ईमानदार डीसीपी साहब और रंजना की कहानी

लखनऊ के एक शॉपिंग मॉल की पार्किंग में गरीब घर की लड़की रंजना ईमानदारी से काम करती थी। उसके पिता और भाई स्टेशन पर फल का ठेला लगाते थे। एक दिन, एक नेता के बेटे ने पार्किंग में अपनी गाड़ी गलत तरीके से लगा दी। रंजना ने विरोध किया तो उसने अपने पुलिस वाले दोस्त दरोगा को बुला लिया। दरोगा ने बिना किसी जांच के रंजना को चोरी के झूठे आरोप में गिरफ्तार कर लिया और थाने में बंद कर दिया।

रंजना के पिता और भाई बहुत परेशान हुए। वकीलों से मदद मांगी, लेकिन कोई नेता के बेटे के खिलाफ केस लेने को तैयार नहीं था। तभी राहुल को डीसीपी साहब का नंबर याद आया, जो उन्होंने सोशल मीडिया पर जनता के लिए शेयर किया था। राहुल ने साहस करके डीसीपी साहब को फोन किया और रोते हुए अपनी बहन की पूरी कहानी बताई।

डीसीपी साहब ने तुरंत मदद का भरोसा दिया। वे साधारण कपड़ों में, लुंगी बांधकर और चेहरे पर मास्क लगाकर थाने पहुंचे। वहाँ उन्होंने रंजना के पिता और भाई से पूरी बात सुनी, फिर थाने के अंदर गए। दरोगा ने डीसीपी साहब को पहचान नहीं पाया और उनसे बदसलूकी करने लगा। लेकिन डीसीपी साहब ने अपना आईडी कार्ड दिखाया, जिससे दरोगा के होश उड़ गए।

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डीसीपी साहब ने अपनी टीम को बुलाया, दरोगा से पूछताछ की और पाया कि रंजना के खिलाफ कोई लिखित शिकायत नहीं थी। उन्होंने तुरंत रंजना को रिहा करवाया और दरोगा को सस्पेंड कर दिया। डीसीपी साहब ने रंजना के परिवार को समझाया कि मंत्री के बेटे के खिलाफ मानहानि का केस दर्ज करें और भरोसा दिलाया कि वे उनके साथ हैं।

कोर्ट में मामला गया और मंत्री के बेटे को सजा मिली। रंजना फिर से मॉल में काम करने लगी और उसका परिवार खुशहाल हो गया। डीसीपी साहब की ईमानदारी और बहादुरी ने पूरे शहर में मिसाल कायम कर दी।