गुरलीन कौर की कहानी
अगर कोई आपसे कहे कि एक 19 साल की लड़की दिल्ली एयरपोर्ट पर, हवाई जहाज में चढ़ने से पहले ही गिरफ्तार हो गई, तो आप शायद यकीन न करें। लेकिन यही सच है, और इसके पीछे की वजह जानकर आप हैरान रह जाएंगे। यह कहानी है गुरलीन कौर की, जो पंजाब के मलेरकोटला के पास एक छोटे से गाँव में रहती थी। उसके पिता करतार सिंह किसान थे और माँ स्वर्ण कौर घर संभालती थीं। घर की हालत बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन माँ-बाप का सपना था कि उनकी बेटी विदेश जाकर कुछ बने, उनका नाम रोशन करे।
गुरलीन बचपन से ही होशियार थी। वह अक्सर अपनी माँ से कहती, “एक दिन मैं भी कनाडा जाऊंगी और आपके लिए सोने की बालियां लेकर आऊंगी।” प्लस टू के बाद उसने पीटीई की तैयारी शुरू की, लेकिन दो बार एग्जाम देने के बाद भी उसका बैंड लेवल कम रह जाता था। जब भी उसका स्कोर कम आता, वह उदास हो जाती, लेकिन उसकी माँ हमेशा उसे हिम्मत देती, “कोई बात नहीं कुड़िए, मेहनत करती रहो, रब सब देखता है।”
एक दिन गाँव में एक नया एजेंट आया, नाम था नवीन अरोड़ा। उसका दफ्तर बड़ा चमकदार था, बाहर बोर्ड लगा था – “स्टडी इन कनाडा, गारंटीड वीजा”। नवीन खुद गुरलीन के घर आया और बोला, “आपकी बेटी में टैलेंट है, लेकिन बैंड कम होने के कारण वीजा थोड़ा मुश्किल है। अगर दस्तावेज़ ठीक करवा दें तो काम बन जाएगा।” जब पिता ने खर्चा पूछा, तो नवीन बोला, “लगभग 17 लाख रुपए लगेंगे, लेकिन रिजल्ट पक्का है, मेरी गारंटी।” करतार सिंह ने अपनी दो एकड़ जमीन बेच दी और पूरे पैसे दे दिए। गुरलीन बहुत खुश थी, उसे लगा कि अब उसका सपना पूरा होने जा रहा है।

कुछ दिनों बाद नवीन ने फोन किया, “गुरलीन, तुम्हारा ऑफर लेटर आ गया है, कॉलेज ओंटारियो का है, वीजा भी लगने वाला है, तैयारी कर लो।” गुरलीन ने बैग तैयार किया, नए कपड़े, दस्तावेज़, माँ की तस्वीर रखी और रात भर सोचती रही कि उसकी नयी जिंदगी कल से शुरू होगी। सुबह जब वह एयरपोर्ट पहुँची, पिता की आँखों में चमक थी और माँ ने फोन पर कहा, “अच्छे कर्म करना, रब से डरकर जीवन जीना।” गुरलीन ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “माँ, अब देखना, मैं आपको भी कनाडा ले जाऊंगी।”
चेक-इन हुआ, बोर्डिंग पास मिला और वह खुशी-खुशी इमीग्रेशन काउंटर पर पहुँची। लेकिन जब अधिकारी ने उसका पासपोर्ट स्कैन किया, तो उसका चेहरा बदल गया। उसने कहा, “मैम, एक मिनट रुकिए।” दूसरे अधिकारी आए, दस्तावेज़ देखे और बोले, “मैम, हमारे साथ चलिए, यह सिर्फ रूटीन चेक है।” गुरलीन घबरा गई, लेकिन चुपचाप उनके साथ चल दी। उसके पिता दूर से हाथ हिला रहे थे, उन्हें लगा सब ठीक है, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि अब उनकी बेटी की फाइल खुलने वाली है, जिसमें कुछ ऐसा लिखा था जो उसकी मासूमियत का सपना तोड़ देगा।
कमरे में तीन अफसर बैठे थे, दो पुरुष और एक महिला। उन्होंने गुरलीन से नाम, कॉलेज पूछा। गुरलीन ने विश्वास से जवाब दिया, “ओंटारियो में है सर।” लेकिन अधिकारी बोले, “इस नाम का कोई कॉलेज ही नहीं है।” गुरलीन का रंग उड़ गया। उसने कहा, “यह तो मेरे एजेंट ने बताया था, सारी फाइल उसी ने बनाई थी।” अफसर ने कागज घुमाया और दिखाया, “यह रिजल्ट फर्जी है, एडमिशन लेटर का कोड किसी और यूनिवर्सिटी का है।” गुरलीन की आँखों में आँसू आ गए, “मैंने कुछ नहीं किया, मैं तो बस पढ़ाई करना चाहती थी।” लेकिन अब मामला पुलिस के हाथ में था। केस दर्ज हुआ और गुरलीन को इमीग्रेशन डिटेंशन सेंटर भेज दिया गया।
उधर, नवीन अरोड़ा का दफ्तर बंद था, वह गाँव छोड़कर भाग गया था। लोगों को पता चला कि वह दो और परिवारों से भी पैसे लेकर गायब हो गया। गुरलीन के पिता पुलिस थाने के चक्कर काटते रहे, “मेरी बेटी बेगुनाह है,” लेकिन कानून के अपने तरीके होते हैं। गाँव में खबर फैल गई, लोग ताने मारने लगे। माँ घर में रो-रोकर बेहोश हो गई, पिता की आँखों से आँसू सूख गए।
इसी बीच इमीग्रेशन अधिकारियों को एक अनजान नंबर से कॉल आई, “अगर आप गुरलीन की फाइल खुली रखें, तो असली खेल पता चलेगा, यह सिर्फ एक लड़की का मामला नहीं है।” इस लाइन ने अफसरों के मन में शक पैदा कर दिया। उन्होंने जांच को और गहरा किया। गुरलीन से पूछा गया, “क्या तुम्हारे पास सबूत है कि एजेंट ने फाइल बनाई थी?” गुरलीन ने अपने मोबाइल में एजेंट के मैसेज और नंबर दिखाए। जब नंबर ट्रेस किया गया, तो वह एक फर्जी कंपनी के नाम पर रजिस्टर्ड था। अब जांच पंजाब के कई एजेंसी दफ्तरों तक पहुँच गई थी। दिल्ली में भी ऐसा ही एक केस सामने आया, जहाँ उसी तरह का फर्जी ऑफर लेटर मिला।
गुरलीन को बेल मिल गई, लेकिन केस अभी जारी था। उसकी माँ अस्पताल में थी, गाँव में कोई तसल्ली देने नहीं आता था। उसी दौरान गाँव में आयशा गिरेवाल नाम की एक महिला आई, जो एक NGO के लिए काम करती थी। उसने करतार सिंह की कहानी सुनी और कहा, “आपकी बेटी को सिर्फ सिस्टम ने नहीं, इस जाल ने फँसाया है। मैं मदद करूंगी।” आयशा ने नवीन अरोड़ा के दफ्तर का पता लगाया, वहाँ एक ब्रॉशर मिला जिसमें एक QR कोड था। स्कैन करने पर एक टेलीग्राम चैनल खुला – “मैपल फास्ट ट्रैक”। वहाँ विदेश जाने वालों की फर्जी फाइलों की तस्वीरें थीं, हर एक पर कोड लिखा था – NA11।
साइबर सेल ने पता लगाया कि यह चैनल कई शहरों में एक्टिव था और डाटा एक ही IP एड्रेस पर जा रहा था। अब साफ हो गया कि यह एक बड़ा नेटवर्क है। लेकिन अभी भी NA11 कौन है, यह रहस्य बना रहा। गुरलीन और आयशा ने एक नकली फाइल बनाकर उसी चैनल पर पोस्ट की। कुछ घंटों में जवाब आया, “एडमिशन तैयार है, मिलो।” वे चंडीगढ़ के एक कैफे में गए, वहाँ एक आदमी मिला, जिसने कहा, “आपका काम हो जाएगा, पैसे लाओ।” तभी पुलिस ने उसे पकड़ लिया। उसके मोबाइल में सिर्फ एक नाम बार-बार दिखा – NA11 कॉलिंग।
पुलिस ने दबाव डाला, तो उसने बताया, “मैं सिर्फ कमीशन लेता हूँ, असली आदमी दिल्ली में है – नवदीप अरोड़ा, वही जो गुरलीन की फाइल बनाता था।” पुलिस ने दिल्ली में उसके फ्लैट पर रेड डाली, लेकिन वह खाली था। वहाँ कई फर्जी पासपोर्ट और एक लैपटॉप मिला, जिसमें कई लड़कियों की फोटोज थीं, जो अब शायद किसी और देश में थीं। गुरलीन को समझ आ गया कि वह अकेली नहीं, कई मासूम लड़कियाँ इस जाल में फँसी थीं।
आयशा और गुरलीन ने सबूत मीडिया और एंबेसी को दिए, खबर चैनलों पर चली, सैकड़ों युवाओं के साथ फ्रॉड का खुलासा हुआ। लेकिन उसी रात आयशा के मोबाइल पर धमकी भरी कॉल आई, “जिसे तू खोज रही है, वह तेरे बहुत करीब है।” अगले दिन पुलिस ने फ्लैट में मिले नए नंबरों पर कॉल की, एक नंबर से जवाब आया, “आपको यह कॉल नहीं करनी चाहिए थी।” अब डर बढ़ गया था, लेकिन सच सामने लाना जरूरी था।
लैपटॉप में एक पुरानी वीडियो मिली, जिसमें नवदीप किसी ऑफिस में बैठा था, और वीडियो के आखिर में एक शख्स उसके कंधे पर हाथ रखकर कहता है, “शाबाश गुरप्रीत।” आयशा ने वीडियो पॉज की और गुरलीन ने हैरान होकर कहा, “यह तो मेरा मामा है!” अब सारा मामला खुल गया। अगले दिन वे गुरप्रीत के घर पहुँचे, गुरलीन ने सीधे पूछा, “मामा, मेरी फाइल किसने बनाई थी?” वह हँस पड़ा, “मैं ही करवाता था, तुझे विदेश जाना था।” जब वीडियो दिखाई गई, तो वह चुप हो गया और बोला, “पैसे की लालच ने अंधा कर दिया था। हर फाइल पर मुझे हजारों मिलते थे, मैंने सोचा कौन चेक करेगा?”
गुरलीन की आँखें भर आईं, “मामा, तू ही तो मेरे पिता को मनाने गया था पैसे देने के लिए, तूने ही मेरा सपना तोड़ दिया।” पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया। खबर चैनलों पर आई, “पंजाब से कनाडा वीजा फ्रॉड ग्रुप का पर्दाफाश।” गुरलीन को क्लीन चिट मिल गई, लेकिन वह अंदर से टूट चुकी थी। माँ ने उसे गले लगाकर कहा, “बेटी, तू सपना नहीं हारी, बस उसका रास्ता बदल गया।”
उस दिन के बाद गुरलीन ने फैसला किया कि वह और बच्चों को जागरूक करेगी। वह आयशा के साथ गाँव-गाँव, स्कूल-कॉलेज जाकर सबको बताने लगी – “विदेश जाना गलत नहीं, पर गलत रास्ता चुनना सबसे बड़ी गलती है। एजेंट नहीं, अपने दस्तावेज़ खुद बनाओ और हर कागज चेक करवाओ।” धीरे-धीरे गाँव के लड़के-लड़कियाँ गंभीर हो गए। उन्होंने समझ लिया कि चमकदार सपनों के पीछे कई बार अंधेरा छुपा होता है।
कुछ महीनों बाद गुरलीन ने अपनी NGO बनाई – “सच का राह”। अब वह उन बच्चों की मदद करती है जो फ्रॉड का शिकार हुए हैं। जब भी कोई नया केस आता है, वह कहती है, “मैं भी एक बार फँसी थी, पर अब मैं नहीं चाहती कि कोई और फँसे।” यह कहानी भले ही फिक्शनल है, लेकिन हकीकत से जुड़ी है। अगर आप भी कभी एजेंटों के धोखे का शिकार हुए हैं, तो अपनी आवाज़ उठाएँ।
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