गांधी चौक के अर्बन कुज़ीन रेस्टोरेंट में इंसानियत का सबक – राम मेहता की कहानी
सर्दियों की हल्की धूप थी, दोपहर के करीब 12 बजे। शहर की सबसे बड़ी, सबसे बिजी मार्केट—गांधी चौक। इसी चौक के कोने पर था शहर का सबसे मॉडर्न रेस्टोरेंट—अर्बन कुज़ीन। यहां आने वाले आधे लोग तो इसकी खूबसूरती और डेकोरेशन देखने आते थे, बाकी कंपनीज के मैनेजर्स, एग्जीक्यूटिव्स या बिजनेसमैन होते थे।
इसी भीड़ और चमक-धमक के बीच एक सादगी भरे बुजुर्ग, राम मेहता, रेस्टोरेंट के दरवाजे पर आकर रुकते हैं। उम्र लगभग 60 साल, ऑफ वाइट कुर्ता, साफ-सुथरा पजामा, घिसी हुई लेकिन चमकती लेदर चप्पल, कंधे पर कपड़े का पुराना झोला जिसमें से एक डायरी झांक रही थी।
राम मेहता दरवाजे के शीशे के पार देखते हैं। अंदर इंपोर्टेड फर्नीचर, सॉफ्ट येलो लाइटिंग, स्लो इंग्लिश म्यूजिक, स्मार्ट वेटर्स। वे एक कदम आगे बढ़ते हैं, तभी सिक्योरिटी गार्ड पूछता है—”सर, आपका रिजर्वेशन है?”
राम मेहता शांत स्वर में कहते हैं—”हाँ, राम मेहता नाम से।”
गार्ड रिसेप्शन पर कॉल करता है। कुछ ही देर में एक होस्टेस बाहर आती है—टैबलेट, ब्लूटूथ, मॉडर्न ड्रेस। वह राम मेहता को देखती है, एक बार झोले पर, फिर कुर्ते पर, फिर टैबलेट पर।
“यस सर, टेबल फॉर वन, प्लीज कम इन।”
उसकी मुस्कान में गर्मजोशी नहीं थी। राम मेहता हल्की मुस्कान देकर अंदर चले जाते हैं।
रेस्टोरेंट के अंदर एसी की ठंडी हवा थी। अलग-अलग टेबल्स पर लोग बिजनेस मीटिंग, डिजाइन डिस्कशन, सेल्फीज़ में व्यस्त थे। होस्टेस उन्हें कोने वाली टेबल पर बैठाती है—स्पष्ट तौर पर नॉन-प्रीमियम स्पॉट। राम मेहता खुद कुर्सी खींचते हैं, झोला नीचे रखते हैं, डायरी निकालते हैं और लिखना शुरू कर देते हैं।
उन्होंने मेन्यू नहीं उठाया, वेटर का इंतजार नहीं किया। बस लिखते रहे—जैसे देख रहे हों, समझ रहे हों, सब रिकॉर्ड कर रहे हों।
कुछ देर बाद एक वेटर आता है—”सर, ऑर्डर देंगे?”
राम मेहता डायरी बंद कर पेन साइड में रखते हैं—”एक फिल्टर कॉफी मिलेगी?”
वेटर कहता है—”यहां फिल्टर कॉफी नहीं है, कैपचीनो, लाटे या अमेरिकानो है।”
राम मेहता मुस्कुराकर कहते हैं—”ठीक है, कैपचीनो ला दीजिए।”
वेटर चला जाता है। राम मेहता फिर डायरी की तरफ देखते हैं। तभी उनकी नजर सामने काउंटर पर जाती है, जहां मैनेजर वेटर से कुछ कह रहा है। वेटर बुजुर्ग की तरफ देखता है, फिर हां में सिर हिलाता है।
कुछ देर बाद वेटर और मैनेजर दोनों आ जाते हैं।
मैनेजर कहता है—”सर, यह टेबल कॉर्पोरेट क्लाइंट्स के लिए रिजर्व होती है। अगर आप चाहें तो आपको दूसरी टेबल दे देते हैं, जो ज्यादा कम्फर्टेबल रहेगी।”
शब्द सीधे थे, लेकिन अंदर छुपा अपमान बहुत तीखा था।
राम मेहता आराम से पूछते हैं—”तो यह टेबल राम मेहता के लायक नहीं है, है ना?”
मैनेजर थोड़ा असहज होकर कहता है—”सर, हमें माफ कीजिए, आपको यह टेबल छोड़नी होगी।”
राम मेहता झोले से अपना लेटेस्ट iPhone निकालकर टेबल पर रखते हैं, कॉफी का घूंट भरते हैं, फोन अनलॉक करते हैं, WhatsApp पर एक मैसेज भेजते हैं।
फिर कहते हैं—”मैं अंदर चला जाऊंगा, पर 10 मिनट बाद। कोई मिलने आने वाला है।”
मैनेजर कुछ नहीं कहता, रिसेप्शनिस्ट को बुजुर्ग की तरफ इशारा करके हल्के गुस्से में कुछ कहता है। वेटर भी चला जाता है। आसपास के लोग राम मेहता को ऐसे देख रहे थे जैसे उन्होंने कोई बड़ा अपराध कर दिया हो।
लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था कि अगले 10 मिनट में सब बदलने वाला है।
अचानक होस्टेस, रिसेप्शनिस्ट, वेटर, मैनेजर, और गार्ड—पांचों के फोन बजते हैं। सबके चेहरे पर शॉक्ड एक्सप्रेशन।
मैनेजर का फोन अभी कान से लगा है, आंखों में पसीना, गर्दन झुकी हुई।
कॉल के दूसरी तरफ से आदेश—”मिस्टर राम मेहता को तुरंत रेस्टोरेंट की सबसे बेस्ट टेबल पर ले जाइए, पूरा स्टाफ सॉरी बोले, जब तक हेड ऑफिस से एग्जीक्यूटिव्स नहीं पहुंचते, टेबल के पास खड़े रहें।”
मैनेजर दौड़ता है, सिर झुकाता है—”सर, मैं शर्मिंदा हूं। प्लीज चलिए, हम आपको स्पेशल टेबल तक ले जाते हैं।”
वेटर उनका झोला उठाता है, होस्टेस आगे चलती है, गार्ड दरवाजा खोलता है।
रेस्टोरेंट की सबसे बेहतरीन टेबल पर राम मेहता को बैठाया जाता है।
अब माहौल बदल चुका था। लोग रिकॉर्डिंग कर रहे थे, कोई पूछ रहा था—”कौन है ये अंकल?”
राम मेहता किसी से कुछ नहीं कहते, बस डायरी खोलकर लिखते हैं।
कुछ देर बाद एग्जीक्यूटिव्स, वाइस प्रेसिडेंट, पर्सनल असिस्टेंट, गार्ड्स—सब आते हैं।
वाइस प्रेसिडेंट सिर झुकाकर कहते हैं—”सर, हेड ऑफिस से मुझे भेजा गया है। आपके जैसा शेयरहोल्डर हमारे लिए सम्मान की बात है। हमारे सीईओ और चेयरमैन भी खुद यहां आ रहे हैं।”
राम मेहता डायरी बंद करते हैं, सीईओ को कॉल करते हैं।
सीईओ कहते हैं—”हेलो सर, आई एम डीपली सैडन बाय द इनक्वीनियंस कॉस्ट टू यू।”
राम मेहता बीच में टोकते हैं—”इट्स ऑलराइट समीर। आई एम लिविंग फॉर नाउ। लेकिन कोई भी जॉब से निकाला नहीं जाना चाहिए। ट्रेन दें, सजा नहीं। आई वुड बी मीटिंग यू सून।”
राम मेहता ने कॉफी का आखिरी सिप लिया, कप नीचे रखा, टेबल के पास खड़े मैनेजर, वेटर, होस्टेस, गार्ड की तरफ देखा। सबके चेहरे पर पछतावा था।
उन्होंने डायरी से एक पन्ना फाड़कर टेबल पर रखा, फिर खड़े हुए।
पूरे रेस्टोरेंट की निगाहें उन पर थीं।
राम मेहता ने शांत लेकिन गहरी आवाज में कहा—
“मैं जानने आया था कि मैंने पैसा एक बिजनेस में लगाया है या एक सोच में।
तुम लोगों ने बता दिया—यहां कपड़ों का रंग कस्टमर की इज्जत से बड़ा है।
शायद इसी वजह से यह शहर चमक रहा है, लेकिन सिर्फ दूर से।
प्रोफेशनल वही है जो हर कस्टमर को एक जैसा समझे—चाहे उसके जूते नए हों या फटे।
याद रखना, कई बार जिसे तुम कॉफी खरीदने लायक नहीं समझते, वही तुम्हारे जैसे कई लोगों का घर चला रहा होता है।”
उन्होंने डायरी का दूसरा पेज वेटर को दिया—
“पढ़ो, इसमें लिखा है जो मैं तुम सबसे कहकर जाने वाला था।
पर अब नहीं कहूंगा, क्योंकि तुम्हें खुद समझना चाहिए कि गलती सिर्फ सर्विस की नहीं, सोच की होती है।
अगर सोच सही है तो सर्विस भी सही होगी। वरना सारी ट्रेनिंग सिर्फ कागज बनकर रह जाएगी।”
फिर होस्टेस की तरफ पलटे—
“तुमने मेरी तरफ एक बार भी डायरेक्टली नहीं देखा।
शायद इसलिए कि तुम्हें लगा मैं तुम्हारे स्टैंडर्ड का नहीं हूं।
तुम देखने की जगह छांटना सीख चुकी हो।
याद रखना, आंखें रुतबा देख सकती हैं, लेकिन इज्जत नजरिए से मिलती है।”
पूरे रेस्टोरेंट में सन्नाटा था।
पब्लिक मोबाइल बंद कर चुकी थी, सब सिर्फ एक बुजुर्ग को जाते हुए देख रहे थे।
लेकिन वह सिर्फ एक आदमी नहीं थे, वो एक लेसन थे।
एग्जिट से पहले राम मेहता दरवाजे पर रुककर बोले—
“मैं जा रहा हूं।
पर अगर कभी वह कॉफी याद आए जो मैंने नहीं, तुमने ठुकराई थी,
तो समझ लेना—इज्जत मिलती नहीं, कमाई जाती है।”
राम मेहता जैसे ही बाहर निकलते हैं, गार्ड दरवाजा खोलता है, चेहरे पर पहली बार सच्ची इज्जत थी।
बाहर हल्की धूप थी, लेकिन गांधी चौक का माहौल बदल चुका था।
जो लोग अंदर कैपचीनो पी रहे थे, उनके फोन पर वही आदमी वायरल हो चुका था—
एक आदमी जिसने बिना आवाज ऊंची किए सिस्टम को झुका दिया।
मैनेजर अभी भी उस खाली टेबल के पास खड़ा था।
टेबल पर वही डायरी का पेज पड़ा था जिसमें एक सिंपल लाइन लिखी थी—
“कॉफी ठंडी हो सकती है लेकिन इंसानियत गर्म होनी चाहिए।”
शाम को सीईओ अपने केबिन में बैठा होता है।
एग्जीक्यूटिव उसे राम मेहता की रिपोर्ट देता है।
सीईओ डायरी का पेज पढ़ता है, आंख बंद करता है, और सेक्रेटरी से कहता है—
“इस महीने के एंड तक सभी ब्रांचेस में स्टाफ ट्रेनिंग रिफ्रेश प्रोग्राम शुरू करो। नाम होगा—रिस्पेक्ट फर्स्ट।”
दोस्तों, अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो चैनल को सब्सक्राइब करें और शेयर करें।
क्योंकि इंसानियत ही सबसे बड़ी पहचान है।
News
मुंबई की उदास शाम: अभिषेक, रिया और अनन्या की कहानी
मुंबई की उदास शाम: अभिषेक, रिया और अनन्या की कहानी मुंबई की शाम हमेशा एक अजीब सी उदासी से भरी…
जिगरी दोस्त की गद्दारी! करोड़ों की कंपनी के लिए जान से मारने की साजिश
मुंबई की उदास शाम: अभिषेक, रिया और अनन्या की कहानी मुंबई की शाम हमेशा एक अजीब सी उदासी से भरी…
दिल्ली की टेक विधि कंपनी की असली वारिस: निहारिका की कहानी
दिल्ली की टेक विधि कंपनी की असली वारिस: निहारिका की कहानी दिल्ली के पॉश इलाके में टेक विधि कंपनी की…
जिस लड़की को गरीब समझकर कंपनी से बेइज्जत करके निकाला वो उसी कंपनी की गुप्त मालिक निकली #kahani
दिल्ली की टेक विधि कंपनी की असली वारिस: निहारिका की कहानी दिल्ली के पॉश इलाके में टेक विधि कंपनी की…
एक करोड़पति के बेटे की अधूरी मोहब्बत: सच्चे रिश्तों की कहानी
एक करोड़पति के बेटे की अधूरी मोहब्बत: सच्चे रिश्तों की कहानी मित्रों, एक बड़ा सा शहर था। उसकी चमकती सड़कों…
20 साल बाद मंदिर में मिली कॉलेज की प्रेमिका | सालों का दर्द छलक पड़ा … | Emotional Story
एक करोड़पति के बेटे की अधूरी मोहब्बत: सच्चे रिश्तों की कहानी मित्रों, एक बड़ा सा शहर था। उसकी चमकती सड़कों…
End of content
No more pages to load