूल ले गईं। स्कूल की दीवारें छिली हुई थीं, लेकिन गुड़िया को लगा जैसे वह किसी महल में आ गई हो।

हेडमिस्ट्रेस ने गुड़िया को पढ़ने की अनुमति दी। पहले दिन, गुड़िया ने क्लास में सवालों के जवाब दिए। बच्चे उसकी हंसी उड़ाने लगे, लेकिन गुड़िया ने महसूस किया कि गरीबी उसे रोक नहीं सकती। दिन बीतने लगे। गुड़िया सुबह स्कूल जाती, शाम को शांति आंटी की दुकान पर काम करती और रात को मां के पास लौटकर उसे खाना खिलाती।

भाग 4: एक नया मोड़

लेकिन एक दिन सब बदल गया। शांति आंटी ने कहा, “बेटा, मेरी बहन ने अमेरिका बुलाया है। मुझे जाना पड़ेगा।” गुड़िया का दिल थम गया। “तो मैं भी चलूं?” आंटी ने सिर सहलाया, “काश ऐसा हो पाता।” गुड़िया ने सोचा कि अब वह फिर अकेली हो जाएगी। अगले हफ्ते, शांति आंटी चली गईं और गुड़िया फिर अकेली हो गई।

पटना की सड़कों पर उस दिन बारिश हो रही थी। गुड़िया और उसकी मां एक पुराने बस स्टॉप के नीचे सिमटी बैठी थीं। गुड़िया ने स्कूल जाने की कोशिश की, लेकिन फीस भरने का वक्त आ गया था। उसने हेडमिस्ट्रेस के पैरों में बैठकर कहा, “मैम, थोड़े दिन और रुकने दीजिए। मैं काम करके फीस दूंगी।” लेकिन हेडमिस्ट्रेस ने ठंडी आवाज में कहा, “बेटी, नियम सबके लिए बराबर हैं। बिना फीस के हम नहीं रख सकते।”

भाग 5: संघर्ष का सामना

गुड़िया गेट के बाहर खड़ी रही। बारिश उसके बालों और कपड़ों से टपक रही थी। कॉपी का कागज भीग चुका था। वह मिट्टी में बैठ गई और उंगली से लिखा, “एबी सी डी।” उसकी आंखों से पानी और बारिश दोनों मिल गए थे। अब वह फिर उसी पुराने फुटपाथ पर थी। मां की हालत और बिगड़ चुकी थी। गुड़िया भूखी रहकर भी पहले मां को खिलाती। कभी जूते पॉलिश करती, कभी बोतलें बेचती। लोग नजरें फेर लेते, कोई सिक्का फेंक देता तो कोई हंसी उड़ा देता।

भाग 6: आर्यन से मुलाकात

एक दिन, गुड़िया नए स्कूल की दीवार के पास बैठी थी, तभी एक लड़का उसके पास आया। वह था आर्यन, एक अमीर लड़का। उसने गुड़िया से पूछा, “तुम कौन हो?” गुड़िया ने डरते हुए कहा, “बस सुन रही थी पढ़ाई।” आर्यन ने कहा, “तुम पढ़ना चाहती हो?” गुड़िया ने हां में सिर हिलाया। आर्यन ने अपने बैग से एक कॉपी निकाली। “जल्दी लो, इसमें लिखो 2 + 2 कितना।” गुड़िया ने जवाब दिया, “चार।” आर्यन ने हंसते हुए कहा, “वाह, तुम तो मुझसे भी तेज हो।”

भाग 7: दोस्ती की शुरुआत

उस दिन के बाद, गुड़िया हर दिन स्कूल की दीवार के पास आने लगी। आर्यन उसे पढ़ाने लगा। दोनों की दोस्ती धीरे-धीरे गहराने लगी। पटना की दोपहरें अब गुड़िया के लिए कुछ और ही हो गई थीं। आर्यन कभी-कभी गुड़िया के लिए बिस्किट या फल लाता। गुड़िया हमेशा कहती, “नहीं चाहिए, मैं खा चुकी हूं।” लेकिन उसके पेट से आवाज आती, “गुर्र।” आर्यन मुस्कुरा देता और बिस्किट उसके हाथ में थमा देता।

भाग 8: आर्यन का परिवार

एक दिन आर्यन ने कहा, “गुड़िया, अब मैं पापा को बताऊंगा तेरे बारे में।” गुड़िया डर गई। “अगर उन्होंने मना कर दिया तो…” आर्यन ने कहा, “मैं जोर से बोलूंगा जब तक वह मान ना जाए।” अगले दिन, जब आर्यन के पिता, राजीव गुप्ता, स्कूल आए, गुड़िया ने देखा कि वह एक काली एसयूवी में आए हैं। राजीव गुप्ता ने गुड़िया को देखा और कहा, “यह कौन है?” आर्यन ने कहा, “यह मेरी दोस्त है। गुड़िया यह मुझे पढ़ाती है।”

भाग 9: नई जिंदगी की शुरुआत

राजीव गुप्ता ने गुड़िया की ओर देखा। उसने कहा, “तेरे माता-पिता नहीं हैं। मां बीमार है।” गुड़िया ने सिर झुकाया। राजीव ने कहा, “तुम दोनों मेरे साथ चलो।” गुड़िया डर गई, लेकिन आर्यन ने उसका हाथ थाम लिया। “डर मत, मैं हूं ना।” एसयूवी पटना की गलियों में बढ़ने लगी और गुड़िया की जिंदगी एक अनजाने मोड़ की ओर मुड़ गई।

गाड़ी रुकी। गुड़िया ने देखा कि वह अपने घर के पास खड़ी है। राजीव गुप्ता ने कहा, “अब तुम हमारे साथ रहोगी। तुम्हारी मां का इलाज हम करवाएंगे।” गुड़िया की आंखें नम हो गईं। “सच में?” राजीव ने मुस्कुराते हुए कहा, “अब यह तुम्हारा घर भी है।”

भाग 10: स्कूल में नया सफर

अगले दिन गुड़िया रॉयल हेरिटेज स्कूल की नई यूनिफार्म में खड़ी थी। स्कूल में बच्चे फुसफुसाए, “अरे, यह तो वही सड़क वाली है।” लेकिन जब क्लास में सवाल पूछा गया, गुड़िया ने हाथ उठाया और सही उत्तर दिया। क्लास में तालियां बजने लगी। वही बच्चे जो उसे कभी भिखारिन कहते थे, अब उसकी बुद्धि की तारीफ कर रहे थे।

कुछ हफ्तों बाद गुड़िया ने स्कॉलरशिप एग्जाम टॉप कर लिया। पूरा स्कूल खड़ा हो गया। आर्यन ने सबसे पहले दौड़कर उसे गले लगाया। “कहा था ना, तू कर सकती है।” राजीव गुप्ता ने कहा, “तुम्हारे जैसे बच्चों से ही देश का भविष्य बदलता है।”

भाग 11: मां की पहचान

एक दिन गुड़िया की मां, सरोजा देवी, ने उसे पहचान लिया। “मेरी गुड़िया, तूने कर दिखाया।” गुड़िया की आंखों से आंसू झरते गए। वह मां की गोद में सिर रखकर रोती रही। वो आंसू दर्द के नहीं, बल्कि जीत के थे। गुड़िया ने अपनी मेहनत से साबित किया कि गरीबी इंसान की पहचान नहीं होती।

भाग 12: गुड़िया का सपना

गुड़िया ने आसमान की ओर देखा। तारे झिलमिला रहे थे। उसने आंखें बंद कर कहा, “भगवान, अब मैं सिर्फ सपने नहीं देखूंगी। उन्हें पूरा भी करूंगी।” दूर अस्पताल की खिड़की में सरोजा देवी मुस्कुरा रही थी। हवा में एक धीमी आवाज गूंज रही थी, “मेरी बेटी अब सचमुच उड़ने लगी है।”

निष्कर्ष

दोस्तों, यह कहानी सिर्फ गुड़िया की नहीं है। यह हर उस बच्चे की कहानी है जिसे गरीबी और समाज ने पीछे धकेला। लेकिन उसने पढ़ाई को भाल बना लिया। याद रखिए, गरीबी इंसान की पहचान नहीं होती। हिम्मत और मेहनत होती है। हर गुड़िया को पढ़ने का हक है।

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