इंटरव्यू देने जा रहे लड़के का चोरी हुआ बैग… अजनबी लड़की ने मदद की, फिर जो हुआ

आरा जिले के एक छोटे से गाँव हरिपुर का लड़का रवि कुमार हमेशा से कुछ अलग करने का सपना देखता था। घर की हालत बहुत खराब थी। पिता खेतों में मजदूरी करके मुश्किल से घर चलाते थे, माँ दिन-रात सिलाई-बुनाई करती थी और छोटे भाई-बहनों की अधूरी ख्वाहिशें रोज़ रवि की आँखों के सामने आती थीं। गरीबी के बावजूद एक सपना सबको जीने की ताकत देता था—रवि को आईपीएस अफ़सर बनना है।

बरसों की मेहनत और संघर्ष के बाद जब यूपीएससी इंटरव्यू का कॉल लेटर आया तो पूरा गाँव गर्व से झूम उठा। पिता ने झुकी कमर सीधी की, माँ ने फटे आँचल में खुशी के आँसू पोंछे और भाई-बहन उसे उम्मीदों से देखने लगे। रवि के पास दिल्ली जाने के लिए बस एक छोटा सा बैग था—कुछ कपड़े, थोड़ा पैसा और टिकट। मगर सबसे कीमती उसका इंटरव्यू लेटर था, जिसे वह हमेशा शर्ट की जेब में रखता था।

दिल्ली जाने के लिए उसने विक्रमशिला एक्सप्रेस पकड़ी। ट्रेन खचाखच भरी हुई थी। रवि एक कोने में बैठा था, चेहरे पर थकान लेकिन आँखों में जलता हुआ सपना। रात गहराते ही वह नींद में डूब गया। बैग सिरहाने रखा था।

सुबह जब ट्रेन दिल्ली के करीब पहुँची तो अचानक टीटीई ने टिकट माँगा। रवि ने घबराकर बैग देखा—चैन टूटी हुई थी और सारा पैसा, टिकट सब गायब। उसका दिल जोर से धड़कने लगा। काँपती आवाज़ में उसने कहा,
“सर, मेरा बैग चोरी हो गया… उसमें टिकट और पैसे थे।”

टीटीई ने तिरछी नज़र से देखा और ठंडी हँसी छोड़ी—
“ये रोज़ का बहाना है। टिकट दिखाओ, वरना अगले स्टेशन पर आरपीएफ के हवाले कर दूँगा।”

रवि के हाथ काँप रहे थे। उसने जेब से इंटरव्यू लेटर निकाला।
“सर, ये देखिए। मेरा यूपीएससी इंटरव्यू है। अगर मैं नहीं पहुँचा तो सब खत्म हो जाएगा।”

लेकिन टीटीई पर कोई असर नहीं हुआ। सख़्ती से बोला—
“कहानियों के लिए समय नहीं है। या तो जुर्माना भरो या नीचे उतरो।”

भीड़ में कोई मदद को आगे नहीं आया। रवि की आँखों से आँसू छलक पड़े। तभी डिब्बे के एक कोने से आवाज़ आई—
“रुकिए! यह लड़का सच कह रहा है।”

सबकी नज़रें घूमीं। खिड़की के पास बैठी एक लड़की खड़ी हुई। नीले दुपट्टे में साधारण सलवार-कमीज़, चेहरे पर मासूमियत लेकिन आँखों में अजीब-सी दृढ़ता। उम्र मुश्किल से 22-23 साल।

टीटीई ने पूछा,
“आप जानती हैं इसे?”

लड़की ने बिना झिझक कहा,
“नहीं। लेकिन इसकी आँखों में सच्चाई दिख रही है। इसका सपना पटरी पर नहीं रुकना चाहिए। जुर्माना और टिकट का पैसा मैं दूँगी।”

पूरे डिब्बे में खामोशी छा गई। रवि स्तब्ध था। लड़की ने पर्स से पैसे निकाले और टीटीई को थमा दिए। रसीद काटी गई और मामला खत्म हो गया। भीड़ अपने काम में लग गई, लेकिन रवि की नज़र उस लड़की पर टिकी रही।

लड़की ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
“अब चैन से साँस लो। तुम्हारा टिकट सुरक्षित है।”

रवि फुसफुसाया—
“अगर आप नहीं होतीं तो शायद मेरी ज़िंदगी यहीं खत्म हो जाती। आप मेरी परी हैं।”

लड़की मुस्कुराई—
“परी नहीं, इंसान हूँ। और इंसान होकर किसी का सपना बचाना अगर मुमकिन हो तो करना चाहिए।”

रवि ने पहली बार गौर से उसे देखा। साधारण रूप पर आँखों में इतनी रोशनी कि जैसे अंधेरे में दीपक जल उठा हो। उसने हिम्मत जुटाई—
“मेरा नाम रवि कुमार है। आरा जिले से हूँ। यूपीएससी इंटरव्यू देने जा रहा हूँ।”

लड़की बोली,
“मेरा नाम स्नेहा है। मैं भी दिल्ली जा रही हूँ अपनी पढ़ाई के लिए। पर याद रखना, सपनों को बचाने के लिए पैसे से ज़्यादा ज़रूरी हिम्मत है। और वो तुम्हारे पास है।”

कुछ ही देर में ट्रेन अलीगढ़ स्टेशन पहुँची। स्नेहा को वहीं उतरना था। जाते-जाते उसने रवि को ₹500 का नोट दिया—
“इसे रख लो, दिल्ली में काम आएगा।”

रवि ने हाथ जोड़कर कहा,
“नहीं, आपने पहले ही बहुत किया है।”

स्नेहा बोली—
“इसे कर्ज मत समझो, दोस्त की दुआ मान लो। और अगर कभी बड़ा अफसर बनो तो किसी और के लिए यही करना। तभी समझूँगी मेरा पैसा लौट आया।”

रवि की आँखें भर आईं। उसने वादा किया—
“हाँ, मैं वादा करता हूँ।”

ट्रेन चली पड़ी। स्नेहा भीड़ में गुम हो गई, लेकिन उसकी मुस्कान और शब्द रवि के दिल पर हमेशा के लिए लिख गए।

दिल्ली की जद्दोजहद

दिल्ली पहुँचकर रवि के पास बस वही इंटरव्यू लेटर और ₹500 बचे थे। उसने स्टेशन के पास एक सस्ती धर्मशाला में ठिकाना किया। किराया चुकाते ही जेब लगभग खाली हो गई। वह दिनभर पैदल चलता ताकि किराया बचा सके। भूख लगती तो गुरुद्वारे का लंगर खा लेता। कभी-कभी सिर्फ सूखी रोटी और पानी से पेट भरता।

लेकिन उसकी आँखों में जलता सपना उसे हर कठिनाई भुला देता। रात भर पढ़ाई करता, इंटरव्यू लेटर को बार-बार देखता जैसे वही उसे ऊर्जा देता हो। माँ-बाप के चेहरे याद आते, और स्नेहा की बातें कानों में गूंज जातीं—
“सपनों को बचाने के लिए हिम्मत चाहिए। और वो तुम्हारे पास है।”

इंटरव्यू का दिन

आखिर वह दिन आ गया। रवि साफ शर्ट पहनकर बोर्ड के सामने पहुँचा। दिल धड़क रहा था, लेकिन भीतर अजीब-सी शांति थी। सवालों की बौछार शुरू हुई—प्रशासन, समाज, अपराध, राजनीति हर विषय पर। रवि ने आत्मविश्वास से जवाब दिए। उसकी आवाज़ में ईमानदारी थी और आँखों में संघर्ष की गवाही।

बोर्ड प्रभावित हुआ। इंटरव्यू खत्म होने के बाद रवि ने गहरी साँस ली। यह वही पल था जिसके लिए उसने भूखे-प्यासे दिन बिताए थे।

सफलता और वादा

नतीजे आए। हरिपुर गाँव में दिवाली-सा माहौल था। रवि कुमार ने न सिर्फ यूपीएससी पास की बल्कि शानदार रैंक भी हासिल किया। अब वह आईपीएस बनने जा रहा था। पिता की आँखों में गर्व के आँसू थे, माँ ने गले लगाकर कहा—
“तूने हमारी गरीबी नहीं, हमारी इज़्ज़त लौटा दी।”

लेकिन खुशियों के बीच रवि का दिल एक चेहरे को ढूँढ रहा था—नीले दुपट्टे वाली स्नेहा। उसकी कही बात दिल पर लिखी थी—
“अगर कभी बड़ा अफसर बनो तो किसी और के लिए यही करना।”

किस्मत का मोड़

साल बीते। रवि ने मसूरी अकादमी में ट्रेनिंग पूरी की। अब वह ईमानदार और सख़्त अफसर माना जाने लगा। कई मुश्किल जिलों में पोस्टिंग हुई, लेकिन उसने कभी रिश्वत नहीं ली और हमेशा गरीबों का सहारा बना।

फिर एक दिन उसकी पोस्टिंग दिल्ली हो गई। उसी दिल्ली में जहाँ कभी वह धर्मशाला में भूखा सोया था। अब वह एसपी था।

एक शाम वह रेड सिग्नल पर रुका। उसकी नज़र सड़क किनारे किताबों की छोटी दुकान पर पड़ी। वहाँ खड़ी एक लड़की ग्राहकों से बात कर रही थी। चेहरा थका हुआ था, लेकिन आँखों में वही चमक। रवि का दिल जोर से धड़का—वो वही थीं, स्नेहा।

उसने आवाज़ लगाई—“स्नेहा!”

लड़की चौंकी, पलटी, और सब ठहर गया। उसकी आँखों में हैरानी थी। रवि वही ट्रेन वाला लड़का था। दोनों की आँखों से आँसू छलक पड़े।

स्नेहा ने बताया कि पिता के गुजर जाने के बाद परिवार टूट गया और हालात ने उसे किताबों की दुकान लगाने पर मजबूर कर दिया। पढ़ाई अधूरी रह गई, सपने अधूरे।

रवि ने दर्द से सुना। उसने ठान लिया—जिस लड़की ने उसका सपना बचाया, अब उसकी ज़िंदगी बदलनी ही होगी।

नया सफर

कुछ ही हफ्तों में रवि ने स्नेहा की दुकान को एक बड़े आधुनिक बुक स्टोर में बदल दिया—“स्नेहा बुक हाउस।” नई किताबें, रोशनी, सब कुछ। स्नेहा की आँखें भर आईं।
“रवि, तुमने मेरी ज़िंदगी की किताब ही बदल दी।”

रवि मुस्कुराया—
“तुम्हारी एक छोटी सी मदद ने मेरी तकदीर बदल दी थी। आज लौटाना मेरा फर्ज़ है।”

उसने उसकी पढ़ाई फिर से शुरू करवाई। कॉलेज में दाखिला दिलवाया। स्नेहा झिझकी—
“अब उम्र निकल रही है, पढ़ाई का क्या फ़ायदा?”

रवि ने कहा—
“सपनों की कोई उम्र नहीं होती। तुमने मुझे सपनों पर यकीन करना सिखाया है। अब मैं तुम्हें तुम्हारे सपनों तक पहुँचते देखना चाहता हूँ।”

धीरे-धीरे स्नेहा की मुस्कान लौट आई। दोनों का रिश्ता गहराता चला गया।

वादा पूरा

महीनों बाद रवि ने उसे उसी रेलवे स्टेशन बुलाया, जहाँ उनकी कहानी शुरू हुई थी। पटरियों पर खड़े होकर उसका हाथ थामा और कहा—
“स्नेहा, उस दिन मैंने वादा किया था कि बड़ा अफसर बनकर किसी की मदद करूँगा। सच्चाई यह है कि मेरी सबसे पहली मदद तुम्हारे लिए होनी चाहिए थी। आज मैं नया वादा करना चाहता हूँ—जिंदगी भर का। क्या तुम मेरे साथ रहोगी?”

स्नेहा की आँखों से आँसू बह निकले। उसने कहा—
“रवि, मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक छोटी सी मदद मुझे इतना बड़ा तोहफ़ा देगी। हाँ, मैं तुम्हारे साथ रहूँगी, हमेशा।”

लोगों की भीड़ में तालियाँ गूँज उठीं। रवि और स्नेहा की आँखों से बहते आँसू इंसानियत और मोहब्बत की जीत बन गए।

कुछ ही समय बाद दोनों की शादी हुई। गाँव से शहर तक हर कोई यही कहता—
“देखो, एक टिकट की मदद ने दो ज़िंदगियाँ जोड़ दीं। यही है असली इंसानियत, यही है सच्ची मोहब्बत।”

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