जिले की डीएम और इंस्पेक्टर की कहानी – कानून सबके लिए बराबर है
सुबह का समय था। जिले की सबसे बड़ी अधिकारी, डीएम नेहा शर्मा, साधारण सलवार सूट पहनकर अपनी स्कूटी से ऑफिस जा रही थीं। वे बिल्कुल आम महिला की तरह दिख रही थीं। जैसे ही वे बाजार के पास पहुँची, उनकी स्कूटी अचानक खराब हो गई। नेहा शर्मा चिंता में पड़ गईं—दफ्तर पहुँचने में देर हो जाएगी।
उन्होंने पास खड़े एक आदमी से पूछा, “भैया, यहाँ कहीं मैकेनिक की दुकान है क्या?”
आदमी ने बताया, “थोड़ी दूर पर एक मैकेनिक है।”
नेहा शर्मा धीरे-धीरे स्कूटी लेकर उस दुकान तक पहुँचीं और बोलीं, “भैया, मेरी स्कूटी खराब हो गई है, जल्दी ठीक कर दीजिए।”
मैकेनिक काम शुरू ही कर रहा था कि तभी वहाँ इंस्पेक्टर अर्जुन सिंह आ पहुँचे। उनकी गाड़ी भी खराब हो गई थी। वे गुस्से में चिल्लाए, “अरे, मेरी गाड़ी ठीक करो, मुझे बहुत काम है, जल्दी करो!”
मैकेनिक ने कहा, “साहब, थोड़ी देर रुक जाइए, पहले मैडम की स्कूटी ठीक कर दूँ, बस 10 मिनट लगेंगे।”
इंस्पेक्टर और गुस्से में आ गया, “10 मिनट नहीं बैठूंगा, पहले मेरी गाड़ी ठीक करो, ज्यादा बकवास मत करो!”
नेहा शर्मा ने विनम्रता से कहा, “सर, मुझे भी जल्दी जाना है, कृपया पहले मेरा काम कर दीजिए। आपका भी हो जाएगा।”
इंस्पेक्टर तिलमिला उठा, “तुम हमसे जुबान लड़ाओगी? दिख नहीं रहा मैं कौन हूँ? अभी दो थप्पड़ मार दूँगा, दिमाग ठिकाने आ जाएगा!”
इंस्पेक्टर को यह पता नहीं था कि सामने जो साधारण महिला खड़ी है, वह जिले की डीएम है। नेहा शर्मा ने शांत लेकिन दृढ़ आवाज में कहा, “देखिए, यहाँ सबको अपना-अपना काम है। सिर्फ आप ही अकेले नहीं हैं। आप भी इंतजार कर सकते हैं।”
यह सुनकर इंस्पेक्टर ने अचानक नेहा शर्मा के गाल पर थप्पड़ मार दिया। “तू मुझे जानती नहीं है, मैं थाने का दरोगा हूँ। चाहूँ तो तुझे बहुत मारूँ। पहले मेरी गाड़ी ठीक करना!”
मैकेनिक घबरा गया। उसने सोचा, पुलिस वाले को समझाना ठीक रहेगा। उसने इंस्पेक्टर की गाड़ी ठीक करने का काम शुरू कर दिया। नेहा शर्मा चुपचाप बैठकर इंतजार करती रहीं।
कुछ देर बाद इंस्पेक्टर की गाड़ी ठीक हो गई। वह जाने लगा तो मैकेनिक ने कहा, “साहब, आपके पैसे तो दीजिए!”
इंस्पेक्टर बोला, “पैसे मुझसे लेगा? मैं पुलिस वाला हूँ, मुझे पैसे मांगने की हिम्मत?” और गुस्से में जाने लगा।
नेहा शर्मा ने कहा, “साहब, आपको इनकी मेहनत का पैसा देना ही पड़ेगा। आपने इनका काम कराया है, इनका हक है। अगर आप बिना भुगतान गए तो इनके घर का चूल्हा नहीं जलेगा। आप पैसे दीजिए तभी जाइए।”
इंस्पेक्टर फिर से गुस्से में बोला, “फिर से जुबान चला रही है? थप्पड़ पड़ेगा!”
मैकेनिक हाथ जोड़कर बोला, “सर, हम गरीब हैं, रोज कमाते हैं, परिवार चलता है। हमारी मेहनत का पैसा दीजिए।”
इंस्पेक्टर ने गुस्से में आकर मैकेनिक को भी थप्पड़ मार दिया। मैकेनिक बेचारा हाथ जोड़कर माफी मांगने लगा।
तभी नेहा शर्मा ने आवाज उठाई, “आप बिना वजह गरीब पर हाथ उठा रहे हैं। मैं इसके खिलाफ कार्यवाही करूंगी। आप कानून के रक्षक होकर कानून का मजाक बना रहे हैं। आपने मुझ पर भी हाथ उठाया है। अब आप बच नहीं पाएंगे। मैं आपको दिखाऊंगी कि कानून क्या होता है। मैं इस जिले की डीएम नेहा शर्मा हूँ।”
इंस्पेक्टर अर्जुन सिंह हँस पड़ा, “क्या कहा? तुम मेरे ऊपर कार्यवाही करोगी? तेरे अंदर इतनी ताकत है क्या? आईने में देख, भीख मांगने जैसी लग रही है।”
नेहा शर्मा चुप रहीं और शांत स्वर में बोलीं, “काम पूरा कराइए, मेरी स्कूटी ठीक कर दीजिए।”
इंस्पेक्टर गुस्से में गाड़ी स्टार्ट करके चला गया।
जब नेहा शर्मा की स्कूटी ठीक हो गई, उन्होंने अपने और इंस्पेक्टर दोनों के पैसे निकालकर मैकेनिक को दे दिए। मैकेनिक ने मना किया, “मैडम, आप अपना पैसा क्यों दे रही हैं?”
नेहा शर्मा ने कहा, “नहीं, आपका हक आपको ही मिलना चाहिए।”
मैकेनिक ने पैसे ले लिए। नेहा शर्मा स्कूटी लेकर दफ्तर के लिए निकल गईं।
दफ्तर पहुँचकर नेहा शर्मा ने आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को कॉल किया। किरण बेदी ने पूरी घटना सुनी और कहा, “अगर हमारे जिले का इंस्पेक्टर ऐसी हरकतें कर रहा है, तो आज ही उसके खिलाफ कार्यवाही शुरू करूंगी। मुझे आपका साथ चाहिए।”
नेहा शर्मा ने कहा, “मैं पूरा साथ दूंगी। उसे निलंबित कराकर सजा दिलवाऊंगी।”
किरण बेदी तुरंत थाने पहुँची। इंस्पेक्टर अर्जुन सिंह कुर्सी पर बैठा था, पैर टेबल पर रखे हुए। किरण बेदी को देखकर वह घबरा गया।
किरण बेदी ने सख्त आवाज में कहा, “मैं यहाँ तुम्हारी शिकायत सुनने आई हूँ। कल तुमने सड़क पर एक गरीब मैकेनिक के साथ बदतमीजी की, उसे थप्पड़ मारा, उसका मेहनत का पैसा छीन लिया। डीएम नेहा शर्मा पर भी हाथ उठाया। मैं इसकी जांच करने आई हूँ।”
इंस्पेक्टर डर के मारे बोला, “मैडम, मुझे नहीं पता था कि वह डीएम है। गलती हो गई, सॉरी मैडम।”
किरण बेदी ने सख्त आवाज में कहा, “चुप रहो! तुमने सिर्फ डीएम पर नहीं, एक आम नागरिक पर भी हाथ उठाया। कानून के रक्षक होकर कानून तोड़ा है। तुम्हारे खिलाफ कार्यवाही होगी।”
अगले दिन जिले के सबसे बड़े मीटिंग हॉल में प्रेस मीटिंग बुलाई गई। मीडिया, जनता—सब मौजूद थे।
डीएम नेहा शर्मा ने माइक उठाया, “कल जो हुआ, वह सिर्फ एक महिला अधिकारी या गरीब मैकेनिक से नहीं, पूरे सिस्टम की साख से जुड़ा है। कानून सबके लिए बराबर है।”
भीड़ तालियों से गूंज उठी।
मैकेनिक को बुलाया गया। उसने पूरी घटना बताई—कैसे इंस्पेक्टर ने थप्पड़ मारा, पैसे नहीं दिए। उसकी आंखों में आंसू थे।
अब डीएम नेहा शर्मा ने खुद सारी घटना बयान की।
फिर इंस्पेक्टर अर्जुन सिंह की बारी आई। वह कांपते हुए खड़ा हुआ, “मैडम, मुझसे गलती हुई, जानबूझकर नहीं किया।”
किरण बेदी ने टोक दिया, “बस, यह सब बहाने यहाँ नहीं चलेंगे। तनाव सबको होता है, इसका मतलब यह नहीं कि किसी गरीब को पीट दो, डीएम को थप्पड़ मार दो। तुमने अपनी वर्दी की गरिमा खो दी है। वर्दी का मतलब सेवा है, गुंडागर्दी नहीं।”
भीड़ से आवाजें आईं, “सस्पेंड करो इसे! गरीब को मारने वाला इंसाफ के लायक नहीं!”
किरण बेदी ने माइक उठाया, “इंस्पेक्टर अर्जुन सिंह, तुम्हारे खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। डीएम और प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही के आधार पर तुम्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है। साथ ही विभागीय जांच शुरू होगी। दोषी पाए गए तो नौकरी से बर्खास्त और आपराधिक मुकदमा भी चलेगा।”
पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। जनता “जस्टिस-जस्टिस” के नारे लगाने लगी।
मैकेनिक की आंखों में राहत के आंसू थे।
डीएम नेहा शर्मा ने उसके कंधे पर हाथ रखा, “अब तुम्हें डरने की जरूरत नहीं। कानून सबके लिए बराबर है। तुम्हारे हक की रक्षा करना हमारा फर्ज है।”
किरण बेदी ने भीड़ की तरफ देखा, “यह संदेश हर नागरिक तक जाना चाहिए—कानून से बड़ा कोई नहीं है।”
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