इंसानियत की कीमत: एक कहानी

शुरुआत की रात

रात के 11 बजे थे। शहर की सबसे मशहूर कपूर ज्वेलर्स में अचानक हड़कंप मच गया। “चोर पकड़ो, चोर पकड़ो!” की चीख से पूरी गली गूंज उठी। लोग दौड़ते हुए दुकान की तरफ पहुंचे। दुकान के मालिक राजीव कपूर ने हाथ में लोहे की रॉड पकड़ी हुई थी और उसके सामने खड़ा था एक दुबला-पतला लड़का, जिसकी उम्र मुश्किल से 18-19 साल होगी। उसके कपड़े फटे हुए थे, पैरों में चप्पल तक नहीं थी, शरीर कांप रहा था और आंखों में डर व आंसू थे।

राजीव ने गुस्से में दहाड़ते हुए पूछा, “बोल, कौन भेजा तुझे? किस गैंग का हिस्सा है? सच-सच बोल, वरना हड्डियां तोड़ दूंगा!” लड़का थरथराते हुए बोला, “साहब, मैं किसी गैंग का हिस्सा नहीं हूं। मैंने यह किसी के कहने पर नहीं किया, मैं बस…” लेकिन इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी करता, भीड़ में से किसी ने चिल्लाया, “अरे साहब, ज्यादा बात मत कीजिए। यह तो पेशेवर चोर लगता है। पुलिस को बुलाइए।”

राजीव ने तुरंत अपने कर्मचारी रवि से कहा, “रवि, पुलिस को फोन कर।” रवि घबराकर मोबाइल निकालने लगा। लड़का रोते हुए गिड़गिड़ाया, “साहब, मेरी बात सुन लीजिए, पुलिस मत बुलाइए। मैं कोई चोर नहीं हूं, मजबूरी थी मुझे यह करना पड़ा।”

मजबूरी की सच्चाई

राजीव की आंखों में गुस्से की आग और भड़क गई। “मजबूरी का नाम लेकर लोग चोरी करते हैं! मैं 30 साल से यह दुकान चला रहा हूं, हर दिन कोई न कोई बहाना सुनता हूं। आज तेरी कहानी नहीं चलेगी।” भीड़ से कोई चिल्लाया, “मारो ऐसे चोर को, वरना कल सबके घरों में सेंध लग जाएगी।” लोग शोर मचाने लगे।

राजीव ने गुस्से में लड़के को धक्का दिया। लड़का ठोकर खाकर गिर पड़ा, उसकी जेब से एक मुड़ा हुआ कागज का टुकड़ा बाहर गिरा। राजीव ने झुककर कागज उठाया। उसमें लिखा था, “मां, मैं यह हार तुम्हारे इलाज के लिए ला रहा हूं। मुझे माफ कर देना।”

राजीव का दिल धड़क उठा। उसने कांपते हुए लड़के से पूछा, “यह किसकी मां? कौन है तू?” लड़के की आंखों से आंसू बह निकले। उसने रोते हुए कहा, “साहब, मेरी मां बहुत बीमार है। डॉक्टर ने कहा है कि अगर कल तक ऑपरेशन नहीं हुआ, तो वह जिंदा नहीं बचेंगी। हमारे पास पैसे नहीं हैं। मैंने हर जगह हाथ जोड़े, कर्ज मांगा, पर किसी ने मदद नहीं की। जब मैंने आपकी दुकान के बाहर चमचमाते गहने देखे, तो डर हार गया और मैंने यह कदम उठा लिया। साहब, मैंने कभी चोरी नहीं की। यह मेरी जिंदगी की पहली और आखिरी गलती है। मैं बस अपनी मां को बचाना चाहता था।”

भीड़ कुछ पल के लिए खामोश हो गई। कुछ लोगों की आंखें भी नम हो गईं। लेकिन पीछे से किसी ने ताना मारा, “यह सब झूठ है। चोरों का नया नाटक है, ताकि लोग पिघल जाएं। पुलिस को सौंप दो।”

सच्चाई की गवाही

भीड़ में से एक बुजुर्ग बोले, “बेटा, हो सकता है यह सच बोल रहा हो। किसी की मजबूरी पर हंसना मत।” राजीव के मन में अभी भी शक था। उसने कहा, “सच क्या है, यह मैं खुद पता करूंगा। पुलिस आने तक इसे यहीं बांध कर रखो।” रवि और दो कर्मचारियों ने लड़के के हाथ पीछे बांध दिए। लड़का जमीन पर बैठा रो रहा था। उसकी आंखों में बेबसी थी और राजीव की आंखों में सवाल।

तभी दुकान के पीछे से किसी के कदमों की आहट आई और एक भारी आवाज गूंजी, “राजीव भाई, यह लड़का सच बोल रहा है।” सबकी नजरें उस तरफ मुड़ गईं। वहां खड़ा था सुरेश, राजीव का बचपन का दोस्त और पास की मेडिकल स्टोर का मालिक। सुरेश हांफते हुए बोला, “राजीव, यह वही लड़का है जिसने आज सुबह मेरी दुकान पर आकर अपनी मां की दवाई उधार मांगी थी। उसने कहा था कि उसकी मां की हालत बहुत गंभीर है और ऑपरेशन के लिए पैसे नहीं हैं। मैंने सोचा झूठ बोल रहा होगा, इसलिए मना कर दिया। लेकिन अब यह सब देखकर लगता है, यह सच में मजबूर है।”

राजीव के हाथ ढीले पड़ गए। उसने धीरे से पूछा, “लेकिन यह चोरी करने क्यों आया?” सुरेश ने लंबी सांस लेते हुए कहा, “राजीव, जब इंसान हर दरवाजे पर मदद मांगकर हार जाता है और मां की जान दांव पर होती है, तब वह गलत रास्ते पर भी कदम रख देता है। यह अपराध नहीं, मजबूरी है।”

अस्पताल की ओर

भीड़ में सन्नाटा छा गया। राजीव का दिल पसीज गया। तभी रवि दौड़ता हुआ आया, “साहब, पुलिस रास्ते में है। अब क्या करें?” राजीव कुछ पल सोचता रहा। फिर उसकी नजर लड़के पर पड़ी, जो सुबकते हुए अपनी मां का नाम ले रहा था। राजीव ने गहरी सांस ली और कहा, “पहले यह बताओ, तुम्हारी मां कहां है?”

लड़के ने रोते हुए कहा, “साहब, वह सरकारी अस्पताल के जनरल वार्ड में हैं। उनका नाम राधा देवी है। डॉक्टर ने कहा है कि अगर सुबह तक पैसे नहीं जुटे, तो उन्हें भर्ती नहीं करेंगे।” राजीव ने तुरंत रवि से कहा, “गाड़ी निकालो, अभी अस्पताल चलते हैं।”

रवि ने हैरानी से पूछा, “लेकिन साहब, पुलिस आ रही है। लोग देखेंगे।” राजीव गरजते हुए बोला, “मैं कर रहा हूं, वह सही है। अगर यह लड़का सच बोल रहा है, तो एक जान बचानी होगी और अगर झूठा निकला, तो कानून को सौंप दूंगा।”

अस्पताल में संघर्ष

सब लोग तेजी से गाड़ी में बैठे। लड़का पीछे मुड़कर अपनी मां की तस्वीर को देख रहा था। उसकी आंखों में डर था, लेकिन दिल में उम्मीद की किरण भी चमक रही थी। गाड़ी अस्पताल की ओर बढ़ी। वहां पहुंचते ही एक नर्स भागती हुई आई, “जल्दी आइए, मरीज की हालत बिगड़ रही है।”

लड़का चिल्लाया, “मां!” और दौड़ता हुआ वार्ड की ओर भागा। राजीव और पुलिस उसके पीछे भागे। अंदर एक कमजोर बूढ़ी औरत ऑक्सीजन मास्क लगाए स्ट्रेचर पर पड़ी थी। मशीन की बीप-बीप की आवाज तेज हो रही थी। लड़का अपनी मां के पास गया और उनकी ठंडी होती हथेलियां पकड़कर चिल्लाया, “मां, मैं आ गया हूं। तुम कुछ मत बोलो, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा।”

डॉक्टर ने जल्दी से कहा, “बाहर निकलो, हमें मरीज को स्थिर करना होगा।” इंस्पेक्टर ने लड़के को पकड़कर बाहर ले गया। बाहर आकर लड़का फूट-फूट कर रोने लगा। राजीव ने धीरे से पूछा, “बेटा, सच-सच बता, तुम्हारे पास कितने पैसे थे?”

लड़के ने हिचकियों के बीच कहा, “साहब, घर में एक रुपया भी नहीं था। पापा दो साल पहले गुजर गए। उनकी थोड़ी बहुत बचत मां के इलाज में खत्म हो गई। मैं पिछले हफ्ते से हर दरवाजे पर गया, किसी से मदद मांगी, यहां तक कि मैंने अपना खून बेचने तक का सोचा, लेकिन कोई तैयार नहीं हुआ। आज डॉक्टर ने साफ कह दिया कि अगर सुबह तक 500 नहीं जमा हुए, तो ऑपरेशन नहीं होगा और मां की जान नहीं बच पाएगी।”

इंसानियत की परीक्षा

राजीव की आंखों में आंसू आ गए। लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कहा, “बेटा, तूने गलत किया, पर मैं तेरी मजबूरी समझ सकता हूं।” पुलिस इंस्पेक्टर ने सख्त लहजे में कहा, “राजीव जी, कानून मजबूरी और भावना नहीं देखता। यह चोरी का केस है, हमें इसे गिरफ्तार करना होगा।”

तभी अंदर से डॉक्टर भागता हुआ आया, “जल्दी पैसे का इंतजाम कीजिए, वरना मरीज को बचाना मुश्किल होगा।” लड़का डॉक्टर के पैर पकड़कर रोने लगा, “साहब, प्लीज मेरी मां को बचा लीजिए, मैं कुछ भी करूंगा।” डॉक्टर ने कहा, “हमें पैसों की जरूरत है, नहीं तो हम ऑपरेशन शुरू नहीं कर सकते।”

इंस्पेक्टर ने गंभीर आवाज में कहा, “देखिए, कानून अपनी जगह है, लेकिन एक जिंदगी बचाना सबसे जरूरी है। राजीव जी, आप क्या करेंगे?” राजीव ने बिना एक पल गवाए अपनी जेब से चेक बुक निकाली और चेक फाड़ते हुए कहा, “डॉक्टर, यह लीजिए, 500 तुरंत ऑपरेशन शुरू कीजिए।”

डॉक्टर हैरान रह गया। उसने तुरंत चेक लिया और अंदर भाग गया। लड़का राजीव के पैरों पर गिर पड़ा, “साहब, आप भगवान हैं! आपने मेरी मां की जान बचाई है।” राजीव ने उसे उठाते हुए कहा, “बेटे, यह एहसान नहीं, इंसानियत है। पर याद रख, कभी भी गलत रास्ता मत चुनना।”

साजिश का पर्दाफाश

अचानक अस्पताल में बिजली चली गई। नर्सें घबराने लगीं। डॉक्टर ने बाहर आकर कहा, “जनरेटर चालू करो, वरना ऑपरेशन रुक जाएगा।” रवि और सुरेश जनरेटर रूम की तरफ गए, लेकिन वहां ताला टूटा हुआ मिला। सुरेश चिल्लाया, “कोई इसे जानबूझकर खराब कर गया है!”

इंस्पेक्टर ने तुरंत अपने सिपाहियों को खोजने का आदेश दिया। तभी भीड़ में दो आदमी गायब दिखे। राजीव चिल्लाया, “इन्हीं दोनों का हाथ है। यह लड़के पर झूठा इल्जाम लगाकर हमें भटकाना चाहते थे।” पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया। उनके पास नकली चाबियां और योजना का नक्शा मिला।

इंस्पेक्टर गरजते हुए बोला, “तुम लोग असली चोर हो। इनका असली मकसद अस्पताल में चोरी करना था और यह लड़के को फंसाकर अपनी पहचान छुपाना चाहते थे।” दोनों ने डर के मारे सब सच कबूल कर लिया।

जनरेटर चालू होते ही ऑपरेशन थिएटर में रोशनी आ गई। डॉक्टर ने राहत की सांस ली और ऑपरेशन जारी रखा। दो घंटे तक सब प्रार्थना करते रहे। आखिरकार ऑपरेशन सफल रहा, मरीज खतरे से बाहर थी।

अंतिम मोड़: माफ़ी और बदलाव

राजीव ने लड़के से कहा, “अगर तू तैयार हो, तो मैं तुझे अपने पास रखूंगा, पढ़ाऊंगा-लिखाऊंगा और काम दूंगा ताकि तू कभी गलत रास्ते पर ना जाए।” लड़का अविश्वास से राजीव को देखने लगा। उसकी आंखों से आंसू बह निकले।

इंस्पेक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा, “आज मैंने पहली बार देखा कि कानून और इंसानियत साथ-साथ चल सकते हैं।”

एक हफ्ते बाद कोर्ट में सुनवाई हुई। राजीव को सजा मिली, लेकिन उसने जेल में रहकर गरीबों की मदद के लिए अपना सारा व्यापार दान कर दिया। लड़का मेहनत से पढ़ाई करने लगा और कुछ साल बाद उसने अपनी खुद की ज्वेलरी की दुकान खोली, जहां हर गरीब और मजबूर को मदद मिलती थी। दुकान के बाहर लिखा था, “यहां गहनों से ज्यादा इंसानियत की कीमत है।”

कहानी का सबक

अंत में लड़के ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा, “हालात कभी किसी को मजबूर ना करें। हर चोर अपराधी नहीं होता। कभी-कभी उसके पीछे दर्द और मजबूरी छुपी होती है। इंसानियत का हाथ बढ़ाइए ताकि कोई गलत रास्ते पर ना जाए।”

भीड़ तालियों से गूंज उठी। उसकी मां की आंखों में गर्व के आंसू थे और आसमान में जैसे भगवान ने भी राहत की सांस ली। कहानी यहीं खत्म होती है, लेकिन इसका सबक हमेशा जिंदा रहेगा:
सच देर से सही, पर सामने आता जरूर है और इंसानियत ही सबसे बड़ी ताकत है।