गांव के मजदूर लड़के से करोड़पति बेटी की शादी – अनन्या और सावित्री की कहानी

राजेश मल्होत्रा शहर के बड़े बिजनेस घरानों में गिने जाते थे। करोड़ों की संपत्ति, दर्जनों कंपनियां और एक इकलौती बेटी – अनन्या।
अनन्या पढ़ी-लिखी, खूबसूरत थी, लेकिन पैसों के घमंड में इंसानियत और विनम्रता भूल चुकी थी। राजेश कई बार समझाने की कोशिश करते कि इंसान की कीमत कपड़ों या बैंक बैलेंस से नहीं होती, लेकिन अनन्या पर पैसे का नशा चढ़ चुका था।

एक दिन राजेश ने देखा कि अनन्या घर के पुराने ड्राइवर पर गाड़ी ठीक से साफ न करने के लिए चिल्ला रही थी।
“इस गंदगी में बैठूं मैं? क्या तुम लोग सिर्फ पैसे खाने आते हो?”
ड्राइवर सिर झुका कर चुपचाप खड़ा रहा, लेकिन राजेश का दिल कांप उठा। वही ड्राइवर जिसने कभी उसकी बीवी को हॉस्पिटल पहुंचाया था जब अनन्या पैदा हुई थी, आज उसी पर अनन्या गुस्सा निकाल रही थी।

राजेश ने उसी वक्त ठान लिया कि अब बहुत हो गया, उसे अपनी बेटी को असली इंसानियत से मिलवाना होगा।
अगले दिन राजेश को काम के सिलसिले में पास के एक गांव जाना पड़ा। रास्ते में बारिश में उसकी कार खराब हो गई। ड्राइवर अगले गैरेज तक पैदल चला गया और राजेश अकेले कार में बैठा रहा।
करीब आधे घंटे बाद एक लड़की छाता लिए आई। उसके कपड़े कीचड़ से सने थे, लेकिन आंखों में आत्मविश्वास था।
उसने छाता राजेश के ऊपर किया और बोली – “भीतर पानी आ रहा होगा बाबूजी, चाय ला दूं क्या?”
राजेश हैरान रह गया। लड़की ने उसका चेहरा तक नहीं देखा, बस इंसान समझकर मदद करने आई थी। उसका नाम था सावित्री।
वह पास में चाय की दुकान चलाती थी। उसने राजेश को बेंच पर बैठाया, चाय दी, एक पुराना तौलिया लाकर दिया।
राजेश ने मना किया तो बोली – “आप हमारे मेहमान हैं। भगवान कहते हैं अतिथि सेवा ही धर्म है।”

राजेश अवाक था। इतना सम्मान, इतना अपनापन बिना किसी स्वार्थ के।
उसे अपनी बेटी की तस्वीर याद आ गई, जो अपने घर के नौकरों को एक आंख भी नहीं देखती।
उस रात राजेश सो नहीं पाया। बार-बार वही लड़की, उसकी मुस्कान और सेवाभाव याद आता रहा।
सुबह होते ही उसने फैसला किया – अब वक्त है अनन्या को असली इंसानियत से मिलवाने का।

नाश्ते की मेज पर राजेश ने अनन्या से कहा –
“मैं चाहता हूं कि तू एक महीने के लिए मेरी एक जानने वाली लड़की के साथ रहे। कोई नौकर नहीं, कोई कामवाली नहीं, बस एक इंसान जिसे तू अपनी बहन मानकर देखना।”
अनन्या हंसी – “डैड, ये कौन सा नया ड्रामा है?”
राजेश गंभीरता से बोले – “बस एक महीना। अगर तू मुझे थोड़ा भी मानती है तो यह कर। बाकी फैसला तेरे हाथ में रहेगा।”
अनन्या ने आखिरकार हामी भर दी।

तीन दिन बाद सावित्री शहर आई।
सीधी-सादी लड़की, सूती साड़ी में, दो जोड़ी कपड़ों के साथ।
राजेश ने उसे घर के एक हिस्से में ठहराया और अनन्या से कहा – “इस लड़की के साथ तू समय बिताएगी, उसे ऑब्जर्व करेगी, उसके साथ चलेगी, खाएगी, जैसे बहनें होती हैं।”