मुंबई की उदास शाम: अभिषेक, रिया और अनन्या की कहानी
मुंबई की शाम हमेशा एक अजीब सी उदासी से भरी होती थी। सूरज डूबते हुए जैसे शहर की चमचमाती इमारतों को अलविदा कह रहा था। उसी शहर में अभिषेक सक्सेना, 35 साल का एक सफल उद्यमी, अपनी कंपनी ‘सक्सेना टेक सॉल्यूशंस’ की ऊपरी मंजिल पर खिड़की से बाहर झांक रहा था। उसके पास अरबों की दौलत, लग्जरी कारें, पेंटहाउस सब कुछ था, लेकिन दिल में एक खालीपन था जो कभी नहीं भरता।
दस साल पहले की वो रात, जब उसकी जिंदगी बदल गई थी, आज भी उसके सपनों में आती थी—रिया की मुस्कान, अनन्या की छोटी सी हंसी। अभिषेक अक्सर सोचता, क्या जीवन सिर्फ सफलता की सीढ़ियां चढ़ने तक सीमित है या उसमें कुछ और भी है? कंपनी के कर्मचारी उसे सख्त बॉस मानते थे, लेकिन कोई नहीं जानता था कि उसके अंदर एक टूटा हुआ पिता और पति छिपा है।
दस साल पहले अभिषेक, उसकी पत्नी रिया और एक साल की बेटी अनन्या हिमाचल की पहाड़ियों पर घूमने गए थे। रास्ता सुंदर था, हवा में ठंडक और दिल में खुशी। अचानक कार के ब्रेक ने काम करना बंद कर दिया, कार सड़क से फिसल गई और खाई में गिर गई। धमाका, दर्द और फिर अंधेरा। जब अभिषेक की आंखें खुलीं, वह हॉस्पिटल के बेड पर था। पुलिस ने बताया कि उसे गांव वालों ने बचाया, लेकिन रिया और अनन्या का कोई निशान नहीं मिला। महीनों तक अभिषेक ने उन्हें ढूंढा, पोस्टर्स लगवाए, इनाम घोषित किया, लेकिन सब व्यर्थ रहा। डॉक्टरों ने कहा शायद वे बच नहीं पाईं, लेकिन अभिषेक का दिल मानने को तैयार नहीं था।
समय बीतता गया। अभिषेक ने कंपनी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, लेकिन दिल का दर्द हमेशा उसके साथ रहा। ऑफिस के बाहर एक बड़ा कचरा डिब्बा था, जहां कैफेटेरिया का बचा हुआ खाना फेंका जाता था। अभिषेक को क्या पता था कि इसी डिब्बे से रोज एक छोटी सी लड़की खाना निकाल कर ले जाती थी। वह लड़की लगभग 10-11 साल की थी, दुबली-पतली, फटे पुराने कपड़े, बिखरे बाल और आंखों में गहरी उदासी। उसका नाम अनन्या था, लेकिन यह किसी को पता नहीं था।
वह अपनी मां के साथ एक छोटी सी झोपड़ी में रहती थी, जहां हर दिन एक संघर्ष था। एक शाम अभिषेक ने अपनी टीम के साथ बड़ी मीटिंग खत्म की, डील साइन हुई, सब खुश थे, लेकिन उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं। वह कैफेटेरिया से कॉफी लेकर बाहर निकला, तभी उसकी नजर उस लड़की पर पड़ी। वह डिब्बे के पास खड़ी थी, सावधानी से एक पैकेट निकाल रही थी। अभिषेक को उसके चेहरे में कुछ जाना-पहचाना सा लगा। जिज्ञासा ने उसे आगे बढ़ने पर मजबूर कर दिया। उसने चुपके से अपना फोन निकाला, लड़की की तस्वीर खींच ली और उसके पीछे चल पड़ा।
लड़की तेज कदमों से चल रही थी, उसके कंधे पर एक पुराना थैला था। अभिषेक ने अपनी टाई ढीली की, कोट उतारा और भीड़ में छिपते हुए उसका पीछा किया। लड़की एक संकरी गली में घुस गई, जहां झोपड़ियां बनी हुई थीं। वह एक जर्जर झोपड़ी के सामने रुकी, अंदर घुसी। अभिषेक ने साहस जुटाकर पर्दे के पास पहुंचा, धीरे से पर्दा हटाया और अंदर कदम रखा। जैसे ही उसका पैर जमीन पर पड़ा, एक क्लिक की आवाज आई और वह नीचे गिर पड़ा।
अंधेरे में उसकी सांसें तेज चल रही थीं, हाथ-पैर रस्सियों से बंधे थे, मुंह पर टेप लगा था। कमरे में हल्की रोशनी फैली और वही लड़की अंदर आई, लेकिन अब उसके चेहरे पर मासूमियत नहीं थी। उसने अपना मास्क उतारा, नीचे से निकला एक जवान औरत का चेहरा—करीब 30 साल की, सुंदर लेकिन आंखों में ठंडी चमक। उसने कहा, “स्वागत है अभिषेक सक्सेना। तुम यहां पहुंच ही गए। मैं इंतजार कर रही थी।”
अभिषेक ने हिम्मत जुटाकर पूछा, “तुम कौन हो? मुझे यहां क्यों लाया?” औरत ने हंसते हुए टेप हटाया, “अब बोलो, क्या कहना चाहते हो?” अभिषेक का गला सूखा था, “तुम कौन हो?” औरत की आंखों में आंसू चमके, “राज… हां, वो राज नहीं, साजिश थी। तुम्हारे पार्टनर विक्रम की साजिश। उसने ब्रेक फेल करवाए ताकि तुम मर जाओ। लेकिन किस्मत ने तुम्हें बचा लिया।”
अभिषेक स्तब्ध था। विक्रम उसका पुराना पार्टनर था। “नहीं, ये झूठ है।” औरत ने सिर हिलाया, “दोस्ती पैसों के लिए बिक जाती है। मैंने सबूत देखे हैं—मैसेज, कॉल रिकॉर्ड्स। लेकिन तुम आगे बढ़ गए, नई जिंदगी, नई सफलता और हम सड़कों पर।”
अभिषेक ने पूछा, “हम?” औरत मुस्कुराई, “हां, उस आदमी का कि असहम बिगन हम… वो लड़की जो तुमने पीछा किया, वह मेरी बेटी है। हर दिन कचरे से खाना निकालना, भीख मांगना, यही उसकी जिंदगी है। और मैं उसकी मां हूं, जो सब कुछ खो चुकी है।”
अभिषेक के मन में सवालों का सैलाब था। “तुम… रिया हो?” औरत ने उसे घूरा, “रिया… हां, वो नाम सुना हुआ लगता है। लेकिन अब मैं सिर्फ एक गरीब औरत हूं। मेरी बेटी अनन्या है।”
अभिषेक ने सिर हिलाया, “मैंने तुम्हें ढूंढा था सालों तक। लेकिन विक्रम… अगर वह साजिश थी तो मैं उसे सजा दूंगा। मुझे छोड़ दो, हम साथ…” लेकिन औरत ने हाथ उठाया, “अब बहुत देर हो चुकी है। तुम्हारी दुनिया अमीरी की, हमारी गरीबी की। मैंने तुम्हें यहां इसलिए लाया ताकि तुम देखो वो दर्द जो हमने झेला।”
कमरे में सन्नाटा छा गया। अभिषेक की नजर टेबल पर पड़ी एक पुरानी तस्वीर पर गई। उसमें एक आदमी, औरत और बच्ची थी—चेहरा उसका अपना, लेकिन धुंधला। “ये क्या है?” औरत ने तस्वीर छिपा ली, “यह मेरा राज है, अभी नहीं। सोचो अभिषेक, तुम्हारी जिंदगी में कितने राज छिपे हैं?”
रात गहराती गई। अभिषेक अकेला था, विचारों में डूबा। क्या वह सचमुच रिया थी? उसकी रिया जिसे उसने दस साल पहले खो दिया था? और वह लड़की अनन्या क्या उसकी बेटी थी? लेकिन अगर यह सच था तो इतने साल वे कहां थीं?
रिया ने एक पुरानी कुर्सी खींची और अभिषेक के सामने बैठ गई, “तुम सोच रहे हो ना कि मैं झूठ बोल रही हूं? मैं तुम्हें सबूत दिखाऊंगी।” उसने टेबल से एक पुराना फोन उठाया और एक ऑडियो चलाया। आवाज थी विक्रम की, “सुनो, ब्रेक फेल होने चाहिए, कोई सबूत नहीं छोड़ना, सक्सेना को खत्म करना है।” अभिषेक का खून जम गया।
रिया ने बताया, “हादसे के बाद गांव वालों ने मुझे और अनन्या को बचाया था। मैं बेहोश थी, अनन्या रो रही थी। उनकी देखभाल ने हमें जिंदगी दी। लेकिन मेरी यादें चली गईं। मैं नहीं जानती थी कि मैं कौन हूं, मेरा घर कहां है। सिर्फ अनन्या का चेहरा मेरे साथ था। मैं डर गई थी, गांव से निकल पड़ी, भटकती रही। आखिरकार मुंबई पहुंची, उसी शहर में जहां हमारा घर था। लेकिन अब मैं एक झोपड़ी में रहती हूं।”
अनन्या को मैंने तुम्हारी कंपनी के बाहर भेजा, सोचा शायद तुम देखो। लेकिन तुम अपनी चमकदार दुनिया में खोए रहे। अभिषेक की आंखें नम थीं, “रिया, मैंने तुम्हें ढूंढा था सालों तक—प्राइवेट डिटेक्टिव्स, पुलिस, हर जगह। लेकिन सबने कहा तुम मर चुकी हो। मैं टूट गया था।” रिया का चेहरा कठोर रहा, “तुमने जिंदगी जी और मैंने सड़कों पर भीख मांगी, कचरे से खाना उठाया, अनन्या को स्कूल नहीं भेज सकी। हर दिन उसकी आंखों में सवाल देखती हूं—मम्मी, हम ऐसा क्यों जी रहे हैं?”
कमरे में सन्नाटा छा गया। अभिषेक ने सिर झुका लिया। अगर तुम रिया हो तो मुझे छोड़ दो, हम विक्रम को सजा देंगे। मैं तुम दोनों को सब कुछ दूंगा—घर, प्यार, सब। रिया हंस पड़ी, “प्यार… अब बहुत देर हो चुकी है। लेकिन हां, तुम सजा पाओगे। मैंने सबूत इकट्ठा किए हैं विक्रम को बर्बाद करने के लिए। लेकिन पहले तुम्हें मेरी जिंदगी का दर्द समझना होगा।”
तभी दरवाजा खुला, अनन्या अंदर आई। उसके हाथ में एक पुराना खिलौना था। “मम्मी, यह आदमी कौन है?” अभिषेक का दिल टूट गया। “अनन्या…” उसने धीरे से कहा, लेकिन रिया ने उसे रोक दिया, “उसे कुछ मत कहो। वह नहीं जानती।” अनन्या ने अभिषेक को देखा, “मम्मी, यह हमें नहीं मारेंगे ना?” रिया ने उसे गले लगाया, “नहीं बेटा, यह बस एक पुराना दोस्त है।”
अभिषेक ने देखा कि टेबल पर रिया का फोन रखा था। उसने धीरे से कुर्सी हिलाई, रस्सियों को ढीला करने की कोशिश की। रिया अनन्या को बाहर ले गई। अभिषेक ने मौका देखा, वह कुर्सी समेत गिर पड़ा, दर्द से कराहते हुए फोन तक पहुंच गया। उसने अपने असिस्टेंट को मैसेज किया, “हेल्प, किडनैप, लोकेशन ट्रैक करो।” तभी दरवाजा खुला, रिया वापस आई, “क्या कर रहे हो?” उसने फोन छीन लिया।
तभी बाहर से सायरन की आवाज आई। रिया चौकी, “पुलिस?” अभिषेक ने सिर हिलाया, “मैंने मैसेज भेज दिया।” पुलिस ने बंकर में प्रवेश किया। रिया ने हथियार डाल दिए। अभिषेक को छुड़ाया गया, लेकिन उसने पुलिस से कहा, “इन्हें मत पकड़ो, यह मेरी पत्नी और बेटी हैं।” पुलिस ने सारी कहानी सुनी, रिया को हल्की सजा हुई, लेकिन अभिषेक की गवाही ने उसे जल्दी छुड़ा लिया। अभिषेक ने विक्रम को सबूतों के साथ पुलिस के पास भेजा, विक्रम गिरफ्तार हुआ।
समय बीता। अभिषेक ने रिया और अनन्या को अपने घर लाया। रिया की याददाश्त धीरे-धीरे लौट रही थी। अनन्या ने स्कूल शुरू किया। अभिषेक ने कंपनी में गरीब बच्चों के लिए एक फाउंडेशन बनाया, ताकि कोई और अनन्या कचरे से खाना ना उठाए।
झोपड़ी का रहस्य सिर्फ एक जाल नहीं, बल्कि एक टूटी हुई जिंदगी की कहानी थी। लेकिन अब एक नई शुरुआत थी—प्यार और माफी की राह पर।
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