एक सच्ची कहानी: रोटी की तलाश में अनाया
सड़क के किनारे, धूल और कूड़े के ढेर में एक नन्ही बच्ची अपने नाजुक हाथों से सूखी रोटी ढूंढ रही थी। उसकी आंखों में भूख का अंधेरा था, मगर चेहरा मासूमियत से भरा हुआ। राहगीर उसे देखकर या तो नजरें फेर लेते या अफसोस जताकर आगे बढ़ जाते। कोई ₹5 थमा जाता, कोई कैमरा निकालकर तस्वीर खींच लेता, लेकिन रोटी कोई नहीं लाता। लड़की ने पैसे उठाए भी नहीं, क्योंकि वह भूख से लड़ रही थी, भीख से नहीं।
एक दिन, एक कॉलेज का स्टूडेंट उसकी तस्वीर खींचकर सोशल मीडिया पर डाल देता है। पोस्ट वायरल हो जाती है और शहर के सबसे बड़े आदमी के पास पहुंच जाती है। वह तस्वीर देखकर हैरान रह जाता है, उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं। क्योंकि वह बच्ची कोई और नहीं, उसी बिजनेसमैन की अपनी सगी बेटी होती है। पर कैसे? अगर वह उसकी बेटी थी, तो सड़क पर कूड़े से रोटी क्यों उठाकर खा रही थी?
इसी सवाल की सच्चाई जानकर आप भी रो पड़ेंगे। यह कहानी अलीगढ़ की सच्ची घटना पर आधारित है।
दोपहर का समय था। सूरज सिर पर जल रहा था। सड़क पर गाड़ियों की रफ्तार तेज थी, रास्ता भीड़भाड़ से भरा था। इसी शोरगुल के बीच, एक कोने में कचरे के डिब्बे के पास एक छोटी सी बच्ची बिल्कुल खामोश खड़ी थी। एक हाथ से कूड़े में पड़ी सड़ी-गली पत्तियों को अलग करती, दूसरे हाथ से पॉलिथीन में लिपटे टुकड़े निकालकर देखती—क्या कोई रोटी का टुकड़ा मिलेगा? लोग गुजरते, देखते और आंखें फेरकर आगे बढ़ जाते। उसकी उम्र मुश्किल से सात-आठ साल रही होगी। मैले कपड़े, उलझे बाल, चेहरे पर राख और धूल की परत, मगर आंखों में मासूम चमक। वह बार-बार कूड़े के ढेर को खंगालती रही। हर बार कोई सूखी पत्तियां, गली-सड़ी सब्जियां या टूटे कांच के टुकड़े मिल जाते। चोट लगती तो हाथ खींचकर आंसू पोंछ लेती। उसकी नजर बस एक चीज को ढूंढ रही थी—रोटी।
पास खड़े एक ऑटो वाले ने सोचा, यह बच्ची चोरी करने आई है। उसने डांटकर कहा, “अरे जा यहां से! कूड़े में क्या ताक-झांक करती है?” लड़की घबरा कर वहीं बैठ गई, मगर उसकी आंखें फिर भी उसी ढेर पर जमी रही। कुछ पल बाद उसने धीरे से कहा, “मैं चोरी नहीं करती, मुझे बस रोटी चाहिए।” उसकी धीमी आवाज इतनी मासूम थी कि सुनने वाले चुप हो गए।
पास खड़े कॉलेज के कुछ लड़के-लड़कियां हंसी-मजाक करते हुए उसी रास्ते से गुजरे। उनमें से एक लड़की ने उसका फोटो लिया और बोली, “सो सैड, इंस्टा पर डालूंगी, लोग इमोशनल हो जाएंगे।” साथ खड़ा लड़का हंसते हुए बोला, “हजार लाइक्स तो पक्के!” फिर सब हंसते हुए चल दिए। बच्ची उनकी कैमरे की क्लिक और हंसी को अनजान सी देखती रह गई। उसे समझ ही नहीं आया, उस फोटो से उसे रोटी मिलेगी या सिर्फ लोगों का तमाशा।
वह फिर उसी ढेर में हाथ डालकर खोजने लगी। इस बार पॉलिथीन का एक पुराना टुकड़ा निकाल लाई। उसमें आधा सूखा, बासी लेकिन खाने लायक टुकड़ा था। उसने झट से उठाया और ऐसे देखा जैसे कोई खजाना मिल गया हो। रोटी का वो टुकड़ा उसके लिए दुनिया का सबसे बड़ा तोहफा था। लेकिन उसी क्षण वहां खड़ा बुजुर्ग व्यक्ति, जो अब तक चुपचाप देख रहा था, आगे बढ़ा। उसके चेहरे पर करुणा थी। वह झुककर बोला, “बिटिया, भूखी हो?” लड़की ने सिर हिलाया और मासूमियत से कहा, “हां, बहुत भूखी हूं। पर रोटी मिल गई है।” उसने पॉलिथीन का टुकड़ा ऊंचा उठाकर मुस्कान दी। बुजुर्ग की आंखें भर आईं। उसने जेब से पैसे निकाले और लड़की की ओर बढ़ाया, “ले, इससे गर्म रोटी खा ले, किसी ढाबे से।” लड़की ने पैसे की ओर देखा, फिर सिर झुका लिया। धीरे से बोली, “मुझे पैसे नहीं चाहिए, मुझे तो बस रोटी चाहिए।”
उस मासूम जवाब ने जैसे बुजुर्ग के दिल में चोट कर दी। उसने सोचा, इस छोटी बच्ची की आत्मा कितनी बड़ी है। दूसरों के बच्चे खिलौनों, मिठाइयों में उलझे हैं और यह बच्ची सिर्फ रोटी चाहती है। उसने पूछा, “बिटिया, घर कहां है? मां-बाप कहां हैं?” लड़की ने चुपचाप आसमान की ओर देखा। होंठ कांपे, मगर आवाज नहीं निकली। फिर उसने बांसी रोटी का टुकड़ा मुंह में रखते हुए कहा, “मां अब आसमान में रहती है, पापा बहुत दूर।” बुजुर्ग अवाक रह गया। उसकी आत्मा कांप गई। बच्ची के लफ्ज़ जैसे किसी गूढ़ रहस्य का दरवाजा खोल रहे थे।
रात ढल चुकी थी। वही बुजुर्ग व्यक्ति बच्ची को सड़क पर ही बैठे देख रहा था। उसके मन में कई सवाल थे—कौन है यह बच्ची? कहां से आई है? क्यों अकेली है? उसने लड़की से धीरे-धीरे दोस्ती करने का प्रयास किया, “बिटिया, नाम क्या है तेरा?” लड़की ने सूखे होठों से मुस्कुराने की कोशिश की और बोली, “अनाया।” बुजुर्ग चौक गया। यह नाम उसने कहीं सुना था, बड़े लोगों के बीच। मगर उसने दिमाग से वह बात झटक दी। उसे ज्यादा जरूरी लगा, लड़की का दर्द समझना।
अनाया कुछ पल चुप रही। फिर खुद ही धीरे-धीरे बोलने लगी, जैसे कोई दबा हुआ दर्द बाहर आ रहा हो—”पहले मैं बहुत बड़े घर में रहती थी। वहां बड़ी-बड़ी खिड़कियां थीं, ऊपर तक चढ़ता हुआ शीशा। हर कमरे में रोशनी। मम्मी मुझे हर रात कहानी सुनाती थी। मम्मी की गोद में बैठकर मैं सो जाती थी।” उसकी मासूम आवाज थरथरा गई। आंखें झपकने लगीं। जैसे कोई टूटा हुआ सपना फिर से जी रही हो।
लेकिन एक दिन मम्मी बीमार हो गईं। उनके पेट में दर्द रहता था। दवाइयां आती थीं, डॉक्टर भी, लेकिन मम्मी बस कमजोर होती गईं। और फिर एक सुबह वह उठीं ही नहीं। “मुझे लगा उन्होंने मुझसे बात करना क्यों छोड़ दिया, लेकिन सब कहते थे मम्मी अब आसमान में चली गई हैं। मैंने कई दिन आसमान में ढूंढा, पर मम्मी कहीं नहीं मिली।”
अनाया की आंखों से आंसू बहने लगे। अब तक बांधा हुआ दुख बाहर आ रहा था। “मम्मी के जाने के बाद पापा बहुत बदल गए। पहले वह मुझे घुमाने ले जाते थे, मेरी ड्राइंग देखकर हंसते थे। लेकिन धीरे-धीरे वह घर आना ही बंद हो गए। जब आते भी थे, तो मुझे देखना जैसे भूल जाते थे। मुझे लगा शायद पापा मुझसे प्यार ही नहीं करते।”
बुजुर्ग की आंखें भर आईं। उसे समझ आ गया था कि यह बच्ची सिर्फ भूखी नहीं, अकेली भी है। “घर बहुत बड़ा था, लेकिन मैं उसमें अकेली थी। कमरे गूंजते रहते थे। मम्मी की तस्वीर लगी थी, मैं उससे बातें करती थी। लेकिन पापा कभी उस तस्वीर के पास नहीं आते थे। एक दिन मैंने उनसे पूछा, ‘पापा, आप मम्मी को याद नहीं करते?’ उन्होंने गुस्से में कहा, ‘अब इन बातों में मत उलझो,’ और चले गए।”
अनाया ने गहरी सांस ली। “उस दिन मैंने पहली बार समझा कि बड़ा घर और ढेर सारे कमरे भी किसी को अकेलेपन से नहीं बचाते।” कुछ हफ्तों बाद, एक रात अनाया कमरे से बाहर निकल गई। उसे लगा शायद पापा को ढूंढ लूं। वह घर से निकल पड़ी और गलियों में भटकने लगी। “मैं सोच रही थी, पापा मिल जाएंगे। लेकिन रात गहरी होती गई। गाड़ियां भागती रहीं, रोशनी झिलमिलाती रही, मैं रोती रही और फिर मुझे नींद आ गई। जब जगी तो खुद को एक अजनबी जगह पर पाया। उसके बाद से ही मैं सड़कों पर हूं। कभी-कभी कोई खाना दे देता है, कभी पैकेट मिल जाता है। मैंने पापा को ढूंढने की बहुत कोशिश की, लेकिन शायद पापा अब मुझे ढूंढना ही नहीं चाहते।”
बुजुर्ग चुपचाप सुन रहा था। लेकिन जैसे ही उसने बच्ची का नाम और घर का जिक्र सुना, उसके माथे पर पसीना आ गया। “अनाया…” उसने खुद से बुदबुदाया। फिर याद आया, कुछ महीनों पहले अखबारों में खबर आई थी कि बिजनेस टाइकून विशाल कपूर की बेटी रहस्यमयी तरीके से गुम हो गई है। कई दिनों तक हल्ला हुआ, मीडिया ने खूब शोर मचाया, मगर बाद में सब दब गया। बुजुर्ग के पैरों तले जमीन खिसक गई। क्या यह वही बच्ची है? वही अरबपति की बेटी, जिसे खोकर पिता ने तकदीर मान लिया था।
रात और गहरी हो चुकी थी। अनाया वहीं फुटपाथ पर सो गई। मगर बुजुर्ग ने मन में ठान लिया, यह बच्ची अब अकेली नहीं रहेगी। वह जानता था कि यह कहानी बहुत बड़ी है और शायद अब समय आ गया है कि इस शहर की चमक-दमक के पीछे छिपा सच्चा दर्द सामने आए। इस छोटी सी मासूम बच्ची ने उसे सिखा दिया था कि दौलत, शोहरत और साम्राज्य सब झूठ है। असली दौलत तो एक रोटी और एक अपने के साथ में छिपी है।
अगली सुबह की हल्की रोशनी सड़कों पर उतर चुकी थी। अखबार विक्रेता ऊंची आवाज में पुकार रहे थे। दूध वाले गलियों में साइकिल घुमाते जा रहे थे। लेकिन इस शोर के बीच सड़क किनारे वही नन्ही सी बच्ची अब भी अधखाई रोटी को थामे सोई पड़ी थी। पसीने से भीगे चेहरे पर रात की थकान साफ छलक रही थी। आम लोग उसके पास से यूं गुजर रहे थे, मानो वह शहर की भीड़ का हिस्सा होकर भी अदृश्य हो।
इसी बीच, कॉलेज स्टूडेंट जिसने पिछली रात अनाया की तस्वीर खींची थी, उसने सुबह Instagram पर पोस्ट किया। तस्वीर के नीचे लिखा था—”सोचिए आपकी जिंदगी में सब कुछ है, लेकिन किसी मासूम की जिंदगी बस रोटी पाने में बीत रही है।” यह तस्वीर वायरल होने लगी। लोगों के कमेंट्स उमड़ पड़े—”दिल दहला देने वाली तस्वीर है। काश कोई इस बच्ची की मदद करे।” कई बड़े पेजों ने भी वह तस्वीर शेयर कर दी। Twitter, Facebook और अखबारों तक उसकी तस्वीर पहुंच गई। शहर भर में अचानक यह मासूम बच्ची चर्चा का मुद्दा बन गई।
शहर के सबसे बड़े बिजनेसमैन विशाल कपूर अपने आलीशान ऑफिस की 40वीं मंजिल पर बैठा था। कमरे में शीशे की दीवार से पूरा शहर दिखाई देता था। उसके सामने अरबों का प्रोजेक्ट रखी फाइलों में बंधा हुआ था। सूट-बूट, चमकता चेहरा, चार्टर्ड अकाउंटेंट्स और मैनेजर्स से घिरे विशाल कपूर को देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था कि यह वही इंसान है, जो कभी हंसती-खेलती छोटी बच्ची के साथ ड्राइंग करता, कहानियां सुनाता और खिलखिलाता था। सालों की बिजनेस की चमक ने उसकी आंखों से रिश्तों की नमी छीन ली थी।
उसी दिन उसकी कंपनी की मीटिंग चल रही थी। एक जूनियर ऑफिसर अचानक मोबाइल में स्क्रॉल करते-करते ठिठक गया। उसकी स्क्रीन पर अनाया की तस्वीर थी। उसे लगा शायद यह बच्ची कहीं देखी हुई है। चेहरे पर थोड़ी सी समानता नजर आई। वह मन ही मन सोचने लगा, क्या यह…? लेकिन डर के मारे कुछ बोल ना सका।
शाम को जब विशाल कपूर घर पहुंचा, तब उसका पीआर मैनेजर उसके सामने आया। उसने सावधानी से कहा, “सर, एक तस्वीर पूरे शहर में वायरल हो रही है। लोग आपकी कंपनी और शहर के अमीर लोगों को टारगेट कर रहे हैं कि गरीब बच्चों की हालत पर ध्यान नहीं दिया जाता।” पीआर मैनेजर ने टेबलेट स्क्रीन आगे कर दी। विशाल कपूर ने जब नजर डाली, तो उसका दिल धक-धक करने लगा। उस मासूम चेहरे, वो बड़ी आंखें, वो रोटी का टुकड़ा थामे हाथ—सब कुछ उसे उसकी खोई हुई बेटी की याद दिलाने लगे। वो हिल गया। चेहरा पीला पड़ गया, हाथ कांपने लगे। उसने धीरे से फुसफुसाया, “यह… यह अनाया जैसी क्यों दिख रही है?”
कई साल पहले जब अनाया गुम हुई थी, उसने खामोशी ओढ़ ली थी। मीडिया के हंगामे को उसने पैसे और पावर से दबा दिया था। मगर अंदर से वह हर दिन टूट रहा था। उसका मानना था कि बच्ची शायद कभी लौटकर नहीं आएगी और यह दर्द हमेशा दबाकर रखना ही बेहतर होगा। लेकिन इस तस्वीर ने उन दबे हुए जख्मों को फिर से हरा कर दिया।
उस रात विशाल कपूर अपने आलीशान बेडरूम में अकेला बैठा रहा। उसने व्हिस्की के गिलास को बार-बार हाथ लगाया, मगर पी नहीं पाया। उसकी आंखों में वही तस्वीर घूम रही थी। “क्या सचमुच यह मेरी अनाया है? अगर वो है, तो वह सड़कों पर भूखी रोटी ढूंढ रही है और मैं यहां करोड़ों पर साइन कर रहा हूं।” उसका दिल जैसे हजारों टुकड़ों में बिखर गया। कई साल बाद उसकी आंखें भर आईं।
सुबह होते ही उसने अपने सिक्योरिटी हेड से कहा, “पूरा शहर खंगाल डालो। इस बच्ची को मुझे खोज कर लाओ। चाहे जैसे भी करो, हर हाल में।” उसकी आवाज गुस्से से नहीं, टूट से भरी हुई थी। यह एक पिता की पुकार थी, जो हर हाल में अपनी खोई हुई बेटी को पाना चाहता था।
सुबह की पहली किरणें ऑफिस की ऊंची इमारतों पर पड़ रही थीं। शहर अपनी रफ्तार पकड़ रहा था। पर इस सुबह में एक आदमी की बेचैनी बाकी सब पर भारी थी। विशाल कपूर ने रात को एक पल भी चैन की नींद नहीं ली। उसकी आंखें लाल थीं, चेहरे पर थकान लेकिन निगाहों में दृढ़ता। उसके सामने खड़ा था सिक्योरिटी हेड राघव।
“सर, आपकी बात सुनते ही हमने पूरी टीम भेज दी है। हर अखाड़ा, हर गली, हर फुटपाथ देखा जाएगा। शहर भर में यह बच्ची कहीं भी छिपी नहीं रह सकती।” विशाल कपूर ने कांपती आवाज में कहा, “मुझे इतने सालों से जो सन्नाटा मिला है, वह अब खत्म होना चाहिए। मुझे मेरी बिटिया चाहिए। बस।”
राघव की टीम में दर्जनों लोग निकल पड़े। कुछ रेलवे स्टेशन के पास फुटपाथों पर खोज करने लगे। कुछ मंदिरों, दरगाहों के बाहर बैठे भिखारियों की कतारों में ढूंढ रहे थे। कुछ बस अड्डों, हॉस्पिटल्स और झुग्गी बस्तियों में चक्कर लगा रहे थे। हर जगह पूछते, “क्या यहां सात-आठ साल की लड़की दिखी है? नाम है अनाया।” लोग चौंक जाते। कोई कहता, “भाई ऐसी तो बहुत सी बच्चियां हैं।” कोई सिर हिलाकर कह देता, “हां, कल देखी थी कूड़े में टुकड़े तलाशते।”
उधर वही मासूम अनाया, जिसे पूरी दुनिया अब खोज रही थी, सुबह उठी तो उसने देखा, उसके पास वही बुजुर्ग बैठे हैं। उन्होंने रात में उसे पानी और एक केला दिया था। “बिटिया, आज कहां जाएगी?” उसने भोलेपन से कहा, “पता नहीं, शायद मंदिर के बाहर बैठ जाऊं। कभी-कभी वहां रोटी बांटते हैं।” उसकी सरलता ही उसकी सबसे बड़ी ताकत और सबसे बड़ी कमजोरी थी।
इसी बीच, मीडिया ने भी खबर उठा ली। चैनल्स पर हेडलाइन चल रही थी—अरबपति विशाल कपूर की गुमशुदा बेटी मिलने की खबर। “कूड़े में रोटी ढूंढती बच्ची, क्या यह वही अनाया है?” रिपोर्टर जगह-जगह माइक लेकर घूम रहे थे। कैमरे हर कोने में उस बच्ची को खोज रहे थे। शहर का हर आदमी अचानक इस तलाश का हिस्सा बन गया। किसी को बच्ची की मासूमियत ने छू लिया था, तो किसी को यह खबर सनसनी लग रही थी।
विशाल कपूर अपने ऑफिस में बार-बार टीवी स्क्रीन देख रहा था। हर तस्वीर, हर चेहरा उसे अपनी अनाया की झलक दिखा रहा था। लेकिन वह अब तक यकीन से नहीं कह पा रहा था, क्या यह सचमुच वहीं है? उसका सीना मानो भारी पत्थरों से दब गया था। वह बुदबुदाया, “अनाया, मैं पापा हूं। जहां भी हो, मुझे माफ कर देना।” वह शब्द सिर्फ कमरे की चार दीवारी ने सुने।
शाम ढलते-ढलते, राघव की टीम को एक खबर मिली। किसी ने बताया कि गणपति मंदिर के बाहर एक छोटी बच्ची हर दिन आती है और प्रसाद में मिली रोटियां खाकर लौट जाती है। राघव ने तुरंत सूचना विशाल कपूर को दी। विशाल की धड़कन तेज हो गई। उसने आदेश दिया, “कार निकालो, मैं खुद वहां जाऊंगा।”
मंदिर के बाहर भीड़ थी। भक्त चढ़ावा चढ़ा रहे थे। पुजारी मंत्र पढ़ रहा था और वहीं सीढ़ियों पर सबके बीच बैठी थी एक छोटी बच्ची—फटी फ्रॉक में, लेकिन चेहरे की मासूम रोशनी लिए हुए। उसके पास प्रसाद की एक सूखी रोटी रखी थी। वह कौर तोड़कर बड़े चाव से खाने लगी।
उसी क्षण मंदिर के बाहर गाड़ियों का काफिला रुका। काले सूट पहने सिक्योरिटी गार्ड उतरे। कैमरे क्लिक करने लगे और फिर कार से उतरे विशाल कपूर—चेहरे पर जुड़ी बेचैनी और आंखों में बरसते आंसू। उन्होंने दूर से ही उस बच्ची को देखा। उनकी सांसे थम गईं। वह कांप गए। “अनाया…” उनके होठों पर यह शब्द निकल ही गया।
मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी अनाया अपने छोटे हाथों से प्रसाद की रोटी तोड़कर खा रही थी। चेहरे पर संतोष, जैसे उसने कोई बड़ा उपहार पा लिया हो। भीड़ का शोर, लोगों की आवाजें—सब उसके लिए जैसे दूसरी दुनिया थी। उसी पल धीरे-धीरे कदमों की आहट उसकी ओर बढ़ी। आंसू भरी आंखों वाला एक आदमी, जिसकी काया मजबूत थी मगर दिल टूटा हुआ, भीड़ को चीरता हुआ उसकी ओर आ रहा था। वह था विशाल कपूर। उसकी आवाज कांप गई, “अनाया…”
छोटी सी बच्ची ने चौंक कर ऊपर देखा। उसने सामने खड़े उस अनजान मगर अजीब सा परिचित चेहरे को गौर से देखा। उस पल वह उसे पहचान नहीं पाई। “कौन? आप मुझे कैसे जानते हैं?” उसने मासूमियत से पूछा।
विशाल का गला रंध गया। “मैं… मैं पापा हूं तुम्हारा। मैं ही हूं तुम्हारा पापा।” मंदिर के बाहर खड़े लोगों में सनसनी मच गई। कैमरे चमकने लगे। मीडिया वाले चीखने लगे—”विशाल कपूर की बेटी मिली!” लाखों की दौलत वाला बाप और बेटी यहां भूखी रोटी खा रही थी।
लेकिन इस हल्ले के बीच अनाया की आंखों में बस एक सवाल था। वह धीरे-धीरे बोली, “अगर आप मेरे पापा हो, तो फिर इतने सालों से कहां थे? क्यों मुझे अकेला छोड़ दिया? क्यों मुझे रोटी ढूंढनी पड़ी कूड़े में?”
उसके मासूम शब्द तीर बनकर विशाल कपूर के दिल में उतरते चले गए। वह घुटनों पर बैठ गया। विशाल ने कांपते हुए कहा, “मैं गलत था अनाया, बहुत गलत। तुझे खोकर भी मैं अपने व्यवसाय, अपने साम्राज्य में उलझा रहा। तू अकेली तड़पती रही और मैं… मैं इंसानों से भी बदतर बन गया। मेरा प्यार तुझ तक पहुंचना चाहिए था, पर वह फाइलों और पैसों में डूब गया। अनाया, मुझे माफ कर दे।” उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। आसमान भी जैसे उस क्षण रोने लगा। हल्की बारिश की बूंदें अनाया के चेहरे पर गिरने लगीं।
अनाया चुपचाप देखती रही। उसके छोटे से दिल में गिले शिकवे का पहाड़ था, मगर साथ ही पिता को देख पाने की तड़प भी। वह धीरे-धीरे उठी और उसके सामने खड़े विशाल की ओर देखती रही। कुछ पल का सन्नाटा और फिर वह दौड़कर उसके गले लग गई। “मुझे आप बहुत याद आते थे पापा।” विशाल ने उसे कसकर सीने से लगा लिया। उसकी रुलाई टूट गई। भीड़ खामोश हो गई। सिर्फ बाप-बेटी का मिलन बोल रहा था। मंदिर की सीढ़ियों पर खड़े लोग, मीडिया, भक्त—हर किसी की आंखें नम हो गईं। किसी ने कहा, “पैसा भगवान नहीं, प्यार भगवान है।” दूसरे ने फुसफुसाया, “इतने करोड़ों जिनके पास हैं, लेकिन उसे सबसे ज्यादा दौलत बेटी के गले ने दी है।”
विशाल ने अनाया की आंखों में देखते हुए कहा, “अब कभी तुझे अकेला नहीं छोडूंगा। तेरे हर आंसू की कीमत मैं अपनी सांसों से चुका दूंगा। अब रोटी तुझे कूड़े से नहीं ढूंढनी पड़ेगी। तेरी हर रोटी मैं अपने हाथों से परोसूंगा।” अनाया ने सिर झुका दिया और मासूम मुस्कान बिखेर दी। उसके चेहरे पर पहली बार सालों बाद सुकून समाया।
इस आमना-सामना ने सिर्फ एक पिता और बेटी को नहीं मिलाया था, बल्कि पूरे शहर को आईना दिखाया था। मीडिया ने इसे अगले दिन हेडलाइन बनाया—”करोड़ों के बिजनेसमैन की असली दौलत उसकी बेटी निकली। वो रोटी जो मंदिर की सीढ़ियों पर खा रही थी, अरबों की हवेली को हिला गई।”
विशाल कपूर का जीवन उस दिन पूरी तरह बदल गया था। जिस दौलत, बड़े-बड़े कॉन्ट्रैक्ट्स और ऊंची इमारतों पर उसे गर्व था, वह सब अचानक बहुत छोटा और बेकार लगने लगा। उसकी दुनिया अब सिर्फ एक छोटी बच्ची के इर्दगिर्द घूम रही थी।
महल जैसे घर की चौखट पर जब अनाया कदम रखी, तो नौकर, चाकर, गार्ड और मीडिया सब खड़े थे। लेकिन इस बार घर की खामोशी टूट चुकी थी। विशाल ने बेटी का हाथ पकड़ कर कहा, “अब यह घर सिर्फ इमारत नहीं रहेगा अनाया। अब यह तेरी हंसी से रोशन होगा। मैं वादा करता हूं, हर रात तुझे कहानी सुनाऊंगा जैसे तेरी मां सुनाया करती थी।”
अनाया की आंखें चमक उठीं। उसे लगने लगा जैसे उसकी दुनिया फिर से पिता के प्यार से पूरी हो रही हो।
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