आशा सक्सेना की कहानी – एक पत्नी, एक रहस्य, और एक खतरनाक सच
जयपुर के मालवीय नगर में रहने वाली आशा सक्सेना की ज़िंदगी बाहर से देखने में बिल्कुल सुखी लगती थी, लेकिन अंदर ही अंदर वह एक अजीब सी बेचैनी महसूस कर रही थी। पिछले कुछ महीनों से उसके पति देवांश का व्यवहार पूरी तरह बदल गया था। पहले जो आदमी घर आकर सबसे पहले उससे बातें करता था, अब सीधा बाथरूम चला जाता था, खाना खाकर चुपचाप बिस्तर पर लेट जाता था। बात करने की कोशिश करती तो बहाना बना देता—”ऑफिस का काम बहुत है, बहुत थक गया हूँ।”
आशा को लगने लगा था कि कुछ तो गलत है, लेकिन समझ नहीं पा रही थी कि आखिर क्या? शादी के 10 साल बाद अचानक ये बदलाव क्यों आया था?
देवांश एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, बड़ी कंपनी में काम करता था। पहले अपने काम के बारे में आशा को सब कुछ बताता था, अब चुप रहने लगा था। रात को उसका फोन हमेशा साइलेंट मोड में रहता था, और कभी-कभी देर रात बालकनी में जाकर किसी से धीमी आवाज़ में बात करता था। एक रात आशा ने देखा कि देवांश दो बजे चुपके से घर से निकल गया और सुबह पाँच बजे लौटा। जब आशा ने पूछा, तो उसने कहा—”ऑफिस में इमरजेंसी थी।” लेकिन देवांश के कपड़ों से अजीब सी खुशबू आ रही थी, जूतों में मिट्टी लगी थी। जबकि ऑफिस तो क्लीन बिल्डिंग में था।
आशा का शक बढ़ता गया। देवांश के पास एक नया फोन भी था, जिसे वह हमेशा छुपाकर रखता था। आशा ने सोचा—”शायद देवांश का कोई अफेयर हो?” लेकिन फिर अपने मन को समझाया—”नहीं, देवांश ऐसा नहीं कर सकता।”
दिन बीतते गए, आशा की परेशानी बढ़ती गई। देवांश अब घर में चुपचाप रहने लगा था, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करता था। एक दिन आशा ने देखा कि देवांश कमरे में कुछ कागजात जला रहा था। पूछने पर देवांश गुस्से से बोला—”यह ऑफिस के पुराने डॉक्यूमेंट्स हैं, जिनकी जरूरत नहीं है।”
अब आशा को पक्का यकीन हो गया कि देवांश कुछ बड़ा छुपा रहा है।
एक दिन जब देवांश ऑफिस गया, आशा ने उसके कमरे की तलाशी लेने की ठान ली। अलमारी, डेस्क, फाइलें—सब देख डालीं, लेकिन कुछ खास नहीं मिला। फिर उसकी नजर देवांश के जूतों पर पड़ी। जब पहला जूता उठाया, तो उसमें से कुछ कागजात और एक छोटा सा प्लास्टिक पैकेट गिरा। आशा की सांसें थम गईं। पैकेट खोलने पर उसमें एक लड़की की तस्वीर और एक चिट्ठी मिली—
“मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, देवांश। हम दोनों का भविष्य साथ है। मैं आशा से तलाक लेने का इंतजार कर रही हूँ, जैसा तुमने वादा किया था। लव यू फॉरएवर—तुम्हारी मीरा।”
आशा का दिल जोर से धड़कने लगा। लेकिन यह तो सिर्फ शुरुआत थी। दूसरे जूते में एक छोटी डायरी थी, जिसके कवर पर खून के धब्बे लगे थे। पहले पेज पर लिखा था—”मेरे शिकार की सूची।”
हर पन्ने पर लड़कियों के नाम, तारीखें और आगे लिखा था—”काम पूरा।”
आशा के हाथ कांपने लगे। आखिरी पेज पर उसका अपना नाम लिखा था—”आशा सक्सेना – फाइनल टारगेट – 31 अक्टूबर 2023।”
आज की तारीख थी 29 अक्टूबर। मतलब सिर्फ दो दिन बाकी थे।
आशा को समझ आ गया कि मीरा वही लड़की है जिसकी फोटो और खत मिला था। डायरी में हर लड़की के बारे में पूरी जानकारी थी—एड्रेस, दिनचर्या, कमजोरियां, दोस्ती करने का तरीका और फंसाने का प्लान।
आशा को लगा जैसे उसकी रूह निकल गई हो। क्या देवांश वाकई सीरियल किलर है? क्या वह अब उसकी बारी है?
कांपते हाथों से डायरी वापस जूते में छुपा दी। पानी पीने गई, लेकिन हाथ इतने कांप रहे थे कि गिलास पकड़ना मुश्किल हो गया। सोचने लगी—पुलिस को फोन करे या कहीं भाग जाए? फिर सोचा—अगर यह सब सच है तो देवांश उसे जाने नहीं देगा, और अगर झूठ है तो शादी बर्बाद हो जाएगी।
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