सीतापुर की सरोजनी – एक मां, एक सपना
गांव का नाम था सीतापुर। मिट्टी की संकरी गलियां, टूटी झोपड़ियां और खेतों के बीच बसा छोटा सा कस्बा। यहां के लोग सूरज के साथ उठते और अंधेरा गिरने से पहले ही थक कर गिर पड़ते। दिन भर की मेहनत, पसीना और बदले में बस इतना कि दो वक्त का गुजारा हो सके। लेकिन सरोजनी के घर में यह दो वक्त भी कई बार नसीब नहीं होता था।
सरोजनी की उम्र मुश्किल से 35 रही होगी, लेकिन चेहरे की झुर्रियां और आंखों की थकान देख कोई उसे 50 से कम का नहीं समझता। पति रघुनाथ खेतों में मजदूरी करता था, लेकिन उसकी कमाई का बड़ा हिस्सा शराब और जुए में चला जाता। घर चलाने की जिम्मेदारी सरोजनी पर ही थी। कभी खेतों में काम, कभी गांव की औरतों के कपड़े धोना, कभी शादी-ब्याह में बर्तन मांझना—कुछ भी कर लेती थी। बस इतना कि बेटा आरव की पढ़ाई कभी रुक ना जाए।
आरव पढ़ाई में मग्न था। उसकी आंखों में भविष्य की चमक थी। लेकिन पेट में भूख की ज्वाला भी कम नहीं। सरोजनी ने थाली में रखी बड़ी रोटी उठाई और बेटे की ओर बढ़ा दी। “ले बेटा, खा ले।”
आरव ने तुरंत सिर उठाया, “अम्मा, आप खा लो। आपने तो सुबह से कुछ नहीं खाया है।”
सरोजनी मुस्कुराई। वो मुस्कान सच्ची नहीं थी, बल्कि मजबूरी की परतों में छिपी हुई थी। “मैं खा चुकी हूं। तू बस पढ़ाई कर और रोटी खा ले। कल तेरी परीक्षा है ना?”
आरव ने हिचकिचाते हुए रोटी उठा ली। मां के चेहरे पर सच्चाई की छाप पढ़ने की कोशिश की, लेकिन मां की आंखें हमेशा की तरह अपने दर्द को छुपाने में सफल रही।
रोटी खाते-खाते आरव बोला, “अम्मा, मैं बड़ा होकर आपको एक बड़ा घर बनवाऊंगा। आप रोज भूखे नहीं सोएंगी।”
सरोजनी ने बेटे का सिर सहलाया। उसकी आंखों से आंसू छलकने ही वाले थे, लेकिन उसने तुरंत पल्लू से उन्हें पोंछ लिया। “मुझे कुछ नहीं चाहिए रे। बस तू पढ़-लिख कर आदमी बन जा। वही मेरा सपना है।”
अगले हफ्ते स्कूल में तिमाही परीक्षा की फीस जमा करनी थी। सरोजनी के पास बस ₹55 थे, जरूरत 70 की थी। रघुनाथ ने फिर शराब पी रखी थी और घर के बाहर नीम के पेड़ के नीचे लड़खड़ाता पड़ा था। सरोजनी ने अपनी कांच की चूड़ियों को देखा, उनमें भी उसके सपनों की खनक थी।
वह मिश्रा सर के घर पहुंची। “मास्टर जी, फीस…” इतना कहा ही था कि उसकी आंखें भर आईं।
मिश्रा सर ने आरव की कॉपी उठा ली, जिसमें साफ अक्षरों में हल किए प्रश्नों की कतार थी। “फीस मेरी तरफ से।” उन्होंने कहा, “पर एक शर्त—आरव रोज अतिरिक्त एक घंटा मेरे साथ पढ़ेगा।”
सरोजनी की झिझक टूटी। “आप भगवान हो मास्टर जी।”
उस रात आरव ने किताबें खोली तो पन्नों के किनारे जैसे रोशनी देने लगे। वह जानता था अब मेहनत का हर मिनट मां की भूख से बड़ा पाप होगा अगर वह ढीला पड़ा।
रघुनाथ की लत घर को खा रही थी। एक शाम वह घर लौटा तो जेब में मजदूरी के पैसे नहीं थे। सरोजनी ने पूछा तो वह चीखा, “तू ही तो बड़ा काम कर रही है ना। चल, खिला मुझे तेरी पढ़ाई।”
आरव दरवाजे पर खड़ा कांप रहा था। तभी पास की झोपड़ी में झगड़ा बढ़ते-बढ़ते आग सी फैल गई। लोग दौड़े, बाल्टी से पानी फेंका। उस हड़बड़ी में रघुनाथ ने देखा, सरोजनी पड़ोसी के बच्चों को बाहर खींच रही है, अपने हाथ जला रही है।
जब सब शांत हुआ तो रघुनाथ के सामने अपने किए का आईना था। वो देर रात नीम के नीचे रोया।
अगली सुबह उसने आरव से कहा, “बेटा, मुझे माफ कर। मैं कोशिश करूंगा।”
यह कोशिश छोटी थी, अधूरी थी, मगर घर के भीतर एक टूटती दीवार में दरार के संग रोशनी भी घुस आई।
समय घिसटते-घिसटते दौड़ पड़ा। आरव दसवीं में था। गांव के तालाब के किनारे बैठकर वो सूत्र रटता और मां खेत से लौटकर उसके पास बैठ जाती—थकी मगर जागती आंखों के साथ।
“अम्मा, फिजिक्स के सवाल रह जाते हैं।”
“रह भी जाए तो डर मत। जहां अटक जाए, वही दुगुनी मेहनत लगा।”
मां की बातों में सादगी थी, पर असर गहरा।
मिश्रा सर ने स्कूल में एक पुरानी कंपास पेटी, दो संदर्भ पुस्तकें दी। आरव ने उन पर ऐसे लाइनें खींची कि मानो हर वृत्त के केंद्र में उसका सपना धड़क रहा हो।
परीक्षा के दिन सरोजनी ने चुपके से अपने हिस्से की रोटी फिर आरव की थाली में सरकाई। “आज पूरा खाकर जा।”
पेपर खत्म हुए। रिजल्ट वाले दिन पूरे स्कूल के बाहर भगदड़ थी। बोर्ड पर जब सूची टंगी तो सबसे ऊपर लिखा था—आरव रघुनाथ।
सरोजनी का हाथ कापा। “मेरा बेटा…” उसकी आवाज टूट गई, लेकिन आंसू जैसे विजय पताका बनकर बहने लगे।
मिश्रा सर ने कहा, “आरव, अब इंटर के बाद शहर जाना होगा। वहीं से आगे की दुनिया खुलती है।”
शहर—स्टेशन का शोर, भीड़, किराए का कमरा और सस्ती मेज का खाना। शुरुआत में सब कुछ अनजान। आरव ने शाम को एक किताबों की दुकान में पार्ट टाइम पकड़ लिया।
किताबें सजाते समय वो हर शीर्षक को हथेली पर रोक कर पढ़ता, जैसे मित्रों से मुलाकात।
सरोजनी ने पहली बार अपना सोने का नाक का छोटा सा फूल गिरवी रख दिया और कुछ पैसे मनीडर से भेज दिए। “तेरी किताबों में मेरा गहना जमके,” उसने पत्र में लिखा।
कमरे में ना बिजली का पंखा ढंग से चलता, ना खिड़की बंद होती, मगर रातों को शब्द हवा काटते हुए कानों में कहते—पढ़ते रहो। और आरव पढ़ता रहा।
इंटर के बाद प्रवेश परीक्षा—आरव ने इंजीनियरिंग का फॉर्म भरा, साथ ही डिग्री कॉलेज के लिए भी।
नतीजा आया—इंजीनियरिंग प्रवेश में वह कुछ अंकों से चूक गया। वह देर तक छत को घूरता रहा।
फोन पर मां हंसी, “सी हार गई क्या?”
“अम्मा, हारना तब है जब हिम्मत छोड़ दे। तू अभी थक कर बैठा है। थकावट उतार, कल से फिर लग जा। रास्ते वही जीतते हैं, जो एक कदम और आगे रख दे।”
उसने अगले दिन से दोबारा टाइम टेबल बनाया। डिग्री कॉलेज में दाखिला लिया—गणित ऑनर्स। सुबह लाइब्रेरी, दोपहर क्लास, शाम काम।
साल बीता तो कॉलेज टॉपर वही था। ठोकर ने रास्ता बदल दिया, कदम नहीं रोके।
कॉलेज में एक सेमिनार में जिलाधिकारी आए। उनके शब्दों में प्रशासन का कठोरपन नहीं, लोक सेवा की सादा चमक थी।
आरव को लगा, यही तो वह करता आया है—समस्याएं देखना, समाधान ढूंढना, लोगों के लिए खड़ा होना।
मिश्रा सर ने भी कहा, “तुम्हारे भीतर सिविल सर्विस का धैर्य है।”
यूपीएससी—यह नाम सुनते ही शहर में कोचिंग, नोट्स, टेस्ट सीरीज का जंगल नजर आता था।
पैसों की बात आई तो आरव ठिटका। उधर सरोजनी ने अपने हाथों की चांदी की पायल उतार दी। “यह भी तू रख ले।”
“अम्मा, यह क्यों?”
“क्योंकि पेट की भूख मुझे पता है और सपनों की भूख तुझसे सीखी है।”
दिल्ली की तंग गलियों में एक कमरा, सस्ता पेइंग गेस्ट और मेज पर रखा एक बल्ब—इतना ही संसार था।
दीवार पर उसने एक कागज चिपकाया—मां की रोटी का कर्ज।
नीचे छोटा सा लिखा—क्लियर प्रीलिम्स, मेंस, इंटरव्यू।
दिल्ली में सर्दियां थी। रजाई पतली, हवा तेज। वो अक्सर रात का खाना छोड़ देता ताकि नोट्स का ज़ेरॉक्स करा सके।
भूख की पुरानी मित्रता लौट आई, पर अब उसे शर्म नहीं थी। यह भूख शिकार नहीं कर रही थी, तैयार कर रही थी।
एक दिन फोन आया—मिश्रा सर की तबीयत बिगड़ गई थी।
आरव भागकर गांव पहुंचा। मिश्रा सर ने उसका हाथ पकड़ा, “मेरे लड़के, हारना नहीं। जिस दिन इंटरव्यू रूम में बैठना, समझ लेना तुम वहां अकेले नहीं हो। तुम्हारी मां, तुम्हारा गांव, तुम्हारे मास्टर सब तुम्हारे साथ खड़े हैं।”
आरव की आंखें भर आईं। वापसी पर उसने पढ़ाई और कड़ी कर दी।
उधर सरोजनी की खांसी बढ़ने लगी। वह दवा नहीं लाती, कहती—काढ़ा पी लूंगी। असल वजह वह खर्च था जो दवा पर लगेगा। वह चाहती थी हर रुपया आरव की किताब बन जाए।
प्रीलिम्स क्लियर, मेंस दे दिया। इंटरव्यू कॉल नहीं आया। मार्कशीट में चार अंकों की कमी थी।
दिल टूटता है, मगर जमीन उसी जगह सबसे ठोस होती है, जहां पानी सबसे ज्यादा गिरता है।
वो अगले ही दिन फिर टेबल पर बैठ गया। अपनी कमजोरियां चिन्हित की—ऐंसर लिखने की गति, एथिक्स केसरी और आर्टिकल्स की समसामिकता।
उसने सुबह अखबार को तारीख, विषय, मुख्य बिंदु—अपनी डायरी में बदल दिया। हर रविवार मॉक इंटरव्यू देता।
शुरुआत में लड़खड़ाता, बाद में उत्तरों में ठहराव आ गया।
महीनों बाद एक शाम फोन टिमटिमाया—इंटरव्यू कॉल लेटर जारी।
उस रात उसने मां को फोन किया, “अम्मा, इंटरव्यू है तो कपड़े धोकर रख, जूते पॉलिश कर और अपने जवाबों को साफ रखना जैसे दिल रखता है।”
मां की खांसी उस रात फिर बढ़ी, पर उसने फोन पर हंसी ही सुनाई दी।
दिल्ली—धूप का एक टुकड़ा बादलों से निकलकर यूपीएससी भवन पर पड़ा हुआ था।
इंतजार कक्ष में दर्जनों चेहरे अपने-अपने सपनों का बोझ लिए।
आरव जब अंदर गया तो सामने पैनल था। एक सदस्य ने पूछा, “गांव से दिल्ली तक सबसे कठिन क्या था?”
आरव ने सांस संभाली, “कठिनाई तो रोज की थी। पर सबसे कठिन था मां का झूठ पकड़ ना पाना। हर बार वह कहती थी, मैं खा चुकी हूं और मैं खा लेता था। आज समझता हूं भूख से बड़ा कोई टैक्स नहीं होता। वो सीधे इंसान की इज्जत से वसूलती है। मैं चाहता हूं कि मेरी नौकरी का हर दिन उस टैक्स का रिफंड बने।”
कमरे में सन्नाटा पसरा। फिर सवालों की बौछार—नीति, प्रशासन, जल प्रबंधन, शिक्षा, स्थानीय शासन।
वह जब नहीं जानता था, साफ कह देता, “मैं नहीं जानता, पर जानने का तरीका बता सकता हूं।”
इंटरव्यू खत्म हुआ। बाहर निकलकर उसने आसमान देखा। दिल में अजीब शांति थी। जैसे वर्षों के दौर के बाद कदम अब जमीन की धड़कन सुन पा रहे हों।
परिणाम वाली सुबह—21 मई। वेबसाइट ठहर कर खुलती, भीड़ जैसे डिजिटल दुनिया में भी उमड़ आई थी।
रूममेट ने चिल्लाकर कहा, “खुला!”
आरव ने सूची में उंगली दौड़ाई, रुकी, कापी फिर ठहर गई—आरव रघुनाथ, रैंक 27।
वो हंसा भी, रोया भी। पहली कॉल—”मांगो। अम्मा, हो गया।”
उधर से खामोशी, फिर धीमी आवाज, “मेरा पीछा छोड़ दे भूख। मेरे बेटे ने जीत लिया।”
वह उसी शाम गांव पहुंचा। स्टेशन पर पूरा सीतापुर था। धूल नहीं, मगर तालियां थीं। फूल नहीं, मगर आंखों की चमक थी।
सरोजनी दूर से चली आ रही थी—पतली, मगर आंखों में समुद्र। उसने बेटे का चेहरा पकड़ा, माथा चूमा।
“अब खाएगी तू?” आरव ने पूछा।
“आज जी भर,” उसने कहा, “पर पहले तू कसम खा, कोई भी मां भूखे पेट ना सोए। इसके लिए जो बन पड़ेगा करेगा।”
“कसम,” आरव ने कहा।
और उस कसम में उसके वर्षों की भूख, मां का हर छोड़ा निवाला और मिश्रा सर का विश्वास शामिल था।
रघुनाथ ने शराब छोड़ दी थी। पूरी नहीं, पर धीरे-धीरे। वो पंचायत भवन की मरम्मत में लग गया।
एक शाम वो आरव के पास आया, “बेटा, मैंने बहुत बिगाड़ा। अगर तू कहे तो मैं स्कूल में चपरासी लग जाऊं। बच्चों के जूते पॉलिश करूंगा, पर अब घर को थामना है।”
आरव ने उसे गले लगाया, “बाबा, घर को माफी नहीं चाहिए, जिम्मेदारी चाहिए। कल से स्कूल।”
अगले दिन रघुनाथ ने स्कूल की घंटी बजाई, समय पर। उसे अपने भीतर वर्षों बाद एक आवाज सुनाई दी।
उस दिन सरोजनी ने पहली बार अपने लिए खीर बनाई। थोड़ी सी, पर मीठी।
“मीठा?” आरव ने पूछा।
“इतना कि आंखें भर आए,” उसने मुस्कुराकर कहा।
आरव ने जिले में एक मॉडल स्कूल शुरू करवाया। सरकारी इमारत पर निजी जैसी सजगता। दीवारों पर बच्चों की पेंटिंग, पुस्तकालय में खुले समय और हर शुक्रवार मां मीट—जहां माताएं स्कूल आतीं, चाय पीतीं और शिक्षक से सीधे बात करतीं।
साथ ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के साथ रात की रसोई शुरू हुई, जहां आपातकाल में आने वाले मरीजों के परिजनों को मुफ्त गर्म खिचड़ी मिलती।
उस खिचड़ी की पहली थाली सरोजनी ने बांटी, “यह खिचड़ी उस रोटी की बहन है,” वो हंस देती, “जो मैंने सालों पहले छोड़ दी थी।”
औरतें कतार में आईं, बच्चों के हाथों में कटोरियां। धुएं में घुलती हल्दी की खुशबू—आरव के लिए कोई मसाला नहीं, एक वादा थी।
कि भूख अब दया का विषय नहीं, अधिकार है।
कुछ महीनों बाद आरव ने सीतापुर में एक समारोह रखा। स्कूल का नया भवन जिसमें मिश्रा सर के नाम की एक बड़ी पट्टिका लगनी थी।
भीड़ जुटी, पट्टिका से पर्दा हटाया गया—मिश्रा गुरु प्रसाद पुस्तकालय।
आरव ने कहा, “यह उस हाथ के नाम है जिसने मेरी कॉपी में पहली बार बहुत अच्छा लिखा था।”
मिश्रा सर की आंखें भीग गईं।
सरोजनी ने धीमे से आरव के कान में कहा, “आज मेरा पेट सचमुच भर गया।”
समारोह के बाद आरव उस झोपड़ी के खाली आंगन में गया, जहां कभी चूल्हा बुझा रहता था। अब वहां ईंटों की दीवार खड़ी थी।
नया घर, जिसका दरवाजा खुलते ही रसोई थी। दीवार पर एक तख्ती—मां की रसोई।
“अम्मा, एक फोटो यहीं,” उसने कहा।
कैमरा क्लिक हुआ। एक घर, एक रसोई, एक मां और एक बेटा—सब एक फ्रेम में।
जीवन सीधी रेखा नहीं है। एक रात सरोजनी की पुरानी खांसी अचानक तेज हो गई। अस्पताल ले जाया गया—निमोनिया।
आईसीयू के बाहर बैठा आरव वही लड़का हो गया था, जो कभी मां की थाली में अपनी रोटी का हिस्सा रख देता था।
उसने मन ही मन कहा, “भगवान, अगर सौदे होते हैं तो मेरी सारी पोस्टिंग, प्रमोशन, चमक सब ले लो। बस मेरी मां की सांसें लौटा दो।”
सुबह जब डॉक्टर बाहर आए तो बोले, “खतरा टल गया है, पर कमजोरी बहुत है। पोषण का खास ख्याल रखना होगा।”
आरव ने सरोजनी का हाथ थामा—पतला, पर गर्म।
“अम्मा, अब मेरी बारी है। तुम नहीं, मैं अपना हिस्सा छोडूंगा ताकि तुम्हारी थाली कभी खाली ना रहे।”
सरोजनी मुस्कुराई, “नहीं, अब कोई हिस्सा नहीं छोड़ेगा। अब हम दोनों मिलकर पूरा खाएंगे।”
जिले में ‘कोई मां भूखी नहीं’ अभियान शुरू हुआ। सरकारी योजनाओं के जोड़-घटाव के बीच एक सरल सूत्र—राशन कार्ड पर मातृ प्राथमिकता, आंगनबाड़ी में रात तक खुला रसोईघर और ग्राम निगरानी दल, जिसमें तीन माताएं शामिल, जो हर सप्ताह घर-घर जाकर पूछतीं—”मां, तुमने खाना खाया?”
शुरुआत में लोग हंसे, “अब यह भी पूछने की बात है?”
पर महीनों बाद आंकड़े बोले—कुपोषण दर गिरा, स्कूल में लड़कियों की उपस्थिति बढ़ी और प्रसव के बाद एनीमिया की रफ्तार धीमी हुई।
राज्य से सराहना आई।
पर आरव के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार उस दिन मिला जब एक छोटी लड़की अपनी मां का हाथ पकड़ कर बोली, “अम्मा, आज आप पहले खाइए। मास्टरनी ने कहा है मां पहले।”
सरोजनी की आंखों में फिर वही समुद्र उभरा।
राजधानी में राज्य स्तरीय कार्यक्रम था। मंच पर आरव को बुलाया गया—कामयाब जिलाधिकारियों में उसका नाम।
उसने माइक पर कहा, “मुझे सम्मान नहीं, एक सुधार चाहिए। नीतियों में मातृपोषण धारा जोड़े ताकि हर योजना में मां का पहला निवाला सुरक्षित रहे।”
हॉल में सन्नाटा, फिर तालियां।
कार्यक्रम के बाद उसने मां को वीडियो कॉल पर पूरा हॉल दिखाया, “अम्मा, यह सब तुम्हारा है। मेरा, क्योंकि जब मैं रोटी खाता था, तुम सपना खाती थी।”
उसने हंसते हुए कहा—स्क्रीन के उस पार एक मां अपनी हंसी में वर्षों की थकान को घोल कर पी रही थी—मीठी, हल्की, तृप्त।
News
कंपनी के गार्ड ने मजदूर को कंपनी में घुसने नहीं दिया, शाम होते ही मजदूर ने खरीद डाली कंपनी
कंपनी के गार्ड ने मजदूर को कंपनी में घुसने नहीं दिया, शाम होते ही मजदूर ने खरीद डाली कंपनी सुबह…
शादी के लिए घर बेच रहा था गरीब बाप, विदाई के वक्त बेटी ने ऐसा गिफ्ट दिया कि पूरे गाँव ने सलाम किया
बेटी का सम्मान: एक नई शुरुआत बरसात के बाद की मिट्टी की भीनी खुशबू पूरे गांव में फैल चुकी थी।…
Samajwadi Party MLA Ragini Sonkar Criticizes UP Government, Highlights Women’s Safety Concerns
Samajwadi Party MLA Ragini Sonkar Criticizes UP Government, Highlights Women’s Safety Concerns Lucknow: As the legislative session was adjourned indefinitely,…
Rashmi Desai First Morning Sasural after wedding 🥰 Rashmi’s Talking about Rashmi’s wedding
Rashami Desai Shares First Video After Marriage, Delights Fans Actress Rashami Desai has shared her first video post-marriage, marking a…
Jaya Bachchan’s Angry Outburst Goes Viral: Kangana Ranaut Joins the Controversy
Jaya Bachchan’s Angry Outburst Goes Viral: Kangana Ranaut Joins the Controversy Jaya Bachchan’s latest viral video, which captures the actress-turned-MP…
Aishwarya Rai’s Shocking statement after Jaya Bachchan Pushed a Man Trying To Take Selfie with Her!
Jaya Bachchan Confronts Man for Attempting Selfie Without Consent in Delhi Veteran actor and politician Jaya Bachchan was recently captured…
End of content
No more pages to load