कभी-कभी ज़िंदगी ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है, जहाँ इंसान को समझ नहीं आता — दुआ कब मंजूर हो जाती है और इम्तिहान कब शुरू। कहते हैं भगवान हर किसी को किसी वजह से मिलवाता है, पर उस वजह का राज़ वक्त आने पर ही खुलता है।

यह कहानी है अरविंद मल्होत्रा की — उज्जैन शहर के नामचीन करोड़पति। बंगले, गाड़ियाँ, शोहरत, सब कुछ था उसके पास, सिवाय सुकून के। हर सुबह वह महाकाल मंदिर जाता, भगवान के आगे सिर झुकाता और लौटते वक्त मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी एक औरत — सुजाता — को चुपचाप कुछ पैसे दे देता। सुजाता की आँखों में दर्द था, मगर चेहरे पर एक अजीब-सी शांति। वो कभी कुछ माँगती नहीं थी, बस मुस्कुरा देती थी।

दिन हफ्तों में, हफ्ते महीनों में बदलते गए। अब सुजाता अरविंद की रोज़मर्रा की आदत बन चुकी थी। हर सुबह की पूजा अधूरी लगती, अगर सुजाता को पैसे न दिए जाएँ। उसकी मुस्कान में अरविंद को एक सुकून मिलता था — जैसे किसी ने उसके दिल की पीड़ा को बिना पूछे ही समझ लिया हो।

लेकिन एक दिन, बारिश के बाद की ठंडी सुबह थी, मंदिर की सीढ़ियों पर भीड़ कम थी। अरविंद ने हमेशा की तरह अपनी जेब से पैसे निकाले और सुजाता की ओर बढ़ाया। इस बार सुजाता ने पैसे लेने के बजाय उसकी आँखों में सीधे देखा। उसकी आँखों में कोई लालच नहीं, कोई लाचारी नहीं, बस गहराई और साहस था। फिर उसने धीमी आवाज़ में कहा —
**”साहब, मुझे अपनी मंगेतर बना लो।”**

अरविंद सन्न रह गया। मंदिर के बाहर सन्नाटा छा गया। कुछ पल के लिए सब थम-सा गया। उसकी उँगलियाँ काँपने लगीं, नोट हवा में डोल रहे थे। अरविंद के मन में तूफान था — मंगेतर? यह शब्द उसके कानों में गूंजता रहा।

उसे अपने अतीत के वो पल याद आ गये, जब उसकी शादी टूट गई थी। उसने सब कुछ पाया, लेकिन बदले में अकेलापन ही मिला। तब उसने सोचा था, पैसा हर दर्द की दवा है। लेकिन आज सुजाता की एक बात ने उसे एहसास कराया कि पैसा भी कभी-कभी जवाब नहीं होता।

अरविंद ने खुद से पूछा —
**”कौन है यह औरत? क्यों इसकी आँखों में मुझे अपनापन दिखता है?”**

मंदिर की सीढ़ियों पर फैले सन्नाटे में उसकी साँसें भारी हो गईं। उसे लग रहा था, जैसे उसके सामने सिर्फ एक औरत नहीं बल्कि खुद उसकी किस्मत खड़ी है। भीड़ धीरे-धीरे बुदबुदाने लगी। लोग हैरानी से देख रहे थे। लेकिन अरविंद और सुजाता दोनों उस शोर से बेखबर थे। दोनों की आँखों में सिर्फ सच की तलाश थी।

अरविंद ने धीरे से पूछा —
**”सुजाता, ये क्या कह दिया तुमने? आखिर तुम कौन हो और क्यों चाहती हो कि मैं तुम्हें अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाऊँ?”**

सुजाता ने शांत मुस्कान के साथ कहा —
**”साहब, इंसान की पहचान उसके कपड़ों या दौलत से नहीं होती। असली पहचान उसके दिल की सच्चाई होती है। आप रोज़ मुझे पैसे देकर समझते हैं कि मेरी मदद कर रहे हैं, लेकिन असल में हर दिन आप खुद को मेरी मुस्कान से संभालते आए हैं। आप मुझे दान नहीं, बल्कि एक रिश्ता दे रहे थे — बिना कहे, बिना समझे।”**

अरविंद चुपचाप उसे देखता रहा। उसके मन में सवालों का तूफान था — क्या यह औरत सच में मेरे दिल की उस खाली जगह को भर सकती है?

भीड़ पास खिसक आई थी। लेकिन सुजाता और अरविंद अपनी ही दुनिया में खोए थे।
अरविंद ने पूछा —
**”लेकिन तुमने मुझे क्यों चुना? मैं तो बस एक अजनबी हूँ जिसने कभी तुम्हें कुछ सिक्के थमा दिए।”**

सुजाता ने गहरी साँस लेकर कहा —
**”कभी-कभी भगवान किसी को किसी की ज़िंदगी में इसलिए भेजते हैं, ताकि वह अधूरापन मिटा सके। आप सोचते हैं आपने मुझे हर दिन कुछ दिया है, पर सच ये है कि मैंने हर दिन आपकी आँखों में तन्हाई देखी है। औरत की नज़र धोखा नहीं खाती साहब। मुझे लगा शायद भगवान ने मुझे आपके लिए ही यहाँ बैठाया है।”**

अरविंद के दिल में हलचल होने लगी। उसके सामने एक ऐसी औरत थी, जिसने न दौलत देखी, न शोहरत — बस उसकी तन्हाई को पहचाना।

अरविंद अब चुप नहीं रह सका। उसने दृढ़ स्वर में कहा —
**”सुजाता, अगर तुम्हें लगता है भगवान ने तुम्हें मेरी ज़िंदगी में भेजा है, तो मुझे तुम्हारा सच जानने का हक है। आखिर तुम कौन हो? तुम्हारी आँखों में ये दर्द क्यों है?”**

सुजाता ने उसकी आँखों में देखा। कुछ पल तक उसकी नजरें कांपती रहीं। फिर उसने कहना शुरू किया —
**”मैं कभी इस मंदिर की सीढ़ियों पर बैठने वाली औरत नहीं थी। मैं भी कभी एक घर की बेटी, बहन और पत्नी थी। लेकिन ज़िंदगी ने मुझे उस जगह पर लाकर खड़ा कर दिया, जहाँ रिश्ते, सहारे और नाम सब छिन गए। लोग कहते हैं मैं बेघर हूँ, पर असलियत ये है कि मैं बेआसरा हूँ। इस आश्रय की तलाश में भगवान ने मुझे हर सुबह आपके कदमों तक भेजा।”**

अरविंद का दिल धड़क उठा। उसे पहली बार महसूस हुआ कि उसके रोज़ के कुछ सिक्कों ने किसी के लिए सिर्फ सहारा ही नहीं दिया, बल्कि एक अनजाने रिश्ते का एहसास भी बना।

सुजाता ने आगे कहा —
**”आप सोचते हैं आप मुझे दान देते हैं। लेकिन सच ये है कि आप मुझे रोज़ याद दिलाते हैं कि दुनिया में अब भी इंसानियत ज़िंदा है। शायद इसी वजह से मैंने हिम्मत जुटाकर आज ये कह दिया।”**

अरविंद स्तब्ध था। उसकी आँखों में अब सवाल नहीं, बल्कि सोच थी। उसे लग रहा था जैसे सुजाता की कहानी के पीछे अभी बहुत कुछ छुपा है।

अरविंद ने धीमे स्वर में कहा —
**”सुजाता, अगर सचमुच तुम्हारी ज़िंदगी इतनी गहरी पीड़ा से गुज़री है, तो मुझे सब बताओ। मैं जानना चाहता हूं कि किस हालात ने तुम्हें इस मंदिर की सीढ़ियों तक पहुँचा दिया।”**

सुजाता ने गहरी साँस ली। उसकी आँखें नम हो गईं लेकिन चेहरा दृढ़ रहा।
**”मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की थी। पिता स्कूल में अध्यापक थे, माँ घर संभालती थी। मेरी शादी अरमान वर्मा नाम के युवक से हुई। वह बहुत होनहार था। कुछ साल सब ठीक चला, लेकिन फिर एक हादसे ने सब बदल दिया। एक सड़क दुर्घटना में मेरे पति की मौत हो गई। घर का सहारा चला गया, माँ बीमार पड़ी, उन्हें बचाने के लिए सब कुछ बेचना पड़ा। जब माँ भी चली गई, तो मेरे पास न घर रहा, न सहारा। तब से मैं यहीं मंदिर की सीढ़ियों पर बैठने लगी। यही एक जगह थी जहाँ लगा भगवान अभी भी मेरा साथ दे रहे हैं। मैंने कभी किसी से कुछ माँगा नहीं। बस सोचा शायद भगवान किसी को भेजेगा जो मेरी ज़िंदगी की अधूरी कड़ी पूरा करेगा। और जब मैंने आपको रोज़ मेरी ओर हाथ बढ़ाते देखा, तो मुझे यकीन हो गया कि शायद वही जवाब आप हो।”**

अरविंद अब पूरी तरह स्तब्ध था। उसके सामने बैठी औरत कोई अजनबी नहीं लग रही थी, बल्कि उसकी अपनी दुआओं का जवाब थी। उसका दिल पहली बार इतने करीब से किसी और की पीड़ा महसूस कर रहा था। करोड़ों की दौलत, ऊँचे बंगले और शोहरत रखने वाला आदमी आज खुद को बेहद छोटा महसूस कर रहा था।

उसने धीमे से कहा —
**”सुजाता, तुम्हारी कहानी ने मेरा दिल झकझोर दिया है। सच कहूं, तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि मंदिर की इन सीढ़ियों पर बैठी औरत के पीछे इतना गहरा अतीत छुपा होगा। मैं हर सुबह तुम्हें पैसे देकर समझता था कि मैं तुम्हारी मदद कर रहा हूं। लेकिन असल में तुमने मुझे मेरी तन्हाई से बचाया। तुम्हारी मुस्कान ही वह सहारा थी, जिसे मैं खुद भी नहीं पहचान पाया।”**

सुजाता उसकी ओर देख रही थी। उसकी आँखों में आंसू थे, लेकिन चेहरा शांत था।
**”साहब, मैंने आपसे कभी दौलत नहीं मांगी। अगर चाहती तो हर रोज़ कुछ और मांग सकती थी। मैंने सिर्फ यह चाहा कि मेरी ज़िंदगी की अधूरी कहानी को कोई पूरा कर दे। और मुझे लगा कि शायद भगवान ने मुझे आपके ज़रिए यही रास्ता दिखाया है।”**

अरविंद की उंगलियाँ अब कांपना बंद हो गई थीं। उसने अपने भीतर से उठती उस आवाज़ को महसूस किया, जो बरसों से दबा हुआ था —
**क्या सच में मैं इस औरत के साथ अपनी अधूरी ज़िंदगी को पूरा कर सकता हूं? क्या यही मेरी दुआ का जवाब है?**

भीड़ अब भी खड़ी थी। लोग एक-एक शब्द सुन रहे थे। लेकिन अरविंद और सुजाता के बीच दुनिया की आवाजें मानो मिट चुकी थीं।
यह सिर्फ दो आत्माओं की बातचीत थी — एक जिसने सब कुछ खोकर भी मुस्कान बचाई थी, और एक जिसने सब कुछ पाकर भी सुकून खो दिया था।

अरविंद ने अपनी नजरें झुका लीं। फिर अचानक उसकी आँखों में दृढ़ता लौट आई। उसने मन ही मन निश्चय किया कि आज उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा फैसला होगा — यह फैसला सिर्फ सुजाता के लिए नहीं, बल्कि खुद उसकी आत्मा के लिए भी होगा।

अरविंद ने अपने आँसू पोंछे और भीड़ के बीच खड़ा हो गया। मंदिर की सीढ़ियों पर खामोशी छा गई थी। हर कोई उसकी ओर देख रहा था — मानो इंतजार कर रहा हो कि करोड़पति अब क्या कहेगा।

उसकी आवाज़ भारी थी, लेकिन दिल से निकली थी —
**”आज तक मैंने सोचा कि दौलत ही मेरी ताकत है। लेकिन आज मुझे एहसास हुआ कि असली ताकत इंसानियत और रिश्तों की है। सुजाता, मैं तुम्हारे अतीत को मिटा नहीं सकता, लेकिन तुम्हारा भविष्य जरूर बदल सकता हूं। और अगर भगवान ने हमें यहाँ मिलाया है, तो यह कोई इत्तेफाक नहीं, यह उसका आशीर्वाद है।”**

यह कहते ही अरविंद ने सबके सामने सुजाता का हाथ थाम लिया। भीड़ की आँखों में आँसू थे। मंदिर की घंटियाँ और जोर से बजने लगीं। वह औरत, जो कभी सीढ़ियों पर अकेली बैठी थी, आज पूरे समाज के सामने सम्मान के साथ खड़ी थी। और वह आदमी, जो सब कुछ पाकर भी अधूरा था, आज अपने दिल की खाली जगह को भर चुका था।

उस दिन वहाँ मौजूद हर इंसान ने देखा कि इंसानियत का रिश्ता सबसे बड़ा होता है। न दौलत मायने रखती है, न हैसियत — मायने रखता है तो सिर्फ दिल की सच्चाई और अपनापन।

**दान से बड़ा उपहार रिश्ते होते हैं, जो आत्मा को सुकून देते हैं। भगवान मंदिर में नहीं, इंसान की आँखों से बहते आँसुओं में मिलते हैं।**

तो दोस्तों, यही थी आज की कहानी।
कैसी लगी, कमेंट में जरूर बताना।
अगर वीडियो ने आपके दिल को छुआ हो तो लाइक करें, चैनल को सब्सक्राइब करें, ताकि हमें हौसला मिले ऐसी और दिल छू लेने वाली कहानियाँ लाने का।

मिलते हैं अगली कहानी में, एक नए एहसास और संदेश के साथ।
तब तक के लिए — जय हिंद, जय भारत, जय हिंदुस्तान।