“गलत ट्रेन में चढ़ा था लड़का , अगली स्टेशन पर बदल गई उसकी किस्मत/hindi kahaniya/story

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सुबह के ठीक 8 बजकर 5 मिनट।
वाराणसी रेलवे स्टेशन का प्लेटफार्म नंबर चार मानो एक चलता-फिरता समंदर हो—लोगों की लहरें, समोसों और चाय की महक, कुलियों की लाल वर्दी, और हर तरफ़ आवाज़ों का तूफ़ान।

इसी भीड़ के बीच, एक दुबला-पतला 13 साल का लड़का, आर्यन, अपनी मां सीमा देवी का हाथ पकड़े खड़ा था। बाल हल्के उलझे, चेहरा मासूम पर आंखों में एक साथ डर और उत्सुकता। हाथ में एक पुराना बैग—जिसकी ज़िप टूटी हुई—जिसमें कुछ कपड़े, एक स्टील का डिब्बा और मां की दी हुई किताबें।

“बेटा, देख ले टिकट। प्लेटफार्म नंबर चार से लखनऊ इंटरसिटी जाएगी,” मां ने कहा।
आर्यन ने टिकट आंखों के पास ले जाकर पढ़ा—वाराणसी से लखनऊ, सामान्य डिब्बा

“मम्मी, आप चलिए ना साथ…” उसने धीरे से कहा।
सीमा देवी ने मुस्कुराने की कोशिश की, पर वो मुस्कान आंखों में दबे आंसुओं के पीछे कांप रही थी।
“तू बड़ा हो गया है बेटा। स्कूल जाना है नानी के पास… पढ़-लिखकर कुछ बनना है, हमारी तरह नहीं।”

ट्रेन की सीटी ने माहौल चीर दिया। पर घोषणा कुछ और थी—पटना एक्सप्रेस
मां ने कहा, “ये दूसरी है, तू बैठना जब लखनऊ इंटरसिटी आए…”

लेकिन तभी भीड़ में अफ़रा-तफ़री मच गई।
धक्कामुक्की, चिल्लाहट, और सीट पकड़ने की होड़।
आर्यन को लगा, शायद यही ट्रेन है।
भीड़ ने उसे धकेल दिया। कंधे पर बैग की चोट पड़ी, किसी ने पैर रौंदा—और अगले ही पल, वह गलत ट्रेन में चढ़ चुका था।

“मम्मी… मम्मी…” उसकी आवाज़ शोर में डूब गई।
सीमा देवी दौड़ीं, पर पटना एक्सप्रेस सरकने लगी।
आर्यन खिड़की से मां को दूर जाते देखता रहा, आंखें भीग गईं।


डिब्बा ठसाठस भरा था। कहीं बैठने की जगह नहीं। एक कोने में खड़े-खड़े, उसने बाहर भागते खेत-खलिहान देखे। पर उसके भीतर डर की जकड़ थी—ये लखनऊ नहीं जा रही

दो घंटे बाद, टिकट चेकर आया।
“टिकट दिखाओ।”
आर्यन ने कांपते हाथों से टिकट दिया।
टीटी ने खिड़की से बाहर झांका, फिर उसकी ओर मुड़ा—
“ये पटना एक्सप्रेस है, बेटा। तुम गलत ट्रेन में चढ़ गए।”

जैसे किसी ने उसके सीने में बिजली उतार दी हो।
“माफ़ कर दीजिए सर… मम्मी वहीं थीं… भीड़ में…” उसकी आवाज़ टूट गई।
टीटी का चेहरा सख्त था, पर आंखों में पिता-सा स्नेह उतर आया।
“घबराओ मत। अगले छोटे स्टेशन पर उतार दूंगा। वहां स्टेशन मास्टर से मिलना—सब संभाल लेंगे।”

उन्होंने बिस्किट और पानी दिया।
पर आर्यन के लिए भूख अब पेट में नहीं, दिल में थी।
बैग से मां की पुरानी तस्वीर निकालकर उसने सीने से लगा ली—वो मुस्कान अब शायद रो रही होगी।


स्टेशन आया—सोनपुर।
छोटा-सा प्लेटफार्म, हल्की बारिश।
टीटी ने हाथ पकड़कर कहा, “जा बेटा, स्टेशन मास्टर शिवनाथ तिवारी के पास जाना। डरना मत—सब अच्छा होगा।”
आर्यन ने पहली बार किसी अजनबी की आंखों में इतना अपनापन देखा।

शिवनाथ तिवारी—सफेद शर्ट, बाल पीछे कंघी किए, चेहरे पर उम्र की लकीरें पर आंखों में तेज।
आर्यन ने पूरी कहानी धीमे-धीमे सुनाई।
“यहीं रुक जा, बेटा। हम इंसान हैं, अधिकारी नहीं—तुम्हें अकेला महसूस नहीं होने देंगे।”

गेस्ट रूम—एक पुराना लोहे का पलंग, झपकती ट्यूबलाइट, धूल-सी चादर—पर आर्यन के लिए वो राजा की रजाई जैसी थी।
उस रात उसने ट्रेनों की आवाज़ों के बीच सोचा—टीटी साहब… आपका नाम तक नहीं पूछ सका, पर आपने जो किया… वो शायद कोई नहीं कर पाएगा।


सुबह, शिवनाथ जी उसे एक ऐसे इंसान से मिलाने ले गए, जो वहां के हर बच्चे की जिंदगी बदल देता था—रामधारी बाबू।
सरकारी शिक्षक नहीं, पर खुद से स्टेशन के बच्चों को मुफ्त पढ़ाने वाले।
“जो बच्चे किताबों से दूर हैं, वो जिंदगी से भी दूर हो जाते हैं,” उनका मानना था।

आर्यन ने गिनती दोहराई, कविता पढ़ी, गणित के सवाल हल किए।
रामधारी बाबू ने मुस्कुराकर कहा, “तू कहीं से भी आया हो बेटा, अब तू सही जगह पर है।”
वहीं से आर्यन का नया सफ़र शुरू हुआ—सुबह पढ़ना, शाम को और बच्चों को पढ़ाना।

शिवनाथ जी ने पुराना वेटिंग रूम लाइब्रेरी में बदल दिया—एनजीओ से किताबें, एक कंप्यूटर, कुर्सियां आईं।
आर्यन पहला छात्र बना। उसने संविधान, गांधीजी की आत्मकथा, भारत का भूगोल पढ़ा—और मन में ठान लिया, मैं अफ़सर बनूंगा।


एक दिन सोशल मीडिया पर उसकी कहानी वायरल हुई—
“गलत ट्रेन से उतरा बच्चा, अब बच्चों को सही दिशा दे रहा है।”
स्थानीय चैनलों ने कवरेज की।
और फिर—छह महीने बाद—भीड़ में एक महिला लड़खड़ाती हुई आई।
चेहरे पर सैकड़ों रातों की बेचैनी।
“आर्यन…”
“मम्मी…”

मां-बेटे की गोद में भरी वो मुलाक़ात—स्टेशन तालियों से गूंज उठा।
मां को बेटे का सपना सुनकर गर्व हुआ—और सच में, बोर्ड परीक्षा में आर्यन ने राज्य में टॉप किया।


दिल्ली—पहली बार एसी, पहली बार लिफ्ट, पहली बार कंप्यूटर।
लेकिन हफ्ते में एक बार, वो रामधारी बाबू और शिवनाथ जी को फोन करता—
“आपने रास्ता दिया… मैं मंज़िल तक जाऊंगा।”

बारहवीं के बाद—यूपीएससी की तैयारी।
सुबह 6 बजे से रात 11 बजे तक—पढ़ाई, नोट्स, टेस्ट, और आत्मसंयम।
इंटरव्यू में पूछा गया—“सबसे कठिन अनुभव?”
वो मुस्कुराया—“वो रात… जब मां बाहर रह गईं और मैं गलत दिशा में चला गया। पर वहीं से सही दिशा शुरू हुई।”


चार साल बाद—देश की हेडलाइन थी:
“गलत ट्रेन में चढ़े लड़के ने यूपीएससी टॉप किया—देश का सबसे युवा डीएम।”

सोनपुर स्टेशन फिर से भीड़ से भरा।
रामधारी बाबू की आंखें भीग गईं, शिवनाथ जी गर्व से खड़े थे।
मंच से आर्यन बोला—
“मैं उन सबका प्रतिनिधि हूं जिन्हें बस एक मौका चाहिए। मुझे वो मौका सोनपुर ने दिया।”

उसने स्टेशन पर एक स्कूल बनवाया—“प्लेटफार्म प्रेरणा विद्यापीठ”—जहां हर गरीब बच्चा मुफ्त पढ़ेगा, किताबें और भोजन मिलेगा।
गेट पर लिखा—
“गलत ट्रेन, सही तक़दीर—अगर हौसला साथ हो।”