कहानी: विश्वास और रिश्तों की परीक्षा

मुंबई में चार साल कड़ी मेहनत करके, राज अपने शहर लौट रहा था। उसने अपने घरवालों को कुछ भी नहीं बताया था। टैक्सी पकड़ी और ड्राइवर को सीधे अपने गांव का पता दे दिया। रास्ते भर राज सोचता रहा कि इतने साल बाद मां-बाप से मिलूंगा तो वे कितने खुश होंगे। मुंबई में रहते हुए हर दिन उनके चेहरे की याद आती थी – मां की मुस्कान, बाबूजी का गले लगाना, सब कुछ जैसे कल की बात लगती थी। अब घर लौटने का वह पल आ गया था।

शहर से बाहर निकलते ही टैक्सी ड्राइवर गाड़ी रोकता है और कहता है, “साहब, मुझे थोड़ा सा काम है, बस दो मिनट लगेंगे।” राज सोचता है, “इतने साल इंतजार किया है, दो मिनट क्या चीज है?” वह टैक्सी में बैठा रहता है। ड्राइवर चला जाता है। तभी राज की नजर मंदिर के बाहर बैठे भिखारियों पर पड़ती है। उनमें से एक बुजुर्ग आदमी उसके पिता जैसा लगता है। गौर से देखता है तो पहचान जाता है कि वह उसके अपने पिता हैं।

राज का दिल धड़कने लगता है। उसे याद आता है कि उसकी पत्नी ने बताया था कि पिता गांव में हैं। लेकिन यहां भिखारियों की कतार में क्यों बैठे हैं? पूरी सच्चाई जानने के लिए वह पिता के पास जाता है। पिता बेटे को देखकर रो पड़ते हैं। राज उनसे पूछता है, “बाबूजी, यह क्या हाल है?” पिता बताते हैं कि प्रिया ने उन्हें घर से निकाल दिया, वे मंदिर के पास भीख मांगते हैं।

अब कहानी फ्लैशबैक में जाती है – उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में राज का परिवार रहता था। पिता हरि प्रसाद किसान थे, मां सरला घर संभालती थीं। राज बचपन से ही होशियार था, लेकिन गरीबी देखकर उसका दिल दुखता था। वह सोचता था कि बड़ा होकर परिवार की जिंदगी बदल देगा। पढ़ाई पूरी करके, मां-बाप ने उसकी शादी प्रिया से कर दी। शुरुआत में सब अच्छा था, लेकिन गांव पिछड़ा था। राज ने सोचा कि शहर जाकर नौकरी करेगा।

लखनऊ में नौकरी मिली, छोटा सा घर लिया और मां-बाप व प्रिया को बुला लिया। सब खुश थे, लेकिन खर्चे बढ़ते गए। राज ने मुंबई जाने का फैसला किया ताकि ज्यादा पैसे कमा सके। मां-बाप और प्रिया ने सपोर्ट किया। मुंबई जाकर राज ने खूब मेहनत की, पैसे प्रिया के अकाउंट में भेजता था। धीरे-धीरे प्रिया का व्यवहार बदलने लगा, वह सास-ससुर को ताने मारती, काम करवाती। एक दिन मां-बाप ने प्रिया से कहा कि बेटे से बात करवाओ, लेकिन वह मना कर देती। आखिरकार मां-बाप घर छोड़ देते हैं और मंदिर के पास झोपड़ी बनाकर भीख मांगते हैं।

चार साल बाद राज लौटता है, मंदिर पर पिता को देखकर उसका दिल टूट जाता है। मां से मिलता है, माफी मांगता है, सब सुनकर ड्राइवर भी हैरान रह जाता है। राज मां-बाप को होटल ले जाता है, खाना खिलाता है। फिर घर जाकर प्रिया से सच पूछता है। प्रिया घबराकर रोने लगती है, माफी मांगती है। राज कहता है कि तुमने विश्वास तोड़ा है। वह प्रिया और उसकी मां को घर से निकाल देता है, लेकिन बाद में सोचता है कि बदला नहीं, सीख देना चाहिए। वह शर्त रखता है कि प्रिया मां-बाप की सेवा करेगी, सम्मान देगी। प्रिया मान जाती है, मां-बाप के पैर पकड़कर माफी मांगती है। परिवार फिर से एक हो जाता है।

राज अपना घर खरीदता है, सब खुश रहते हैं। लेकिन वह दर्द की यादें हमेशा रहती हैं, जो सिखाती हैं कि रिश्तों में विश्वास सबसे बड़ा है, बुजुर्गों का सम्मान करो क्योंकि वही जड़ हैं परिवार की।