एक अमीर बाप की घमंडी बेटी और एक साधारण लड़के की कहानी

दिल्ली के सबसे हाई क्लास कॉलेज, आर्यन हेरिटेज कॉलेज में हर दिन रॉयल शो जैसा माहौल रहता था। चमचमाती गाड़ियां, घमंड से भरी आंखें, सोशल मीडिया के लिए पोज करती लड़कियां—जैसे कॉलेज नहीं, कोई फैशन रनवे हो। उसी माहौल में एक दिन कॉलेज में उतरी अहाना वालिया, दिल्ली के मशहूर रियल एस्टेट टाइकून और राजनीतिक रसूखदार विक्रम वालिया की इकलौती बेटी। उसकी ब्लैक रेंज रोवर जैसे ही कॉलेज गेट पर रुकी, सबकी नजरें उसी पर टिक गईं। अहाना की खूबसूरती, उसकी चाल, लहजा और मुस्कान सब कुछ रुतबे में डूबा हुआ था। लड़कियां उसके जैसा बनना चाहती थीं, लड़के उसके आसपास मंडराते थे।

लेकिन उसी दिन कॉलेज में दाखिल हुआ विवान शर्मा। उसका पहनावा बहुत सादा था—हल्की टी-शर्ट, पुरानी जींस, सीधा सा बैग। लेकिन चेहरे पर आत्मविश्वास और आंखों में स्थिरता थी। पहली ही क्लास में प्रोफेसर ने प्रोजेक्ट असाइनमेंट के लिए ग्रुप्स बनाए और किस्मत का खेल था कि अहाना और विवान एक ही ग्रुप में आ गए। अहाना ने उसे देखा जैसे कोई गलती से थाली में नींबू रख दे। उसने तिरस्कार में कहा, “सीरियसली, मेरे साथ है?” फिर अपनी सहेली से बोली, “लगता है अब कॉलेज में स्कॉलरशिप वाले स्टूडेंट्स भी आ गए हैं।”

विवान ने सिर्फ एक सीधा जवाब दिया, “प्रोजेक्ट की डेडलाइन पास है, हमें समय बर्बाद नहीं करना चाहिए।” उसका जवाब सीधा था, लेकिन उसमें जो ठहराव था, वह अहाना को भीतर तक छू गया। अहाना के लिए यह नया था कि कोई उसकी बातों का असर न ले। वह तो जैसे उसकी मौजूदगी को तवज्जो ही नहीं दे रहा था। यहीं से शुरू हुआ टकराव—रुतबे और सादगी का।

अब अहाना ने ठान लिया कि वह विवान को उसकी औकात दिखाकर रहेगी। हर मौके पर लाइब्रेरी, कैंटीन, क्लासरूम—वह उसकी सादगी पर ताने कसती, कपड़ों पर टिप्पणी करती, शांत स्वभाव को कायरता समझकर उसे नीचा दिखाने की कोशिश करती। एक दिन लाइब्रेरी में जब विवान किताबों के पन्ने पलट रहा था, अहाना ने सबके सामने कहा, “अभी तक स्मार्टफोन नहीं खरीदा तुमने?” विवान ने किताब से नजरें नहीं हटाई, बस हल्की मुस्कान के साथ बोला, “ज्ञान का जरिया मायने रखता है, उसकी कीमत नहीं।” यह जवाब अहाना को चुप कर गया, लेकिन उसका अहंकार फिर बोल पड़ा।

अगले दिन कैंटीन में जब विवान साधारण खाना लेकर बैठा, अहाना ने कहा, “वाह, लगता है किसी गांव की मेस से खाना पैक करवा लाया है।” विवान ने शांति से जवाब दिया, “भूख पेट की होती है, स्टाइल की नहीं। खाना पेट भरने के लिए खाता हूं, सोशल मीडिया पर दिखाने के लिए नहीं।” इस बार कुछ लोग उसके जवाब से प्रभावित हुए। अहाना के लिए यह और भी खतरनाक था—विवान की चुप ताकत।

प्रोजेक्ट की मीटिंग्स के दौरान अहाना देखती कि विवान रिसर्च में डूबा रहता, कम बोलता, लेकिन जब भी कुछ कहता तो सटीक और समझदार होता। धीरे-धीरे अहाना को एहसास होने लगा कि जिसे वह बैकवर्ड समझती थी, उसकी सोच उससे कहीं ज्यादा साफ और फॉरवर्ड थी। लेकिन अहाना के अंदर जलन, हैरानी और शायद आकर्षण भी जन्म लेने लगा।

कुछ हफ्तों बाद कॉलेज में सालाना फेस्ट की तैयारी थी। अहाना हमेशा की तरह स्टार थी—डिजाइनर ड्रेस, लाखों का लहंगा, परफेक्ट मेकअप। लेकिन उसका ध्यान अब विवान की ओर भटक रहा था। विवान स्टेज के पीछे तकनीकी टीम के साथ काम कर रहा था—साउंड चेक, लाइट्स एडजस्ट, सबको निर्देश दे रहा था। अहाना ने उससे मजाक किया, “ओ हेलो टेक्निशियन बाबू, स्टेज पर आने की हिम्मत नहीं होती क्या?” विवान ने मुस्कुरा कर कहा, “हर किसी का स्टेज अलग होता है। कोई तालियों के बीच खड़ा होता है, कोई उन तालियों के पीछे की मेहनत में।” उसका जवाब सीधा दिल तक पहुंच गया।

फेस्ट का सबसे बड़ा आकर्षण था एक चैरिटी ऑक्शन। अहाना को पूरा यकीन था कि उसके पापा सबसे महंगी पेंटिंग खरीदेंगे। लेकिन जब नीलामी करोड़ों तक पहुंची, अचानक एक आवाज आई—”पांच करोड़!” पूरा हॉल चुप हो गया। जिसने बोली लगाई, वह मंच की ओर बढ़ा—वह कोई और नहीं, विवान शर्मा था। सादा कपड़ों में रहने वाला, सबकी नजर से दूर वही विवान। माइक पर उसकी पहचान बताई गई—भारत की सबसे बड़ी टेक कंपनी विराट टेक का संस्थापक और सीईओ। अहाना दंग रह गई। विवान ने अपनी पहचान छुपाकर कॉलेज में दाखिला लिया था ताकि वह आम छात्र की जिंदगी जी सके और सच्चे रिश्तों को पहचान सके।

अब पूरे कॉलेज में बस एक ही नाम गूंज रहा था—विवान शर्मा। लोग उससे दोस्ती करने को आतुर थे, सेल्फी लेने के बहाने ढूंढ रहे थे। लेकिन अहाना खुद से नजरें नहीं मिला पा रही थी। हर ताना, हर घमंड भरी बात अब उसके मन में गूंज रही थी। कई दिनों तक अहाना ने विवान से नजरें चुराई। लेकिन एक दिन उसने हिम्मत की, लाइब्रेरी में विवान के पास पहुंची—”विवान, मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हें गलत समझा, बहुत नीचा दिखाने की कोशिश की, लेकिन तुम सबसे ऊंचे निकले।” विवान ने मुस्कुराकर कहा, “तुमने मुझे कभी नहीं समझा और मैं कभी नाराज हुआ ही नहीं। तुम जैसी दिखती हो वैसी हो नहीं, बस अपने खोल में बंद थी।”

अहाना की आंखें भर आईं। पहली बार उसने खुद को हल्का महसूस किया। इसके बाद अहाना बदलने लगी—अब दिखावे से बाहर निकलकर विवान के आसपास सुकून ढूंढने लगी। वो अब उसके साथ बैठती, बातें सुनती, अपनी छोटी-छोटी गलतियों पर हंसने लगी। एक दिन विवान ने हंसते हुए कहा, “पहले की अहाना होती तो अब तक मुझे डिक्टेट कर रही होती।” अहाना मुस्कुरा कर बोली, “अब जो हूं वो शायद असली मैं हूं।” विवान की आंखों में चमक थी—जो सब कुछ कह गई।

कॉलेज में अब बदलाव महसूस होने लगा। अहाना मेहनत, सादगी और समझदारी का प्रतीक बन गई थी। लोग उसकी तारीफ करने लगे, लेकिन अब उसे फर्क नहीं पड़ता था। उसका ध्यान बस विवान पर था।

एक दिन बिजनेस इनोवेशन प्रोजेक्ट का ऐलान हुआ। विजेता को विराट टेक में इंटर्नशिप का मौका मिलता। अहाना ने दिन-रात मेहनत की—कोई डिजाइनर ड्रेस नहीं, बस लैपटॉप, रिसर्च और जुनून। उसने एक ऐसा ऐप बनाया जो भारत के गांवों में बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे सके। प्रेजेंटेशन के दिन उसने मंच से कहा, “यह मेरा सपना है। मैं चाहती हूं कि देश के बच्चों को पढ़ने का हक मिले और साधन भी। यह ऐप उम्मीद है।” पूरा ऑडिटोरियम तालियों से गूंज उठा।

लेकिन तभी एक लड़की सोनिया ने उस पर चोरी का इल्जाम लगाया। माहौल बदल गया। विवान ने दोनों प्रोजेक्ट्स की तुलना की और कहा, “सच वह होता है जो दिल से निकलता है और अहाना का प्रोजेक्ट उसकी सोच है। विजेता सिर्फ एक है—अहाना वालिया।” अहाना की आंखों से आंसू निकल पड़े। उसकी जीत अब ट्रॉफी की नहीं, बदलाव की शुरुआत थी।

उस शाम कॉलेज के गार्डन में अहाना ने विवान से कहा, “तुमने मेरी सोच, नजरिया और शायद दिल भी बदल दिया। मैं तुमसे प्यार करती हूं।” विवान ने उसका हाथ थाम लिया—”मैं तुम्हें पहले दिन से देख रहा हूं। प्यार दिखावे से नहीं, दिल से होता है। और हां, मैं भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूं।”

कुछ साल बाद समंदर के किनारे सादगी भरी शादी में अहाना और विवान हमेशा के लिए एक हो गए। जो कहानी कभी घमंड और तानों से शुरू हुई थी, अब समझदारी और प्यार की मिसाल बन गई।