कर्नल साहब का मॉल टेस्ट
दिल्ली के सबसे बड़े शॉपिंग मॉल “सिटी सेंटर” में शनिवार की शाम थी। मॉल में हजारों लोग घूम रहे थे—बच्चे खिलौनों की दुकान के सामने, जवान लड़के-लड़कियाँ कपड़ों की शॉपिंग में व्यस्त, तीसरे फ्लोर पर मूवी थिएटर में नई फिल्म का पहला दिन।
इसी भीड़ में एक बूढ़ा आदमी धीरे-धीरे चल रहा था। उसके कपड़े बहुत पुराने और गंदे थे, हाथ में एक छोटा सा फटा बैग। वह थे **विजय सिंह**, उम्र 75 साल। पिछले 6 महीने से वे एक खास काम कर रहे थे। आज वे इस मॉल में यह देखने आए थे कि लोग किसी गरीब बूढ़े आदमी के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। यह उनका तीसरा ऐसा एक्सपेरिमेंट था।
जब वे टिकट की लाइन में खड़े हुए, तो आसपास के लोग उन्हें अजीब नजरों से देखने लगे।
एक महिला ने अपने बच्चे से कहा, “बेटा इधर आ जा, इस अंकल के पास मत जा।”
एक युवक ने अपने दोस्त से कहा, “यार, यहां भिखारी भी आते हैं क्या? इसे कैसे अंदर जाने दे रहे हैं?”
कर्नल साहब सब सुन रहे थे, लेकिन चुप थे। वे जानते थे कि यही सब देखने के लिए वह यहाँ आए हैं।
टिकट काउंटर पर राज नाम का एक 28 साल का लड़का बैठा था। जब उसने कर्नल साहब को देखा, तो चेहरा बिगड़ गया—
“अरे भैया, आप यहाँ क्या कर रहे हैं? यह जगह आपके लिए नहीं है।”
कर्नल साहब ने धीमी आवाज में कहा, “बेटा, मुझे एक टिकट चाहिए। वीर योद्धा फिल्म देखनी है।”
राज हँसा—”अंकल, यह टिकट 300 रुपये की है। आपके पास इतने पैसे हैं? और फिर यह फिल्म आपकी समझ में आएगी भी?”
आसपास खड़े लोग भी हँसने लगे। कुछ लोग मोबाइल से वीडियो बनाने लगे।
एक व्यापारी ने कहा, “यह बूढ़े लोग आजकल कहाँ-कहाँ घुसने की कोशिश करते हैं। इनका यहाँ क्या काम?”
कर्नल साहब ने अपने बैग से एक मोड़ा हुआ कागज निकाला और राज को दिया। वह कागज पैसे नहीं था, बल्कि कुछ और था।
राज ने बिना देखे कागज वापस कर दिया—”अंकल, मजाक मत करिए। या तो पैसे दो या यहाँ से चले जाओ।”
भीड़ बढ़ती जा रही थी। कोई कह रहा था सिक्योरिटी बुलाओ, कोई कह रहा था बेचारा बूढ़ा है, जाने दो।
कर्नल साहब ने अपना पुराना मोबाइल निकाला, एक नंबर मिलाया और सिर्फ तीन शब्द कहे—”मैं यहाँ हूँ।”
फोन रखकर वे चुपचाप खड़े रहे। उनके चेहरे पर वही शांति थी, लेकिन आँखों में कुछ अलग था।
राज और दूसरे लोग समझ नहीं पा रहे थे कि यह बूढ़ा आदमी किसे फोन कर रहा था।
अगले 5 मिनट में जो हुआ, उसने सबकी जिंदगी बदल दी।
परीक्षा अब अगले स्तर पर थी।
भीड़ और बढ़ गई। राज ने मैनेजर अमित सिंह (35 साल) को बुलाया—”सर, यह बूढ़ा आदमी बिना पैसे के टिकट मांग रहा है और जाने का नाम नहीं ले रहा।”
अमित ने सख्त आवाज में कहा—”यह जगह आपके लिए नहीं है। यहाँ बहुत महंगी फिल्में चलती हैं।”
कर्नल साहब बोले—”बेटा, मैं सिर्फ एक फिल्म देखना चाहता हूँ। वीर योद्धा देखना चाहता हूँ।”
अमित हँसा—”अंकल, वह फिल्म आर्मी के बारे में है। आपको समझ भी आएगी? आपके पास 300 रुपये हैं?”
आसपास के लोग अब खुलकर कमेंट करने लगे—
“अरे कोई इसे यहाँ से हटाओ, बच्चों के सामने अच्छा नहीं लग रहा।”
“यार, यह बूढ़े लोग कहीं भी घुसने की कोशिश करते हैं। इसे बाहर निकालो।”
कुछ लोग वीडियो बना रहे थे—”यह वायरल हो जाएगा।”
कुछ लोगों को दया भी आ रही थी।
एक बुजुर्ग महिला बोली, “बेचारा है, हो सकता है इसके पास पैसे हों।”
एक स्कूल टीचर ने कहा, “इसके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए।”
अमित ने सिक्योरिटी गार्ड राम प्रकाश (45 साल) को बुलाया—”इस अंकल को प्यार से बाहर ले जाओ।”
राम प्रकाश कर्नल साहब के पास आया—”अंकल, आप चलिए यहाँ से। आपका यहाँ कोई काम नहीं है।”
कर्नल साहब ने वही मोड़ा हुआ कागज राम प्रकाश को दिया—”बेटा, पहले यह देख लो।”
राम प्रकाश ने कागज खोला, उसकी आँखें फैल गईं।
वह कागज साधारण नहीं था। उसमें कुछ ऐसा लिखा था जिसे देखकर राम प्रकाश का चेहरा बदल गया।
“सर, ये क्या है?” उसकी आवाज काँप रही थी।
अमित ने पूछा, “क्या है, दिखाओ?”
लेकिन इससे पहले कि राम प्रकाश कुछ कह पाता, मॉल की मुख्य सिक्योरिटी के वॉकी-टॉकी में तेज आवाज आई—
“Attention all units! मॉल का सारा काम बंद करो, VIP मूवमेंट है, सभी फ्लोर को सील करो!”
सभी हैरान रह गए।
मॉल में अचानक सैकड़ों सिक्योरिटी गार्ड आ गए, मुख्य गेट बंद हो गए, एस्केलेटर रुक गए।
अमित घबराया—”यह क्या हो रहा है, किसकी वजह से?”
राम प्रकाश ने काँपती आवाज में कहा—”सर, यह कागज… इसमें लिखा है कि यह आदमी…”
उससे पहले ही मॉल के मुख्य दरवाजे से कुछ लोग तेजी से अंदर आए। फॉर्मल कपड़े, पुलिस अधिकारी साथ में।
भीड़ में डर फैल गया, बच्चे रोने लगे।
अमित ने राज से कहा—”यार, हमें लगता है हमने कोई बड़ी गलती की है।”
राज का चेहरा पीला पड़ गया। उसे एहसास हो रहा था कि जिसे वह साधारण बूढ़ा आदमी समझ रहा था, वह कोई साधारण इंसान नहीं था।
कर्नल साहब अब भी शांत खड़े थे।
अब सबकी नजरें उन पर थीं।
मुख्य दरवाजे से जो लोग आए, उनमें सबसे आगे एक आदमी था—उसके कंधे पर तीन सितारे, वर्दी पर नाम लिखा था **जनरल राकेश वर्मा**।
वह सीधे कर्नल साहब के पास आया, सलाम किया—”जय हिंद सर! माफ करिए सर, हमें देर हो गई।”
सभी लोग हैरान रह गए—यह जनरल इस बूढ़े आदमी को “सर” क्यों कह रहा था?
कर्नल साहब ने धीमी आवाज में कहा—”जय हिंद राकेश, कोई बात नहीं, मैं ठीक हूँ।”
अमित मैनेजर की सांस फूल रही थी, राज काउंटर के पीछे छुप गया था, राम प्रकाश के हाथों से वह कागज गिर गया था।
जनरल वर्मा ने आसपास के लोगों को देखा—आँखों में गुस्सा था।
“कौन है यहाँ का मैनेजर?”
अमित काँपते हुए आगे आया—”जी सर, मैं हूँ।”
जनरल बोले—”आपको पता है यह कौन हैं?”
अमित हकलाया—”नहीं सर, हमें लगा…”
जनरल बोले—”यह **कर्नल विजय सिंह** हैं, परमवीर चक्र विजेता, 1999 के कारगिल युद्ध के हीरो!”
जनरल की आवाज पूरे फ्लोर में गूंज गई।
सभी लोग एक-दूसरे का मुँह देखने लगे।
परमवीर चक्र का मतलब सब जानते थे—यह भारत का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार है।
जनरल ने आगे कहा—
“1999 में जब पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल पर कब्जा किया था, तब इन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए दुश्मन के कब्जे वाली पहाड़ी पर हमला किया था।
इन्होंने अकेले ही 15 दुश्मन सैनिकों से लड़ाई की। इनकी वजह से हमारे 200 सैनिकों की जान बची थी।
लेकिन इन्हें गोली लगी और यह बुरी तरह घायल हो गए थे।”
राज काउंटर से बाहर आया, आँखों में आँसू थे।
जनरल ने बताया—”इनकी वीरता की कहानी पर ही ‘वीर योद्धा’ फिल्म बनी है। यही वह फिल्म है जो आज यहाँ चल रही है।”
सभी लोग दंग रह गए।
जिस फिल्म का टिकट कर्नल साहब खरीदना चाहते थे, वह उन्हीं की जिंदगी पर बनी थी।
अमित के पैरों तले जमीन खिसक गई, राज रोने लगा।
एक मीडिया व्यक्ति भी जनरल के साथ आया था।
उसने कहा—”जी हाँ, कर्नल साहब ने इस फिल्म के सारे पैसे भारतीय सेना को दान कर दिए हैं। करोड़ों रुपए इन्होंने अपने पास नहीं रखे।”
भीड़ में एक बुजुर्ग आदमी आगे आया, आँखों में आँसू थे।
उसने कर्नल साहब के पैर छुए—”सर, मैं भी फौजी था। आपकी कहानी मैंने सुनी है। माफ करिए सर, हमें पता नहीं था।”
एक के बाद एक लोग आगे आने लगे।
वह महिला जिसने अपने बच्चे को कर्नल साहब से दूर किया था, वह भी आई—”सर, मुझे माफ करिए, मैं बहुत गलत थी।”
वह रो रही थी।
कर्नल साहब ने सबको रोका—”रुकिए सब लोग। मैं किसी से नाराज नहीं हूँ।”
उनकी आवाज में दया थी।
“मैं यहाँ इसलिए आया था कि देखना चाहता था कि हमारे समाज में अब भी कितनी मानवता बची है।”
सभी लोग चुप होकर सुनने लगे।
“मैंने पिछले 6 महीने में अलग-अलग जगह जाकर यह टेस्ट किया है। आज मैंने देखा कि अधिकतर लोग किसी को उसके कपड़ों से जज करते हैं।”
राज रोते-रोते बोला—”सर, हमसे बहुत बड़ी गलती हुई है, माफ करिए सर।”
कर्नल साहब ने उसके कंधे पर हाथ रखा—
“बेटा, यह गलती सिर्फ तुम्हारी नहीं है, यह पूरे समाज की गलती है।”
उन्होंने सबकी तरफ देखा—
“याद रखिए, किसी भी इंसान की इज्जत उसके कपड़ों से नहीं, बल्कि उसके काम से होती है।”
जनरल वर्मा बोले—”सर, आपको वह टिकट मिल गया जो आप चाहते थे?”
कर्नल साहब मुस्कुराए—”हाँ राकेश, मुझे वह टिकट मिल गया जो मैं चाहता था। आज मुझे पता चल गया कि हमारे समाज को कितनी शिक्षा की जरूरत है।”
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**सीख:**
किसी भी इंसान की इज्जत उसकी वर्दी, कपड़े या पैसे से नहीं, बल्कि उसके कर्म और योगदान से होती है।
मानवता सबसे बड़ी पहचान है।
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**जय हिंद! जय भारत!**
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