रामू और शेरा की कहानी
पुरानी दिल्ली की गलियों में हर सुबह 6 बजे रामू अपनी ठेला गाड़ी लेकर निकलता था। उसकी गाड़ी पर ताज़ी सब्जियाँ होती थीं, लेकिन उसके कपड़े फटे हुए, चप्पल टूटी हुई और चेहरा गरीबी से भरा था। हर दिन एक ही चीज़ रामू की सुबह को डर और अपमान से भर देती थी—गली का बड़ा, काला, गुस्सैल कुत्ता। जैसे ही रामू आता, वह कुत्ता भौंकने लगता, दाँत दिखाता और रामू को डराने की कोशिश करता।
गली के लोग रामू से पूछते, “यह कुत्ता तेरे पीछे क्यों पड़ा है?” रामू बस मुस्कुरा देता, “क्या पता साहब, शायद किसी दर्द की वजह से या किसी बात पर गुस्सा हो।” लेकिन अंदर से वह बहुत डरता था। कई महीनों तक यही सिलसिला चलता रहा। रामू रोज़ डर के बावजूद सब्जी बेचता रहा।
एक दिन, जब रामू गली में पहुँचा, कुत्ता कहीं दिखाई नहीं दिया। रामू को चिंता हुई। तभी दूर से आवाज़ आई, “कोई है? मदद करो! यह कुत्ता मर जाएगा!” रामू दौड़ पड़ा। सड़क पर देखा, वही काला कुत्ता गाड़ी से टकरा कर घायल पड़ा था। सब लोग दूर खड़े थे, लेकिन रामू ने बिना डरे कुत्ते को अपनी बाहों में उठा लिया और पास के पशु चिकित्सालय ले गया।
डॉक्टर ने पूछा, “क्या तुम इस कुत्ते के मालिक हो?” रामू बोला, “नहीं साहब, लेकिन इसे बचाना जरूरी है।” इलाज महंगा था, रामू ने अपनी जेब खाली कर दी, जितना था दे दिया, बाकी उधार देने को तैयार हुआ। डॉक्टर ने इंसानियत दिखाते हुए कुत्ते का इलाज किया।

दस दिन तक रामू रोज़ सब्जी बेच कर पैसे इकट्ठा करता और कुत्ते की देखभाल करता। दसवें दिन कुत्ता ठीक हो गया। डॉक्टर ने कहा, “अब इसे घर ले जा सकते हो।” रामू खुश हुआ, लेकिन उसकी झुग्गी बहुत छोटी थी। फिर भी उसने शेरा को अपने साथ रखा।
जब कुत्ता चलने लगा, रामू ने उसके गले का पुराना कॉलर देखा। उस पर लिखा था—“शेरा, प्रॉपर्टी ऑफ मोहनलाल।” यह नाम सुनकर रामू की साँसें रुक गईं। सालों पहले रामू के पिता राजेंद्र मोहनलाल के यहाँ काम करते थे। एक दिन उन पर चोरी का झूठा आरोप लगा, जेल गए और वहीं उनकी मौत हो गई। रामू जानता था, मोहनलाल के घर से एक काला पिल्ला भी गायब हुआ था, जिसे बचपन में रामू ने खाना खिलाया था।
अब वही पिल्ला, बड़ा होकर, शेरा बनकर, रामू के पास लौट आया था। शेरा रामू को भौंकता नहीं था, बल्कि महीनों से उसे ढूँढ़ रहा था। उसका भौंकना डराने वाला नहीं, पहचानने वाला था। जब रामू ने उसे बचाया, शेरा ने उसे पहचान लिया।
रामू ने शेरा को अपने घर में रखा, खिलाया और प्यार दिया। गली के लोग हैरान थे—जो कुत्ता रोज़ डराता था, अब रामू का साथी बन गया था। एक दिन एक अमीर आदमी ने शेरा को देखा और बोला, “यह तो मोहनलाल का कुत्ता है!” रामू ने मुस्कुरा कर कहा, “साहब, कुछ रिश्ते प्यार से बंधे होते हैं, पैसों से नहीं। यह मेरा था, और हमेशा मेरा ही रहेगा।”
**सीख:**
यह कहानी हमें सिखाती है कि जो हमें डराता है, वही हमें पहचानता भी है। कभी-कभी दर्द, डर और गलतफहमियाँ हमें अपनों से दूर कर देती हैं, लेकिन सच्चाई और प्यार हमेशा जीतता है। शेरा और रामू की कहानी बताती है कि रिश्ते कभी खत्म नहीं होते, वे बस समय की परीक्षा से गुजरते हैं।
अगर आपको यह कहानी पसंद आई, तो कमेंट करें—**जो हमें डराता है, वही हमें पहचानता है।**
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