कैप्टन अर्जुन सिंह की कहानी – सम्मान की असली परिभाषा

कैप्टन अर्जुन सिंह ने छह महीने राजस्थान की तपती रेत और सीमा पर दुश्मन की गोलियों के बीच बिताए थे। लगातार रात भर की चौकसी और कड़ी ड्यूटी ने उसके शरीर को थका दिया था, लेकिन दिल में सुकून था कि उसने देश की रक्षा की है। छुट्टी मिलते ही अर्जुन अपने गांव, पटना के पास लौट आया। घर पहुंचते ही मां ने उसे गले लगाया, माथा चूमा। पिता की आंखों में गर्व था, बहनें खुशी से झूम उठीं।

अर्जुन ने तय किया कि इस बार पूरा दिन परिवार के नाम रहेगा। उन्होंने शहर के बड़े मॉल में जाने की योजना बनाई, जहां बहनों को कपड़े खरीदने थे, मां को रसोई का सामान और पापा को बस बच्चों की खुशी देखनी थी। अगले दिन अर्जुन ने सोचा – क्यों न आज वर्दी पहन कर जाऊं, जिससे परिवार को भी गर्व महसूस हो।

वह अपनी प्रेस की हुई ऑलिव ग्रीन यूनिफॉर्म पहनकर, छाती पर मेडल और कंधे पर सितारे लगाकर, पूरे आत्मविश्वास के साथ मॉल पहुंचा। जैसे ही परिवार मॉल के गेट पर पहुंचा, सिक्योरिटी गार्ड ने रोक दिया – “सर, माफ कीजिए, ड्रेस में अंदर नहीं जा सकते।” अर्जुन हैरान रह गया, “क्यों?” गार्ड बोला, “यह मैनेजमेंट का रूल है, वर्दी या कोई ऑफिशियल ड्रेस में एंट्री नहीं।”

भीड़ जमा होने लगी। लोग फुसफुसाने लगे – “देखो, फौजी है, फिर भी रोक दिया गया!” अर्जुन की बहनें उसका हाथ पकड़ने लगीं, पिता का चेहरा उतर गया, मां की आंखें भर आईं। अर्जुन ने कोई हंगामा नहीं किया, बस शांत स्वर में बोला – “ठीक है।” वह परिवार को लेकर लौट आया।

घर लौटते वक्त रास्ते भर सन्नाटा था। छोटी बहन निशा रोते हुए बोली, “भैया, आपको क्यों रोका? आप तो हमारे हीरो हो!” अर्जुन ने उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा, “हीरो होने का मतलब यह नहीं कि हर जगह लोग पहचानें। हमें अपना काम करना चाहिए, पहचान खुद बनती है।” पिता बोले, “बेटा, यह तो अपमान है। जो देश के लिए गोली खाता है, उसे मॉल में घुसने नहीं दिया गया – यह समाज की विडंबना है।”

अर्जुन चुप रहा। उसके दिल में चोट थी, लेकिन चेहरे पर मुस्कान बनाए रखी। उसे नहीं पता था कि यह घटना बहुत बड़ा तूफान खड़ा करेगी। घर पहुंचने के कुछ घंटों बाद बहनों ने देखा कि मॉल के बाहर की घटना किसी ने रिकॉर्ड कर ली थी। वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। कैप्शन था – “भारत का जवान जो सीमा पर खड़ा है, उसे मॉल के अंदर खड़े होने का हक नहीं मिला।”

लोगों की प्रतिक्रियाएं आने लगीं – “फौजी को रोकना अपमान है!” “मॉल वालों का भी नियम होगा, लेकिन सोचिए जो जवान हमारी रक्षा करता है, उसे हम पहचानते तक नहीं।” टीवी चैनल्स पर भी बहस होने लगी – “क्या हमारे हीरो को यही सम्मान मिलेगा?”

अर्जुन ने टीवी बंद कर दिया और परिवार से कहा, “मैं इस मामले को और बड़ा नहीं बनाना चाहता।” लेकिन तूफान अब उसके हाथ में नहीं था। मोहल्ले में हलचल थी, लोग घर आकर कहने लगे – “बेटा, यह अपमान सिर्फ तुम्हारा नहीं, पूरे देश का है।” कुछ बोले – “मॉल वालों का नियम है, इतना मुद्दा क्यों बना रहे हो?” नौजवान बोले – “भैया, हम आपके साथ हैं, सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाएंगे।”

मां चुप थीं, पिता ने अखबार दिखाया – “देश का जवान, समाज का अपमान”। अर्जुन के मन में द्वंद्व था – क्या सचमुच मैं अपमानित हुआ हूं? या यह सिर्फ समाज का दिखावा है? वह रात भर जागता रहा, उसे अपनी ट्रेनिंग, युद्ध के मैदान, और साथी की शहादत याद आई। उसके जख्म उसे बार-बार याद दिलाते थे कि उसने देश के लिए खून बहाया है।

वह सोचने लगा – क्या समाज हमें सिर्फ युद्ध के समय याद करता है? शांति के समय भूल जाता है? या हमें सिर्फ पोस्टर और परेड तक सीमित कर दिया गया है? उसकी आंखें भीग गईं, पर आंसू पोंछ लिए। बोला – “मैं शिकायत नहीं करूंगा, शायद किस्मत खुद जवाब देगी।”

तीसरे दिन तक यह घटना पूरे देश में चर्चा का विषय बन चुकी थी। टीवी, सोशल मीडिया, अखबार – हर जगह यही सवाल था – “क्या वर्दी अपमान की वजह बन सकती है?” आखिर किसी पत्रकार ने खोजबीन की और पता चला कि कैप्टन अर्जुन सिंह शौर्य चक्र विजेता है। यह खबर फैलते ही पूरा देश दंग रह गया।

मॉल मैनेजमेंट ने अर्जुन से संपर्क किया और प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर माफी मांगी। कहा – “हम कैप्टन अर्जुन सिंह को सम्मानित करेंगे।” लेकिन अर्जुन ने शांत स्वर में कहा – “सम्मान मंच पर फूल देने से नहीं, रोजमर्रा के व्यवहार से मिलता है।”

कुछ महीनों बाद अर्जुन गांव लौटा। स्कूल के बच्चों ने कहा – “सर, हम भी बड़े होकर फौजी बनना चाहते हैं!” अर्जुन मुस्कुराया – “फौजी बनना गर्व की बात है, लेकिन उससे भी बड़ी बात है अच्छा इंसान बनना। अगर हर इंसान अपना काम ईमानदारी से करे, तो देश खुद सुरक्षित हो जाएगा।”

गांव के लोग भावुक होकर उसे गले लगा लेते हैं। रात को छत पर बैठकर अर्जुन तारों को देखता है और सोचता है – “आज भी सीमा पर मेरे साथी चौकसी कर रहे होंगे। मेरा अपमान सिर्फ एक घटना थी, लेकिन उसी घटना ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया।”

उसकी आंखों में चमक थी। वह बुदबुदाया – “सम्मान फूल-माला में नहीं, दिलों में होना चाहिए। और अब मुझे यकीन है कि लोग यह समझने लगे हैं।”