कैशियर लड़की ने बुजुर्ग की मदद की, नौकरी गई—but अगले दिन जो हुआ उसने सबको चौंका दिया

अच्छाई का फल

कभी-कभी जिंदगी ऐसे मोड़ पर ले आती है, जहाँ हमें लगता है कि इस दुनिया में अच्छाई की कोई कदर नहीं। लेकिन किस्मत का खेल भी बड़ा अजीब होता है।

दिल्ली के एक बड़े सुपरमार्केट में रिया वर्मा कैशियर के तौर पर काम करती थी। उसकी मुस्कान और मेहनत ही उसकी पहचान थी। नौकरी उसके परिवार के लिए बेहद जरूरी थी—बीमार मां और छोटे भाई की पढ़ाई का खर्च उसी के कंधों पर था।

.

.

.

एक दिन दोपहर में एक बुजुर्ग बाबा सामान लेने आए। पैसे कम पड़ गए, तो उन्होंने तेल और ब्रेड वापस करने की कोशिश की। रिया का दिल पसीज गया। उसने चुपचाप अपनी जेब से पैसे निकालकर बाबा का बिल पूरा कर दिया। बाबा की आंखें भर आईं, उन्होंने ढेर सारी दुआएं दीं।

लेकिन जैसे ही बाबा चले गए, सुपरवाइजर ने रिया को डांटते हुए नौकरी से निकाल दिया। “यहां बिजनेस होता है, दान नहीं!” रिया का दिल टूट गया, लेकिन उसने साहस दिखाया, “अगर इंसानियत की कोई जगह नहीं है, तो मैं भी यहां नहीं रहना चाहती।”

शाम को पार्क में बैठी रिया सोच रही थी कि अब आगे क्या होगा। तभी वही बाबा एक महंगी गाड़ी में आए और बोले, “बेटा, तुझे क्या लगता है, तूने जो किया वह गलत था?” रिया ने कहा, “नहीं बाबा, मुझे लगता है मैंने सही किया।”

बाबा मुस्कुराए, “अच्छाई की कदर देर से होती है, पर होती जरूर है।”
फिर उन्होंने एक राज खोला—वही सुपरमार्केट बाबा का ही था!
रिया हैरान रह गई। बाबा बोले, “अब से तू इसी सुपरमार्केट की नई मैनेजर होगी। तेरे पास दिल है, ईमानदारी है, और लोगों की मदद करने का जज्बा है। यही एक अच्छे लीडर की पहचान है।”

अगले दिन रिया सुपरमार्केट लौटी, लेकिन इस बार बतौर मैनेजर। उसने सबसे पहले पॉलिसी बदलने की घोषणा की—”अब से इंसानियत की भी जगह होगी, जरूरतमंद को इज्जत दी जाएगी।”

रिया की मेहनत और अच्छाई ने उसे एक नई पहचान दिलाई।
यह कहानी हमें सिखाती है कि अच्छाई का फल देर से मिलता है, लेकिन जरूर मिलता है।

सीख:
अगर आप दिल से अच्छे हैं और सही काम करते हैं, तो दुनिया आपको जरूर पहचानती है।
अगर आपको यह कहानी पसंद आई तो इसे शेयर करें, क्योंकि अच्छाई का फल देर से मिलता है, पर मिलता जरूर है।

अगर आपको इसे और छोटा या किसी खास शैली में चाहिए, तो बताएं!