12 साल बाद लौटे पति को पत्नी ने कहा – हमारी दुनिया में तुम्हारी कोई जगह नहीं | फिर जो हुआ
कहते हैं जब ज़िंदगी किसी औरत को अकेला छोड़ देती है तो वह टूटकर बिखर जाती है। मगर अगर उसकी गोद में उसकी संतान हो, तो वही औरत पत्थरों को चीरकर भी अपने लिए रास्ता बना लेती है और दुनिया को दिखा देती है कि पत्नी का दर्द, औरत की हिम्मत और मां की ताक़त कितनी बड़ी होती है।
दिल्ली की सर्द सुबह थी। छोटे-से घर में रीना और उसकी तेरह साल की बेटी सोनिया एक छोटी-सी मेज के पास बैठी थीं। मेज पर दो प्यालियाँ रखी थीं जिनसे गर्म चाय की भाप उठ रही थी। मां-बेटी चाय की चुस्कियों के बीच हंसते-बोलते समय बिता रही थीं। रीना की थकी आंखों में उस सुबह एक अनोखा सुकून था। उसने बरसों की मेहनत से अपनी बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाया था। सोनिया पढ़ाई में तेज़ थी, उसके सपनों में चमक थी और यही चमक रीना की सबसे बड़ी जीत थी।
लेकिन तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। यह दस्तक साधारण नहीं थी; जैसे किसी पुराने तूफान ने अचानक लौटकर फिर से ज़िंदगी का दरवाज़ा खटखटाया हो। रीना ने धीरे-से कप टेबल पर रखा, कांपते कदमों से आगे बढ़ी और दरवाजा खोला। सामने खड़ा चेहरा देखकर उसकी सांसें अटक गईं, आंखें फैल गईं और दिल पत्थर-सा भारी हो गया। वह अजय था — उसका वही पति जिसे उसने बरसों पहले अपनी ज़िंदगी से निकाल फेंका था।
अजय दरवाज़े पर खड़ा ही नहीं रहा, बल्कि रोते हुए रीना के पाँव पकड़ लिए। कांपती आवाज़ में बोला – “रीना, मुझे माफ़ कर दो। मैंने बहुत बड़ी गलती की। बारह साल पहले जब मैंने तुम्हें और सोनिया को छोड़ा था, उसी दिन से मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो गई। मैं तन्हाई में जलता रहा, पर हिम्मत नहीं जुटा पाया कि तुम्हारे सामने आ सकूँ। आज हिम्मत की है, मुझे माफ़ कर दो।”
रीना की आंखों में नफरत और दर्द उमड़ आए। गला भर आया, मगर उसने खुद को संभालते हुए सख्ती से कहा – “अजय, मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं। तुम उसी दिन मर चुके थे जब तुमने हमें छोड़ दिया था। मैंने अकेले अपनी बेटी को पाला है, आज मेरा संसार पूरा है। उसमें तुम्हारी कोई जगह नहीं।”
इतना कहकर वह पीछे मुड़ने लगी, लेकिन तभी कमरे से सोनिया बाहर आई। उसने रोते हुए अजनबी चेहरे को देखा और उलझन में पूछा – “मां, ये कौन हैं? आपसे माफी क्यों मांग रहे हैं?”
रीना जैसे जमीन में गड़ गई। बरसों से इस दिन से डरती आई थी। हर बार सोनिया अपने पिता के बारे में पूछती तो वह कोई बहाना बना देती। मगर आज सच दरवाजे पर खड़ा था। उसकी आंखों में आंसू भर आए। कांपते स्वर में बोली – “बेटी, यही वह इंसान है जिसे तू बरसों से अपना पापा कहती आई है। यही हैं तेरे पिता, जिन्होंने हमें अकेला छोड़ दिया था।”
सोनिया की मासूम आंखें हैरान रह गईं। वह धीरे-धीरे अजय की ओर बढ़ी और बोली – “तो आप मेरे पापा हैं? मां कहती थीं आप विदेश में रहते हैं और हमारे लिए पैसे भेजते हैं। अब आप वापस आ गए?”
रीना का दिल पिघल गया। उसके चेहरे से आंसू बहने लगे। कमरे में भारी खामोशी छा गई। एक ओर टूटा हुआ अतीत खड़ा था, दूसरी ओर बेटी की मासूम चाहत।
रीना ने फिर भी दृढ़ स्वर में कहा – “हां सोनिया, ये तेरे पापा हैं। लेकिन याद रख, यही वो इंसान हैं जिन्होंने हमें अकेला छोड़ दिया था। जब तू डेढ़ साल की थी तब ये हमें इस बेरहम दुनिया के हवाले कर गए थे। मैंने तुझे अपनी जान की बाज़ी लगाकर पाला है, और तेरे पापा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।”
अजय की आंखें शर्म से झुक गईं। बोला – “रीना, मैं मानता हूं मैंने गलती की। मैं किसी और के बहकावे में आ गया था। पर जब तुमसे दूर हुआ तब समझ आया कि असली परिवार क्या होता है। मैं हर रात जलता रहा, हर सुबह खुद से शर्मिंदा होता रहा। अगर पति के तौर पर जगह नहीं दोगी तो मत दो, लेकिन मुझे एक पिता बनने दो। सोनिया को मेरा हक चाहिए।”
रीना ने आंखों में तिरस्कार भरते हुए कहा – “पिता का हक? क्या पिता का हक सिर्फ नाम से होता है? जब यह बच्ची रात-रात भर बुखार में तड़पती थी, तब तुम कहां थे? जब स्कूल की फीस भरनी होती थी, तब कहां थे? जब यह हर दिन पूछती थी ‘मां, मेरे पापा कहां हैं’, तब मैं झूठ बोलती रही और तुम किसी और की गोद में सुकून ढूंढते रहे। आज बारह साल बाद आकर कह रहे हो कि पिता बनना चाहते हो!”
कमरे में खामोशी पसर गई। तभी सोनिया मां का आंचल खींचते हुए बोली – “मां, आपने हमेशा कहा कि पापा विदेश में हैं। मैंने भरोसा किया कि एक दिन वे लौटेंगे। और आज जब वो लौट आए हैं, तो आप इन्हें क्यों जाने दे रही हो? मां, मुझे भी पापा चाहिए।”
रीना का दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया। अजय ने सोनिया का हाथ पकड़ते हुए कहा – “बेटी, मैं मानता हूं कि मैंने तुझे बचपन में अकेला छोड़ दिया। लेकिन अब मैं कभी नहीं छोडूंगा। अगर तू मुझे अपने दिल में जगह दे, तो मैं अपनी सारी उम्र तेरा सहारा बनकर जी लूंगा।”
रीना का चेहरा कठोर था, मगर उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। उसने गहरी आवाज़ में कहा – “अजय, मैं तुझे पति के तौर पर कभी माफ़ नहीं करूंगी। लेकिन मैं मां भी हूं। और एक मां अपनी बेटी की आंखों से उसके सबसे बड़े सपने को नहीं छीन सकती। इसलिए मैं चुप हूं। लेकिन याद रख, अगर मेरी बेटी की मुस्कान को जरा भी चोट पहुंची, तो इस बार मैं तुझे ऐसी सज़ा दूंगी जिसे जिंदगी भर याद रखेगा।”
सोनिया खुशी से दौड़कर अपने पापा की गोद में कूद पड़ी। उसकी आंखों में आंसू थे, मगर होठों पर मुस्कान थी। उसे लगा जैसे उसके सपनों का अधूरा हिस्सा पूरा हो गया है।
दिन गुजरते गए। अजय रोज सोनिया को स्कूल छोड़ने जाने लगा, होमवर्क में मदद करने लगा, कहानियां सुनाने लगा। सोनिया की हंसी घर में गूंजने लगी। रीना दूर से देखती रही। उसके दिल में अब भी सवाल था – क्या यह सचमुच बदल चुका है या यह भी एक झूठ है?
एक दिन सोनिया स्कूल के वार्षिक कार्यक्रम में मंच पर खड़ी थी। उसने डायलॉग बोला और अचानक अपने पापा की ओर देख लिया। अजय नीचे बैठा था, आंखों से आंसू बह रहे थे मगर वह जोर-जोर से तालियां बजा रहा था। सोनिया गर्व से बोली – “देखो, यह मेरे पापा हैं।” उस मासूम आवाज़ ने रीना का दिल चीर दिया। उसे लगा कि बारह साल का खालीपन भर गया।
कार्यक्रम के बाद सोनिया दौड़कर अपने पापा की गोद में कूद गई। उसकी खुशी देखकर रीना की आंखें भी भर आईं। उसने अजय की ओर देखकर कहा – “अजय, मैं तुझे पति के रूप में कभी स्वीकार नहीं कर सकती। तेरे दिए जख्म हमेशा रहेंगे। लेकिन एक पिता के रूप में जगह देती हूं। सोनिया का बचपन अधूरा नहीं रहना चाहिए। अगर सच में प्रायश्चित करना चाहता है, तो केवल अपनी बेटी के लिए कर।”
अजय ने हाथ जोड़ लिए। बोला – “रीना, मुझे अब और कुछ नहीं चाहिए। मैं बस सोनिया का पिता बनकर जीना चाहता हूं। यही मेरी सबसे बड़ी सज़ा है और यही मेरी सबसे बड़ी दुआ भी।”
रीना ने अपनी बेटी को सीने से लगाया। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे, मगर दिल में सुकून था कि उसने अपनी बेटी के लिए सही फैसला लिया।
अब रीना, सोनिया और अजय साथ रहते हैं। पति-पत्नी के रिश्ते की दूरी शायद कभी न मिटे, मगर एक बेटी के लिए पिता का प्यार लौट आया। यही एक मां की सबसे बड़ी जीत थी।
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