सुहानी की हिम्मत – दर्द, संघर्ष और आत्मसम्मान की कहानी
नमस्कार दोस्तों! आज मैं आपको एक ऐसी औरत की कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जिसने अपनी जिंदगी की सबसे मुश्किल घड़ी में हार नहीं मानी – बल्कि अपने बच्चे और आत्मसम्मान के लिए पूरी दुनिया से लड़ गई।
सुहानी कभी टूटी हुई नहीं थी। तीन साल पहले तक उसकी जिंदगी भी आम लड़कियों जैसी थी – सपनों से भरी, उम्मीदों से रंगी। एक कैफे में उसकी मुलाकात अरविंद से हुई। छोटी-छोटी बातें, दोस्ती, फिर प्यार और शादी। शुरू के कुछ दिन बहुत अच्छे थे। लेकिन वक्त बदलने लगा। अरविंद का बिजनेस डूबने लगा, पैसों की तंगी आई, घर में तनाव बढ़ गया। छोटी-छोटी बातों पर झगड़े होने लगे। एक दिन गुस्से में अरविंद ने कह दिया – “तुम मेरी किस्मत की सबसे बड़ी गलती हो।”
सोचिए, जब जिसे अपना सब कुछ मान लिया, वही आपको बोझ कह दे। सुहानी ने चुपचाप अपना बैग उठाया और मायके चली गई। लेकिन वहाँ भी सहारा नहीं मिला। मां-बाप पहले ही गुजर चुके थे, भाई उसे बोझ समझने लगे। कुछ हफ्तों बाद कोर्ट में तलाक हो गया। अरविंद के चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था और सुहानी ने भी बिना आंसू बहाए दस्तखत कर दिए।
अब उसके पास बस एक टूटा-फूटा कमरा, कुछ बर्तन और उसके पेट में पलती एक मासूम धड़कन थी। वही बच्चा उसका सहारा था और उसकी मजबूरी भी। सुहानी जानती थी कि दुनिया में उसके लिए कोई दरवाजा आसानी से नहीं खुलेगा। लेकिन उसने ठान लिया – अपने बच्चे को साबित करना है कि उसकी मां कमजोर नहीं है।
वह काम की तलाश में निकली। बेकरी गई – मैनेजर ने हंसकर बोला, “तुमसे 2 किलो भी नहीं उठेगा।” सिलाई कारखाने में मालिक ने कहा, “बच्चा होगा तो छुट्टी लोगी, हमें ऐसे लोग नहीं चाहिए।” किराना दुकान वाले ने बिना देखे मना कर दिया। हर जगह से ठुकराया गया। शरीर थक गया, पैर भारी हो गए, लेकिन हिम्मत बाकी थी। किसी तरह लोगों के घरों में काम करके गुजारा करने लगी।
एक दिन बस स्टैंड की बेंच पर बैठी थी। पेट पर हाथ रखते हुए बोली, “बेटा, मम्मी हार नहीं मानेगी।” बगल में बैठी बुजुर्ग औरत ने उसकी हथेली पर एक कागज रखा – “यह पता है, वहाँ एक बड़ी कंपनी है। मालिक सख्त है, लेकिन अगर तुम्हारी सच्चाई दिल को छू गई तो काम जरूर देगा। हिम्मत मत हारना।” सुहानी ने उस कागज को कसकर पकड़ लिया। डर भी था और उम्मीद भी।
रात भर करवटें बदलती रही। खुद से वादा किया – यह नौकरी सिर्फ पैसे के लिए नहीं, मेरी इज्जत की लड़ाई है। अगली सुबह पुराने दुपट्टे को सिर पर डालकर, पर्स में कुछ सिक्के रखकर वह कंपनी के गेट तक पहुँची। रिसेप्शन पार करके मालिक के केबिन में गई – सामने अरविंद बैठा था! उसकी सांसें थम गईं, हाथ में बायोडाटा कांपने लगा।
अरविंद ने ठंडी आवाज में पूछा, “तुम यहाँ?” सुहानी ने हिम्मत जुटाई – “हाँ, नौकरी मांगने आई हूँ।” अरविंद ने व्यंग्य से कहा, “इस हालत में काम करोगी?” सुहानी बोली, “हाँ, क्योंकि मुझे अपने बच्चे को किसी का मोहताज नहीं बनने देना है। मैं बोझ नहीं हूँ, और ना कभी रहूँगी।”
अरविंद ने बायोडाटा देखा, कंपनी के सख्त नियमों की बात की। सुहानी ने उसकी बात काट दी – “मैं यहाँ बीवी बनकर नहीं आई हूँ, इंसान बनकर आई हूँ।” अरविंद ने एक हफ्ते का ट्रायल दिया। सुहानी ने मुस्कुराकर कहा, “एक हफ्ता नहीं, पूरी जिंदगी संभाल सकती हूँ।”
ऑफिस का माहौल उसके लिए बिल्कुल नया था। हर नजर उसके पेट पर अटक रही थी। एचआर ने मोटी फाइलें दीं – शाम तक डाटा तैयार करना था। पीठ में दर्द उठा, लेकिन शिकायत नहीं की। दोपहर में एक लड़की ने ताना मारा – “दीदी, घर पर आराम करने का टाइम नहीं मिला क्या?” सुहानी ने मुस्कुराकर जवाब दिया – “आराम बाद में हो सकता है, कमाने का मौका अभी है।”
शाम तक उसने पूरी ताकत झोंक दी। अरविंद ने फाइलें देखीं, डाटा चेक किया – “तुमने मेहनत की है।” सुहानी बोली, “मेहनत करनी ही पड़ेगी, ताकि मेरा बच्चा कह सके कि उसकी मां ने हार नहीं मानी थी।”
अगले दिन आउटडोर प्रोजेक्ट मिला। धूप, भीड़, भागदौड़ – पेट भारी था, दर्द था, लेकिन सुहानी ने बिना शिकायत काम किया। शाम तक सब परफेक्ट था। क्लाइंट ने तारीफ की, अरविंद ने कहा – “यह हमारी टीम की नई मेंबर सुहानी है।” तालियाँ गूंजी। सुहानी की आँखें भर आईं, लेकिन मुस्कान थी – उसने जीत हासिल की थी।
कुछ दिन बाद अचानक सुहानी को तेज दर्द हुआ। उसे अस्पताल ले जाया गया। खबर अरविंद तक पहुँची – वह घबराकर दौड़ पड़ा। वार्ड के बाहर बेचैनी से टहलता रहा। कुछ घंटे बाद नर्स आई – “माँ और बच्चा दोनों सुरक्षित हैं।” अरविंद की आँखों से आँसू बह निकले। कमरे में गया, सुहानी की गोद में बच्चा था। उसने बच्चे को उठाया – “मैं तुम्हें और तुम्हारी माँ को कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा।”
कुछ हफ्तों बाद ऑफिस में खबर आई – सुहानी कंपनी की नई क्रिएटिव हेड बन गई। लोग फुसफुसा रहे थे, लेकिन अरविंद जानता था – यह पद सुहानी की मेहनत और आत्मसम्मान का नतीजा है। उसकी पहचान अब सिर्फ अरविंद की पत्नी या तलाकशुदा औरत की नहीं थी, बल्कि एक मजबूत औरत की थी जिसने अपने बच्चे और इज्जत के लिए लड़ाई जीती थी।
एक दिन कंपनी की सालाना पार्टी में अरविंद ने स्टेज पर आकर कहा – “एक साल पहले मैंने एक औरत को छोड़ दिया था, जो गर्भवती थी। मैंने उसकी ताकत को कमजोरी समझ लिया, लेकिन आज वही औरत मेरी कंपनी की जान है और मेरे बेटे की माँ।” पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।
अरविंद ने कहा, “सुहानी, मैं माफी नहीं माँगता, माफी शायद मेरे गुनाहों के लिए काफी नहीं होगी। बस कहना चाहता हूँ, अगर तुम चाहो तो फिर से शुरुआत करना चाहता हूँ।” सुहानी स्टेज पर आई, धीमी आवाज में बोली, “शुरुआत के लिए सिर्फ माफी काफी नहीं होती, भरोसा चाहिए। भरोसा टूटने में एक पल लगता है, मगर बनने में पूरी जिंदगी।”
इतना कहकर वह नीचे उतर गई। हॉल में सन्नाटा छा गया, अरविंद के हाथ माय पर जमे रह गए, और अब उसके पास बस पछतावा और अकेलापन बचा था।
दोस्तों, यही सच है – प्यार सिर्फ दिल जीतना नहीं, भरोसा जीतना भी है। और भरोसा वही बनता है जब इंसान मुश्किल वक्त में भी साथ खड़ा हो।
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