कहानी: दूसरा मौका – प्रिया और अमित की कहानी
प्रस्तावना
दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की रात थी। इमरजेंसी वार्ड में अफरातफरी मची थी। एंबुलेंस की आवाजें, नर्सों की दौड़, डॉक्टरों के चेहरे पर चिंता, मरीजों की कराह – सबकुछ एक आम रात जैसा ही था। लेकिन उस रात प्रिया शर्मा के लिए कुछ अलग था। आठ साल से डॉक्टर प्रिया ने सैकड़ों मरीज देखे थे, पर आज जब दो लोग एक खून से लथपथ आदमी को लेकर आए, उसकी दुनिया अचानक ठहर गई।
पहला सामना – अतीत की दस्तक
“डॉक्टर साहब, बचाइए इसे। ट्रक ने मारा है, बहुत खून निकला है।”
प्रिया दौड़ पड़ी। जैसे ही उसने मरीज का चेहरा देखा, उसके हाथ से स्टेथोस्कोप गिर गया। यह वही चेहरा था जिसने कभी उसकी जिंदगी को नर्क बना दिया था – अमित गुप्ता, उसका तलाकशुदा पति।
पैरों तले जमीन खिसक गई। हाथ कांपने लगे। लेकिन अगले ही पल उसने खुद को संभाला। वह डॉक्टर थी, उसकी ट्रेनिंग में भावनाओं के लिए जगह नहीं थी। “स्ट्रेचर लाओ, बीपी चेक करो, ओ टू लगाओ, आईसीयू तैयार करो।” सबकुछ मशीन की तरह चलने लगा। अंदर एक तूफान था, बाहर सिर्फ फर्ज।
अतीत की यादें
ऑपरेशन सफल रहा। अमित को आईसीयू में भेज दिया गया। प्रिया अपने केबिन में बैठी, कॉफी का कप हाथ में, आँखों में आँसू। पांच साल पहले की वह रात याद आ रही थी – जब अमित नशे में घर आया था, गुस्से में, चीखता-चिल्लाता, और फिर शुरू हुआ था मारपीट का सिलसिला।
“तुम सिर्फ डॉक्टर बनने के चक्कर में पड़ी रहती हो, घर की कोई फिक्र नहीं।”
प्रिया ने भी नौकरी की थी, घर चलाने के लिए। लेकिन अमित को लगता था कि वह कमजोर है, उसकी बीवी उससे आगे निकल रही है। शराब में डूबकर वह अपनी कुंठा निकालता। एक रात तो प्रिया को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। उसी दिन उसने तलाक का फैसला कर लिया। अमित ने बिना विरोध किए साइन कर दिए। “अब मैं आजाद हूं तुम्हारी नौकरी से।” यही आखिरी शब्द थे।
फिर से आमना-सामना
पाँच साल तक प्रिया ने अमित को नहीं देखा। उसने दोबारा शादी नहीं की, अपने काम में खुद को डुबो दिया। और आज वही अमित उसके सामने मौत से लड़ रहा था।
कुछ घंटे बाद नर्स ने बताया, “मैडम, पेशेंट को होश आ गया है। वो आपको पूछ रहा है।”
प्रिया आईसीयू गई। अमित की आंखों में आंसू थे।
“तुमने मुझे बचाया?”
“मैं डॉक्टर हूं। हर मरीज को बचाना मेरा फर्ज है।”
अमित ने कहा, “मैं बदल गया हूं प्रिया। दो साल से शराब नहीं पीता, काउंसलिंग ली है। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है ना?”
प्रिया चुपचाप वहां से चली गई।
बदलाव की शुरुआत
अगले दिन अमित किताब पढ़ रहा था – गीता। प्रिया हैरान थी। अमित और धर्म?
“तुम वाकई बदल गए हो?”
“मैं नहीं चाहता कि तुम मुझे माफ करो। मैं सिर्फ चाहता हूं कि तुम खुश रहो। और अगर हो सके तो एक दोस्त के रूप में मुझे अपनी जिंदगी में जगह दो।”
प्रिया कुछ नहीं बोली। लेकिन मन में सवाल गूंज रहा था – क्या इंसान सच में बदल सकता है?
पुनर्मिलन और आत्मग्लानि
अगले कुछ दिन प्रिया के लिए मुश्किल थे। अमित की बातें उसके कानों में गूंजती रहीं। चौथे दिन अमित व्हीलचेयर पर बैठा खिड़की से बाहर देख रहा था।
“तुमने दोबारा शादी क्यों नहीं की?”
“गलत साथ से अच्छा है अकेले रहना।”
अमित की आंखें नम थीं। “मैंने तुम्हारी पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी ना?”
प्रिया ने उसकी तरफ देखा। पहली बार उसकी आंखों में सच्चा पछतावा दिख रहा था।
“तुमने मुझे अकेला रहना सिखाया अमित। यह भी कोई छोटी बात नहीं।”
नया जीवन – सेवा का मार्ग
अमित ने अस्पताल के सफाई विभाग में काम शुरू कर दिया। सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक फर्श, कचरा, बेड – सब साफ करता। मरीजों की मदद करता।
प्रिया ने पूछा, “तुम्हें शर्म नहीं आती?”
“शर्म तो तब आनी चाहिए थी जब मैं अपनी बीवी को मारता था। अब तो सिर्फ सुकून है।”
डॉक्टर श्रीवास्तव ने कहा, “वह सिर्फ सफाई नहीं करता, मरीजों की मदद भी करता है। बहुत अच्छा स्वभाव है।”
मां ने कहा, “अगर कोई सच में बदल जाए तो उसे एक मौका देना गलत नहीं।”
दिल का बदलाव
एक दिन अस्पताल में एक बूढ़ी औरत आई, उसका पोता बीमार था। पैसे नहीं थे। अमित ने अपनी जेब से पैसे दे दिए।
“यह पैसे नहीं हैं, यह मेरे पुण्य हैं।”
प्रिया ने पूछा, “तुमने अपना फ्लैट बेच दिया?”
“मैं यह सब अपने लिए कर रहा हूं ताकि आईने में अपना चेहरा देख सकूं।”
दूसरा मौका – क्या सच में?
छह महीने बीत गए। अमित अब अस्पताल का हिस्सा बन चुका था। मरीज उसे ‘अमित भाई’ कहते। नर्सें, डॉक्टर्स उसकी मेहनत की तारीफ करते।
एक दिन बड़ा एक्सीडेंट हुआ। अमित स्ट्रेचर, ब्लड की बोतलें, रिश्तेदारों को समझाना – सबमें लगा रहा। उसका हाथ कट गया, लेकिन वह दूसरों की सेवा में ही लगा रहा।
प्रिया ने पट्टी बांधी। “तुम बहुत बेवकूफ हो अमित, अपना ख्याल भी नहीं रख सकते।”
“तुमने मेरी फिक्र की। बहुत दिनों बाद।”
दोस्ती का रिश्ता
एक रात प्रिया ने पूछा, “तुम यह सब क्यों करते हो?”
“जब मैं किसी की मदद करता हूं तो मुझे लगता है कि मैं अच्छा इंसान हूं। पहले हमेशा लगता था कि मैं बुरा हूं। अब नहीं लगता।”
अमित ने कहा, “मैं कल अस्पताल छोड़ रहा हूं।”
“क्यों?”
“क्योंकि अब तुम मुझसे नफरत नहीं करती और शायद थोड़ी सी फिक्र भी करती हो। अगर कभी लगे कि मैं सच में बदल गया हूं तो मुझे फोन कर देना।”
नया रिश्ता – उम्मीद की किरण
अमित चला गया। अस्पताल में सन्नाटा था। प्रिया रोज उसे ढूंढती थी। दो महीने बाद उसकी मां बीमार पड़ी। प्रिया ने अमित को फोन किया।
अमित वापस आया, तीन दिन तक मां की सेवा की।
“बेटा, तुम सच में बदल गए हो।”
प्रिया ने कहा, “अमित, क्या तुम यहीं रुक सकते हो? मैं तुम्हें एक दोस्त के रूप में अपनी जिंदगी में जगह देना चाहती हूं।”
अमित की आंखों से आंसू निकल आए। “यही बहुत है प्रिया।”
समापन – दूसरा मौका
छह महीने बाद दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे। अमित फिर से अस्पताल में काम करने लगा।
एक दिन प्रिया ने पूछा, “क्या तुम चाहोगे कि हम फिर से…?”
अमित ने कहा, “नहीं प्रिया, तुमने मुझे दोस्त बनाया है, यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। अब मैं और कुछ नहीं चाहता।”
प्रिया मुस्कुराई। “तुम सच में बदल गए हो अमित।”
“हां, और यह बदलाव सिर्फ तुम्हारी वजह से है। तुमने मुझे इंसान बनना सिखाया है।”
आज प्रिया और अमित अच्छे दोस्त हैं। कभी-कभी साथ चाय पीते हैं, फिल्म देखते हैं। लेकिन दोनों जानते हैं कि कुछ रिश्ते वापस नहीं आते। और कभी-कभी यही सबसे अच्छा होता है। क्योंकि जिंदगी में दूसरा मौका हमेशा दोबारा वही रिश्ता शुरू करने के लिए नहीं होता। कभी-कभी यह एक नया और बेहतर रिश्ता बनाने के लिए होता है।
सीख:
इस कहानी से हमें यह समझना चाहिए कि गलतियां सबकी जिंदगी में होती हैं। लेकिन अगर कोई सच में बदल जाए, तो उसे एक दूसरा मौका देना गलत नहीं। दूसरा मौका हमेशा पुराने रिश्ते को दोहराने के लिए नहीं होता, बल्कि एक नया रिश्ता, नया विश्वास और नई उम्मीद देने के लिए होता है।
(यह कहानी ~1500 शब्दों में, भावनात्मक, प्रेरक और जीवन की सीख के साथ तैयार है।)
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