तलाकशुदा पत्नी की हालत देख कांप उठा अमीर पति… चौराहे पर जो हुआ वो दिल तोड़ देगा 💔

वापसी की राह : जयपुर की सुनीता और विक्रम की सच्ची दास्तान

भूमिका

नमस्कार दोस्तों! आज मैं आप सबके लिए एक ऐसी सच्ची और दिल को छू लेने वाली कहानी लेकर आया हूं, जिसमें रिश्तों की टूटन, पछतावा, माफी और पुनर्मिलन की अद्भुत मिसाल छिपी है। यह घटना राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर की है, और इसकी शुरुआत होती है 12 नवंबर 2023 की एक सर्द सुबह से। इस कहानी के हर मोड़ पर आपको जिंदगी की नई सच्चाई मिलेगी, इसलिए इसे अंत तक जरूर पढ़ें।

भाग 1 : जयपुर की ठंडी सुबह और एक रईस आदमी

जयपुर, नवंबर की ठंड, सुबह करीब 10 बजे। टोंक रोड पर हमेशा की तरह लंबा जाम था। गाड़ियों के हॉर्न, ऑफिस जाने वालों की जल्दबाजी, और सड़क किनारे चलती अलग ही दुनिया। इसी भीड़ में एक चमचमाती सफेद ऑडी कार फंसी थी। कार में बैठे थे विक्रम सिंह – जयपुर के मशहूर टेक्सटाइल बिजनेसमैन, करीब 35 साल के, स्मार्ट, सुलझे हुए और जमीन से जुड़े इंसान।

विक्रम दिल्ली किसी जरूरी मीटिंग के लिए जा रहे थे, लेकिन जाम ने उन्हें सड़क पर रोक दिया। उन्होंने अपने ड्राइवर सुरेश से कहा, “गाड़ी बंद कर दो, लगता है जाम लंबा चलेगा।” सुरेश ने तुरंत आदेश मान लिया।

विक्रम की नजर फुटपाथ पर बैठी गरीब महिलाओं और उनके बच्चों पर पड़ी। फटे कपड़े, ठिठुरते बच्चे, भूख और बेबसी साफ झलक रही थी। विक्रम का दिल पसीज गया। उन्होंने अपना पर्स निकाला, ₹1500 निकालकर उन महिलाओं को दे दिए – “अम्मा, बच्चों के लिए कुछ गर्म कपड़े और खाना ले लेना।”

महिलाएं दुआएं देने लगीं। विक्रम को लगा कि आज का दिन सफल हो गया। तभी ट्रैफिक पुलिस की सीटी बजी, सिग्नल हरा हुआ, गाड़ियां रेंगने लगीं।

भाग 2 : एक अनजानी आवाज और पहचान का दर्द

गाड़ी आगे बढ़ने ही वाली थी कि एक महिला तेजी से विक्रम की खिड़की के पास आई। उसका चेहरा पुराने दुपट्टे से ढका हुआ था, कपड़े मैले, बाल उलझे, आंखों में दर्द। वह कांच जोर-जोर से खटखटाने लगी – “साहब, आपने सबको दिया, मुझे कुछ नहीं दिया। मेरे बच्चे भी भूखे हैं, कुछ तो दे दो।”

विक्रम को उसकी आवाज जानी-पहचानी लगी। दिल जोर से धड़का। उन्होंने सुरेश से कहा, “एक मिनट रुको।” विक्रम ने महिला की आंखों में देखा – और जैसे ही नजरें मिलीं, वह सुन्न पड़ गया। यह कोई आम भिखारी नहीं थी। विक्रम ने कांपती आवाज में पूछा, “सुनीता, क्या तुम सुनीता हो?”

महिला बुत बन गई। आंखों से आंसू बहने लगे। धीमी आवाज में बोली, “हां, विक्रम, मैं अभागन सुनीता ही हूं।”

विक्रम की पूर्व पत्नी… वही सुनीता, जिससे 5 साल पहले तलाक हुआ था। विक्रम के पैरों तले जमीन खिसक गई।

भाग 3 : सड़क से होटल तक – पुरानी यादें

विक्रम तुरंत गाड़ी से उतर आया। पीछे गाड़ियों का शोर था, लेकिन उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। उसने सुनीता के कंधों को पकड़ा, “सुनीता, तुम्हारी यह हालत कैसे हुई? जब हमारा तलाक हुआ था, कोर्ट ने तुम्हें ₹60 लाख दिए थे। तुम उन पैसों से आराम से रह सकती थी। आज भीख क्यों मांग रही हो?”

सुनीता फूट-फूटकर रोने लगी। विक्रम ने उसे समझाया, “यहां खड़े होकर बात करना ठीक नहीं है। गाड़ी में बैठो, कहीं और चलते हैं।” सुनीता ने मना किया, “मैं इतनी गंदी हूं, तुम्हारी कार में कैसे बैठूं?” लेकिन विक्रम ने उसकी एक न सुनी। सुरेश ने पिछला दरवाजा खोला, विक्रम ने सुनीता को बिठाया।

गाड़ी एक अच्छे होटल के सामने रुकी। गार्ड ने सुनीता को देखकर रोकने की कोशिश की, लेकिन विक्रम ने कहा, “यह मेरी मेहमान है।” प्राइवेट कैबिन में बैठकर विक्रम ने सुनीता को पानी और गरमागरम खाना दिया। सुनीता खाना ऐसे खा रही थी जैसे सदियों से भूखी हो। विक्रम की आंखों में आंसू आ गए।

भाग 4 : सुनीता की आपबीती

खाना खाने के बाद विक्रम ने पूछा, “अब बताओ सुनीता, यह सब कैसे हुआ?”

सुनीता ने अपनी दर्दभरी कहानी सुनाई – “मेरे भाई राजेश और भाभी सीमा बहुत लालची थे। जब उन्हें पता चला कि तुम्हारा कारोबार बड़ा है, वे मुझे तुम्हारे खिलाफ भड़काने लगे। कहते थे, तलाक ले लो, पैसे मिलेंगे, हम शोरूम खोलेंगे। मैं उनकी बातों में आ गई, घर में झगड़े करने लगी, आखिर तलाक हो गया। कोर्ट से मुझे ₹60 लाख मिले, तुमने बिना बहस के चेक दे दिया।”

“भाई-भाभी ने पैसे ले लिए, कहा बैंक में जमा करेंगे। 6 महीने तक रानी की तरह रखा, फिर रंग बदलने लगे। भाई ने जमीन खरीदी, कागजात अपने नाम करवा लिए। शेयर बाजार में पैसा लगाया, कंपनी डूब गई, जमीन पर विवाद हो गया, सब खत्म। जब पैसे खत्म हुए, भाभी ताने मारने लगी। भाई ने शराब पीकर मुझे मारा, घर से निकाल दिया। माता-पिता बूढ़े थे, कुछ नहीं बोले। रात के 12 बजे बारिश में मुझे घर से निकाल दिया।”

“सहेलियों ने मदद नहीं की, पेट भरने के लिए झाड़ू-पोंछा, बर्तन मांजने लगी। बीमार पड़ी, काम छूटा, मकान मालिक ने निकाल दिया। भूख से मरने की नौबत आ गई, मजबूरी में भीख मांगने लगी। पिछले 2 साल से सड़क पर भीख मांगकर गुजारा कर रही हूं। आज किस्मत ने फिर तुम्हारे सामने ला दिया।”

सुनीता ने अपने पल्लू में बंधी शादी की तस्वीर दिखाई – “यही मेरी जीने की वजह है, जब मरने का ख्याल आता, इस तस्वीर को देखती थी। आज भी तुम्हें उतना ही प्यार करती हूं।”

भाग 5 : विक्रम का फैसला और मां का धर्मसंकट

विक्रम ने सुनीता के आंसू पोंछे, “बहुत हो गया सुनीता, अब तुम्हें और दुख नहीं सहना पड़ेगा।”

ड्राइवर सुरेश को पैसे देकर कहा, “शोरूम से मैडम के लिए साड़ियां, चप्पल और जरूरी सामान ले आओ।” सुरेश सब सामान लेकर आया। होटल स्टाफ से कहकर सुनीता के लिए एक कमरा खुलवाया, ताकि वह नहा धोकर कपड़े बदल सके।

एक घंटे बाद सुनीता नई साड़ी में बाहर आई। गरीबी और बीमारी ने उसे तोड़ दिया था, लेकिन आंखों में मासूमियत थी। अब विक्रम धर्मसंकट में था – सुनीता को कहां ले जाए? समाज क्या कहेगा? मां क्या कहेंगी?

विक्रम ने मां गायत्री देवी को फोन किया, सब सच-सच बता दिया। मां ने पूछा, “क्या वह सच बोल रही है?” विक्रम ने कहा, “हां मां, उसकी हालत झूठ नहीं बोल सकती।”

मां ने जवाब दिया, “इंसान गलतियों का पुतला है। अगर सुबह का भूला शाम को लौट आए और उसे अपनी गलती का एहसास हो तो उसे भूला नहीं कहते। उसने अपने कर्मों की सजा भोग ली है, अब उसे और सजा देना ठीक नहीं। वह हमारी बहू थी, अगर तुम माफ कर सकते हो तो घर ले आओ। मैं उसका इंतजार कर रही हूं।”

भाग 6 : घर वापसी और नया जीवन

विक्रम ने सुनीता को कहा, “चलो घर चलते हैं, मां बुला रही हैं।” सुनीता को विश्वास नहीं हुआ, “क्या मांजी ने माफ कर दिया?” विक्रम ने मुस्कुराकर कहा, “हां, उन्होंने तुम्हें माफ कर दिया है।”

कार सिविल लाइंस स्थित बंगले के गेट पर पहुंची। मां दरवाजे पर आरती की थाली लेकर खड़ी थीं। सुनीता दौड़कर मां के पैरों में गिर पड़ी – “मां, मुझे माफ कर दो, मैं आपकी गुनहगार हूं।” मां ने आरती की थाली एक तरफ रखी, सुनीता को गले लगाया – “बेटी, रो मत। जो बीत गया वह सपना था। भगवान ने तुम्हें नई जिंदगी दी है, अब इसे आंसुओं में मत बहाओ। तू मेरे घर की लक्ष्मी थी और हमेशा रहेगी।”

घर में उत्सव सा माहौल था। नौकर-चाकर भी खुश थे। विक्रम ने सुनीता को उसका पुराना कमरा वापस दिया। धीरे-धीरे विक्रम के प्यार और मां की ममता ने सुनीता के घाव भर दिए। विक्रम ने सुनीता का इलाज करवाया, कुछ महीनों में वह फिर से स्वस्थ हो गई, लेकिन अब वह बदल चुकी थी – घमंड नहीं था, अब वह विनम्र थी।

भाग 7 : सेवा और नई शुरुआत

अब विक्रम और सुनीता मिलकर गरीब बच्चों के लिए संस्था चलाते हैं। सुनीता हर शनिवार उसी चौराहे पर जाती है, जहां कभी भीख मांगती थी, और गरीबों को खाना-कपड़े बांटती है। उसे उनका दर्द पता है।

12 नवंबर 2023 की वह सुबह इन दोनों की जिंदगी बदल गई।

सीख और संदेश

यह सच्ची घटना हमें बहुत कुछ सिखाती है –

    लालच बुरी बला है। सुनीता के भाई-भाभी के लालच ने उसका घर तोड़ा, खुद को भी बर्बाद किया।
    बहकावे में आकर रिश्ते मत तोड़ो। जो लोग तुम्हारे भले का दावा करते हैं, उनकी नीयत परखो।
    माफी से बड़ा कोई धर्म नहीं। विक्रम और उसकी मां ने इंसानियत की मिसाल दी। अगर विक्रम चाहता तो सुनीता को छोड़ सकता था, लेकिन उसने गिरते इंसान को उठाया।

समापन

दोस्तों, यह कहानी आपको कैसी लगी? क्या विक्रम ने सही किया? आप होते तो क्या करते? अपने विचार जरूर बताएं। और यह कहानी आप देश के किस शहर या गांव से पढ़ रहे हैं, यह भी लिखें।

ऐसी ही सच्ची और प्रेरणादायक कहानियों के लिए जुड़े रहें।
अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें।
धन्यवाद।
जय हिंद।