कहानी: एक भिखारी की सलाह ने बदल दी अमीर व्यवसायी की किस्मत
मुंबई की चमचमाती सड़कों पर दौलत और गरीबी अक्सर साथ-साथ चलती हैं। एक तरफ ऊँची इमारतें, तेज़ गाड़ियाँ, दूसरी तरफ फुटपाथ पर बैठा लाचार इंसान। लेकिन कभी-कभी किस्मत ऐसी चाल चलती है कि ये दो दुनिया टकरा जाती हैं, और एक छोटी-सी सलाह किसी की पूरी जिंदगी बदल देती है।
यह कहानी है आदित्य मल्होत्रा की—एक बड़े उद्योगपति, मल्होत्रा इंडस्ट्रीज के मालिक, जिनकी कंपनी रियल एस्टेट से टेक्नोलॉजी तक हर क्षेत्र में मशहूर थी। लेकिन हाल के महीनों में गलत निवेश, बाजार की मंदी और सबसे बड़ा झटका—उनके भरोसेमंद दोस्त विशाल कपूर का धोखा। विशाल ने कंपनी के सारे गोपनीय दस्तावेज़ और ग्राहक सूची प्रतिद्वंदी को बेच दी।
कंपनी डूबने लगी, निवेशक परेशान, बैंक लोन देने से मना करने लगे। आदित्य अकेले पड़ गए। उनकी पत्नी और बच्चे विदेश में थे, उन्हें इस परेशानी का पता भी नहीं था।
एक दिन निवेशकों की बैठक में आदित्य को कटघरे में खड़ा कर दिया गया। सबने उन पर इस्तीफे का दबाव डाला। विशाल कपूर वहीं बैठा मुस्कुरा रहा था। आदित्य का दिल टूट गया। वे अकेले शहर की सड़कों पर भटकते रहे, एक पार्क की बेंच पर बैठ गए।
रात के अंधेरे में एक बूढ़ा भिखारी उनके पास आया—फटे कपड़े, धूल से सना शरीर, लेकिन आंखों में गहरी चमक।
“क्या हुआ साहब, परेशान लग रहे हो?”
आदित्य को गुस्सा आया, “तुम क्या जानो मेरी परेशानी?”
भिखारी मुस्कुराया, “परेशानी सबकी होती है, फर्क बस इतना है कि कुछ लोग उसे बांट लेते हैं।”
आदित्य ने पहली बार किसी अनजान से दिल खोलकर अपनी कहानी सुनाई। भिखारी ने ध्यान से सुना और बोला,
“आपने कंपनी को नाम और पहचान दी, लेकिन कभी लोगों को उससे जोड़ा नहीं। कंपनी इमारतों से नहीं, लोगों से बनती है। अगर आप उनका दिल जीत लें, तो कोई भी धोखा या मंदी कंपनी को नहीं गिरा सकती।”
आदित्य ने कहा, “लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं, भरोसा टूट चुका है।”
भिखारी बोला, “पैसे से सब कुछ नहीं खरीदा जा सकता। लोगों का विश्वास सबसे बड़ी पूंजी है। अपनी कंपनी को नया नाम दीजिए, जो इंसानियत की बात करे।”

आदित्य को उसकी बातें अजीब लगीं, पर सोचने लगे, “मैं एक भिखारी की सलाह क्यों मानूं?”
भिखारी मुस्कुराया, “ज्ञान कहीं से भी मिल सकता है। मानेंगे तो शायद किस्मत बदल जाए, नहीं मानेंगे तो वैसे भी सब खो चुके हैं।”
आदित्य ने भिखारी से नाम पूछा।
“मेरा नाम विवेक है,” उसने कहा। पैसे लेने से मना कर दिया, “मैंने सलाह दी है, भीख नहीं मांगी।”
आदित्य मल्होत्रा घर लौटे, रातभर सोचते रहे। अगले दिन अपने वफादार कर्मचारियों को बुलाया—”आज से हमारी कंपनी का नाम विश्वास फाउंडेशन होगा। हमारा लक्ष्य लोगों का विश्वास जीतना है।”
आदित्य ने अपनी कोठी बेच दी, बची पूंजी विश्वास फाउंडेशन में लगा दी। पत्नी-बच्चे हैरान रह गए, पर आदित्य ने समझाया—यह सबसे बड़ा फैसला है।
विश्वास फाउंडेशन ने शहर के गरीबों के लिए मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं शुरू कीं। शुरुआत में लोग विश्वास नहीं करते थे, विशाल कपूर ने मजाक उड़ाया, “एक भिखारी की सलाह मानकर सब खो दोगे!”
पर आदित्य ने हार नहीं मानी। खुद सड़कों पर जाकर लोगों से मिले, उनकी मदद की। कर्मचारी भी साथ आ गए।
धीरे-धीरे लोगों का भरोसा बढ़ा, अखबारों में खबरें छपने लगीं। बड़े दानदाता भी जुड़े। विश्वास फाउंडेशन ने स्कूल, आश्रय स्थल, मुफ्त दवाएं देना शुरू किया।
अब यह सिर्फ कंपनी नहीं, आंदोलन बन गया। आदित्य को लोग मसीहा मानने लगे।
विश्वास फाउंडेशन ने पुराने बिजनेस भी फिर से शुरू किए, लेकिन अब सामाजिक जिम्मेदारी भी जोड़ दी। किफायती घर, समाज के लिए टेक्नोलॉजी—और कंपनी फिर से मुनाफे में आ गई।
आदित्य ने निवेशकों को उनका पैसा लौटाया, फिर से निवेश का मौका दिया। अब सब आदित्य पर भरोसा करने लगे।
एक दिन आदित्य ने विवेक को ढूंढने का फैसला किया। हर सड़क, हर गली में ढूंढा, पर वह नहीं मिला।
फिर एक स्कूल के उद्घाटन में, हजारों लोगों के बीच आदित्य ने विवेक को देखा—वही चमकदार आंखें। आदित्य मंच से उतरकर विवेक के पास पहुंचे।
“विवेक, तुमने मेरी जिंदगी बदल दी!”
विवेक ने मुस्कुराकर कहा, “मैं तो यहीं था, आपकी सफलता देख रहा था।”
आदित्य ने विवेक को मंच पर बुलाया, सबको उसकी कहानी सुनाई।
“आज से तुम विश्वास फाउंडेशन के मुख्य सलाहकार हो!”
विवेक ने कहा, “मैं तो बस एक भिखारी हूं।”
आदित्य बोले, “नहीं, तुमने मुझे इंसानियत का पाठ पढ़ाया है।”
विवेक ने आदित्य के साथ काम करना शुरू किया। उसकी सलाह लोगों के हित में होती थी। विश्वास फाउंडेशन पूरे देश में फैल गया।
एक दिन आदित्य ने पूछा, “विवेक, तुम्हें इतनी गहरी बातें कैसे पता हैं?”
विवेक बोला, “मेरी भी एक कहानी है। मैं कभी विजय था, एक अमीर व्यवसायी। पर घमंड और लालच ने सब छीन लिया। सड़कों पर रहकर सीखा—असली दौलत पैसा नहीं, इंसानियत है। असली खुशी लोगों की मदद करने में है।”
आदित्य हैरान रह गए। “तो तुम विजय हो?”
“मैं विजय था, अब विवेक हूं। पुरानी जिंदगी छोड़ दी, अब बस लोगों की सेवा करता हूं।”
आदित्य ने विजय को गले लगा लिया। “तुमने मुझे मेरी कंपनी नहीं, मेरी जिंदगी लौटाई है।”
अब विजय विश्वास फाउंडेशन में काम करता है, लोगों को अपनी कहानी सुनाता है—असली दौलत इंसानियत है।
विश्वास फाउंडेशन अब उम्मीद का प्रतीक बन चुका है।
यह कहानी सिखाती है—ज्ञान कहीं से भी मिल सकता है, बस पहचानना जरूरी है। एक भिखारी की सलाह ने एक अमीर व्यवसायी की किस्मत बदल दी, और हजारों लोगों को नया जीवन दिया।
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