खिड़की के बाहर से पढ़ने वाला बच्चा: आरव की कहानी
दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में, क्लास चार की सुबह थी। श्वेता मैडम ब्लैक बोर्ड पर फ्रैक्शंस पढ़ा रही थीं। उनके हाथ में चॉक, दिमाग में किताब की बातें, और चेहरे पर अहंकार। उन्हें लगता था कि उनकी पढ़ाई में कोई गलती नहीं हो सकती। बच्चों को समझाया—जब दोनों फ्रैक्शंस के डिनोमिनेटर सेम हों, तो न्यूमैरेटर्स को जोड़ दो। उन्होंने बोर्ड पर लिखा: 2/3 + 3/3 = 6/3। क्लास में बैठे 40 बच्चों ने नोट कर लिया, किसी ने सवाल नहीं पूछा।
लेकिन उसी वक्त खिड़की के बाहर से एक आवाज आई—”मैडम, आप गलत पढ़ा रही हैं।” सभी बच्चों की गर्दनें घूम गईं, खिड़की की ओर। वहां खड़ा था आरव—फटे कपड़े, पैरों में एक चप्पल, कंधे पर बोरी, लेकिन आंखों में आत्मविश्वास। 11 साल का गरीब बच्चा, जो कूड़ा बिनता था। उसने कहा, “मैडम, 2 – 3 क्या होता है?” मैडम ने गुस्से में पूछा, “तुम कौन हो? यहां क्यों हो?” बच्चे हंसने लगे—”कूड़ा बिनने वाला पढ़ना सिखा रहा है!”
आरव ने बिना डरे कहा, “अगर आपके पास दो सेब हैं और मैं तीन ले लूं, तो आपके पास -1 सेब बचेंगे।” फिर उसने बताया, “2/3 + 3/3 = 5/3।” मैडम का चेहरा तमतमा गया। उन्होंने आरव को पकड़कर प्रिंसिपल ऑफिस ले गईं। शिकायत की—”यह लड़का क्लास में दखल दे रहा है, मेरी गलती पकड़ रहा है। इसे निकाल दीजिए।”
प्रिंसिपल अरविंद मेहरा ने शांत होकर आरव से पूछा, “तुम पढ़ना क्यों चाहते हो?” आरव ने जवाब दिया, “क्योंकि मैं बड़ा आदमी बनना चाहता हूं, डॉक्टर, इंजीनियर या टीचर।” अरविंद मेहरा ने कहा, “ठीक है, एक टेस्ट करते हैं।” श्वेता मैडम ने फिर वही गलत जवाब दिया, लेकिन आरव ने सही उत्तर दिया—5/3 या 1.66।

प्रिंसिपल ने सबके सामने कहा, “श्वेता जी, आप गलत हैं। 15 सालों से बच्चों को गलत पढ़ा रही हैं। एक गरीब बच्चा खिड़की के बाहर से सुनकर सही उत्तर देता है। आपको शर्म नहीं आई?” श्वेता जी रोती हुई बाहर चली गईं।
अरविंद मेहरा ने आरव को स्कूल में रजिस्टर करवाया, किताबें, यूनिफॉर्म, शूज सब फ्री दिए। अब आरव खिड़की के बाहर नहीं, क्लास की बेंच पर बैठता है। उसके चेहरे पर खुशी थी, अपमान नहीं। प्रिंसिपल ने कहा, “बेटा, तुम्हारे जैसे बच्चे देश बदलते हैं। बस पढ़ते रहो।”
यह कहानी बताती है—टैलेंट अमीर की जागीर नहीं है, गरीबी कोई अपराध नहीं। एक गरीब बच्चा भी सबसे बड़ी टीचर को गिरा सकता है, और आसमान तक पहुंच सकता है। हर बच्चा पढ़ने लायक है, बस उसे मौका चाहिए।
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