कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे सबक़ देती है जो हमेशा याद रहते हैं। यह कहानी है उदयपुर की एक नामी बैंक शाखा की, जहाँ सुबह के समय हर कोई अपने-अपने काम में व्यस्त था। उसी भीड़ में एक बुज़ुर्ग व्यक्ति, बद्री प्रसाद मीणा, साधारण धोती-कुर्ता पहने, हाथ में एक पुराना लिफाफा लिए बैंक में दाखिल होते हैं। उनकी उम्र करीब 75 साल थी, चेहरे पर अनुभव की रेखाएँ और आँखों में गहराई थी।
बैंक में घुसते ही लोग उन्हें तिरस्कार से देखने लगे, कुछ ने मज़ाक उड़ाया। वे सीधे ग्राहक सहायता काउंटर पर पहुँचे, जहाँ कविता रावल बैठी थी। बद्री प्रसाद जी ने विनम्रता से कहा, “बेटी, मेरे खाते में कुछ दिक्कत है, देख लो।” कविता ने बिना मुस्कुराए उनके कपड़ों को देखा और बोली, “बाबा, आप गलत बैंक में आ गए हैं। यहाँ बड़े खातेदारों के खाते होते हैं, आप कहीं और जाइए।” फिर भी उन्होंने अनुरोध किया, तो कविता ने अनमने ढंग से कहा, “ठीक है, थोड़ा वेट करना होगा।”
बद्री प्रसाद जी वेटिंग एरिया में जाकर बैठ गए। वहाँ मौजूद लोग फुसफुसा रहे थे, “यह आदमी ग्राहक नहीं, भिखारी लगता है।” लेकिन वे चुपचाप बैठे रहे। तभी बैंक के युवा कर्मचारी रणदीप चौहान उनके पास आए। उन्होंने बुज़ुर्ग की आँखों में अपनापन देखा और पूछा, “बाबा जी, आपकी क्या मदद कर सकता हूँ?” बद्री प्रसाद जी बोले, “मैनेजर से मिलना था, खाते में परेशानी है।” रणदीप ने तुरंत शाखा प्रबंधक रजनीश सिंह से बात की, लेकिन रजनीश ने उन्हें टाल दिया, “ऐसे लोग टाइम खराब करने आते हैं।”
एक घंटे से ज्यादा इंतजार के बाद, बद्री प्रसाद जी खुद मैनेजर के केबिन पहुँचे। रजनीश ने तंज कसते हुए कहा, “बाबा, अकाउंट में पैसे नहीं होंगे, बाहर जाइए।” बद्री प्रसाद जी ने लिफाफा मेज पर रख दिया और बोले, “एक बार देख लेना।” वे बाहर चले गए।
कुछ घंटों बाद, रणदीप ने लिफाफा खोला। उसमें बैंक की शेयर होल्डिंग डिटेल्स थीं—बद्री प्रसाद मीणा बैंक के 60% शेयरहोल्डर थे! साथ ही एक अधिकार पत्र था, जिससे शाखा प्रबंधन में बदलाव का अधिकार उन्हें था। रणदीप ने तुरंत रिकॉर्ड विभाग से पुष्टि की, सब सच था।
अगले दिन, बद्री प्रसाद जी बैंक में लौटे, इस बार उनके साथ मुख्य क्षेत्रीय अधिकारी अरविंद जोशी भी थे। बैंक का माहौल बदल गया। बद्री प्रसाद जी सीधे रजनीश सिंह के केबिन गए। अरविंद जोशी ने रजनीश को तत्काल स्थानांतरण का आदेश दिया। बद्री प्रसाद जी ने रणदीप को नया शाखा प्रबंधक नियुक्त किया, क्योंकि उसने इंसानियत और जिम्मेदारी समझी थी।
पूरे बैंक में तालियों की गूंज थी। बद्री प्रसाद जी ने कहा, “अब से इस बैंक में कोई भी ग्राहक उसके कपड़ों या पहचान से नहीं आंका जाएगा, यहाँ हर व्यक्ति बराबर है।” कविता ने शर्मिंदा होकर माफी मांगी, बद्री प्रसाद जी ने मुस्कराकर कहा, “गलती सब करते हैं, लेकिन उससे सीखना चाहिए।”
उस दिन के बाद, बैंक सम्मान और इंसानियत की मिसाल बन गया। बद्री प्रसाद मीणा समय-समय पर बिना बताए बैंक आते रहे, यह देखने के लिए कि कोई और आम इंसान अपमानित न हो। असली पहचान इंसान के संस्कारों और व्यवहार में होती है, न कि उसके पहनावे में।
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