सर्दियों की सुबह थी। दिल्ली एयरपोर्ट पर भीड़ अपने चरम पर थी। हर कोई अपनी-अपनी उड़ान के लिए भाग-दौड़ कर रहा था। इसी भीड़ में एक साधारण से बुजुर्ग व्यक्ति, सफेद कुर्ता-पाजामा, पुराना स्वेटर और फटी हुई चप्पल पहने, एयरलाइन काउंटर की ओर बढ़े। उनके हाथ में एक प्लास्टिक कवर में रखी प्रिंटेड टिकट थी। चेहरे पर शांति थी, लेकिन आँखों में थकान साफ़ झलक रही थी।
उन्होंने काउंटर पर खड़ी लड़की से विनम्रता से पूछा, “बिटिया, यह मेरी टिकट है, सीट कन्फर्म है क्या? मुझे जयपुर जाना है।” लड़की ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा, मुंह बनाकर बोली, “अंकल, यह रेलवे स्टेशन नहीं है। यहाँ बोर्डिंग ऐसे नहीं मिलती, पहले ऑनलाइन चेक-इन करना पड़ता है।” बुजुर्ग थोड़े घबरा गए, बोले, “मुझे नहीं आता बेटा, बस आप एक बार देख लो, मेरी बहू अस्पताल में है।” पास खड़े कर्मचारी ने हँसते हुए कहा, “अंकल, आप घर जाइए, यह आपके बस की बात नहीं है।”
कोई उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। लड़की ने उनकी टिकट बिना देखे ही फाड़ दी और कहा, “सर, कृपया यहाँ से जाइए।” बुजुर्ग स्तब्ध रह गए, हाथ में आधी फटी टिकट थी। वे बाहर जाकर एक बेंच पर बैठ गए, ठंड में काँपते हुए। उन्होंने अपने पुराने फोन से एक नंबर डायल किया, “हाँ, मैं एयरपोर्ट पर हूँ, जैसा डर था वैसा ही हुआ। अब आपसे अनुरोध है, आदेश जारी कर दीजिए।”
अंदर एयरपोर्ट पर हलचल मच गई। सारी फ्लाइट्स की बोर्डिंग रोक दी गई। कुछ ही देर में एक काली गाड़ी आई, उसमें से एयरलाइन के वरिष्ठ अधिकारी, डीजीसीए सलाहकार और एक सुरक्षा अधिकारी उतरे। वे बुजुर्ग के पास पहुँचे, जो अब फिर से काउंटर की ओर बढ़ रहे थे। इस बार उनका परिचय देखकर सब हैरान रह गए—वे थे श्रीमान अरविंद शेखर, वरिष्ठ नागरिक एवं नागर विमानन मंत्रालय के सलाहकार, पूर्व अध्यक्ष नागरिक विमानन प्राधिकरण।
डीजीसीए अधिकारी ने गुस्से में कहा, “आप लोगों ने इन्हें बेइज्जत किया, बिना आईडी देखे टिकट फाड़ दी।” अरविंद जी ने शांत स्वर में कहा, “तुमने मेरी टिकट नहीं फाड़ी, तुमने उस मूल्य को फाड़ा है जो सम्मान कहलाता है।” एयरलाइन स्टाफ ने माफी मांगी। जिन कर्मचारियों ने टिकट फाड़ी थी, उन्हें निलंबित कर दिया गया और सभी को एल्डर डिग्निटी पर ट्रेनिंग का आदेश दिया गया।
अरविंद जी ने कहा, “मुझे भीड़ में बैठना अच्छा लगता है, वहाँ इंसानियत के असली चेहरे दिखते हैं।” अब सबकी नजरें उन्हीं पर थीं। कुछ लोग उनका नाम गूगल कर रहे थे, तब पता चला कि वे देश के सबसे पहले डीजीसीए रिफॉर्म बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं, पद्म भूषण से सम्मानित हैं, और उनकी वजह से हजारों बुजुर्गों को एयर ट्रैवल की सुविधा मिली है।
एक पत्रकार ने पूछा, “सर, आप चुप क्यों रहे?” अरविंद जी मुस्कुराए, “मैं जानना चाहता था, क्या हमारे बनाए कानून दिलों में भी हैं या सिर्फ फाइलों में?” उनका अनुभव था—सिस्टम की ताकत तकनीक में नहीं, संवेदनशीलता में होती है। उन्होंने एक युवा कर्मचारी से कहा, “बेटा, तुमने मेरी टिकट फाड़ी थी, अब जिंदगी में किसी का सम्मान मत फाड़ना।”
फ्लाइट बोर्डिंग शुरू हो चुकी थी, लेकिन आज कोई जल्दी में नहीं था। सबकी नजरें उस बुजुर्ग पर थीं, जिसने एक फटी टिकट से पूरे सिस्टम को आईना दिखा दिया। गेट पर पहुँचते ही सीनियर टीम उनका स्वागत करने आई, लेकिन उन्होंने मुस्कुराकर कहा, “मैं वीआईपी नहीं, एक रिमाइंडर हूँ कि बुजुर्ग कोई बोझ नहीं, बल्कि समाज की नींव हैं।”
नीचे, वही कर्मचारी अब भी फटी टिकट को देख रहे थे। उनमें से एक ने कहा, “हमने उनकी टिकट नहीं फाड़ी, हमने अपनी सोच का पर्दा उतार दिया।” इंसान की पहचान उसके कपड़ों से नहीं, बल्कि उसकी सहनशीलता और इंसानियत से होती है।
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