इस साधुनी को थाने लाया गया… लेकिन जब IPS ने उसकी मोटरी खोली, अंदर जो निकला वो दिल दहला देने वाला…

“मोटरी का रहस्य: एक मां, एक साधु, और गुमशुदा बेटियाँ”
भाग 1: थाने के बाहर भीड़ और रहस्य
वेलसिटी नगर के थाने के बाहर सैकड़ों लोग जमा थे। सबकी नजरें उस महिला साधु पर थीं, जिसे पुलिस की जीप से उतारा गया। उसके हाथों में एक पुरानी, फटी सी मोटरी थी। चेहरा धूल से सना, आंखों में सदियों का दर्द और रहस्य। ना डर, ना घबराहट—बस एक अजीब सी शांति।
भीड़ में कोई कह रहा था—यह वही साधु है जो पिछले 6 महीने से स्टेशन के बाहर बैठी रहती है, बोलती तक नहीं। कोई बोला—इसके पास जाने वाले के साथ कुछ बुरा ही होता है।
आज जब एक आठ साल की बच्ची गायब हुई और आखिरी बार सीसीटीवी में उसे इसी महिला साधु के पास देखा गया, पूरा इलाका दहल गया। पुलिस ने उसे थाने लाया। आईपीएस शिवराज सिंह चौहान, तेजतर्रार और बेदाग छवि के अधिकारी, खुद पूछताछ करने पहुंचे।
भाग 2: मोटरी की परतें और डर
आईपीएस ने आदेश दिया—”इसकी मोटरी खोलो।”
कांस्टेबल डरते-डरते थैले की गांठ खोली।
सबके रोंगटे खड़े हो गए—खून से सनी पुरानी गुड़िया, जिसकी एक आंख फूटी हुई थी।
मोटरी से निकला एक पुराना फोटो एल्बम—हर पन्ने में एक ही बच्ची की तस्वीरें, अलग-अलग कपड़ों में, कभी मंदिर के बाहर, कभी स्कूल यूनिफॉर्म में।
कांस्टेबल बोला—”सर, यह वही बच्ची है जो आज गायब हुई है।”
आईपीएस ने एल्बम को मेज पर पटका और महिला साधु से पूछा—”यह कौन है? तुम इसके साथ क्या करती हो?”
महिला साधु बस कमरे के कोने में धूप की रेखा को देख रही थी।
फिर धीमी आवाज में बोली—”हर बार जब वह आती है, मैं उसे वहीं छोड़ देती हूं, जहां वह पहली बार मुझे मिली थी।”
भाग 3: अतीत की छाया
मोटरी से निकली मिट्टी में सनी छोटी सी चप्पल, बच्चों की स्कूल डायरी—आखिरी पन्ने पर लिखा था, “मैं आज भी वहां हूं, जहां उस दिन तुमने मुझे छोड़ा था।”
आईपीएस घबरा गए। मामला तंत्र-मंत्र जैसा लग रहा था, लेकिन वे किसी अंधविश्वास में नहीं मानते थे।
फॉरेंसिक टेस्ट आया—गुड़िया पर जिस खून के धब्बे थे, वह उसी गुमशुदा बच्ची का था।
अब यह सिर्फ साधु या गायब बच्ची की बात नहीं थी, बल्कि 23 सालों के रहस्यों की परतें खुलने लगी थीं।
भाग 4: टूटी मां की कहानी
महिला साधु से फिर पूछताछ हुई।
आंखों में आंसू, आवाज में कड़वाहट।
उसने कहा—”आप लोग हर बार वही गलती करते हो। हर बार बच्ची की तलाश में निकलते हो, लेकिन बच्ची गुम नहीं होती। वह खुद मुझसे मिलने आती है।”
आईपीएस ने पूछा—”तुम्हारी कहानी क्या है?”
महिला बोली—”कहानी नहीं, सजा है।”
उसका नाम लक्ष्मी था। एक आम औरत, एक छोटी सी बच्ची की मां।
पति धर्मवीर रोज शराब पीकर घर आता, मारता-पीटता।
एक रात, गुस्से में उसने लक्ष्मी की बेटी को छीनकर ट्रेन के आगे फेंक दिया।
लक्ष्मी चीखती रह गई, बेटी को नहीं बचा सकी।
उस रात के बाद से लक्ष्मी स्टेशन के उसी बेंच पर बैठती रही, सोचती रही, शायद उसकी बेटी किसी और रूप में लौटेगी।
और तब से हर साल एक बच्ची मुझसे मिलने आती है… हर साल एक और मां की कोख सूनी हो जाती है।
भाग 5: सीरियल पैटर्न और गहराता शक
फॉरेंसिक टीम ने फोटो एल्बम, चप्पल, और डायरी की जांच की।
पिछले 20 वर्षों में हर साल एक बच्ची उसी तारीख को लापता हुई थी, जिस दिन लक्ष्मी साधु रूप में स्टेशन पर दिखती थी।
अब मामला एक सीरियल पैटर्न की ओर जा रहा था।
आईपीएस शिवराज ने केस को सीबीआई क्राइम ब्रांच से जोड़ने का फैसला किया।
लेकिन खुद लक्ष्मी के साथ रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर दो के पीछे गए।
लक्ष्मी वहीं बैठ गई, आंखें बंद कर ली, बोली—”वह आएगी।”
रात के 12:06 पर स्पीकर से आवाज आई—”प्लेटफार्म नंबर दो पर आने वाली गाड़ी देर से पहुंचेगी।”
ठीक उसी वक्त, 23 साल पहले लक्ष्मी की बेटी मरी थी।
लक्ष्मी जोर से चीखी—”वो आ गई। मेरी गुड़िया आ गई।”
वह अंधेरे में गायब हो गई।
मिट्टी में खुदाई हुई—एक छोटी बच्ची का खून से सना फ्रॉक और हड्डियों का ढांचा मिला।
फॉरेंसिक रिपोर्ट—कंकाल करीब एक साल पुराना था।
अब मामला कोल्ड ब्लडेड सीरियल चाइल्ड मर्डर का शक बन चुका था।
भाग 6: मानसिक बीमारी या रहस्य?
लक्ष्मी अगले दो दिन बाद फिर थाने के गेट पर मिली।
आईपीएस ने पूछा—”तुमने हमें क्यों गुमराह किया?”
लक्ष्मी बोली—”वो मेरी बेटी नहीं थी साहब, वो कोई और थी।”
डॉक्टर ने उसका साइकोलॉजिकल असेसमेंट किया—डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर।
वह कभी मां, कभी गुनहगार, कभी खुद अपनी बेटी बन जाती है।
हर बच्ची में अपनी बेटी को देखती है, पास बुलाती है, अनजाने में कुछ कर बैठती है।
फॉरेंसिक रिपोर्ट—मिली हड्डियाँ इस साल की नहीं, 2 साल पहले गायब हुई रीमा की थीं।
इस साल की बच्ची का कोई सुराग नहीं।
भाग 7: सच का खुलासा
आईपीएस ने लक्ष्मी से पूछा—”अगर तुमने नहीं छुआ, तो बच्ची कहां है?”
लक्ष्मी बोली—”वहीं, जहां मैं हर साल जाती हूं।”
इस बार लक्ष्मी प्लेटफार्म तीन के कोने में ले गई।
जमीन खुदवाई—एक ताजा लकड़ी का बक्सा मिला।
उसमें इस साल की गायब बच्ची बेहोश अवस्था में मिली—जिंदा लेकिन डरी हुई।
बच्ची ने कहा—”एक मम्मी जैसी औरत मुझे रोज कहानी सुनाती थी, खाना देती थी, रोती थी।”
आईपीएस समझ गए—लक्ष्मी मासूम थी, उसकी मानसिक हालत ने उसे कैदी बना दिया था।
केस बंद हुआ, लक्ष्मी को मानसिक स्वास्थ्य केंद्र भेजा गया।
बच्ची अपने माता-पिता से मिली।
भाग 8: अधूरापन और अंतिम सच
शिवराज को दिल में भारीपन था—क्या उस मां की आत्मा को उसकी बेटी मिल पाई?
लक्ष्मी हर रात मेंटल अस्पताल में आरु-आरु पुकारती थी।
आईपीएस शिवराज हर हफ्ते उसे देखने जाते।
एक दिन लक्ष्मी ने कहा—”मेरी बेटी जिंदा है साहब, बस इस दुनिया में नहीं। जब आखिरी बच्ची मिल जाएगी, तब वह मुझे लेने आएगी।”
दो दिन बाद लक्ष्मी ने खाना-पीना बंद कर दिया, लगातार “नैना” नाम दोहरा रही थी।
फिर पता चला—एक और बच्ची नैना गायब थी।
लक्ष्मी ने कहा—”वो खुद आई थी। उसकी मां ने कहा था, स्टेशन पर बैठी दादी के पास जाना।”
एल्बम में एक पुरानी फोटो थी—आईपीएस शिवराज की अपनी मां की।
चिट्ठी में लिखा था—”जब 23 साल पूरे होंगे, उस लड़की को बचा लेना जिसे तेरी मां ने छोड़ दिया था।”
शिवराज समझ गए—उनकी जिंदगी इस रहस्य से जुड़ी थी।
लक्ष्मी ने कहा—”वह बच्ची आरु थी।”
शिवराज की आंखें भर आईं।
भाग 9: अंतिम मिलन
मेंटल सेंटर के पीछे बच्चों ने एक पुराना दरवाजा देखा। तहखाने में नैना सुरक्षित मिली।
सेंटर की नर्स ने कबूल किया—हर साल एक बच्ची को चुनकर मिलन की प्रक्रिया पूरी करती थी।
लक्ष्मी ने अपनी बेटी के इंतजार में हर साल एक बच्ची को छाया दी।
अंत में लक्ष्मी ने चिट्ठी छोड़ी—”अब मेरी आरु मुझे लेने आ गई है। अब हर साल कोई बच्ची नहीं गुम होगी।”
भाग 10: समाज का आईना
आईपीएस ने केस फाइल में लिखा—
“लक्ष्मी देवी कोई हत्यारिन नहीं थी। वह समाज का आईना थी।
एक मां की चीखें तब सुनी जाती हैं जब वह किसी की बच्ची को लेकर चुपचाप बैठी होती है।
उसकी मोटरी में कोई रहस्य नहीं था, वह एक मां का टूटा हुआ दिल था।”
समाप्त
रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर दो पर आज भी एक पुरानी बेंच पर एक गुड़िया पड़ी है।
कोई-कोई शाम को एक बच्ची वहां बैठकर पूछती है—”मम्मी, दादी फिर कब आएंगी?”
और जवाब नहीं आता। बस पटरियों पर से गुजरती हवा धीरे से कहती है—”आरु, अब सब ठीक है।”
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जय हिंद, वंदे मातरम।
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