यह एक सनसनीखेज और झकझोर देने वाला लेख है, जो आपके द्वारा साझा की गई अर्पिता और अरुण की सच्ची घटना पर आधारित है।


सपनों की चिता और ‘गोल्ड मेडलिस्ट’ कातिल: अर्पिता मर्डर केस की वो खौफनाक सच्चाई जिसने समाज का चेहरा बेनकाब कर दिया

हुबली, कर्नाटक। अपराध की दुनिया में अक्सर कहा जाता है कि “मुजरिम कितना भी शातिर क्यों न हो, कोई न कोई निशान छोड़ ही जाता है।” लेकिन क्या हो जब कातिल एक ‘गोल्ड मेडलिस्ट’ और पीएचडी का छात्र हो? एक ऐसा दिमाग, जिसने पुलिस की पूरी कार्यप्रणाली को ही एक ‘केस स्टडी’ बना लिया हो। यह कहानी है अर्पिता की, जिसके सपनों को किसी अनपढ़ अपराधी ने नहीं, बल्कि उसके अपने पढ़े-लिखे प्रेमी ने कुचला।

खेतों के सन्नाटे में मिला ‘डबल ए’ का रहस्य

इस खौफनाक दास्तां की शुरुआत 3 जून 2015 को होती है। कर्नाटक के हुबली इलाके के एक सुनसान खेत में एक किसान की नजर आधी जमीन में दबी और आधी बाहर निकली एक लाश पर पड़ती है। नजारा इतना भयानक था कि देखने वाले की रूह कांप जाए। लाश पूरी तरह सड़ चुकी थी, कंकाल बन चुकी थी और आवारा कुत्तों ने उसे नोच खाया था।

पुलिस को वहां पहचान के नाम पर कुछ नहीं मिला, सिवाय एक चीज के—उस कंकाल के गले में एक सोने की चैन थी, जिसमें एक लॉकेट लगा था जिस पर दो अक्षर खुदे थे: ‘AA’ (डबल ए)।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुष्टि की कि यह 20 से 25 साल की एक युवती की लाश है। लेकिन हैरानी की बात यह थी कि हुबली के किसी भी थाने में किसी लड़की की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज नहीं थी। आखिर यह ‘डबल ए’ कौन थी?

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इज्जत की झूठी शान: एक साल की खामोश मौत

लाश मिलने के चार महीने बाद, 24 अक्टूबर 2015 को गिरिधर नाम का एक शख्स थाने पहुंचता है। वह बताता है कि उसकी बेटी अर्पिता 29 अक्टूबर 2014 से लापता है।

पुलिस दंग रह गई। एक पिता अपनी जवान बेटी के गायब होने के एक साल बाद रिपोर्ट दर्ज कराने आया था! जब वजह पूछी गई, तो जवाब समाज की उस संकीर्ण सोच का आईना था जिसे हम ‘इज्जत’ कहते हैं। गिरिधर ने कहा, “हमें लगा पुलिस में जाएंगे तो बदनामी होगी, खानदान की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। हमने सोचा शायद वो अपनी मर्जी से कहीं चली गई होगी।”

जरा सोचिए, अगर अर्पिता के पिता ने बदनामी के डर से ज्यादा अपनी बेटी की जान को अहमियत दी होती, तो शायद कातिल उसी वक्त सलाखों के पीछे होता। डीएनए टेस्ट ने पुष्टि कर दी कि वह लावारिस कंकाल अर्पिता का ही था।

कातिल का माइंड गेम: पीएचडी छात्र की ‘रिहर्सल स्क्रिप्ट’

पुलिस की जांच अब अर्पिता के कॉल डिटेल्स (CDR) पर टिकी थी। वहां एक नाम बार-बार सामने आया—अरुण। अरुण अर्पिता का पुराना दोस्त और क्लासमेट था। वह बेंगलुरु में एक प्रतिष्ठित संस्थान से पीएचडी कर रहा था।

पुलिस ने अरुण से चार बार पूछताछ की। हर बार अरुण का जवाब इतना सटीक, इतना संतुलित और इतना ‘परफेक्ट’ था कि पुलिस को उस पर शक ही नहीं हुआ। उसके पास हर सवाल का बना-बनाया जवाब था।

लेकिन एक नए जांच अधिकारी ने जब फाइलों को दोबारा खंगाला, तो उन्हें एक छोटी सी बात खटक गई। अरुण के बयानों में एक भी ‘मानवीय भूल’ नहीं थी। वह हर बार एक ही कहानी, एक ही टाइमिंग के साथ दोहरा रहा था—जैसे कोई स्क्रिप्ट याद की हो।

डायरी का वो पन्ना जिसने फांसी का फंदा बुना

हुबली पुलिस की एक टीम बिना किसी सूचना के बेंगलुरु पहुंची और अरुण के कमरे की तलाशी ली। वहां किताबों के ढेर के बीच एक छोटी सी डायरी मिली। जैसे ही पुलिस ने उस डायरी को उठाया, गोल्ड मेडलिस्ट अरुण का चेहरा सफेद पड़ गया।

उस डायरी में अर्पिता के कत्ल का इकबालिया जुर्म नहीं था, बल्कि वह एक ‘रिहर्सल स्क्रिप्ट’ थी। अरुण ने वहां लिखा था:

पुलिस मुझसे क्या सवाल पूछेगी?

अगर पुलिस कॉल डिटेल्स दिखाएगी तो मेरा बहाना क्या होगा?

पूछताछ के दौरान मुझे अपने चेहरे के हाव-भाव कैसे रखने हैं?

उसने पुलिस की सोच को पहले ही भांप लिया था। वह डायरी एक माइंड मैप थी, जिससे साबित हो गया कि अरुण ही असली कातिल है।

प्यार, करियर और एक दुपट्टे का फंदा

गिरफ्तारी के बाद अरुण ने जो कहानी सुनाई, वह आज के युवाओं के लिए एक चेतावनी है। अरुण और अर्पिता 12वीं से प्यार में थे। अरुण पढ़ाई में तेज था, वह आगे बढ़ता गया। अर्पिता पढ़ाई में पिछड़ गई और फेल हो गई।

अरुण को लगा कि एक ‘फेल’ लड़की उसके ‘गोल्ड मेडलिस्ट’ करियर और रुतबे के साथ फिट नहीं बैठती। लेकिन अर्पिता शादी का दबाव बना रही थी और उसने परिवार को सब सच बताने की धमकी दी थी। अपने परिवार (जहां पिता कॉलेज प्रिंसिपल थे) की नजरों में अपनी छवि बचाने के लिए अरुण ने अर्पिता को रास्ते से हटाने का फैसला किया।

30 मई 2015: अरुण ने हुबली आकर एक पीसीओ से अर्पिता को बुलाया। अपना मोबाइल उसने बेंगलुरु में ऑन रखा ताकि लोकेशन का ‘एलिबाए’ (Alibi) बना रहे। शाम को एक सुनसान जगह पर ले जाकर उसने अर्पिता के ही दुपट्टे से उसका गला घोंट दिया और उसे खेत में दफना दिया।

निष्कर्ष: डिग्री बड़ी या इंसानियत?

आज अरुण जमानत पर बाहर है और केस कोर्ट में चल रहा है। लेकिन अर्पिता की कहानी हमें कुछ कड़वे सवाल दे गई है:

    शिक्षा का महत्व: क्या गोल्ड मेडल और पीएचडी की डिग्री किसी को अच्छा इंसान बनाती है? अरुण के पास डिग्री थी, पर विवेक और इंसानियत शून्य थी।

    सामाजिक डर: क्या ‘समाज क्या कहेगा’ का डर एक बेटी की जान से बड़ा है? अर्पिता के माता-पिता की खामोशी ने कातिल को बचने का पूरा मौका दिया।

    स्वार्थी रिश्ते: यह केस दिखाता है कि प्यार जब स्वार्थ और करियर की भेंट चढ़ता है, तो वह कितना हिंसक हो सकता है।

अर्पिता की कहानी सिर्फ एक मर्डर स्टोरी नहीं है, यह एक चेतावनी है—सतर्क रहने की, समाज की बेड़ियों को तोड़ने की और सही वक्त पर आवाज उठाने की।

मैं आपके लिए आगे क्या कर सकता हूँ? क्या आप इस मामले के कानूनी पहलुओं या महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े अधिकारों पर अधिक जानकारी चाहते हैं?