कहानी

गर्मियों की एक सुबह, शहर के सबसे बड़े बाज़ार में भीड़-भाड़ चरम पर थी। खरीदारों की आवाजाही, ठेलेवालों की आवाज़ें और दुकानदारों की पुकार से पूरा इलाका गूंज रहा था। इसी भीड़ में एक साधारण-सी औरत, साधारण कपड़ों में, सिर पर दुपट्टा डाले, आम खरीददारों की तरह घूम रही थी। कोई नहीं जानता था कि यह औरत असल में शहर की नई एसपी अराधना सिंह हैं, जो अभी-अभी नियुक्त हुई थीं।

अराधना की उम्र मुश्किल से तीस के आसपास थी। साधारण परिवार से आईं, पर ईमानदारी और कड़े स्वभाव के लिए पूरे विभाग में मशहूर। पदभार सँभालते ही उन्होंने तय किया था कि शहर का असली चेहरा अपनी आँखों से देखेंगी।

भीड़ के बीच अचानक उनकी नज़र उस दृश्य पर पड़ी जिसने उन्हें रोक लिया। कुछ पुलिसवाले खुलेआम सड़क पर ठेलेवालों से पैसा वसूल रहे थे। एक बूढ़ा ठेलेवाला, जिसकी आँखों में बेबसी थी, काँपते हाथों से मुचड़े हुए नोट निकाल रहा था। पुलिसवाला राम भरोसे अकड़ते हुए बोला
“यहाँ धंधा करना है तो हफ्ता देना पड़ेगा, समझे? नहीं तो ठेला उठाकर भाग जाओ।”

बूढ़ा हाथ जोड़कर बोला—
“साहब, रोज़ मुश्किल से दो वक़्त की रोटी का इंतज़ाम कर पाता हूँ… दया करो।”

SP मैडम सादे कपड़े में पानी पूरी खा रही थी महिला दरोगा ने साधारण महिला समझ कर बाजार में मारा थप्पड़

अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि राम भरोसे ने ठेले को लात मार दी और बूढ़े को धक्का दे दिया। ठेले से सब्ज़ियाँ सड़क पर बिखर गईं। भीड़ में खामोशी छा गई, सब तमाशा देख रहे थे।

उसी पल अराधना आगे बढ़ीं। उनका चेहरा अब ढका नहीं था। आँखों में सख़्ती और आवाज़ में बिजली की गड़गड़ाहट—
“राम भरोसे!”

सारा माहौल सन्न रह गया। पुलिसवाले चौंककर पीछे हटे। राम भरोसे सकपका गया, मगर सँभलते हुए बोला—
“आप… आप कौन हैं जो मुझे आदेश दे रही हैं?”

अराधना ने बिना एक पल गँवाए, गूंजती आवाज़ में कहा—
“मैं तुम्हारी नई एसपी हूँ। और यह शहर अब गुंडागर्दी से नहीं, कानून से चलेगा।”

इतना कहकर उन्होंने राम भरोसे के गाल पर ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया। भीड़ तालियों से गूंज उठी। किसी ने पहली बार पुलिसवाले को उसके ही भ्रष्टाचार के लिए सज़ा खाते देखा था।

खबर आग की तरह फैल गई। पूरे शहर में चर्चा होने लगी—“नई एसपी ने अपने ही पुलिसवालों को बाज़ार में सबके सामने थप्पड़ मारा।”

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।

अगले ही दिन राजनीतिक दबाव शुरू हो गया। फोन कॉल्स आने लगे। ऊपर से हिदायत दी गई—“ज्यादा सख़्ती मत दिखाओ, वरना अंजाम भुगतना पड़ेगा।” पुलिस संघ ने भी विरोध दर्ज किया।

इधर, राम भरोसे की दुनिया उलट गई। माफ़िया और नेताओं से जुड़े उसके आकाओं ने उसे धमकी दी—
“अगर फिर से पकड़े गए तो न नौकरी बचेगी, न जान।”

शहर में सन्नाटा छा गया। अब सबकी नज़रें एक ही सवाल पर टिकी थीं—
क्या अराधना सिंह दबाव में झुकेंगी?
या फिर यह शहर पहली बार सचमुच इंसाफ़ देखेगा?