कभी किसी इंसान को उसके कपड़ों से मत आँकिए
मुंबई का अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट हमेशा की तरह भीड़ से भरा हुआ था। लोग अपने-अपने लगेज, पासपोर्ट और टिकट लेकर लंबी लाइनों में खड़े थे। कोई फोन पर बिजनेस की बातें कर रहा था, कोई बच्चों को संभाल रहा था। इसी भीड़ में एक बुजुर्ग व्यक्ति चुपचाप लाइन में खड़ा था। उम्र लगभग 75-78 साल, सफेद बाल, झुकी हुई कमर, हाथ में एक पुराना फटा सा बैग, मैली सी शर्ट, घिसे हुए जूते और चेहरे पर थकान के बावजूद एक अजीब सी शांति।
लोग उसे देख रहे थे और कानाफूसी शुरू हो गई—”अरे ये कौन है? भिखारी लगता है। इतने गंदे कपड़े पहनकर एयरपोर्ट आ गया!” एयरलाइन स्टाफ की एक युवती, प्रिया, उसकी तरफ आई और कड़े लहजे में बोली, “बाबा, आप यहाँ क्या कर रहे हैं? ये लाइन पैसेंजर्स के लिए है। आपके जैसे लोग अंदर नहीं आ सकते। हट जाइए।”
बुजुर्ग ने विनम्रता से कहा, “बेटी, मेरे पास टिकट है, जरा चेक कर लो।”
प्रिया हँस पड़ी। “टिकट आपके पास? आप जैसे लोग तो नाटक करते हैं। हटिए, वरना गार्ड को बुलाऊँगी।”
गार्ड आया और बुजुर्ग को धक्का देते हुए बोला, “चलो बाबा, बहुत हो गया। यह जगह भिखारियों के लिए नहीं है।” बुजुर्ग लड़खड़ा गए, उनका टिकट वाला लिफाफा नीचे गिर गया। आँखों में आँसू आ गए, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। बस लिफाफा उठाया और एक कोने में जा खड़े हुए। भीड़ में से किसी ने मदद नहीं की, सब हँसते रहे।
कुछ ही देर बाद एयरपोर्ट पर अचानक सायरन बजने लगे। सीनियर अधिकारी भागते हुए आए, उनके हाथ में वॉकी-टॉकी था। उन्होंने पूछा, “वह बुजुर्ग कहाँ है? उन्हें तुरंत ढूंढो!” सबकी नजरें उस कोने की ओर मुड़ गईं जहाँ बुजुर्ग खड़े थे। प्रिया और गार्ड के चेहरे का रंग उड़ गया। अधिकारी ने गुस्से से कहा, “तुम्हें अंदाजा है किसे अपमानित किया है? ये देश के रिटायर्ड राष्ट्रीय नायक हैं, प्रधानमंत्री के विशेष मेहमान!”
पूरा एयरपोर्ट स्तब्ध रह गया। अधिकारी बुजुर्ग के पास पहुँचे और बोले, “सर, हमें माफ कर दीजिए। हमें पता नहीं था कि आपके साथ ऐसा हो जाएगा।” तभी प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आया—”आप हमारे अतिथि हैं, हमारे हीरो हैं। जिन्होंने अपमान किया है, उन पर तुरंत कार्रवाई होगी।”
भीड़ की आँखें झुक गईं। प्रिया और गार्ड रोने लगे। बुजुर्ग ने कहा, “इन्हें मत डाँटो, ये तो बच्चे हैं। गलती इंसान से ही होती है। मगर सोचिए, समाज इतना कठोर कैसे हो गया कि इंसान को उसके कपड़ों से परखा जाने लगा?”
एक पत्रकार ने साहस करके पूछा, “सर, आप कौन हैं?”
बुजुर्ग ने मुस्कुराकर कहा, “मैंने कोई बड़ी चीज़ नहीं की। बस जवान था, देश के लिए हाज़िर था। सीमा पर तैनात था, कई साथी शहीद हो गए, मैं बच गया। असली हीरो तो वे हैं जो लौटकर नहीं आए।”
भीड़ में सन्नाटा छा गया। गार्ड उनके पैरों में गिर पड़ा, “बाबा, हमें माफ कर दो।” बुजुर्ग बोले, “इंसान की पहचान उसके कपड़ों से नहीं, कर्म से होती है। अन्याय केवल करने वाला ही दोषी नहीं, सहने और चुप रहने वाला भी दोषी है।”
उनकी बातों ने सबके दिल को छू लिया। एक महिला, जिसने पहले अपने बेटे से कहा था कि “भिखारी भी अब फ्लाइट पकड़ने चले हैं”, अब शर्म से काँप रही थी। उसने बेटे को सीने से लगाया और बोली, “बेटा, आज से कभी किसी को उसके कपड़ों से मत आँकना।”
पत्रकार ने फिर पूछा, “सर, आपने विरोध क्यों नहीं किया?”
बुजुर्ग बोले, “अगर मैं बताता, तो शायद वे डरकर सम्मान दिखाते। मगर मैं देखना चाहता था कि इंसानियत बाकी है या नहीं। दुख की बात है, इंसानियत हार गई।”
तभी लाउडस्पीकर से घोषणा हुई—प्रधानमंत्री का विशेष संदेश। आदेश पढ़ा गया—”इस अपमानजनक घटना में शामिल सभी स्टाफ और सुरक्षा कर्मियों को तत्काल निलंबित किया जाए।” पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा, मगर उन तालियों में खुशी नहीं, पश्चाताप था।
बुजुर्ग बोले, “सम्मान झुककर नहीं, उठकर दिया जाता है। अगर सचमुच सम्मान देना है, तो वादा करो, अब कभी किसी गरीब, बुजुर्ग या मजबूर इंसान को उसके कपड़ों से मत आँकना।”
पूरा एयरपोर्ट गूंज उठा, भीड़ ने ताली बजाई, कई लोग रो रहे थे। सेना की टुकड़ी आई, सलामी दी। बुजुर्ग ने सिर झुकाया, उनकी आँखों में शांति थी।
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